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बुधवार, 29 मार्च 2017

बे-मौसमी शाक-सब्जियाँ : स्वास्थ्य के लिए हांनिकारक

डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर 
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

     फल और तरकारी खाना स्वस्थ्यवर्द्धक माना जाता है, लेकिन वर्तमान खेती पूरी तरह से पौध संरक्षक दवाओं पर निर्भर हो चुकी है । विश्व खाद्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत जैसे विकासशील देशों में बाजार से लिए गये नमूनों में से 40-50 प्रतिशत नमूनों में कीटनाशकों के अवशेष पाए गए, जबकि विकसित देशों में यह प्रतिशत 15-20 ही है । सबसे ज्यादा जहर पालक, मैथी जैसी हरी पत्तियों वाली सब्जियों में और उससे कम टमाटर, आलू आदि में पाये गये । हम जानते है कि गोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, पालक, मटर, गाजर, मूली आदि सब्जियां मुख्यतः शीत ऋतु की फसलें है और इनका सेवन भी इसी ऋतु में फायदेमंद रहता है । भिंडी, ककड़ी, खीरा,कददू, टिंडा, तरबूज, खरबूजा आदि  कद्दू वर्गीय फसलें ग्रीष्म ऋतु में उगाई जाती है और इनका उपयोग भी इसी ऋतु में सवास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। वर्षा ऋतु में  बेमौसमी सब्जियां जैसे फूल गोभी, हरी मटर, गाजर, मूली, पालक, मेंथी, धनियां आदि का सेवन हानिकारक हो सकता है।  परन्तु शहरी उपभोक्ता (अधिकांशतः धनाड्य वर्ग) ऐसी बेमौसमी सब्जियों की अक्सर मांग करते है, जो बाजार में प्रायः कम दिखती है और वे महंगी भी होती है । उसकों पाने के लिए वे ज्यादा पैसे भी देते है । कहते है आवश्यकता अविष्कार की जननी है। बे-मौसमी सब्जियों की बढ़ती मांग और इनके विक्रय में अधिक मुनाफे के फेर में अब इन फसलों को पोली-हाउस और ग्रीन हाउस में उगाया जाने लगा है। इनकी उत्पादन लागत (उगाने और पौध सरंक्षण दवाओं के इस्तेमाल से) अधिक आती है परंतु बाजार में ऊंचे दाम मिलने के कारण बहुतेरे किसान इस तकनीक से इनकी खेती करने लगे है। 
               कीट-रोग से अधिक प्रभावित होने वाली इन सब्जियों पर अंधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है । यही नहीं इनकी शीघ्र बढ़वार और जल्दी तैयार करने के लिए भी विविध प्रकार के वृद्धि नियामकों और रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो की स्वास्थ्य के लिए बेहद हांनिकारक माने जाते है।  कुछ ऐसे कीटनाशक भी है जैसे मिथाइल पैराथियान और मोनोक्रोटोफॉस  जिनके छिड़काव से सब्जियां चमकीली  और आकर्षक लगती है । भिण्डी, करेला, टिंडा, तोरई आदि  को कॉपर सल्फेट के घोल में डुबाया जाता है, ताकि वह हरी दिखें । तालाबों और जलाशयों से मछली पकड़ना एक श्रमसाध्य कार्य होने के कारण अब  जहरीले रासायनिकों  के छिड़काव से तालाबों  और नदियों से  मछली मारकर पकड़ना आम बात हो गई है । इन मछलियों का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।
