Powered By Blogger

रविवार, 28 मई 2017

समसामयिक कृषि:अश्विन-कार्तिक (अक्टूबर) माह की प्रमुख कृषि कार्य योजनाएं


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,  (छत्तीसगढ़)


भारतीय कृषि आज बहुत बड़े बदलाव से गुजर रही है। आर्थिक उदारीकरण के बाद पिछले दो दशकों के दौरान कृषि क्षेत्र में नित नए बीज, उर्वरक और दवाइयों की धूम मची है। खेती किसानी के तौर तरीकों में भी अमूल-चूल परिवर्तन हो चला है।  बढ़ती जनसँख्या और घटते कृषि संसाधनों को देखते हुए खेती किसानी को लाभ का धंधा बनाने के लिए आवश्यक है कि हम अपने किसानों को कृषि विज्ञान की आधुनिक पद्धतिओं और सामयिक कृषि कार्यक्रमों से अवगत कराये ताकि वे उन्नत कृषि अपनाकर प्रति इकाई अधिकतम उत्पादन और मुनाफा अर्जित करने में सफल हो सकें।  जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
शरद ऋतु के अक्टूबर यानी अश्विन-कार्तिक माह के  वातावरण में प्रकृति परिवर्तन की स्पष्ट झलक मिलती है। तापक्रम, सापेक्ष आद्रता तथा  वायु गति कम होने लगती है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 31 एवं 11.8 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 5.3 किमी प्रति घंटा होती है। अंधेरे पर प्रकाश के विजय का पर्व दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या का बड़े ही उत्साह और धूम-धाम से मनाई जाती है. आज के दिन कमला के रूप में देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. दीपावली के दुसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा करने का विधान है जिसमें हमारी कृषि प्रधान संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन हम गौ-माता और बैलों की पूजा करते है। दीपमाला के तीसरे दिन भैया दूज का त्यौहार मानते है जो भाई-बहिन के स्नेह भरे रिश्ते की याद दिलाता है।  उत्तम और फायदेमंद खेती के लिए इस माह किसान भाइयों को निम्न तीन सूत्रों को व्यवहार में लाना चाहिए।  

