डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
 
 
 
 
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प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय
एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारत की खाद्यान्न सुरक्षा
में धान-गेंहू फसल प्रणाली का महत्वपूर्ण स्थान है।   जलवायु परिवर्तन के कारण निरंतर कम होते जल
स्त्रोत एवं मिट्टियों का खराब होते स्वास्थ्य जैसी समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए
धान-गेंहू फसल प्रणाली को उपजाऊ एवं आर्थिक दृष्टिकोण से लाभप्रद और टिकाऊ बनाये
रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है. गेंहू भारत की एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।  भारत
में वर्ष 2015-16 के दरम्यान  गेंहू की
खेती  30.97 मिलियन हेक्टेयर
क्षेत्र में की गई जिसमें 2872 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की दर से  88.94 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त हुआ. गेंहू की विश्व औसत उपज 3268 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की अपेक्षा भारत की औसत उपज लगभग 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कम है .जर्मनी में गेंहू की औसत उपज 7998 किग्रा. है तो फ़्रांस में यह औसत 7254 किग्रा. प्रति हेक्टेयर है, जो की हमारे देश की औसत उपज से दो गुना से अधिक है. भारत के विभिन्न प्रान्तों में गेंहू की औसत उपज में बहुत असमानता देखने को मिलती है. मसलन, मध्य
प्रदेश में यह 2900 किग्राम. है तो छत्तीसगढ़ में मात्र 1345 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की औसत दर से  उत्पादन होता है. गेंहू की औसत उपज की दृष्टि से हरियाणा (4574 किग्रा/हेक्टेयर)
एवं पंजाब (4491 किग्रा./हेक्टेयर) देश में सबसे आगे है जिनकी तुलना में मध्य
प्रदेश और छत्तीसगढ़ की औसत उपज बहुत कम है. जाहिर है भारत में विशेषकर धान-गेंहू फसल प्रणाली वाले क्षेत्रों में गेंहू उत्पादन बढ़ाने की असीम संभावनाएं मौजूद है।  यदि किसान भाई गेंहू
उत्पादन की आधुनिक वैज्ञानिक  विधियाँ
अपनाये तो निश्चित रूप से उनकी उपज और आमदनी में आशातीत वृद्धि हो सकती है। संसाधन सरंक्षण आधारित कम
लागत में गेंहू की अधिकतम  उपज लेने के लिए
आधुनिक तकनीक अग्र प्रस्तुत है.
गेंहू की खेती के लिए उचित
जल निकास वाली दोमट व बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है. खेत तैयार करने के लिए
प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिए।  इसके पश्चात हैरो
अथवा कल्टीवेटर  द्वारा क्रॉस जुताई करके
पाटा लगाकर मिटटी को समतल कर लेना चाहिए। आज कल गेंहू की उत्पादन लागत काम करने के लिए गेंहू की खेती शून्य जुताई विधि से करना फायदेमंद सिद्ध हो रहा है।   
उत्तम किस्मों के बीज का चयन
अधिक पैदावार प्राप्त करने
के लिए उन्नत किस्मों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  अतः गेंहू  का भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों का
चुनाव क्षेत्रीय अनुकूलता एवं बुवाई के समय को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए
जिससे इनकी उत्पादन क्षमता का लाभ लिया जा सकें। किसान भाइयों को उनके  
क्षेत्र के लिए संस्तुत उन्नत किस्मों के  प्रमाणित बीज का इस्तेमाल ही करना चाहिए।  समय से
बुवाई वाली किस्मों को विलंब से अथवा देरी से बुआई हेतु संस्तुत किस्मों को समय पर
बुआई करने से उपज में कमीं होती है।मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के लिए अनुमोदित गेंहू की प्रमुख उन्नत किस्मों की  अग्र तालिका में प्रस्तुत है। 
किस्म का नाम  
 | 
  
