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शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

रबी फसल के बाद बसंतकालीन गन्ने की लाभकारी खेती


रबी फसल के बाद बसंतकालीन गन्ने की लाभकारी खेती
डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर

गन्ना दुनिया की महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसलों में से एक है।  विश्व के कुल चीनी उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत आपूर्ति गन्ने से निर्मित चीनी से होती है।  देश के लगभग 50 मिलियन किसान अपनी आजीविका के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर हैं, जो गन्ने के खेतों में काम करके अपनी जीविका निर्वाह करते हैं। देश में लगभग 650 चीनी मिले हैं जिनमें बड़ी संख्या में कुशल और अकुशल मजदूर कार्यरत है। इस प्रकार गन्ना देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने वाली महत्वपूर्ण फसल है।  भारत में र्निमित सभी प्रमुख  मीठाकारकों के लिए गन्ना एक मुख्य कच्चा माल है।शक्कर निर्माण के अलावा गन्ने का उपयोग दो प्रमुख कुटीर उद्योगों गुड़ तथा खंडसारी उद्योगों में भी किया जाता है। इन दोनों उद्योगों से लगभग 10 मिलियन टन मीठाकारकों (गुड़ और खंडसारी) का उत्पादन होता है।  गन्ने के कुल उत्पादन का लगभग 40-55% शक्कर निर्माण, 40-42% गुड़ बनाने, 3-4 % खाण्डसारी व 17-18% गन्ना चूसने के लिए किया जाता है।  मानव मात्र को  शक्ति देने के लिये जितनी भी फसल उत्पादित करते है उनमें गन्ने का सर्वश्रेष्ठ स्थान है ।  चीनी, गन्ने की खोई तथा शीरा  गन्ना उद्योग के मुख्य सह-उत्पाद हैं। गन्ना रस से प्राप्त शिरा इथेनाल और शराब  बनाने में इस्तेमाल किया जाता है । साधारण चीनी कारखाने में 100 टन गन्ने से औसतन  10 टन शक्कर, 4 टन, शीरा 3 टन प्रेसमड  तथा 30 टन खोई (बैगास) प्राप्त होती है । इसके अलावा 30 टन गन्ने का ऊपर का भाग और  पत्तियाँ भी निकलती है जिसे पशु चारे या खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है । इसकी खोई से बिजली,कागज, कार्ड बोर्ड आदि बनाये जाते है। देश के पांच प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की चीनी मिलें राष्ट्रिय बिजली ग्रिड में  दो हजार से अधिक मेगावाट बिजली का योगदान दे रही है।
अंबिकापुर में गन्ने की बम्पर फसल फोटो गन्ना कृषक श्री अशोक जायसवाल
भारत में गन्ने की खेती वर्ष 2018-19 के दरम्यान  47.74 लाख हेक्टेयर  क्षेत्रफल में की गई जिससे  जा रही है जिससे 74.4 टन प्रति हेक्टेयर की दर से 3550.90 लाख टन गन्ना  उत्पादन प्राप्त हुआ है । भारत में गन्ना उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का प्रथम, महाराष्ट्र का द्वितीय तथा तमिलनाडु का तृतीय स्थान है छत्तीसगढ़ में गन्ने की खेती 23.61 हजार हेक्टेयर में की जाती है जिससे 12.47 लाख टन गन्ना उत्पादन प्राप्त हुआ है। छत्तीसगढ़ में गन्ने की औसत उत्पादकता 41.6 टन प्रति हेक्टेयर है जो राष्ट्रीय उत्पादकता से काफी कम है। एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2020 तक चीनी एवं मिठास उत्पादन की 27.39 मिलियन टन की अनुमानित मांग संभावित है  । इस लक्ष्य को  प्राप्त करने के लिए 100 टन प्रति हैक्टर औसत उपज तथा  11 प्रतिषत चीनी प्रत्यादन के साथ 415 मिलियन टन तक गन्ने के उत्पादन में वृद्धि का लक्ष्य हमारे सामने है । छत्तीसगढ राज्य के कबीरधाम में भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना, पंडरिया के ग्राम बिसेसरा में  लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल सहकारी शक्कर उत्पादक कारखाना,  बालोद के कर्कभाटा  में दंतेश्वरी मैया शक्कर कारखाना  एवं सूरजपुर के केरता में मां महामाया सहकारी शक्कर कारखाना स्थापित किये गये है ।  