माह के  मूल मंत्र

1. केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट): किसानों के  हलवाहे केंचुओं  की जहरीले रसायनों  से रक्षा करें। इस समय खरपतवार तथा  कृषि अवशिष्ट से उत्तम किस्म का केंचुआ खाद बनाया जा  सकता  हैं। छायादार स्थान पर फसल अवशिष्ट, खरपतवार आदि को  एकत्रित कर केंचुआ खाद बनाएं तथा आगामी फसलों  में इसका प्रयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती और उपज में भी आशातीत वृद्धि होती है।  यही नहीं कचरे से खाद तैयार करने से पर्यावरण प्रदूषण कम होता है और रासायनिक उर्वरकों पर हमारी निर्भरता कम हो जाती है। 
2. अन्न भंडारण-खाद्यान्न सुरक्षाः खरीफ फसल उपज भंडारण के  समय कीड़ों  से बहुत क्षति होती है। इस हांनि से उपज को  बचाने के  लिए उसे धूप में  भली भांति सुखाकर (लगभग 9-10 % नमीं स्तर तक) साफ करने के  उपरान्त ही नमीं रहित स्थान या पात्रों  में भंडारित करें। नई बोरियां प्रयोंग में लायें तथा उनको  0.1 प्रतिशत मैलाथियान के  घोल में 10-15 मिनट तक डुबोने के पश्चात  छाया में सुखाकर उपज को ठंडा होने पर भरें। दलहनी फसलों  की उपज को  सुखाकर उसमे सरसों  या मूंगफली तेल 7.5 मिली. प्रति किग्रा. दानों  की दर से अच्छी प्रकार मिलाकर उचित स्थान पर भंडारित करें।
3. फसल विविधीकरणः एकल फसल प्रणाली की बजाय अन्न बाली फसलों के  साथ-साथ विविध फसलों यथा गन्ना, सरसों, चना, कपास, सब्जी  आदि फसलों की खेती अदल-बदल कर अपनाने से आर्थिक लाभ अधिक होता है तथा कीट-रोग प्रकोप भी कम होता है।
अश्विन-कार्तिक यानि अक्टूबर माह में शीत ऋतु (रबी) की फसलों की बौनी का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। इस  माह में सम्पादित किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यों का संक्षिप्त विवरण अग्र प्रस्तुत है। 
v धान: धान की शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों  में 80 प्रतिशत दाने पीले पड़कर कड़े होने पर  कटाई कर लेवें । देर से बोई गई फसल में फूल बनते समय खेत में सिंचाई अवश्य करें ।
v धान फसल में भूरा माहो के  अधिक प्रकोप की दशा में इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एस. का 125 मिली. प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें अथवा क¨र्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पौधों के  निचले हिस्से में छिड़काव करें ।
v धान की गभोट  अवस्था में विगलन रोग (शीथ राट) तथा लाई फूटने (फाल्स स्मट) की समस्या के  निदान हेतु प्रोपिकोनाजोल (1 मिली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
v धान की खड़ी फसल में उतेरा खेती हेतु अलसी, तिवड़ा, चना या सरसों  की बोनी संपन्न करें। अलसी व सरसों के  उतेरा के  लिए 10-15 किग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर धान की फसल में फूल आते समय डालना चाहिए। धान की फसल में गर्दन झुलसा रोग दिखने पर बीम या अन्य फफूंदनाशक 1000 ग्राम दवा को  600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
v मक्काः समय से बोई गई फसल की कटाई करे। संकर मक्का के पौधे पकने पर कभी-कभी हरे नजर आते हैं अतः जब भुट्टों के ऊपर वाला छिलका पीला व भूरा हो जाए तो समझें कि फसल पक गई है।
v ज्वार व बाजराः  ज्वार व बाजरा के तुरन्त बाद रबी की कोई फसल बोनी हो तो पौधों को नीचे से काटकर उन्हें  खेत से बाहर एकत्र कर लें। यदि रबी में कोई फसल नहीं लेनी हो तो पकी फसल से बाजरा की बाले काट लें और फसल को  आवश्यकतानुसार हरे चारे के  लिए काटते रहें।
v उर्द,मूंग व तिलः इन फसलों के पकने पर तुरन्त कटाई करें अन्यथा दानों के झड़ने से उपज में हांनि हो सकती है। फसल सुखाने के  बाद गहाई का कार्य भी संपन्न करें।
v मूंगफलीः शीघ्र पकने वाली किस्मों  की खुदाई करें। काली व सख्त मिट्टी वाले क्षेत्रों  में हल्की सिंचाई कर 2-3 दिन बाद खुदाई करने सभी फलियाँ आसानी से उखड़ जावेंगी। वर्षा ऋतु समाप्त होने पर चेंपा कीट प्रकोप की संभावना रहती है। इस कीट की रोकथाम के  लिए मैलाथियान 50 ईसी 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें। टिक्का रोग नियंत्रण के लिये खड़ी फसल पर जिंक मैग्नीज कार्बामेंट 2.0 किग्रा या जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किग्रा. दवा का प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v सोयाबीन एवं सूरजमुखी: समय पर बोई गई ये फसलें  अक्टूबर के  अन्त तक कटाई योंग्य हो  जाती है। दो-तिहाई  पत्तियों  के पीले पड़ने की अवस्था में कटाई कर लें ताकि दानें नहीं छिटकें । देर से बोई गई फसल की चक्रभृग व पत्तीमोडक कीट से रक्षा के लिये क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी. 1.5 लीटर या क्लोरोपाईरीफ़ॉस  20 ई.सी. 1.3 लीटर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। वर्षाकालीन सूर्यमुखी की सभी किस्में 90-100 दिन में तैयार हो जाती है।  सूरजमुखी के  दानों को तोते  बड़े चाव से खाते है तथा पकने पर फसल गिरने का भी अंदेशा रहता है। अतः समय पर फूल मुंडको  की कटाई करें।
