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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

सहजन से पोषण सुरक्षा और स्वास्थ्य रक्षा सुनिश्चित

                                                                    डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर 
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,महासमुंद (छत्तीसगढ़)

प्रकृति ने मानव को नाना प्रकार के उपहार दिए है। वायु, जल, प्रकाश, खनिज पदार्थ, खाद्यान्न फसलें, दलहन, तिलहन, रेशेदार फसलें, फलदार वृक्षों के अलावा औषधियों के काम आने वाले अनेक वनस्पतियां हमें वरदान स्वरूप मिली है। उन्हीं उपहारों में एक बहुपयोगी झाडी/वृक्ष है-सहजन यानि सह + जन यानि सबके जन के साथ और सहज उपलब्ध  । इसे सहजन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह एक ऐसा वृक्ष है जो सर्व सुलभ, सर्व स्वीकार्य और सहजता से उग जाता है।  इसकी फलियों एवं पत्तियों को  सदियों से मनुष्यों द्वारा भोजन एवं औषधि के रूप में उपयोग लाया जा रहा है।  सहजन (मोरिंगा ओलीफेरा) मोरिंगेसी कुल का सदस्य है जिसे हिंदी में मुनगा, सेंजना, संस्कृति में शोभांजन व दंशमूल तथा अंग्रेजी में ड्रमस्टिक प्लांट के नाम से जाना-पहिचाना जाता है।  सहजन को परंपरागत रूप से घरों के पिछवाड़े बाड़ी या बगीचे में लगाया जाता है।  यह 10-12 मीटर ऊंचाई में तेजी से बढ़ने वाला, सूखा सहनशील, सदाबहार, पर्णपाती पौधा है।  इसका तना सफेद-भूरे रंग का होता है जो मोटी छाल से ढंका रहता है. इसके फूल थोड़े पीले-क्रीमी सफेद और मधुर सुगंध वाले होते है।  इसके फल हरे रंग के छड़ीनुमा 20-45 से.मी. लम्बे और 2-2.5 से.मी. चौड़े होते है।  फली के अन्दर मांसल गूदा और मटर के आकार के  15-20 गहरे हरे रंग के बीज होते है।