अवधि (दिन)  
 | 
  
उपज (क्विंटल/हे.) 
 | 
  
प्रमुख विशेषताएं  
 | 
 
सुजाता  
 | 
  
135-140   
 | 
  
25-30  
 | 
  
समय पर बुआई सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रो के
  लिए उपयुक्त. दाने चमकदार एवं 1000 दानों का वजन 42 ग्राम. म.प्र. एवं छत्तीसगढ़
  के लिए उपयुक्त  
 | 
 
डी.एल.-803  
 | 
  
120-125  
 | 
  
50-60  
 | 
  
सरबत किस्म है,सिंचित क्षेत्र समय से बुवाई
  हेतु उपयुक्त.1000 दानों का वजन 40-42 ग्राम. म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त  
 | 
 
जी.डब्ल्यू.-173  
 | 
  
110-115  
 | 
  
40-50  
 | 
  
शरबती किस्म देर से बुआई (15-20 दिसंबर) हेतु
  उपयुक्त. 1000 दानों का वजन 40-42 ग्राम. म.प्र. एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
जी.डब्ल्यू.-190  
 | 
  
125-130  
 | 
  
50-60  
 | 
  
शरबती किस्म समय से बुआई हेतु उपयुक्त. 1000
  दानों का वजन 40-42 ग्राम. म.प्र. के लिए उपयुक्त 
 | 
 
मंगला (एच.आई.-1077)  
 | 
  
125-135  
 | 
  
50-60  
 | 
  
समय से बुवाई हेतु उपयुक्त. दाने शरबती एवं
  1000 दानों का भार 42-45 ग्राम. म.प्र. के लिए उपयुक्त 
 | 
 
एच.आई.-8381  
 | 
  
130-135  
 | 
  
50-60  
 | 
  
समय से बुवाई हेतु उपयुक्त. दाने चमकीले  एवं 1000 दानों का भार 48-52 ग्राम. म.प्र.
  एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-977  
 | 
  
115-120  
 | 
  
40-45  
 | 
  
विलंब से बुवाई (15-20 दिसंबर) हेतु म.प्र. के
  लिए उपयुक्त. 1000 दानों का वजन 40-42 ग्राम  
 | 
 
जी.डब्ल्यू.-273  
 | 
  
111-115  
 | 
  
55-60  
 | 
  
सिंचित अवस्था एवं समय से बुवाई हेतु म.प्र.
  एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त.  
 | 
 
एच.आई.-1418  
 | 
  
115-120  
 | 
  
50-55  
 | 
  
समय एवं देर से बुवाई हेतु उपयुक्त. म.प्र. के
  लिए उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-454  
 | 
  
105-115  
 | 
  
45-50  
 | 
  
देर से बुवाई हेतु  म.प्र. के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
डी.एल.-788-2  
 | 
  
120-125  
 | 
  
40-45  
 | 
  
सिंचित अवस्था एवं विलंब से बुवाई हेतु म.प्र.
  एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
राज-1555  
 | 
  
122-127  
 | 
  
35-45  
 | 
  
सिंचित अवस्था एवं समय से बुवाई हेतु म.प्र.
  के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
राज-3765  
 | 
  
105-107  
 | 
  
43-47  
 | 
  
देर से बुवाई हेतु म.प्र. के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
एम्.पी.-4010  
 | 
  
110-112  
 | 
  
45-60  
 | 
  
सिंचित अवस्था एवं विलंब से बुवाई हेतु म.प्र.
  एवं छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-8713   
 | 
  
115-117  
 | 
  
40-42  
 | 
  
मध्यम आकर का शरबती दाना. छत्तीसगढ़ के लिए
  उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-1544  
 | 
  
120-125  
 | 
  
43-45  
 | 
  
अधिक खाद चाहने वाली किस्म छत्तीसगढ़ के लिए
  उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-8381  
 | 
  
120-125  
 | 
  
40-45  
 | 
  
कठिया चमकदार दाने. छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
जी.डब्ल्यू.-366  
 | 
  