v अरहरः खेत में नमीं की कमीं होने पर सिंचाई करें। फली छेदक इल्लियों के नियंत्रण के लिए फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत चूर्ण या क्विनालफ़ॉस  1.5 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हे. की दर से भुरकाव करें या क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी 0.05 प्रतिशत 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हे. या प्राफेनोफॉस 50 ई.सी एक लीटर प्रति हे. का छिड़काव करें।
v तोरिया (लाही): सितम्बर माह में बोई गई तोरिया की फसल में बुवाई के 15 दिन बाद घने पौधों को निकाल कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी. कर लेवें तथा एक निराई-गुड़ाई भी कर देनी चाहिए। यदि सिंचाई उपलब्ध हो तो तोरिया में फूल निकलने पर अर्थात बुवाई के 25-30 दिन बाद एक सिंचाई अवश्य कर दें।
v राई-सरसों: राई-सरसों की बुवाई माह के  अंत में प्रारम्भ करें । समय पर बुवाई करने से माहूँ-चेपा कीट का प्रकोप कम होता है। उन्नत किस्में यथा वरूणा, रोहिणी, क्रान्ति, कृष्णा, वरदान, वैभव, आदि के प्रमाणित बीज की बुवाई करें।
v कुसुमः कुसुम-करडी की बुवाई इस माह के  अंतिम सप्ताह में प्रारंभ की जा सकती है। वर्षा निर्भर क्षेत्रों  में बुवाई हेतु 20-25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बीज कतारों  में 45 सेमी. की दूरी पर बोया जाता है। कुसुम की जेएसएफ-1,जेएसआई-7, डीएसएच-129, नारी-6, परभणी कुसुम, नारी एच-17 व नारी एच-15 उन्नत किस्में है।
v चना, मटर, मसूरः असिंचित क्षेत्रों में चना, मटर, मसूर की बुवाई अक्टूबर के  दूसरे पखवाड़े से प्रारंभ करें । इन फसलों  को 30 सेमी. की दूरी पर कतार में बोना चाहिए। प्रति हैक्टेयर देशी या छोटे बीज वाले चने के लिये  60-75 किग्रा. बड़े बीज वाले चना एवं मटर के लिये 80-100 किग्रा. तथा मसूर के लिये 30-35 किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
v कपासः समय पर बोये गये कपास में डोंडे खिलने पर चुनाई का कार्य करें तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई भी करते रहें। अनेक प्रकार की सूंडियाँ कपास के  डेंडू में छेद कर फसल को क्षति  पहुँचाती है। कीट रक्षा के  लिए 400 मिली क्यूनालफ़ॉस  25 ई.सी. 1 लीटर साइपरमेथ्रिन 5 ई.सी. और  क्लोरपाइरीफ़ॉस  50 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें।
v गेहूं व जौः असिंचित क्षेत्रों में ड्यूरम गेहूं की बुवाई खेत में संचित नमी से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से प्रारम्भ कर सकते है। क्षेत्र के लिये संस्तुत किस्मों का चयन बुवाई के लिये करें। बुवाई हेतु 100-125 किग्रा. प्रति हैक्टेयर  बीज का प्रयोग करें तथा बुआई कतारों  में 20-22 सेमी. की दूरी पर करें । शून्य कर्षण विधि से कतारों  में बुवाई करने से समय, श्रम व पैसे की बचत की जा सकती है।
v गन्नाः खाली खेतों   में पर्याप्त नमीं होने पर उन्हे शीघ्र तैयार कर शरदकालीन गन्ने की बुवाई  प्रारम्भ करें। खेत की तैयारी के  समय यदि उपलब्ध हो तो  जैविक खाद का प्रयोग अवश्य करें। बुवाई में देरी करने से तापमान गिर जाने के कारण गन्ने के अंकुरण में कमी होती है। गन्ने की शीध्र पकने वाली, किस्मों को.शा. 671, को.शा. 8014, को.जा. 86-141, को. 86032, को. 62175 तथा को.जा. 8338 आदि उन्नत किस्मों  का चुनाव कर सकते हैं। शरदकालीन गन्ने की बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75-90 सेमी. एवं कूंड़ों  की गहराई 6-8 सेमी. रखें। प्रति  हैक्टेयर 35-40 हजार तीन आँख वाले टुकड़े लगाये जाने चाहिए। प्रति हैक्टेयर 300:80:60 किग्रा. क्रमशः नत्रजन, स्फुर व पोटाश उर्वरक फसल में देवें । नत्रजन को तीन बराबर भाग में बांटकर बुआई, कल्ले बनते समय और अधिकतम बढ़वार के समय देना चाहिए. गन्ने में सफेद मक्खी तथा पाइरिल्ला कीटों  की रोकथाम के  लिए इमीडेक्लोरप्रिड 17.8 प्रतिशत दवा 100-125 मिली या मेलाथियान 50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v गन्ने के साथ अन्तःफसली खेती: गन्ने की दो  पंक्तियों के  बीच आलू (1-2 पंक्ति),लहसुन (4 पंक्ति), मटर (2 पंक्ति) या शरदकालीन सब्जियां अन्तःफसल के  रूप में उगाकर  दोहरा लाभ कमायें। संशोधित ट्रेन्च विधि से गन्ना बुवाई करके  गन्ना व चीनी के  उत्पादन में सार्थक वृद्धि   की जा सकती है। लगभग 120 सेमी. की दूरी पर 30 सेमी. चौड़ी कूंड  बनाकर दो आँख वाले टुकड़ों  की बुवाई करें। खेत में नमीं की कमीं होने  की दशा में टुकड़ों की  2 सेमी. मिट्टी से ढंकाई कर तुरन्त सिंचाई करें परन्तु पर्याप्त नमी होने  पर 1-2 इंच मिट्टी से ढकाई करके  एक सप्ताह बाद हल्की सिंचाई करें।
v बसंत में बोये गये गन्ने में आवश्यकतानुसार  सिंचाई करें तथा पत्तियों  से गन्नों की  बंधाई कार्य करने से फसल गिरने से बच जाती है ।