सहजन की फलियां एवं पत्तियां फोटो साभार गूगल 
 सहजन का पोषकीय और औषधीय महत्व  
सहजन को दुनिया का सबसे उपयोगी पौधा माना जाता है।  इसके प्रत्येक भाग (जड़, छाल, तना, पत्तियाँ, फल-फूल, बीज, तेल तथा गोंद) किसी न किसी रूप में मानव के लिए उपयोगी है । अफ्रीकन देशों में इस पौधे को 'माताओं का सबसे अच्छा दोस्त' माना जाता है तो पश्चिमी देशों में इस पौधे को 'न्यूट्रीशियन डायनामाईट' के नाम से पुकारते है।  इसकी पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण विद्यमान है।  इसमें प्रोटीन, विटामिन्स,खनिज लवण,रेशा, एंटीओक्सिदडेंट्स पाए जाने के कारण कुपोषण और  एनीमिया (खून की कमीं) के खिलाफ जंग लड़ने में कारगर सिद्ध हो रहा है। ऐसा माना जाता है कि  सिकंदर की सेना को हराने के लिए प्रसिद्द मौर्य सेना प्रमुख खाद्य सप्लीमेंट के रूप में मोरिंगा (सहजन) का सेवन किया करती थी । प्राचीनकाल से भारत में सहजन की हरी और सूखी पत्तियों को भाजी/करी तथा हरी फलियों की जायकेदार सब्जी बनाकर चाव से खाया जा रहा है। पौष्टिक गुणों की भरमार, स्वास्थ के लिए बेहद उपयोगी और किसानों के लिए आर्थिक रूप से बेहद लाभकारी सहजन को आज इक्कीसवी शताब्दी का कल्पवृक्ष, जादुई वृक्ष और सुपर फ़ूड के रूप में  जाना जा  रहा है। उपरोक्त पोषक तत्वों के अलावा सहजन की पत्तियों एवं फलियों में जिंक,मैंगनीज,विटामिन बी-5,बी-9 भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।प्रकृति प्रदत्त चमत्कारिक सहजन वृक्ष की पत्तियों, फलियों एवं पत्ती चूर्ण का  पोषक मान अग्र सारणी में प्रस्तुत है।
सारणी-1 सहजन की फलियों, हरी पत्तियों का पोषक मान (प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग)
प्रमुख घटक
कच्ची फल्लियाँ
हरी पत्तियां
ऊर्जा (किलो कैलोरी)
37 
64 
कार्बोहाईड्रेट्स (ग्राम)
8.53
8.28
प्रोटीन (ग्राम)
2.10 
9.40 
वसा (ग्राम)
0.20 
1.4 
कोलेस्ट्राल (मि.ग्रा.)
0.0
0.0  
आहारीय रेशा (ग्राम)
3.2 
2.0 
कैल्शियम (मि.ग्रा.)
30
185 
मैग्नेशियम (मि.ग्रा.)
45 
147 
फॉस्फोरस (मि.ग्रा.)
50
112 
सेलेनियम (µg)
8.2  
0.9  
आयरन (मिग्रा.)
0.36 
4.0
जिंक (मि.ग्रा.)
0.45
0.60
सोडियम (मिग्रा.)
42 
9.0 
पोटेशियम (मि.ग्रा.)
461
337
विटामिन फोलेट्स (µg)
44
40
नियासिन (मि.ग्रा.)
0.680
2.220
पायरीडॉक्सिन (मि.ग्रा.)
0.120
1.200
रिबोफ्लेविन (मि.ग्रा.)
0.074
0.660
थायमिन (मि.ग्रा.)
0.053
0.257
विटामिन-ए (आईयू)
74
7564
विटामिन-सी (मि.ग्रा.)
141
51.7  
स्त्रोत: यू एस डी ए नेशनल न्यूट्रीएंट डाटा बेस       
पत्तियाँ  एवं फूलः संहजना की पत्तियाँ एवं फूलों में  विविध प्रकार के पोषक तत्व  प्रचुर मात्रा में पाये जाते  है । इनको भोजन के साथ पूरक रुप में  खाने पर यह बच्चों, गर्भवती स्त्रियों, नवजात शिशुओ की माताओं आदि के लिए  स्वास्थ्यवर्धक माना गया है । सहजन की पत्तियों में संतरे से 7 गुना अधिक विटामिन सी, गाजर से 4 गुना अधिक विटामिन ए, दूध से 4 गुना अधिक कैल्शियम, केले से 3 गुना अधिक पोटेशियम, एक अंडे जितना प्रोटीन, पालक से 3 गुना अधिक आयरन, बादाम से 3 गुना अधिक विटामिन ई के अलावा तमाम प्रकार के वृहद एवं सूक्ष्म तत्व, विटामिन्स, एंटीआक्सिडेन्ट्स तथा अमीनों  अम्ल भरपूर मात्रा में  पाये जाते है । इसके पोषक तत्वों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दक्षिण अफ़्रीका के कई देशों में कुपोषित लोगों के आहार में इसे शामिल करने की सलाह दी है।  सहजन की पत्तियों को छांया में सुखाकर, पीसकर चूर्ण तैयार कर इस  चूर्ण को सरंक्षित करके सूप, सॉस एवं सब्जियों में  उपयोग करने  से इनकी पौष्टिकता कई गुणा बढ़ जाती है । इसका चूर्ण भोजन के  साथ खिलाने से कुपोषण ग्रस्त मानव स्वस्थ हो सकते है । इसके फूलों से चटनी एवं सब्जी बनाई जाती है । सहजन के ताजे फूल हर्बल टॉनिक का काम करते है ।सब्जी-भाजी में फूलों के गुच्छो को मिलाकर पकाया जा सकता है।  सर्दी से बचने के लिए  इसके फूलों की चाय बनाकर पीना लाभदायक होता है ।
फलियाँ: सहजन के पेड़ से पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक फलियाँ प्राप्त होती है जिनसे स्वादिष्ट सब्जी और सूप बनाकर खाया जाता है. सहजन  की कच्ची हरी-मुलायम फलियाँ सब्जी के रूप में सर्वाधिक उपयोंग में लायी जाती है । इसकी फलियों में अन्य सब्जियों व फलों की तुलना में विटामिन, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, एमीनो  एसिड व खनिज पदार्थ  अधिक होते है ।