122-125  
 | 
  
42-45  
 | 
  
छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
एम्.पी.-1215  
 | 
  
117-119  
 | 
  
38-40  
 | 
  
गेरुआ निरोधक कठिया गेंहू छत्तीसगढ़ के लिए
  उपयुक्त. 
 | 
 
एच.आई.-8498  
 | 
  
115-120  
 | 
  
40-45  
 | 
  
आंशिक कंडुआ निरोधक छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त. 
 | 
 
बुआई का समय एवं बीज दर
बुआई के समय वातावरण का
तापमान 21-25 डिग्री सेंटीग्रेड होना आवश्यक होता है।  उत्तम बीज अंकुरण और फसल बढ़वार के लिए
तापमान 16-20 डिग्री सेंटीग्रेड होना अच्छा रहता है।  अधिक पैदावार प्राप्त करने के
लिए खेत में उचित पौध संख्या स्थापित होना आवश्यक है और उचित पौध संख्या के लिए
सही बीज दर प्रयोग करना चाहिए। गेंहू की बुवाई की परिस्थिति के अनुसार बुआई का समय
एवं बीज दर निम्नानुसार रखना चाहिए: 
बुवाई की परिस्थिति  
 | 
  
बुआई का समय  
 | 
  
बीज दर (किग्रा./हेक्टेयर)  
 | 
 
सिंचित क्षेत्र समय पर बुवाई  
 | 
  
नवम्बर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के अंतिम
  सप्ताह तक  
 | 
  