इन कारखानों के आस पास के किसान व्यापक पैमाने पर गन्ने की खेती कर रहे है परन्तु गन्ने की क्षमता के अनुरूप उन्हें उपज नहीं मिल पा रही है।  इन शक्कर कारखानों के सुचारू संचालन एवं प्रदेश में शक्कर उत्पादन बढाने के लिए गन्ना फसल के अन्तर्गत क्षेत्र  विस्तार के अलावा बेहतरीन सुधरी हुई प्रजातियो और  उन्नत तकनीकी के माध्यम से प्रति इकाई क्षेत्र  में गन्ने की उपज में   बदोत्तरी  तथा चीनी प्रतिदान में यथोचित वृद्धि लाने की महती आवश्यकता है । गन्ने की अधिकतम उपज तथा  आर्थिक लाभ के लिए उन्नत किस्मो  के बीज की उपलब्धता को सुगम  तथा गन्ना  उत्पादन की आधुनिक तकनीक को गन्ना उत्पादक किसानों तक पहुँचाने की महती आवश्यकता है । मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य मे गन्ना उत्पादन और  औसत उपज बढ़ाने के लिए आधुनिक सस्य तकनीक के प्रमुख पहलू अग्र प्रस्तुत है ।
उपयुक्त जलवायु
    गन्ना के लिए उष्ण कटिबन्धीय जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। गन्ना बढ़वार के समय लंबी अवधि तक गर्म व नम मौसम तथा अधिक वर्षा का होना सर्वोत्तम पाया गया है। गन्ना बोते समय साधारण तापमान, फसल तैयार होते समय आमतौर पर शुष्क व ठण्डा मौसम, चमकीली धूप और पाला रहित रातें उपयुक्त रहती है। छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने ऐसी ही जलवायु से नवाजा है । गन्ने के अंकुरण के लिए 25-32 डिग्री  से.  तापमान  उचित रहता है। गन्ने की बुआई और फसल बढ़वार के लिए 20- 35 डिग्री  से. तापक्रम उपयुक्त रहता है। इससे कम या अधिक तापमान पर वृद्धि घटने लगती है। गन्ने की खेती उन सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 - 120 से.मी. तक होती है। समय पर वर्षा न होने पर सिंचाई आवश्यक है गन्ने की विभिन्न अवस्थाओं के लिए आर्द्रता 56-87 प्रतिशत तक अनुकूल होती है। सबसे कम आर्द्रता कल्ले बनते समय एवं गन्ने की वृद्धि के समय आद्रता अधिक चाहिए। सूर्य के प्रकाश  की अवधि एवं तापमान का गन्ने में सुक्रोज निर्माण पर अधिक प्रभाव पड़ता है। प्रकाश की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट बनता है जिससे गन्ने के भार में वृद्धि होती है। लम्बे दिन तथा तेज चमकदार धूप से गन्ने में कल्ले अधिक बनते हैं।
भूमि का चयन एवं खेत की तैयारी
कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक एवं लेखक द्वारा गन्ना फसल निरिक्षण
    गन्ने की खेती बलुई दोमट से  दोमट और भारी मिट्टी मे सफलता पूर्वक की जा सकती है परंतु गहरी तथा उत्तम जल निकास वाली दोमट मृदा जिनकी मृदा अभिक्रिया 6.0 से 8.5 होती है, सर्वात्तम रहती है। उचित जल निकास वाली जैव पदार्थ व पोषक तत्वो से परिपूर्ण भारी मिट्टियो  में भी गन्ने की खेती सफलतार्पूक की जा सकती है।  अम्लीय मृदाएं  इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं  होती है।