बीजः सहजन के दाने में पौलीपेप्टाइड नामक तत्व पाया जाता है, जो खराब पानी का शुद्धिकरण करता है।  इसके बीजों को पीसकर पाउडर बनाकर पानी में डालने से पानी साफ हो जाता है । तालाबों, नदीयों,कुओं इत्यादि  के पानी को स्वच्छ करने के लिए पानी को सेंजना के बीजों द्वारा उपचारित किया जा सकता है । इसके बीजों में 36-38  प्रतिशत नहीं सूखने वाला  तेल पाया जाता है, जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है । तेल सौन्दर्य प्रसाधनों तथा घडी आदि मशीनों में  चिकनाहट पैदा करने  के लिए किया जाता है । इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है। इसके तेल को खाध्य तेल के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो उपयोगिता एवं गुणवत्ता में जैतून (ओलिव) के तेल के समतुल्य एवं  स्वास्थवर्धक माना जाता है। 
तना: इसके तने से उच्च गुणवत्ता वाला गोंद प्राप्त होता है, जिसका उपयोग रंगाई-छपाई उद्योगों  तथा औषधि बनाने में किया जाता है । सेंजना से गोंद अप्रैल-मई में प्राप्त किया जाता है । गोंद का रंग भूरा -लाल होता है ।इसकी छाल से रेशा प्राप्त होता है जिससे रस्सियाँ आदि बनाई जा सकती है.
जड़ : जब पौधा 2 फीट का हा जाये तो उसे उखाड़कर जड़ को मसाले के रुप में काम लिया जाता है । इसकी जड़ का स्वाद तीखापन लिये  होता है । जड़ को मसाले के लिए उपयोग में लेने से पहले इसकी छाल हटा देनी चाहिए क्योकि इसमें मोरिन्जिनाइन नामक पदार्थ  पाया जाता है जो विषैला होता है । सेंजना की जड़ का अधिक सेवन नही करना चाहिए क्योंकि इसमें हानिकारक तत्व पाए जाते है ।
अन्य उपयोग : सेंजना की पत्तियों  एवं नई शाखाएं पशुओं के लिए पौष्टिक चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।  इसकी पत्तियों का रस फसलों के लिए बेहतर टॉनिक का काम करता है। इसकी पत्तियों के रस के छिड़काव से फसल उत्पादन में आशातीत वृद्धि होती है। इसके पौधों को खेत में हरी खाद या कम्पोस्ट के रूप में मिलाकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढती है । शाखाओं से कम्पोस्ट तैयार कर मृदा की उर्वरा शक्ति बढती है।  चाय एवं कॉफ़ी बागानों में पौधों की बढ़वार के लिए सहजन  से प्राप्त वृद्धि हरमों का बागानों में छिडकाव किया जाता है. इसके अतिरिक्त तने से ईधन और कागज व टहनियों से रेशा प्राप्त किया जाता है । सहजन के पेड़ से छाया कम होती है अतः अंतरवर्ती खेती के लिए यह बहुउद्देशीय वृक्ष है।  
        सहजन के अतुलनीय पोषकीय, औषधीय एवं स्वास्थ्यवर्धक गुणों को देखते हुए इसे आज कलयुग का कल्पवृक्ष, जादुई वृक्ष और सुपर फ़ूड  की संज्ञा दी जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं । विश्वव्यापी कुपोषण का प्रमुख कारण आमजन के भोजन में  प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन्स की कमीं है। कुपोषण की समस्या से निपटने में सहजन अपने उच्चस्तरीय पोषकीय एवं औषधीय गुणों के कारण अत्यंत लाभकारी तथा कारगर साबित हो सकता है। 
आर्थिक रूप से लाभकारी है सहजन की खेती 
         ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी और कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए सहजन की खेती को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है. भारत ही नहीं पूरे विश्व में आज सहजन की पत्तियों एवं फलियों की मांग बढ़ती जा रही है  देश के लघु एवं सीमान्त किसानों के लिए सहजन की खेती वरदान सिद्ध हो रही है। खाद्यान्न एवं अन्य फसलों के साथ-साथ यदि किसान भाई सस्य वानिकी के रूप में अथवा खेतों की मेंड़ पर सहजन के वृक्ष लगा लें तो उन्हें दो से तीन गुना अधिक आमदनी हो सकती है. इसके वृक्षों से खेतों में छाया अधिक नहीं होती है, अतः पेड़ों के नीचे अन्य फसलों की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके अलावा परिवा के सदस्यों एवं परिजनों को  सहजन की पत्तियां, फूल और फल  तोड़ने, प्रसंस्करण और विपणन में रोजगार और आमदनी के साधन उपलब्ध हो सकते है। 
कृपया ध्यान रखें:  कृपया इस लेख के लेखक ब्लॉगर  की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पते का उल्लेख  करना अनिवार्य  रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।  लेख प्रकाशित करने की सूचना  लेखक के मेल  profgstomar@gmail .com  पर देने का कष्ट करेंगे। 