100  
 | 
 
सिंचित क्षेत्र विलंब से बुवाई  
 | 
  
दिसम्बर के अंतिम सप्ताह तक  
 | 
  
125  
 | 
 
बीज उपचार
यदि किसान भाई  अपना स्वयं ला बीज प्रयोग
करते है तो बुवाई पूर्व बीज अंकुरण क्षमता की जांच अवश्य कर लेनी चाहिए।  इसके उपरान्त  बीज उपचार कर  बुवाई करें।  
बुआई पूर्व बीज को कार्बोक्सिन (वीटावेक्स 75 डब्ल्यू पी) या कार्बेन्डाजिम
(बाविस्टीन 50 डब्ल्यू पी) 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज अथवा वीटावेक्स 75 डब्ल्यू
पी  1.25 ग्राम और बायोएजेंट कवक
(ट्राईकोडरमा विरडी) 4 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करें , ट्राईकोडरमा
विरडी से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण अच्छा होता है तथा बाद की अवस्थाओं में पौध
रोग से बचने की क्षमता भी बढ़ जाती है।  गेंहू के बीजों को जैव उर्वरक जैसे
एजोटोबैक्टर एवं फॉस्फोरस घुलनशील बैक्टीरिया से उपचारित करने से उपज में 5-7
प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। 
गेंहू की बुवाई ऐसे करें
खेत में नमीं की कमी होने पर
पलेवा देकर बुवाई करने से बीजों का अंकुरण शीघ्र और एकसार होता है।  सामान्य समय पर
गेंहू की बुवाई पंक्तियों में 22.5 सेमी. की दूरी पर करना चाहिए तथा बीज बोने की
गहराई 5 सेमी. रखना चाहिए।  देर से बोये जाने वाले गेंहू में पंक्ति से पंक्ति की
दूरी 15-17.5 सेमी.रखना लाभकारी रहता है। 
आमतौर पर किसान गेंहू की
बुआई छिटका विधि से करते है, जो एक अवैज्ञानिक तरीका है क्योंकि इस विधि से बुवाई
करने से खेत में निराई-गुड़ाई करने, खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई और पौध सरंक्षण
क्रियाएं संपन्न करने में बाधा होती है जिसके कारण गेंहूँ की पैदावार भी कम आती
है।  धान-गेंहू फसल प्रणाली के अंतर्गत उत्पादन लागत को कम करने के लिए गेंहू बुआई
की अनेक नवीन तकनीके कारगर सिद्ध हो रही है।  कम लागत में गेंहू का अधिकतम उत्पादन
लेने की लिए किसान भाइयों को अग्र प्रस्तुत विधियों व्यवहार में लेना चाहिए।  
गेंहू की बुआई की कतार विधि   
गेंहू की कतार बुआई हेतु सीड
ड्रिल या सीड-कम-फर्टीड्रिल का इस्तेमाल करना सर्वोत्तम रहता है।  इसमें बीज को बीज
पेटिका में और उर्वरक को उर्वरक पेटिका में भरकर बीज बुवाई के साथ साथ उर्वरक
प्रयोग भी एक साथ संपन्न हो जाता है।  इस विधि में निर्धारित पंक्तियों में बुवाई
होती है जिससे बीज समान दूरी एवं उचित गहराई पर गिरने से खेत में पौधों की उचित
संख्या स्थापित हो जाती  है।  बुआई की लागत में कमीं एवं उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। 
शून्य कर्षण बुवाई (जीरो टिलेज)
धान की कटाई के बाद बगैर
जुताई गेंहूँ की बुआई (शून्य कर्षण विधि) एक लाभदायक तकनीक सिद्ध हो रही है, जिसमे
विशेष तौर पर तैयार की गई बीज संग उर्वरक डालने वाली मशीन अर्थात जीरो टिल कम फर्टीड्रिल
का इस्तेमाल किया जाता है।  धान-गेंहू फसल प्रणाली वाले क्षेत्रों में पद्धति से
धान की कटाई के उपरांत खेत की बिना जुताई किये ही गेंहू की बुआई संपन्न की जाती
है। इस विधि को अपनाकर गेंहू की बुआई लगभग 10-12 दिन पहले ही संपन्न की जा सकती है
तथा प्रति हेक्टेयर 5-7 हजार रूपये की बचत होती है।  इस विधि के अंगीकरण से किसान
अनेक ससाधनों जैसे समय, श्रम,इंधन,पूँजी,पानी और पोषक तत्व की बचत कर सकते है। 
शून्य कर्षण विधि से गेंहू की बुवाई करने से खरपतवार जैसे मंडूसी /गेंहूँसा,
चूर्णिल आसिता व करनाल बंट रोग तथा दीमक आदि का प्रकोप भी कम होता है। 
बेड प्लान्टर से बुवाई  
इस विधि में उठी हुई शैय्या
पर  बहुफसली (मल्टी क्रॉप) बेड प्लान्टर द्वारा गेंहू की बुवाई की जाती है।  इसमें बीज एवं
उर्वरक का प्रयोग एक साथ किया जाता है।  इस विधि को अपनाने से  बेहतर उत्पादन के साथ-साथ 25 % सिंचाई जल की
बचत की जा सकती है। 
हैप्पी सीडर से बुवाई 
धान के खेतों में अवशेष
प्रबंधन हेतु हैप्पी सीडर (टर्बो) विकसित की गई है जो की रोटरी टिलेज प्रणाली पर
आधारित है।  इस मशीन के आगे लगे फलेल 1500 आर पी एम पर घूमते है और  धान के पुआल
(पराली) के अवशेषों को काटकर मिटटी में मिलाते जाते है तथा पीछे लगी ड्रिल के
माध्यम से बीज एवं उर्वरक की बुआई होती है।  इस मशीन की सहायता से एक घंटे में लगभग