               हमारे यहां बैंगन, मूली, मेथी तथा कन्दवर्गीय फसले जैसे प्याज, आलू को बारिश में न खाने की पुरानी मान्यता है । खासकर वैष्णवी व जैन समाज में चातुर्मास के समय  इनका उपभोग । इन सब्जियों में पौध रक्षक रसायनों के अवशेष रहने के  कारण इंसान को  बदहजमी करती है । अंगूर एक नगदी फसल है । इसकी फसल पर बहूत ज्यादा पौध रक्षक तथा पौध सम्वर्द्धकों का छिड़काव किया जाता है । अंगूर को बीज रहित बनाने तथा आवागमन में अधिक दिनों तक ताजा बनाये रखने के लिए पौध रक्षक रसायनों का छिड़काव किया जाता है । सेब में एमीनों एसिड का छिड़काव किया जाता है जो कैंसर जैसे खतरनाक रोग को  आमंत्रित करता है ।इसके अलावा आम,पपीता आदि फलों को पीला करने और उन्हें असमय पकाने के लिए खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाए रहा है। 
उपरोक्त विषम  परिस्थितियों में हमें अपने खान-पान पर अधिक जागरूक रहने की जरूरत है, अन्यथा चमकदार और आकर्षक फल, सब्जियां और मांस-मछली हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है । अतः आइये हम इन खतरनाक हालातों से बचने के उपायों पर विमर्श करें ।
  1. मौसमी सब्जियां ही खाएं : गोभी जैसी रसदार सब्जियों को गर्मी में  कदापि नहीं खाना चाहिए, क्योंकि मौसमी सब्जियों में  प्राकृतिक बढ़वार होती है और वे अधिक पौष्टिक भी होती है तथा बाजार में सस्ती दर पर उपलब्ध होती है ।
  2. सब्जियां ताजी और स्वस्थ हो : शीतगृह में भण्डारित सब्जियों से परहेज करना चाहिए, क्योंकि न तो वे ताजी होती है और न ही वे पौष्टिक रहती है ।
  3. स्थानीय छोटे किसानों द्वारा उगाई गई सब्जियां तरोताजा, पौष्टिक और किफायती होती है अतः इनका ही सेवन करें ।
  4. सब्जियां पानी में धोकर ही खाइए :  पकाने के लिए काटने के पूर्व सब्जियों को 1-2 बार स्वच्छ  पानी में घो लेना चाहिए, ताकि विषैले अवांछित तत्व अलग हो जाएं । पानी में विनेगार डालकर धोना फायदेमंद रहता है। खाने का सोडा डालने से अंगूर भी साफ हो जाते है ।
  5. जैविक पद्धति उगाई  सब्जियां  इस्तेमाल करें: कृषि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से सब्जियों में उपस्थित जहरीले अवशेष मानव शरीर में पहुंच कर नुकसान पहुंचा रहे है । यहीं कारण है कि अब जैविक तरीके से उगाई गई सब्जियों की मांग अधिक हो रही है । इस विधि से उगाई गई सब्जियां एक ओर पौष्टिक तो होती ही है साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक पाई गई है । शहरी उपभोक्तओं को चाहिए कि वे अपना स्वयं सेवी संगठन बनाएं । जैविक कृषि उत्पाद क्लब की स्थापना करें और सीधे किसानों से सम्पर्क कर उनसे सब्जियां-फल खरीद कर सदस्य  उपभेक्ताओं तक पहुंचाए । यदि किसानों को अग्रिम आदेश तथा सही मूल्य का भरोसा होगा तो वे जैविक पद्धति से खेती करने अवश्य उत्साहित होंगे। 
  6. अपनी गृह वाटिका में सब्जियां उगाइये : आपके घर में उपलब्ध जमीन में बागवानी करके ताजी-पौष्टिक सब्जियां प्राप्त की जा सकती है । यह कार्य गमलों अथवा मकान की छत पर भी आसानी से किया जा सकता है । घर की बगिया से प्राप्त सब्जियों व फलों का आनंद ही निराला रहता है साथ ही इसमें कार्य करने से व्यायाम भी होगा जो कि शहरी जीवन के लिए आवश्यक है । फल एवं सब्जियों का सेवन स्वास्थ्य व स्वाद की दृष्टि से आवश्यक है बशर्ते इनका सेवन सोच समझ कर किया जाए ।