रविवार, 2 फ़रवरी 2020

पशुओं के लिए स्वादिष्ट एवं रसीला हरा चारा मकचरी


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान)
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,महासमुंद (छत्तीसगढ़)

अमेरिकी मूल की टियोसिंट को मकचरी के नाम से जाना जाता है। मक्का की पूर्वज मकचरी  ज्वार एवं मक्का के बीच की एक वर्षीय चारा फसल जो मक्का के समान दिखती है।  मकचरी सूखा एवं अस्थाई जलभराव को सहन करने वाली शीघ्र बढ़ने वाली फसल है।   मक्का से सिर्फ एक कटाई प्राप्त होती है  जबकि ग्रीष्मकाल में मकचरी से 2-3 कटाई  प्राप्त की जा सकती है । सामान्य रूप से इसका चारा विषैले  पदार्थों से मुक्त होता है। इसमें एक ही कल्ले से अनेक कल्ले फटूते है जिसके कारण एक समूह बन जाता है। उपजाऊ भूमियों में इसके पौधे 2.5 से 4 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते है।  मकचरी की खेती अपेक्षाकृत अधिक वर्षा  एवं जलभराव वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जा सकती है, जबकि मक्का की फसल बिल्कुल ही जलमग्नता को सहन नही कर सकती है । मकचरी को चारे के लिए बुवाई के 70-75 दिन बाद काटते है  । इसमें  मक्के की तुलना में अधिक शाखाएं होती है, जिसके कारण यह मक्का से अधिक चारे की पैदावार देती है। यह मक्के की अपेक्षा अधिक दिन तक हरी रहती है । मकचरी दुधारू एवं कार्यशील पशुओं  के लिए स्वादिष्ट, रसीला  एवं पोषक चारा है  जिसमें लगभग  7-9 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, पाचकता 60-62 प्रतिशत, वसा 2-3 प्रतिशत, कैलिसयम 0.16 प्रतिशत फासफोरस, 0.09 प्रतिशत एवं पोटाश 1.25 प्रतिशत पाया जाता है । चारे की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए मकचरी को लोबिया अथवा ग्वार के साथ मिलाकर बोना चाहिए । 
मकचरी की फसल फोटो साभार गूगल 
ग्रीष्मकाल में मकचरी से अधिकतम हरा चारा प्राप्त करने के लिए किसान भाई अग्र प्रस्तुत सस्य तकनीक का अनुशरण करना चाहिए। 
जलवायु एवं भूमि: मकचरी की खेती ग्रीष्म एवं खरीफ ऋतु में सफलता पूर्वक की जा सकती है इसके लिए नम दोमट व बलुई-दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है । भूमि का  पी एच मान 5.5-7.0 के मध्य उपयुक्त होता  है । खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के उपरान्त कल्टीवेटर अथवा रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना कर बुवाई करना चाहिए। 
उन्नत किस्में : मकचरी  की उन्नत किस्मों में टीएल-1, सिरसा एवं इम्प्रूव्ड मकचरी प्रमुख है। 
बुवाई का समय:  गेंहू, गन्ना, आलू,सरसों आदि फसलों के बाद मकचरी की बुवाई की जा सकती है। मकचरी को सिंचित क्षेत्रों में 15 मार्च से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है. वर्षा ऋतू में मानसून आगमन से लेकर जुलाई के अंतिम सप्ताह तक बोया जा सकता है। 
बीज की मात्रा:  मकचरी की बुवाई के लिए 35-40  कि. ग्रा.  बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है । बीज को 3 ग्राम थीरम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करन चाहिए। मकचरी की बुवाई मक्का की तरह कतारों में करना चाहिए।  कतार से कतार की दूरी  30  से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 15 से.मी. रखना चाहिए।  बीज 2-3 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
उर्वरक प्रबंधन: बुवाई के 15 दिन पहले 10 टन गोबर की खाद अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।  बेहतर चारा उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर  100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस एवं 20 किग्रा पोटाश  की आवश्यकता पड़ती है। आधा नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस व पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा  बिजाई के समय व शेष नाइट्रोजन  बिजाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद देनी चाहिए।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण :  मकचरी की अच्छी बढ़वार के लिए नम भूमि की आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकालीन फसल में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए । कटाई बाद सिंचाई अवश्य करें।   मकचरी की प्रारंभिक वृद्धि धीमी होने के कारण खरपतवार प्रकोप हो सकता है।  अतः फसल की बुवाई के 15-20 दिन बाद एक बार निराई-गुड़ाई करना चाहिए. बूवाई के 2-3 दिन बाद एट्राजीन 0.5-0.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकने से खरपतवार प्रकोप कम होता है। 
चारा कटाई एवं उपज : मक्का एवं ज्वार की अपेक्षा इसकी पाचकता बहुत तेजी से घटती है, इसलिए इसकी कटाई उचित समय पर कर लेनी चाहिए । चारे की अच्छी गुणवता के लिए मकचरी में जब झंडे दिखाई देने लगे यानि बुवाई के 60-65 दिन बाद प्रथम कटाई करनी चाहिए एवं अन्य कटाईयां 40-45 दिन के अंतराल पर लेनी चाहिए । फसल की कटाई जमीन की सतह से 10-12 से.मी. की ऊंचाई पर करना चाहिए जिससे फसल में पुनार्वृद्धि अच्छी तरह हो सकें।  ग्रीष्मऋतू में मकचरी की 2-3 कटाई में कुल 600-700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। बीज के लिए उगाई गई फसल से 10-15 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर बीज उपज   प्राप्त होती है ।

कृपया ध्यान रखें:  कृपया इस लेख के लेखक ब्लॉगर  की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्यंत्र कहीं पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पते का उल्लेख  करना अनिवार्य  रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।  लेख प्रकाशित करने की सूचना  लेखक के मेल  profgstomar@gmail .com  पर देने का कष्ट करेंगे। 

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

देशवासियों की थाली में मिलावट के जहर का कहर

देशवासियों की थाली में  मिलावट के जहर का कहर
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