एक एकड़ क्षेत्र में बुवाई की जा सकती है।  इस तकनीक के इस्तेमाल से किसान भाई 7-8
हजार रूपये प्रति हेक्टेयर की बचत  के
साथ-साथ 3-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त उपज भी प्राप्त कर सकते है। भारत के
अनेक राज्यों विशेषकर पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश  में धान की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से करने के
उपरांत धान के अवशेषों को खेत में ही जला दिया जाता है, जिससे एक तरफ वायुमंडल
प्रदूषित होता है तो दूसरी तरफ खेत की नमी एवं मृदा में उपस्थित लाभकारी
सूक्ष्मजीवी भी नष्ट हो जाते है।  इसके अलावा पुआल जलाने से भूमि  की उर्वरता बढाने वाले कार्बनिक पदार्थ भी
समाप्त हो जाते है।  अतः पर्यावरण सरंक्षण, मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता को बढ़ाने के
लिए पुआल/पराली को खेत में जलाने की वजाय इनका जैविक खाद बनाकर इस्तेमाल करके मृदा
स्वास्थ्य में सुधार एवं फसल उत्पादन में वृद्धि कर सकते है। 
रोटरी डिस्क ड्रिल 
भारतीय गेंहू एवं जौ
अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित यह तकनीक फसल अवशेषों विशेषकर धान और गन्ना फसल
अवशेषों में बिना जुताई किये गेंहू बुवाई की श्रेष्ठ तकनीक है जिसमें  गेंहू की बुवाई रोटरी टिल ड्रिल से की जाती
है।   इस मशीन के माध्यम से एक बार में ही
खेत की तैयारी, बीज एवं उर्वरक की बुआई तथा पाटा लगाने जैसी सस्य क्रियाये संपन्न
हो जाती है।  इस तकनीक के अपनाने से समय, श्रम एवं डीजल की बचत होती है. इसके अलावा
इस विधि से  किसान गेंहू की बेहतर उपज के
साथ-साथ लगभग 4-5  हजार रूपये प्रति
हेक्टेयर तक की बचत कर सकते है.  इस मशीन
को चलाने के लिए कम से कम 45 अश्व शक्ति के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है। 
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
फसल की अच्छी पैदावार
प्राप्त करने के लिए संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है. फसल
के लिए आवश्यक उर्वरकों की सही मात्रा का निर्धारण करने हेतु मृदा परीक्षण
अनिवार्य होता है। दो या तीन वर्ष में एक बार खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद या
कम्पोस्ट 8-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय मिटटी में मिलाना
चाहिए।  सिंचित क्षेत्रों में समय पर बोये जाने वाले गेंहू में 150 किग्रा.
नत्रजन,60 किग्रा. फॉस्फोरस, एवं 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से
व्यवहार करना चाहिए।  सिंचित क्षेत्रों में विलंब से बोये जाने वाले गेंहूँ में 120
किग्रा. नत्रजन,60 किग्रा. फॉस्फोरस एवं 40 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से
प्रयोग करना चाहिए। इन उर्वरकों  में से
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की सम्पूर्ण मात्रा बुआई के
समय पंक्तियों में देना चाहिए।  शेष नत्रजन को दो बराबर भागों में बांटकर  प्रथम व द्वितीय सिंचाई देने के तुरंत बाद छिडक
देनी चाहिए।  आज कल गेंहू की फसल में विशेषकर धान-गेंहू फसल प्रणाली वाले क्षेत्रों में जस्ते (जिंक) की कमी भी देखी जा रही है।  इसके
लिए 25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के पूर्व अन्य उर्वरकों
के साथ देनी चाहिए।  फॉस्फोरस तत्व की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फॉस्फेट का इस्तेमाल
करने से फसल को सल्फर तत्व भी उपलब्ध हो जाता है।  जिंक सल्फेट के माध्यम से भी फसल
को कुछ सल्फर उपलब्ध हो जाती है।   
फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई आवश्यक
गेंहू  की अच्छी  पैदावार  के लिए समय पर  सिंचाई करना निहायत जरुरी रहता है।  पानी की
उपलब्धता एवं पौधों की आवश्यकतानुसार गेंहू में सिंचाई करना चाहिए। सामान्यतौर पर
गेंहू की फसल के लिए 4-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।  शीर्ष जड़ अवस्था एवं बलि
बनते समय खेत में नमीं की कमीं से उपज में भारी गिरावट आती है।  अतः इन अवस्थाओं पर
सिंचाई करना नितांत आवश्यक होता है।  यदि फरवरी में तापमान सामान्य से अधिक बढ़ने
लगे तो हल्की सिंचाई देना लाभदायक रहता है। अधिकतम उपज के लिए गेंहू की विभिन्न
क्रांतिक अवस्थाओं में निम्नानुसार सिंचाई करना चाहिए। 
सिंचाई की उपलब्धता  
 | 
  