उद्यानिकी समसामयिकी :चैत्र-वैशाख में उद्यानिकी के प्रमुख शस्य कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़ )

 स्वास्थ्य मनुष्य की अनुपम और अमूल्य निधि है, जिसकी रक्षा करना उसका परम कर्तव्य है। स्वास्थ्य रक्षा में मानव का आहार और स्वास्थ्य वर्धक पर्यावरण होना नितांत आवश्यक है। ये दोनों ही बातें उद्यानिकी प्रबंधन के माध्यम से प्राप्त हो सकती है। खेती किसानी के साथ-साथ किसान भाई यदि अपना समय, श्रम और थोड़ी से पूँजी  उद्यानिकी में निवेश करें तो निश्चित ही उनकी आमदनी में दो गुना से अधिक की बढ़ोत्तरी हो सकती है।  उद्यानिकी में सब्जियों की खेती से लेकर फल और फूलों की खेती के अलावा  फल एवं सब्जी परिरक्षण कला भी समाहित है।उद्यानिकी में  सामान्य  खेती किसानी से कुछ हटकर अलग शस्य कार्य करना होते है जो कभी कभार हम भूल जाते है। इन कार्यो को यथा समय न कर पाने के कारण उद्यानिकी से यथोचित लाभ नहीं मिल पाता है।  इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उद्यानिकी-बागवानी के प्रतिमाह के कार्यों की संक्षिप्त रूप रेखा अपने कृषिका ब्लॉग पर प्रस्तुत कर रहे है।  आशा के साथ हमें पूर्ण विश्वाश है कि किसान भाई परम्परागत फसलोत्पादन के अलावा थोड़े-बहुत क्षेत्र में उद्यानिकी को अपनाते हुए उसमे वैज्ञानिक तरीके से समसामयिक कार्य संपन्न करते रहेंगे जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी के साथ-साथ उनके परिवार के लिए वर्ष भर तरो ताजा  हरी-भरी सब्जियां और फल तथा भगवान् की पूजा अर्चना के लिए सुन्दर पुष्प भी प्राप्त हो सकेंगे । इस प्रकार आप सब का तन स्वास्थ्य, मन प्रशन्न और धन-धान्य की अनवरत वर्षा होती रहेगी। उद्यानिकी अपनाने से हमारे आस-पास का पर्यावरण परिष्कृत होगा। आईये हम नव वर्ष के चैत्र-वैसाख में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख कार्यो की विवेचना करते है.

                                                       सब्जियों में इस मांह के प्रमुख कार्य  

टमाटरः फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई व सिंचाई करें। फल छेदक नामक कीट के बचाव के लिये क्विनालफाॅस 25 ईसी का 800 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें । दवा छिड़काव से पूर्व तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें।
बैंगनः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करें। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें। यूरिया डालते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि यूरिया पत्तियों पर न पड़ने पाये तथा जमीन में इस समय पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
प्याजः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। इस समय कुछ कीट तथा बीमारियों का भी आक्रमण हो सकता है। अतः 0.2 प्रतिशत मेंकोजेब  तथा 0.15 प्रतिशत मेटासिस्टाक्स का घोल बनाकर एक छिड़काव अवश्य करें।
लहसुनः यदि अभी तक कंदों  की खुदाई नहीं की गई है तो खुदाई करें। तीन दिन तक खेत में ही रहने दें। बाद में छाया में सुखाने की व्यवस्था करें तथा भंडारण करें।
भिन्डी, लोबिया, राजमाः तैयार फलियों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। बाजार भेजने से पूर्व छटाई अवश्य करें। 
मिर्च, शिमला मिर्चः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालंे। यूरिया पत्तियों पर नहीं पड़ना चाहिये और जमीन में उस समय पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
खीरावर्गीय फसलेंः तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। चूर्णी फफूंदी नामक बीमारी से बचाव के लिये 0.06 प्रतिशत डिन¨क¢प (कैराथेन) नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
अदरक: पूर्व में  रोपी  गई फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें । इस माह भी अदरक की सुप्रभा, सूरूचि और  सुरभी किस्मों  की बुवाई 12-15 क्विंटल  प्रकंद प्रति हैक्टेयर की दर से की जा सकती है। बुवाई कतारों  में 60 सेमी. की दूरी पर करें तथा पौध  से पौध के  बीच 20 सेमी. का अन्तर रखें। प्रति हैक्टेयर 150 किग्रा. नत्रजन, 100 किग्रा. स्फुर एवं 120 किग्रा. पोटाश  उर्वरक  कतारों में प्रयोग करें । बुआई पश्चात हलकी सिंचाई करें। 

