छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी-नरवा-गरुवा-घुरुवा-बारी, ऐला बचाना है संगवारी
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर
(सस्यविज्ञान),
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
भारतीय जन-जीवन की गति, प्रगति और विकास की धुरी
देश के प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है। कृषि और पशुपालन हमारी ग्रामीण
संस्कृति का अटूट हिस्सा है। पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में हवा,पानी, मिटटी,
खनिज, ईंधन, पौधे और जानवर शामिल है। जीवन की निरंतरता प्राकृतिक संसाधनों के
प्रबंधन और सरंक्षण पर निर्भर करती है। ये संसाधन प्रतिदिन हमारे जीवन को प्रभावित
करते हैं- क्षिति, जल, पावक, गगन, पवन मिल पर्यावरण सजाते, सफल
सृष्टि के संचालन को, ये संतुलित बनाते । पर्वत, नदी, तालाब, शस्य श्यामला भूमि
और सुवासित वायु हमारे जीवन को स्वच्छ और सुखद बनाते हैं, परन्तु भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ में आज मनुष्य
ने सुन्दर प्रकृति को विकृत कर दिया है। प्राकृतिक
संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से ही हम कृषि और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित कर सतत
विकास की परिकल्पना कर सकते है। कृषि में उर्वरकों एवं कीट-रोग नाशकों का निरंतर
बढ़ता उपयोग न केवल हमारे खाध्य पदार्थों और इसकी श्रंखला को लगातार जहरीला बनाता
जा रहा है बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति में गिरावट एवं पर्यावरण विनाश के लिए भी घातक
प्रतीत हो रहा है। गाँव को सुदृढ,
स्वावलंबी एवं संपन्न बनाना है तो प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन रोकते हुए उनके
समुचित सरंक्षण, सवर्धन एवं सदुपयोग को बढ़ावा देकर टिकाऊ कृषि को देश की अर्थनीत
का आधार बनाना होगा, तभी देश में हरियाली और खुशहाली का वातावरण कायम हो सकता है ।
इसी अवधारणा को साकार करने छत्तीसगढ़ की नई
सरकार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ के
संकल्प के साथ प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान संसाधनों के समुचित
सरंक्षण एवं सदुपयोग के वास्ते ‘सुराजी गाँव योजना’ का शुभारम्भ करते हुए
‘छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी-नरवा-गरुवा-घुरवा-बाड़ी, ऐला बचाना है संगवारी’ का नारा
दिया है। वास्तव में ये चार चिन्हारी ही हमारी कृषि संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था की निशानी भी है । इस अभिनव योजना के माध्यम से प्रदेश के जलस्त्रोतों यथा नदी-नाला, तालाबों का सरंक्षण एवं सवर्धन,
पशुधन प्रबंधन एवं उन्नयन हेतु गौठानों का निर्माण एवं चरागाहों का विकास तथा
जैविक खाद एवं बायोगैस इकाइयों की स्थापना करने का कार्य जनभागीदारी के माध्यम से किया
जायेगा जिससे प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा, किसानों की आमदनी में
इजाफा होगा तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में
सुधार होगा ।
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गाँव घर परिदृश्य फोटो साभार गूगल |
सुराजी
गाँव योजना
परिचय
एवं अभिकल्पना
हमारा देश चूँकि गाँव एवं
कृषि प्रधान है और यंहा की दो तिहाई आबादी गावों में बस्ती है, इसलिए गावों को
केन्द्रित करके बनाई गई योजनाओं द्वारा ही देश आर्थिक प्रगति की ओर अग्रसर हो सकता
है। घर-घर कुटीर उद्योग पनपें, ग्रामोद्योग, कृषि उद्यम हमारी अर्थशक्ति का आधार
बनेंगे तो ही गाँव स्वावलंबी एवं आकर्षक बनेंगे। हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने अपनी पुस्तक
‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में लिखा है कि ‘जरा सी बुद्धि रखने वाला भारतीय न तो कृषि
की अवहेलना कर सकता है और न किसान को विस्मृत कर सकता है’। किसी अन्य की तुलना
में ‘भारतीय किसान ही भारत है’ और उसी के विकास तथा उन्नति पर भारत की प्रगति
निर्भर है। गाँव स्वावलंबी बनें, यह संग्राम हर गाँव, हर खेत, हर घर में लड़ा जाना
समय की मांग है। इसी सद्भावना को आगे बढ़ाते हुए नवोदित छत्तीसगढ़ सरकार के मुखिया
श्री भुपेश बघेल ने गढ़बो नवा छत्तीसगढ़
के संकल्प के साथ सुराजी गाँव अवधारणा को फलीभूत करने “छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी:नरवा-गरवा-घुरुवा अउ बारी-इसे
बचाना है संगवारी” अर्थात वे प्रदेश में नदी नालों के पानी को सहेजने, पशुओं को
उत्पादक बनाने और घुरवा (खाद) प्रबंधन के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देकर
खेती-बाड़ी को एक नया आयाम देना चाहते है ।
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वर्षा जल सरंक्षण-तालाब फोटो साभार गूगल |
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पशुधन संवर्धन फोटो साभार गूगल |
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केंचुआ खाद (स्मार्टघुरवा) निर्माण फोटो साभार गूगल |
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