दूषित जल और वायु से त्रस्त आदमी अब मिलावटी और नकली खाद्य पदार्थो से बेहाल है।  खाद्य-पदार्थ मनुष्य जीवन की सबसे सामान्य एवं अनिवार्य वस्तु है। इस पर ही जीवन की सारी गति निर्भर है। बल, बुद्धि, विद्या, ओज-तेज और शक्ति-सामर्थ्य का मूलभूत पदार्थ हमारा भोजन ही तो है। शुद्ध, पौष्टिक और विश्वस्त आहार से ही मनुष्य स्वस्थ एवं सामर्थ्यवान् बन सकता है । एक औसत शहरी भारतीय खाने-पीने पर सबसे अधिक खर्च करता है।  खाने-पीने में होने वाले व्यय में  सबसे ऊपर अनाज और दालें, फल और सब्जियों के बाद दूध एवं दूध से बने उत्पाद, अंडा, मछली, खाने का तेल आदि आते हैं।  खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी का फलता-फूलता कारोबार मानवीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। आज  चाहे मांसाहार हो या फिर शाकाहार,  ऐसा कोई खाद्य पदार्थ नहीं है, जो विषैले कीटनाशक और मिलावटी पदार्थो से अछूता बच पाया हो।   अधिक धान कमाने की लालसा  के फेर में मिलावटखोर आपकी थाली में जहर परोस रहे हैं । बाजार में उपलब्ध खानपान की अमूमन सभी वस्तुओं मसलन दूध, दही, मक्खन,पनीर, खोवा, घी, तेल, मिठाई, मिर्च-मसाले, दाल, आटा, बेसन, चीनी, नमकीन आदि रोजमर्रा की वस्तुओं  में  मिलावट का खेल बदस्तूर जारी है।
मिलावटी और दूषित खाद्य पदार्थो के सेवन का परिणाम है कि देश में कैंसर, मधुमेह, ह्रदयाघात, अलसर और दमें जैसी बीमारियां बहुत तेजी से पाँव पसार रही है ।  भारत की अमूमन पूरी आबादी मिलावटी खाध्य और पेय पदार्थ खाकर जी रही है।  हमारे बच्चे इन मिलावटी सामानों को खाकर बड़े हो रहे है तो देश की आने वाली युवा पीढ़ी कैसे स्वस्थ और ताकतवर बनेगी, यह एक यक्ष प्रश्न है ?
खाद्य पदार्थों में मिलावट फोटो साभार गूगल 
 