सिंचाई का समय ( बुवाई बाद, दिन में,) 
 | 
  
सिंचाई की उपलब्धता  
 | 
  
सिंचाई का समय ( बुवाई बाद, दिन में,) 
 | 
 
एक  
 | 
  
21  
 | 
  
चार  
 | 
  
21,45,85,105  
 | 
 
दो  
 | 
  
21,85  
 | 
  
पाँच  
 | 
  
21,45,65,85,105  
 | 
 
तीन  
 | 
  
21,65,106  
 | 
  
छः  
 | 
  
21,45,65,85,120  
 | 
 
             गेंहू में फव्वारा विधि द्वारा सिंचाई करने पर
पानी की बचत होती है और उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है।  भारत सरकार द्वारा
संचालित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ‘प्रति बूँद से अधिक उपज’ की अवधारण
को फलीभूत करने के लिए किसान भाई अपने खेतों में फव्वारा विधि को अपनाकर सीमित जल
में अधिकतम फसल क्षेत्र में सिंचाई कर सकते है और अपना फसल उत्पादन बढ़ा सकते है। 
फव्वारा सिंचाई हेतु सरकार  द्वारा किसानों
को आकर्षक अनुदान भी दिया जा रहा है।  
खरपतवार प्रबंधन
गेंहूँ की फसल में मुख्य रूप
से संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में  गुल्ली
डंडा, जंगली जई, पोई घास आदि तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, जंगली
पालक,हिरन खुरी, पीली सैंजी,कृष्णनील, प्याजी आदि पाए जाते है।  यदि समय रहते खरपतवारों को नियंत्रित न किया जाए तो गेंहू की उपज में 30-35 % तक हांनि होने की संभावना रहती है। गेंहूं फसल में संभावित खरपतवार प्रकोप के अनुसार अग्र सारिणी में बताये अनुसार खरपतवार नाशियों का प्रयोग करना चाहिए।
खरपतवार का प्रकार  
 | 
  
नियंत्रण हेतु खरपतवारनाशी दवाएं  
 | 
  
मात्रा प्रति हेक्टेयर  
 | 
  
 प्रयोग करने का समय  
 | 
 
संकरी पत्ती  
 | 
  
क्लोडिनाफॉप (टॉपिक/पॉइंट/झटका) 
 | 
  
400 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 300 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
संकरी पत्ती 
 | 
  
पिनोक्साडेन(एक्सिल 5 ई.सी.) 
 | 
  
1000 मि.ली. 
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 300 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
चौड़ी पत्ती  
 | 
  
2,4-डी (वीडमार) 
 | 
  
1250 मि.ली. 
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 500 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
चौड़ी पत्ती 
 | 
  
मैटसल्फ्यूराँन (एलग्रिप) 
 | 
  
20 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 500 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
चौड़ी पत्ती 
 | 
  
कारफेन्ट्राजोन (एफिनिटी) 
 | 
  
50 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 500 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
सकरी एवं चौड़ी पत्ती  
 | 
  
सल्फोसल्फ्यूरान(लीडर/सफल)  
 | 
  
32.5 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 20-25 दिन बाद (प्रथम सिंचाई पूर्व)
  या बुवाई के 30-35 दिन बाद (सिंचाई पश्चात) प्रयोग करें  
 | 
 