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

शनिवार, 27 मई 2017

उद्यानिकी: वैशाख-ज्येष्ठ (मई) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

उद्यानिकी-बागवानी में प्रत्येक माह के नियत कृषि कार्यो को कभी-कभी हम भूल जाते है और उन कार्यो को सही समय पर संपन्न न करने की वजह से हम अपनी बगिया सुन्दर और आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने में पिछड़ जाते है।  इसी परिप्रेक्ष्य में हम इस ब्लॉग पर उद्यानिकी-बागवानी में प्रति माह के समसामयिक कार्यो का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे है।  मुझे आशा है की किसान भाई और बागवानी प्रेमियों को इससे समय पर कार्य आरम्भ करने में सुगमता होगी और बगिया के समस्त कार्य सही समय पर सुचारू रूप से संपन्न कर हरियाली और आर्थिक खुशहाली कायम रखने में सफल होंगे।
वैशाख-ज्येष्ठ अर्थात मई माह में गर्मी चरम सीमा पर होती है. तापमान में लगातार वृद्धि होना, आद्रता में कमीं तथा तेज गर्म हवाओं से मनुष्य, पशु-पक्षिओं सहित पेड़-पौधे और वनस्पतियों का भी हाल-बेहाल हो जाता है।  ग्रीष्म ऋतु में जुहीबेलाचमेली जैसे सुगन्धित पुष्पों  से वातावरण रमणीक हो जाता है।  इन दिनों  आम, लीची, तरबूजखरबूजाबेल और  फालसा जैसे शीतलता प्रदान करने वाले फलों  की बहार होती है जिसके  पेय पदार्थ तन-मन को  शीतलता प्रदान करते है। इस माह तेज गर्मी तथा लू से पेड़ पौधों का बचाव करना आवश्यक होता है.  इसी महीने फलोद्यान, पुष्पोद्यान तथा नर्सरी की रूपरेखा तैयार करना है. पौधे लगाने के लिए गड्ढे भी  तैयार करना है, साथ ही  खेत में जल निकास की नालियों की मरम्मत भी करना है.   बागवानी फसलों के अंतर्गत वैशाख-ज्येष्ठ (मई) माह में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख  कृषि कार्यों की संक्षिप्त जानकारी यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। 