                                                             फलोत्पादन में इस माह के प्रमुख कार्य 

  • आमः आम के फलों को  गिरने से बचाने के  लिए यूरिया 2 प्रतिशत घोल  का छिड़काव करें। आम के  फल,फूल व नई कोपलें  चूसने वाले कीट मिली बग/भुनगा कीट  के  नियंत्रण हेतु 500 मिली. मिथाइल पैराथियान 50 ईसी को  500 लीटर पानी में घोलकर वृक्षों  पर छिड़काव करें। आम के फलों  की ब्लेक टिप रोग  से रक्षा हेतु बोरेक्स  0.6 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए। एन्थ्रेक्नोज रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 0.1 % (1 ग्राम प्रति लीटर पानी में) का 25 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करें। फल बनने की अवस्था में  आम के  बाग में  सिंचाई करें।
  • अमरूदः  वर्षात  की फसल नहीं लेना हो तो वृक्षों  में सिंचाई नहीं करें तथा पुष्पों को तोड़  दें। पेड़ों की कटाई-छंटाई का कार्य करें।
  • नींबूः नींबू के   एक वर्ष के पौधों में 2 किग्रा. कम्पोस्ट या केंचुआ  खाद के  साथ 50 ग्राम यूरिया प्रति  पौधा के  हिसाब से देकर सिंचाई करें। अन्य पौधों  की आयु के  हिसाब से खाद की मात्रा का गुणा कर दिया जा सकता है।नींबू में सफ़ेद  मक्खी और  लीफ माइनर कीट का प्रकोप होने  पर 300 मिली. मैलाथियान 50 ईसी दवा क¨ 500 लीटर पानी में मिलकर पौधों  पर छिड़काव करे। फल गलन रोग  से सुरक्षा हेतु बोर्डो मिक्सचर  (4:4:50) का छिड़काव करें। जिंक की कमीं होने  पर 3 किग्रा. जिंक सल्फेट के साथ  1.5 किग्रा. बुझा चूना मिलाकर 500 लीटर पानी में घोलकर  छिड़काव कर सकते है।
  • अंगूर: थ्रिप्स कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियान  (0.2 प्रतिशत) और चूर्णिल आसिता रोग हेतु कैराथेन (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव करें। बाग में 15 दिन के अंतर पर दो सिंचाई करें।
  • पपीताः  पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें। पौधशाला में पपीते के उन्नत किस्मों के  बीजों की बोआई करें।
  • बेरः चोटी कलम के लिए पेड़ों को 1 मीटर ऊंचाई से काट दें। फलदार वृक्षों की फसल तोड़ने के बाद कटाई-छंटाई करें।
  • लीची: बाग की 15 दिन के अंतर से सिंचाई करें। छोटी पत्ती रोग की रोकथाम हेतु जिंक सल्फेट (0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करें। इसी माह फल बनने के बाद प्लेनोफिक्स (एन.ए.ए.) 50 पी.पी.एम. (5 ग्राम) व् बोरेक्स 0.4 % (400 ग्राम) प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करने से लीची में फलों का झड़ना व फटना रुक जाता है।  इससे उत्तम गुणवत्ता के फल प्राप्त होते है। 
  • आंवला: बाग में 15 दिन के अंतर पर दो सिंचाई करें। पके फलों की तुड़ाई करें। पौधशाला में बीजों की बुआई करें।
  • कटहलः  कटहल के  वृक्षों  पर बोरेक्स (0.8 प्रतिशत) का छिड़काव करें। कटहल के बाग में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें ।
  • फालसाः बाग की सफाई करके एक सिंचाई करें। पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें।
  • फल सब्जी  परिरक्षणः बाजार में उपलब्ध मोसम्मी, आम, अंगूर,संतरा, बेल  तथा नींबू के रस से विभिन्न पेय पदार्थ बनाये जा सकते है। टमाटर से चटनी, अचार, सॉस, स्ट्राबेरी से जैम तथा कार्डियल बनाया जा सकता है।  शहतूत का स्क्वैश बनाया जा सकता है तथा  पपीते के उत्पाद बना सकते है।

                                                      पुष्पोत्पादन  में इस माह

  • गुलाब में आवश्यकतानुसार क्यारियों की गुड़ाई, सिंचाई तथा बेकार फुनगियों की तुड़ाई। दशिमिक रोज में फूलों की तुड़ाई एवं प्रोसेसिंग हेतु शीघ्र निपटान की व्यवस्था करें ।
  • ग्लैडियोलस के स्पाइक काटने के 40 दिन बाद घनकन्दों की खुदाई छाये में सुखाना, सफाई, ग्रेडिंग के बाद 5 प्रतिशत एलसान धूल तथा 0.2 प्रतिशत मैकोजेब पाउडर से शुष्क उपचारित कर उसी दिन शीतगृह में भण्डारित करें । इसमें देर न करें अन्यथा कन्द सड़ जायेंगे। 
  • रजनीगन्धा में एक सप्ताह के अन्दर पर सिंचाई तथा निराई-गुड़ाई संपन्न करें। 

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स्वास्थ्य के लिए घातक है खाद्य पदार्थो में कीटनाशक