          गन्ने की पेड़ी लेने के कारण इसकी फसल लम्बे समय (2-3 वर्ष) तक खेत में रहती है । इसलिए खेत की गहरी जुताई आवश्यक है। खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले पिछली फसल के अवशेष भूमि से हटाते है। इसके बाद जुताई  की जाती है और जैविक खाद मिट्टी में मिलाते है। इसके लिए रोटावेटर उपकरण उत्तम रहता है। खरीफ फसल काटने के बाद खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती है । इसके बाद 2 - 3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताई करने के पश्चात् पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा तथा खेत समतल कर लेना चाहिए। हल्की मिट्टियो  की अपेक्षा भारी मिट्टी में अधिक जुताईयाँ करनी पड़ती है ।
बेहतर उपज के लिए उन्नत किस्मों का प्रयोग
गन्ने की उपज क्षमता का पूर्ण रूप से दोहन करने के लिए उन्नत किस्मो  के स्वस्थ बीज का उपयोग क्षेत्र विशेष की आवश्यकता के अनुरूप करना आवश्यक है। गन्ने की कुल पैदावार में 40-50 % योगदान अकेले उन्नत किस्मों का होता है और शेष उपज उत्तम फसल प्रबंधन पर निर्भर करती है. मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ राज्य  के लिए अनुमोदित गन्ने की नवीन उन्नत किस्मों की विशेषताएँ अग्र सारणी में प्रस्तुत है ।
किस्म  
शक्कर (%)
 अवधि (माह)
उपज (टन/हे.)
प्रमुख विशेषताएँ
को.जे.एन.-9823
20-20
10-12
100-110
अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी।
को.-85004
18-20
9-10
90-95
नवम्बर-जनवरी में लगाने के लिए एवं पेडी फसल हेतु  उपयुक्त
को.-86-572
20-24
10-12
90-112
अधिक शक्कर, अधिक कल्ले, पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का कम प्रकोप, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी
को.जे.एन.- 86-141
22-24
10-12
90-110
जड़ी अच्छी, उत्तम गुड़, शक्कर अधिक, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी
को.-7318
18-20
12-14
120-130
अधिक शक्कर, रोगों का प्रकोप कम, पपड़ी कीटरोधी
को.-99004
20-22
12-14
120-140
लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी
को.जे.एन.-86-600
22-23
12-14
110-130
उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी
को.जे.एन.-9505
20-22
10-14
100-110
अधिक उत्पादन, अधिक शक्कर, उक्ठा, कंडवा, लाल सड़न अवरोधी
को.-86032
22-24
12-14
110-120
उत्तम गुड़, अधिक शक्कर, कम गिरना, जडी गन्ने के लिए उपयुक्त, पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का कम प्रकोप, लाल सड़न कंडवा उक्ठा प्रतिरोधी।
उपरोक्त गन्ना किस्मों के अलावा गन्ना प्रजनन संसथान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल द्वारा विकसित उच्च उपजशील एवं उच्च शर्करा वाली को.-0238 (करन-4) की खेती लाभकारी साबित हो रही है।

गन्ना बोआई-रोपाई का समय
          गन्ने की बुआई के समय वातावरण का तापमान 25-32 डिग्री से. उपयुक्त होता है। वर्ष में दो बार अक्टूबर-नवम्बर  तथा फरवरी-मार्च में यह तापमान रहता है । अतः इन दोनों ही समय पर गन्ना बोया जा सकता है। भारत में गन्ने की बुआई शरद ऋतु (सितम्बर-अक्टूबर) एवं  बसन्त ऋतु (फरवरी - मार्च) में की जाती है।मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में शरद व बसंत ऋतु में ही गन्ना की बुवाई की जाती है । रबी फसलों की कटाई के बाद बसंत कालीन गन्ने की बुआई फरवरी - मार्च मे की जाती है। भारत मे लगभग 85 प्रतिशत क्षेत्र में गन्ने की बुआई इसी ऋतु में की जाती है। इस समय बोई गई गन्ने की फसल को 4-5 माह का वृद्धि काल ही मिल पाता है और चरम वृद्धि काल के दौरान फसल को नमी की कमी और अधिक तापक्रम तथा गर्म हवाओं का सामना करना पड़ता है जिससे शरद कालीन बुआई की अपेक्षा बसंतकालीन गन्ने से उपज कम प्राप्त होती है।