                                                       सब्जियों में इस माह
Ø टमाटरः तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। इस माह में तापक्रम अधिक होता है अतः फल रंग बदलने वाली स्थिति में ही तोड़कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार सिंचाई निराई-गुड़ाई करें।
Ø बैंगनः तैयार मुलायम फलों को  तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें।यदि फल तथा तनाछेदक का आक्रमण हो तो 500 पीपीएम बी.टी. कीटनाशक 1-1.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से प्रय¨ग करें। खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई व निराई-गुड़ाई करें।
Ø प्याजः यदि आवश्यक हो तोे एक हल्की सिंचाई करें। आखरी सप्ताह में पत्तियों को जमीन की सतह से झुका दें जिससे गांठे सख्त हो जाती है।
Ø लहसुनः यदि खुदाई अभी तक नहीं हुई है तो खुदाई करें। गांठों को  दो दिन तक खेत में सूखने दें बाद में छोटी-छोटी गड्डियाँ बनाकर नमी रहित स्थान पर 10 दिन तक सुखायें, बाद में नम रहित स्थान पर भण्डारण करें।
Ø भिण्डी, लोबियाः तैयार फलियों को बाजार भेजने की व्यवस्था करें। भिण्डी की फसल में आवयकतानुसार पानी दें। वर्षा ऋतु में अगेती फसल प्राप्त करने के लिये भिण्डी व लोबिया की बुवाई की जा सकती है। पूसा सावनी, पूसा मखमली तथा परभनी क्रांति,पंजाब पदमिनी भिण्डी की एवं पूसा कोमल, पूसा वर्षाती व पूसा-2, फसली लोबिया की उन्नत किस्में हैं।
Ø मिर्चः तैयार मिर्चें को तोड़कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। फलों पर धब्बे दिखाई दे रहे हों तो 0.2 प्रतिशत मैंक¨जेब नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। शिमला मिर्च के तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें व फसल की गुड़ाई करें।
Ø खीरावर्गीय फसलें: तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें यदि आवश्यक हो तो एक बार सिंचाई करें। अगेती फसलो को वर्षा ऋतु में प्राप्त करने के लिए लौकी, तोरई, करेला व खीरा की फसलों की बुवाई के लिए खेत की तैयारी शुरू कर दें।
Ø अदरक, हल्दी, अरबीः  गाठ माह यदि इन फसलों की बुआई नहीं की है, तो इस माह की 15 तारीक तक संपन्न कर लेवें. पूर्व में लगाई गई इन फसलों के  अंकुरण उपरान्त आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें। अरबी की फसल में हल्की सी मेड़ बनाये। अरबी की नई  पत्तियों की छोटी-छोटी गड्डियां बनाकर विक्रय हेतु  बाजार भेजें है। कभी-कभी इस फसल में झुलसा का भी प्रकोप होता है। अतः बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। कीटों के बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत थायोडान नामक कीटनाशी दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें।
Ø चौलाईः भाजी के  लिए चौलाई की बुवाई इस माह की जा सकती है। इसकी बोआई तैयार खेत में 30 सेमी. की दूरी पर बनी कतारों में करें। बीज वाली फसल की कटाई करें एवं बीज निकालने की व्यवस्था करें।
Ø अदरक, हल्दी तथा अरबी अदरक व अरबी की खुदाई करके बाजार भेजने की व्यवस्था करें। बाजार भेजने के पूर्व कीट तथा रोगग्रस्त गांठों  को निकाल दें। हल्दी की पत्तियां पीली पड़ना शुरू हो जाती हैं, यदि पूर्णतया पीली पड़ गयी हों तो कटाई करें जिससे कि जड़े सख्त हो जायेंगी।
                                                फलोत्पादन में इस माह
Ø फलदार पौधों का बगीचा लगाने के लिये रेखांकन कार्य एवं गड्ढा खोदने का कार्य मई माह से लेकर जून के  प्रथम सप्ताह तक  सम्पन्न करें। यह कार्य कर निर्धारित दूरी पर बडे फलदार पौधों के लिये 1 x  1 x  1 मीटर का गड्ढा तथा मध्यम उंचाई के फलदार पौधों (नींबू) के लिये 90 x  90 x  90 सेमी. तथा छोटे फलदार पौधे जैसे कि अमरूद, अनार, मौसमी, संतरा आदि के लिये 60 x  60 x  60 सेमी. के गड्ढे खोदें।