सकरी एवं चौड़ी पत्ती 
 | 
  
आइसोप्रोट्युरान (आइसोगार्ड 75 डब्ल्यू पी) 
 | 
  
1250 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 25-30 दिन बाद 300 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
सकरी एवं चौड़ी पत्ती 
 | 
  
सल्फोसल्फ्यूरान + मैटसल्फ्यूराँन
  (टोटल/वेस्टा) 
 | 
  
40 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 20-25 दिन बाद (प्रथम सिंचाई पूर्व)
  या बुवाई के 30-35 दिन बाद (सिंचाई पश्चात) प्रयोग करें 
 | 
 
सकरी एवं चौड़ी पत्ती 
 | 
  
मिसोसल्फ्यूरान + आइडोसल्फ्यूरान (अटलांटिस) 
 | 
  
400 ग्राम  
 | 
  
बुवाई के 30-35 दिन बाद 300 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
 | 
 
सकरी एवं चौड़ी पत्ती 
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फिनोक्साप्रॉप + मेट्रिब्युजिन (एकार्डप्लस) 
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1250-1500 मि.ली. 
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बुवाई के 30-35 दिन बाद 500 लीटर पानी में
  घोलकर छिडकाव करें  
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सकरी एवं चौड़ी पत्ती 
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पेंडीमैथालीन (स्टॉम्प) 
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3000-3500  मि.ली. 
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बुवाई के 2 दिन बाद तक दवा को 500 लीटर पानी
  में घोलकर छिडकाव करें 
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कटाई एवं मढ़ाई
जब दानों में लगभग 20% नमी
शेष रह जाए तब फसल हाथ से कटाई के लिए उपयुक्त रहती है. कंबाइन हार्वेस्टर से शीघ
कटाई-मढ़ाई  के लिए दानों में नमी 14% से कम
होना आवश्यक रहता है. फसल की कटाई सावधानीपूर्वक करना चाहिए ताकि बालियाँ या दाने
खेत में कम से कम बिखरें।  संभवतः कटाई का कार्य सुबह के समय करना चाहिए।  फसल सूखने
पर थ्रेशर से मढ़ाई का कार्य करें।   
उपज एवं आर्थिक लाभ
इस आलेख में ऊपर  वर्णित उन्नत
विधियों द्वारा गेंहू की  खेती करने से  दाने की औसत  उपज 40-45 क्विंटल तथा भूसे की
50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है।  गेंहू की एक हेक्टेयर खेती करने
पर लगभग 30000 रुपये का खर्चा आ जाता है।  आर्थिक गणना हेतु यहाँ पर हम गेंहू की
संभावित उपज 40 क्विंटल दाना एवं 50 क्विंटल मान लेते है।  इस वर्ष (2017-18) के
लिए  केंद्र सरकार द्वारा घोषित गेंहू के
समर्थन मूल्य 1840 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेंहू बेचा जाता है तो गेंहू अनाज
से 73600-82800  रूपये तथा दो सो रूपये
प्रति क्विंटल की दर से भूषा बेच कर 10000-11000 रूपये अर्थात कुल आमदनी 83600-93800
रुपये प्राप्त होगी जिसमें से उत्पादन लागत 30000 रुपये घटा देवें तो 53600-63600
रूपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।    
अनाज भण्डारण
           बाजार
में बेचने के बाद शेष अनाज को पक्के साफ़ फर्श या 
त्रिपाल पर फैलाकर तेज धुप में अच्छी तरह सुखा लें जिससे दानों में नमीं की
मात्रा 12% से कम हो जाए।  साफ़ और सूखे अनाज को जी आई शीट की बिन्स (कोठिया) में
भंडारित करें।  अनाज की कीड़ों से सुरक्षा हेतु एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की एक टिकिया
प्रति 10 क्विंटल अनाज के हिसाब से रखनी चाहिए जिससे गेंहूँ में कीट प्रकोप की संभावना नहीं रहती है। 
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