किसे कहते है मिलावट
जब खाध्य पदार्थों में उनसे मिलता-जुलता कोई ऐसा घटिया किस्म का पदार्थ मिला दिया जाये जिससे उसकी गुणवत्ता तथा शुद्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़े तो इसे भोज्य पदार्थों में मिलावट कहते है।  भोज्य पदार्थों में मिलावट प्रमुख रूप से तीन प्रकार से की जाती है। 
1.पहला भोज्य पदार्थों को आकर्षक बनाने तथा रंग उभारने हेतु हानिकारक तत्वों को मिलाया जाता है. उदहारण के लिए मिठाइयों तथा मसालों का रंग उभारने हेतु उनमें रंग मिलाना। 
2. भोज्य पदार्थों में मिलावट के लिए उनमेस सस्ते तथा घाटियाँ किस्म के पदार्थ जैसे भोज्य पदार्थों की घटिया किस्म, कंकड़, रेट आदि मिला दिया जाते है।  जैसे सरसों के तेल में अर्जिमोन खरपतवार के बीजों का तेल मिलाकर उपभोक्ता को ठगना और उसके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना। 
3.भोज्य पदार्थों में से अमूल्य पोषक तत्वों को निकाल कर अशुद्ध पदार्थो को मिलाना. जैसे दूध में से वसा निकालकर उसमें डालडा मिलाकर बेचना। 
खाद्यान्न में मिलावट
खाद्यान्नों तथा अन्न जिन्सों में कूड़ा-करकट, ईंट-पत्थर, धूल-मिट्टी एवं अन्य बीज मिलाकर मुख्य अनाज के मूल्य पर ही बेच दिये जाते हैं। चना और अरहर की दाल में खेसारी दाल, मटर दाल मिलाकर बेचा जाता है. ग्राहकों को हानिकारक तत्वों की मिलावट का पता न चले इसलिए बड़े ही सुनियोजित ढंग से चावल और  दालों पर पोलिस की जाती है। अन्न तो अन्न अब गेंहू के आटे और चने के बेसन में भी मिलावट की जाने लगी है।  चने के  बेसन में मक्का और खेसारी दाल (तिवड़ा) का आटा मिलाया जाता है। 
हरी भरी सब्जियां भी खतरनाक : आधुनिक जीवन शैली में बेमौसमी सब्जियों यथा बरसात और गर्मीं में शीत ऋतू की सब्जियां जैसे गोभी, मटर आदि की बाजार में अधिक मांग होती है।  इन सब्जियों को उगाने में अंधाधुंध रसायनों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है।  इन्हें हम महंगे दामों में खरीदकर बड़े ही शौक से खाते है।  बाजार में बिकने वाली सब्जियों को खतरनाक रसायन के माध्यम से रंग-बिरंगा कर उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जाता है।  मटर, परवल, कुंदरू और करेलों को हरे रंग से हरा भरा बनाकर बेचा जाता है।  फूलगोभी की सफेदी और ताजगी बढ़ाने के लिए उस पर सिल्वर नाइट्रेट डाला जाता है। बाजार में बिकने वाली सुन्दर व् सुडौल लौकी फसल में पादप वृद्धि रसायनों के माध्यम से शीघ्र बड़ा कर बाजार में बेचा जाता है। 
आकर्षक और सुन्दर दिखने वाले फल भी जहरीले: फलों को ताजा दिखाने के लिए लेड और कॉपर सॉल्यूशन लगाया जा रहा है। फलों को चमकाने के लिए और उन्हें लम्बे समय तक रखने के लिए उन पर वैक्स की कोटिंग की जाती है । वैक्स युक्त फलों का सेवन करने से डायरिया और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं।  बाजार में उपलब्ध आम, केला और पपीता जैसे फलों को कैल्शियम कार्बाइड की मदद से पकाया जाता है।  ये सब स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। 
दूध और दूध से बने पदार्थ: स्वास्थ्यवर्धक पेय दूध अब मिलावटी तत्वों का नमूना होकर रह गया है जिसके सेवन से लाभ कम हानि ज्यादा है।  आजकल दूध में पानी के अलावा यूरिया, डिटर्जेंट पाउडर, सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफ़ाइंड तेल मिलाकर बेचा जा रहा है।यूरिया खाद से दूध बनाकर असली दूध में मिलकर  बड़े दूध सप्लायरों को बेचा जाता है।  दूध में झाग पैदा करने के लिए साबुन बनाने वाला कॉस्टिक सोडा, अरारोट और स्टार्च भी मिलाया जा रहा है। ऐसी मिलावटों से दूध गाढ़ा दिखता है और अधिक दिनों तक खराब नहीं होता है।  देशी घी में  वनस्पति घी (डालडा) और जानवरों की चर्बी तो खोवा में आलू, शकरकंद, स्टार्च मिलाकर बेचा जाता है।  हर दिल अजीज आइसक्रीम में वॉशिग पाउडर, स्कि्मड पाउडर, टिस्स्यु पेपर, नकली खोवा  व सेकरीन मिलाकर बेचा जा रहा है।  पनीर में मैदा और सोयाबीन मिलाकर बेचा जाता है।  एक तरफ चाय पत्ती में रंग हुआ लकड़ी का बुरादा, रंग वाली पत्तिया मिलाकर बेचा जा रहा है तो दूसरी तरफ रेलवे स्टेशनों और रेलगाड़ियों में  मिलावटी चाय पत्ती, सफेद पेंट से तैयार दूध और शक्कर के नाम पर शेकरीन से तैयार चाय बेचीं जा रही है जिसे हम सब 10 रूपये प्रति कप खरीद कर बड़े चाव से पीते आ रहे है। 
भारत की खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में बेचे जाने वाले 68.7 फीसदी दूध एवं दूध से बनी चीजों में मिलावट का कारोबार होता है।  हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सरकार को कुछ जरूरी सुझाव दिया था। इस संगठन का आकलन है कि खाद्य पदार्थों, खासकर दुग्ध उत्पादों, में जारी मिलावट पर अगर रोक नहीं लगी, तो 2025 तक भारत के 87 फीसदी लोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। 