Ø आमः पेड़ों  पर बोरेक्स का छिड़काव करें। फलों को चिड़ियों एवं गिलहरी से बचाएं। एक सिंचाई करें।
Ø केला: केला की फसल में एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें। अवांछित पत्तियों को निकाल दें। बाग में लगी हुई धारों (फल के गुच्छे) को सूखी पत्तियों से ढंक दें।
Ø नीबूवर्गीय फसलः नींबू के  बाग में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। फलों को गिरने से बचाने हेतु एन. ए. ए. दवा  का छिड़काव करें।
Ø अमरूदः फलदार वृक्षों में नए कल्लों की छंटाई एक जोड़ी निचली पत्ती छोड़कर करें अथवा 15 दिन के अंतराल पर एन.ए.ए. 600-800 पी.पी.एम. का छिड़काव दो बार करें।
Ø पपीताः पपीते के नये बगीचे लगाने के लिये इसकी उन्नत किस्मों  जैसे कुर्गहनी ड्यू, मधुबाला, हनीड्यू , पूसा नन्हा, पूसा डिलीशस आदि की नर्सरी तैयार करें। पौधशाला के लिये उत्तम स्थान का चयन कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। पौध तैयार करने के लिये पपीते का 250 ग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बीजों को बुवाई के पूर्व 2 ग्राम थायरम को प्रति किलो बीज में मिलाकर उपचारित करें। बीजों को तैयार क्यारी में  कतार से कतार 10-10 से०मी० की दूरी एवं पौध  से पौध  2 सें.मी. की दूरी पर 1 से 1.5 सेमी। की गहराई पर बुवाई करके सिंचाई करें।   पूर्व में लगाये गये पपीते के पौधों  में सिंचाई करते रहें।
Ø अंगूरः अंगुर में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। फलों की चिड़ियों से रक्षा करें। अगेती किस्मों के पके गुच्छों को तोड़कर बाजार भेजें।
Ø बेरः नए बाग लगाने के लिए रेखांकन करके गडढ़े खोद लें। पुराने वृक्षों की कटाई- छंटाई करें।
Ø लीचीः बाग में 15 दिन के अंतराल दो बार से सिंचाई करें । नए बाग लगाने के लिए तैयार भूमि पर रेखांकन करके गडढ़े खोद ले। फलों को फटने से बचाने के लिए वृक्षों पर पानी का छिड़काव करें।
Ø आंवलाः बाग की सिंचाई करें। नए बाग लगाने के लिए रेखांकन करके गडढ़े खोद लें।
Ø अनारः के फल जुलाइ-अगस्त में लेने के लिये जून माह में 3 वर्षीय पौधों में 150 ग्राम, चार वर्षीय पौधों में 200 ग्राम, पांच या अधिक उम्र वाले पौधों में 250 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर सिंचाई करें। छोटे एक वर्षीय पौधों  में 50 ग्राम व दो वर्षीय में 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर सिंचाई करें।        
Ø कटहलः  फल वृक्षों पर बोरेक्स (0.8 प्रतिशत) के दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें। फल विगलन रोग की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स-50 का एक छिड़काव करें। फलों को तोड़कर बाजार भेजें। नए बाग लगाने के लिए भूमि का रेखांकन करके गडढ़े खोद लें।
Ø फल-सब्जी संरक्षणः लीची के रस से स्क्वैश बनायें। अनानास की डिब्बाबन्दी, जैम, रस, स्क्वैश तथा शरबत बनाया जा सकता है। कच्चे आम से अचार, चटनी बनायें तथा अतरिक्त फलों को छीलकर और  सुखाकर अमचूर बना सकते हैं। पके आम के फलों  से जैम तथा स्क्वैश बनाया जा सकता है। बेल  फलों से  शर्बत, जैम तथा इसकी डिब्बाबन्दी कर सकते है।     
                                                            पुष्पोत्पादन में इस माह 
मौसमी पुष्पों के बीजों की बुआई करें। इस माह के अंत तक कांड, डहलिया, बैजंती आदि लगावें. कारनेशन तथा गुलदावदी में गमला परिवर्तन करें। सभी शोभायमान कोमल पौधों की तेज धुप और लू से सुरक्षा करें और आवश्यकतानुसार  सिंचाई करते रहे। गमले वाले पौधों में सुबह शाम सिंचाई करते रहें। 

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।