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञानं)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

खेतों में हरी-भरी ताजा तरीन सब्जियों की कटती फसलें हम सब को सुहावना और सुखद अनुभव कराती है। बाजार में इन तरकारियों और फलों के सुन्दर अम्बार को देख हमारा मन सहसा इन्हें पाने के लिए लालायित होने लगता है। शाकाहार प्रधान भारत के लोगों के भोजन में सब्जियों का उचित मात्रा में समावेश आवश्यक होता है क्योंकि इनसे ही उन्हें आवश्यक प्रोटीन, विटामिन्स, खनिज लवण और ऊर्जा प्राप्त होती है। एक तरफ तो अधिक उत्पादन प्राप्त करने की होड़ में किसान कीट-रोग नियंत्रित करने तथा सब्जी फलों की त्वरित वृद्धि हेतु अत्यंत जहरीले रसायनों का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे है। किसान के खेत से चलकर तथाकथित विचौलियों  के  माध्यम से बाजार पहुंची सब्जियों को  खतरनाक रसायनों  वाले जल से स्नान करवाया जाता है जिससे उनका रूप और रंग ज्यादा आकर्षक हो जाये। जो दिखता है वही बिकता है वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए हम लोग भी रंग-रूप में आकर्षित और लुभावनी सब्जियों को खरीदने में अपनी शान समझते है। उपभोक्ता और आम आदमी जाए भाड़ में, व्यापारियों को तो  इनकी बिक्री से प्राप्त बेहतरीन मुनाफे से ही सरोकार है। इस छदम व्यवसाय में संलग्न व्यापारी और कुछ किसानों द्वारा जाने-अनजाने में जान सामान्य के स्वास्थ्य के साथ जो खिलवाड़ किया जा रहा है उसके परिणामस्वरूप आज हमारे देश के नागरिकों  में कैंसर, हार्ट अटेक, किडनी ख़राब होने जैसी  समस्याएं बढ़ती जा रही है। कीटनाशकों के जहर का कहर और बदहाल पर्यावरण की वजह से पंजाब में कैंसर के मरीजों को बड़े-बड़े अस्पतालों में इलाज के वास्ते उनके आवागमन हेतु एक  विशेष ट्रेन का परिचालन किया जा रहा है।

आमतौर पर सब्जी उत्पादक किसान कीटनाशक का छिडकाव के बाद निर्धारित अवधि (सारिणी-1 अनुसार) की प्रतीक्षा किये बगैर ही सब्जियां काट कर बाजार में बिक्री हेतु भेज देते है। जबकि आवश्यक है कि कीटनाशक के प्रयोग के उपरान्त निर्धारित अवधि के बाद ही स्वयं के उपभोग अथवा बाजार में बेचने हेतु सब्जिओं की तुडाई करें। निर्धारित अवधि के पहले तोड़ी गई सब्जिओं के उपभोग से उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। देश विदेश वे हुए शोध परिणामों से ज्ञात होता है की किसान की अनभिज्ञता से अत्यधिक मात्रा में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशको के अंश सब्जिओं में देखे गए है।  मौसम के अंत में बंद गोभी, टमाटर और फूल गोभी में सर्वाधिक कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है. शुरूआती मौसम में पालक, मैथी आदि पत्तेदार सब्जिओं में कीट नाशक का प्रयोग अधिक होता है।

                                             सब्जिओ में कीट नाशकों का उपयोग एवं प्रतीक्षा अवधि

कीटनाशी का नाम
सब्जी
प्रतीक्षा अवधि
कीटनाशी का नाम
सब्जी
प्रतीक्षा अवधि
मेलथिआन 50 ईसी
भिन्डी, तोरई
3
डाईक्लोरवास 76% ईसी
तोरई
भिन्डी
7
3