मसालों में मिलावट : लाल मिर्च में ईंट का पाउडर, लकड़ी का बुरादा, डंठल आदि, हल्दी में लैड क्रोमेट व पीली मिट्टी, काली मिर्च में  पपीते के बीज, हींग में  सोप स्टोन व मिट्टी, धनिया में  सूखा गोबर, गंधक मिलाकर बेचा जाता है।  पिसे हरे रंग के धनिये को आकर्षक बनाने के लिए उसमें हरा रंग, धान की भूसी और घोड़े की लीद मिलाई जाती है जिसके सेवन से लीवर,किडनी और तिल्ली रोगग्रस्त हो सकती है। 
खाद्य तेल भी मिलावट के शिकार: खाद्य तेल हमारे भोजन और स्वास्थ्य का अहम् अंग है। सरसों तेल में  आर्जीमोन व मूंगफली तेल में  सस्ता पॉम ऑयल और अन्य अखाद्य तेलों की मिलावट की जाती है  निम्न गुणवत्ता वाले  सस्ते तेलों को नामी ब्रांडों के नाम से आकर्षक विज्ञापन के नाम से बेचा जा रहा है। 
रेडी टु ईट खाद्य सामग्री भी खतरे के निशान से ऊपर: आज कल रेडी टु ईट खाध्य (तुरंत खाने योग्य) सामग्री जैसे मैगी, नूडल्स, पास्ता, ब्रेड, नमकीन आदि से बाजार अटे पड़े है परन्तु इन खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता को अनदेखा करते हुए हम सब इनका सेवन कर रहे है।   पिछले वर्ष मैगी में शीशे की मिलावट का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उछला था तो हाल ही में  खाने वाली ब्रेड में पोटैशियम ब्रोमेट तथा पोटाशियम आयोडेट की मिलावट की बात सामने आई है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) के एक अध्ययन में 38 ब्रेड और पाँव  के  नमूनों में से 32 नमूने यानि 84 प्रतिशत  में पोटाशियम ब्रोमेट तथा पोटाशियम आयोडेट की मिलावट पाई गई ।आहार विशेषज्ञों के अनुसार ये दोनों केमिकल कार्सिनोजेनिक होते हैं जिससे कैंसर तथा थायराइड की बीमारी हो सकती है।
शीतल पेय: खाद्य पदार्थों के अलावा आजकल बाजार में उपलब्ध भांति-भांति के शीतल पेय यथा कोल्ड ड्रिंक्स, लस्सी, छाछ, फलों का जूस आदि की शुद्धता की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे है।   कोल्ड ड्रिंक्स में पाए जाने वाले लिंडेन, डीडीटी मैलेथियान  और क्लोरपाइरिफॉस को कैंसर, स्नायु, प्रजनन संबंधी बीमारी और प्रतिरक्षित तंत्र में खराबी के लिए जिम्मेदार माना जाता है । कोल्ड ड्रिंक्स के निर्माण के दौरान इसमें फॉस्फोरिक एसिड डाला जाता है । फॉस्फोरिक एसिड एक ऐसा अम्ल है जो दांतों पर सीधा प्रभाव डालता है । इसमें लोहे तक को गलाने की क्षमता होती है । इसी तरह इनमें मिला इथीलिन ग्लाइकोल रसायन पानी को शून्य डिग्री तक जमने नहीं देता है । बाजार में सुन्दर पेकिंग में उपलब्ध भांति-भाँती के शीतल पेय पदार्थों को मीठा जहर  कहा जा सकता है ।
मांस-मछली भी मिलावटी : मिलावट के इस दौर में लोगों को शुद्ध मछली और मांस भी नसीब नहीं है। जिस प्रकार शवगृह में लाशों/मुर्दों को रखा जाता है, उसी तरीके से अमोनिया और फॉर्मलडिहाइड में मछलियों को रखा जाता है। अनेक  बड़े शहरों में एक सप्ताह पुरानी मछलियों को बर्फ में रखा जाता है। मछलियों को ताजा दिखाने के लिए उन पर तमाम तरह के खतरनाक रसायन छिड़के जाते हैं।  आज कल मछली व्यापारी पानी से भरी टंकी  में  विभिन्न प्रजातियों की जिंदा मछलियां रखते हैं जिनका वजन बढ़ाने के लिए तमाम प्रकार के प्रतिबंधित रसायन का इस्तेमाल करते है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद  हानिकारक समझे जाते  हैं। परन्तु नासमझ ग्राहक उक्त जिन्दा मछलियों को सामने कटवा कर अपने भोजन का हिस्सा बनाने में शान समझते है। देश के सभी छोटे और बड़े शहरों में बकरे के मांस में बूढ़ी और बीमार बकरियों के मांस की मिलावट की जाती है। मुर्गियों को एंटीबायोटिक खिला कर तेजी से बड़ा और वजनदार बनाकर बेचा जा रहा है। इस प्रकार से देश में शाकाहार नहीं अब मासाहार भी मिलावट के शिकार होते जा रहे है।  
जहर भी मिलावटी : कहते है कि आजकल जहर भी शुद्ध नहीं मिलता है।  बाजार में रंग-बिरंगे आकर्षक पाउचों में बिकने वाले गुटकों, पान मसालों एवं पान के अन्दर पड़ने वाले तत्वों में घाटियाँ सामग्री मिलाकर धडल्ले से बेचा जा रहा है।  यही नहीं अब तो मिलावटखोरों ने शराब में भी मिलावट करना प्रारंभ कर दिया है।  नकली और जहरीली शराब पीकर मरने वालों की खबरे आये दिन अख़बारों में पढने को मिल जाती है।  साइंस पत्रिका के मुताबिक भारत में उत्पादित कुल शराब का दो तिहाई हिस्सा अवैध तरीके से बनाया जाता है।  
औषधियां भी अछूती नहीं: मिलावटी चीजों के खाने से अगर कोई बीमार पड़ जाए तो अब बाजार में दवाइयां भी मिलावटी या नकली बिक रही हैं। च्यवनप्राश में कद्दू और आलू तथा शहद में शक्कर की चासनी मिलाकर बेचा जा रहा है।  औषधियों में मिलावट या नकली दवाइयां यानि यानी आपके बचने के सभी रास्ते बंद होते जा रहे है ।