प्याज
6
साइपरमेथ्रिन 10 % एवं 25 % ईसी
भिन्डी
पत्ता गोभी
4
6

टमाटर
3-5
फेनवलरेट 20% ईसी
भिन्डी, पत्ता गोभी
9

हरी मिर्च
2
डेल्टामेथ्रिन 2.8 %
भिन्डी
पत्ता गोभी
1
2
कार्बारिल 5 % चूर्ण या 50 % डब्लू.पी.
बैगन, तोरई,टमाटर,पत्तागोभी,फूलगोभी
7
अल्फ़ामेथ्रिन 10 % ईसी
भिन्डी, गोभी
2
गामा लिंडेन 20%ई. सी.
भिन्डी
प्याज
6
9  
लेम्डा साइहेलोथ्रिन5 % ईसी  
भिन्डी,गोभी
3
मिथाइल पेरथिओन 2% चूर्ण, या 50 % ई.सी.
पत्ता गोभी
10
क्युनालफ़ॉस 25% ईसी
पत्ता गोभी
15
डाईमेथोएट 30 % ईसी
तोरई
पत्ता गोभी
10
15
फेनीट्रोथियान 5 %  चूर्ण व 50% ईसी
भिन्डी,पत्ता गोभी
फूल गोभी, तोरई
15
10
फेंथाएट 50% ईसी
पत्ता गोभी
भिन्डी
15
21
फोजेलान 50 % ईसी
पत्ता गोभी
10

जाने अनजाने में हम सब विषाक्त सब्जियां खाने में इस्तेमाल कर रहे है।  सब्जियां पकाने से पहले उनका थोड़ा सा उपचार (देखिये सारिणी-2) कर लेने से कीटनाशकों का प्रभाव कम किया जा सकता है।  इसके अलावा हमें सिर्फ मौसम में उगाई जाने वाली सब्जिया ही इस्तेमाल करना चाहिए।  बेमौसम उगाई गई सब्जिओ में कीट रोग का प्रकोप अधिक होता है जिनकी रोकथाम के लिए कृषक अंधाधुंध मात्रा में जहरीले रसायनों का प्रयोग करते है। इनकी पैदावार कम होती है, जिससे इन्हें ऊंचे दामों में बेचा जाता है।  अतः जब हरी सब्जिया बाजार में कम मात्रा में उपलब्ध हो तो उन्हें कतई उपयोग में ना लावें। यहाँ पर किसान भाइयो से आग्रह है की पौध सरंक्षण के लिए आवश्यक रासायनिकों के प्रयोग के पश्चात इनकी प्रतीक्षा अवधि समाप्त हो जाने के बाद ही सब्जियों की कटाई करे और बाजार में विक्रय हेतु भेजे जिससे उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य विष मुक्त सब्जियां और फल प्राप्त हो सकें। यहाँ पर फल और सब्जी विक्रेताओं से भी निवेदन है की वे थोड़े से मुनाफे के लिए सब्जियों के रख-रखाव, उन्हें पकाने और सरंक्षित करने के लिए अनावश्यक जहरीले रसायनों का प्रयोग ना करे।  इस तरह के कृत्य कानूनन अपराध की श्रेणी में आते है।  स्वास्थ्य समाज से ही स्वास्थ्य राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने में किसानों और विक्रेताओ से सकारात्मक व्यवसाय करने की उम्मीद की जा सकती है। 

सारिणी-2 साधारण प्रक्रिया द्वारा सब्जिओं में से कीटनाशी हटाने की विधियां

सब्जियां
कीटनाशी
2 % नमक के घोल से धोने और 15 मिनट पकाने पर (%निष्कासन )
धोने भाप में (प्रेशर कुकर में ) 15 मिनट तक पकाने पर (% निष्कासन )
सेम
मेलाथिआन
60
69

मोनोक्रोटोफास
42
47

कार्बेरिल
58
69
मिर्च
मोनोक्रोटोफास
28
30

क्युनेल्फास
22
29
टमाटर
कार्बेरिल
67
75

मोनोक्रोटोफास
31
32

क्युनेल्फास
29
30

 स्त्रोत : बुलेटिन ऑन पेस्टिसाइड कांटामिनेशन, एपीएयू, 1987

कृषि और उद्यानिकी फसलों की कीट, रोग और खरपतवारों से सुरक्षा करने के लिए रसायनों का प्रयोग करना अपरिहार्य होता है। परंतु पौध सरंक्षण के अन्तर्गत कीट, रोग और खरपतवार नियंत्रण के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सुझाये गई दवाओं का प्रयोग निर्धारित मात्रा में सही समय पर ही करना चाहिए। इसके अलावा दवा के पॉकेट पर अंकित निर्देशों का भी भली  भांति पालन करना न भूले। अनावश्यक रूप से दुकानदार अथवा पडौसी के कहने पर दवाओं का इस्तेमाल कदाचित न करें। सब्जी और फल उपभोक्ताओं को इनके इस्तेमाल से पूर्व उपरोक्तानुसार उपचार करना चाहिए। 

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