खाद्य पदार्थो में मिलावट रोकने सख्त कानून 

खाद्य पदार्थों में मिलावाटखोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाये रखने के लिए केंद्र सरकार ने खाध्य सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 के तहत  खाद्य  पदार्थो के विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने एवं निर्माताओं को नियंत्रित  करने के लिए भारतीय खाध्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का गठन किया जिसे 1 अगस्त,2011 को केंद्र सरकार के खाध्य सुरक्षा और मानक विनिमय (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) के तहत अधिसूचित किया गया।  यह देश के सभी राज्‍यों, ज़िला एवं ग्राम पंचायत स्‍तर पर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और बिक्री के तय मानकों को बनाए रखने में सहयोग करता है।  इस कानून के तहत मिलावटी, घटिया, नकली माल की बिक्री, भ्रामक विज्ञापन के मामले में सम्बंधित प्राधिकारी भारी भरकम  जुर्माना लगा सकता है।  मिलावटी खाध्य पदार्थो के सेवन से यदि किसी की मौत हो जाती है तो अदालत उस व्यक्ति को कुछ वर्षो से लेकर उम्रकैद और भरी जुर्माने से दण्डित कर सकते है।  खाध्य पदार्थो के छोटे निर्माता, रिटेलर,हॉकर, वेंडर, खाध्य पदार्थो के छोटे व्यापारी जिनका सालाना टर्नओवर 12 लाख रूपये से कम है, उन्हें पंजीकरण कराना होगा और  12 लाख रूपये से अधिक के टर्नओवर वाले व्यापारियों को खाध्य लाइसेंस लेना होगा।   बिना पंजीकरण और  लायसेंस के खाद्य कारोबार करते पाये जाने पर कारावास एवं  भारी जुर्माना हो सकता है। कानून में कड़े प्रावधान होने के बावजूद  देश में लागू खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम-2006 का कड़ाई से अनुपालन न होने की वजह से खाद्य पदार्थों में अपमिश्रण/मिलावट का खेल बदस्तूर जारी है जिसके कारण बहुसंख्यक आबादी विभिन्न बिमारियों का शिकार होती जा रही है। 

शुद्ध के लिए युद्ध : सचेत ग्राहक तंदुरस्त भारत

मिलावटी खाध्य वस्तुएं तैयार करने से लेकर बाजार तक पहुचाने और बेचने जैसी अनैतिक और आपराधिक गतिविधियों का देश में समूचा जाल कार्यरत है जो जीवन और स्वास्थ्य के हमारे बुनियादी अधिकारों के साथ खिलवाड़ में लगा है।  इनसे बचने के लिए हम सबको और आम उपभोक्ता को जागरूक होकर शुद्ध के लिए युद्ध का शंखनाद करना पड़ेगा। केंद्र सरकार द्वारा देश में लागू खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम-2006 के बारे में आम नागरिक/उपभोक्ताओं को जागरूक करने की आवश्यकता है।  बाजार या दुकान से सामान खरीदने  से पहले इस बात की पड़ताल अवश्य करें कि क्या वह सामग्री  साफ है ? क्या वहां खाद्य निरीक्षक जांच करते हैं ? क्या सामग्री की पैकेजिंग सही है? सामग्री निर्माण की तिथि और स्थान अंकित है या नहीं ? क्या सामान पर इस्तेमाल करने की तारीख भी लिखी है? दूकानदार के पास खाध्य सामग्री बेचने का लाइसेंस है या नहीं । हमेशा सस्ता नहीं अच्छा खरीदें।   डिब्बा बंद या पैक्ड और इस्तेमाल करने की अंतिम तारीख लगी हुई   ब्रांडेड वस्तुएं ही खरीदें। आइएसआइ मार्क देखकर ही सामान खरीदें, जो भारतीय मानक ब्यूरो  क्वालिटी व विश्वसनीयता के आधार पर कंपनी को देता है। यह मार्क फलों, सब्जियों, मसाले आदि पर दिया जाता है। एग मार्क लगी हुई चीजें गुणवत्ता व शुद्धता का प्रतीक माना जाता हैं । यह प्रतीक खासतौर पर घी, तेल और मसालों की पेकिंग पर अंकित होता है। किसी ब्रांडेड आइटम की गुणवत्ता या शुद्धता पर शक होने पर उसके पैकेट पर छपे कंपनी के फोन नंबर या पते पर संपर्क किया जाना चाहिए या खाद्य विभाग/पुलिस थाने में  शिकायत दर्ज करना चाहिए । खरीदे गए सामान की हमेशा रसीद जरूर लेना चाहिए।
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