गन्ना बीज का चुनाव
सर्वोत्तम फसल उत्पादन के लिए अपरिपक्व गन्ने अथवा गन्ने के ऊपरी भाग का प्रयोग बीज के लिए करना चाहिए क्योंकि  गन्ने के ऊपरी हिस्से से लिये गये बीज शीघ्र अंकुरित हो  जाते है, जबकि निचले भाग से लिए गए टुकड़े देर से जमते है।  गन्ने की 7-8 माह की फसल से लिए गये बीज का जमाव अपेक्षाकृत अच्छा होता है। बीज के लिए गन्ने के टुकड़ो  को हमेशा तिरछा काटा जाना चाहिए क्योंकि सीधा काटने से गन्ना फट जाता है जिससे उनसे काफी रस निकल जाता है और बीज में कीट-रोग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है।
उपयुक्त बीज दर का प्रयोग 
गन्ने की बीज दर  टुकड़े के अंकुरण प्रतिशत, गन्ने की किस्म, बोने के समय आदि कारको  पर निर्भर करती है। सामान्यतौर पर गन्ने की 50-60 प्रतिशत कलिकायें ही अंकुरित होती है। नीचे की आँखें अपेक्षाकृत कम अंकुरित होती है। बोआई हेतु मोटे गन्ने की मात्रा अधिक एवं पतले गन्ने की मात्रा कम लगती है। बसंतकालीन गन्ने में कम अंकुरण होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक बीज लगता है। एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए तीन कलिका वाले 35,000-40,000 (75-80 क्विंटल ) तथा दो कलिका वाले 40,000-45,000 (80-85  क्विंटल) टुकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। इन टुकड़ों को आँख-से-आँख  या सिरा-से-सिरा मिलाकर लगाया जाता है। गन्ने के टुकड़ों को 5-7 सेमी. गहरा बोना चाहिए तथा कलिका  के ऊपर 2.5 से. मी. से अधिक मिट्टी नहीं चढ़ाना चाहिए।
जरूरी है बीज उपचार
बोने से पूर्व गन्ने के बीज टुकड़ों को कार्बेन्डाजिम के घोल (300 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 300 लीटर पानी में घोलकर 85 क्विंटल बीज गन्ना) से उपचार करें। बीज गन्ना को बिजाई से पहले नम गर्म शोधन मशीन में 50  डिग्री से. तापमान एवं 95 % आद्रता पर  ढाई  घंटे के लिए नमी युक्त गर्म वायु से  उपचारित कर लेना चाहिए। गन्ने में दीमक, श्वेत भृंग, प्ररोह बेधक तथा जड़ बेधक कीट का प्रकोप रोकने के लिए बुवाई के समय नालियों में टुकड़ों के ऊपर क्लोरपाइरी फ़ॉस 20 ई सी को 5 लीटर प्रति हेक्टेयर को 1600-1800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
गन्ना लगाने की विधियाँ
गन्ने की बुवाई सूखी या पलेवा की हुई गीली दोनो  प्रकार की भूमि पर की जाती है । सूखी भूमि में  पोरिया (गन्ने के टुकड़े) डालने के तुरन्त बाद सिंचाई की जाती है  । गीली बुवाई में पहले  पानी नालियो या खाइयो  में छोड़ा जाता है और फिर गीली भूमि में बीजू टुकड़ों  को रोपा जाता है । गन्ने की बुआई भूमि की तैयारी, गन्ने की किस्म, मिट्टी का प्रकार, नमी की उपलब्धता, बुआई का समय आदि के अनुसार निम्न विधियों से की जाती है:
1. समतल खेत में गन्ना बोना: इस विधि में 75 - 90 से.मी. की क्रमिक दूरी पर देशी हल या हल्के डबल मोल्ड बोर्ड हल से 8 - 10 से.मी. गहरे कूँड़ तैयार किये जाते है। इन कूडों में गन्ने के टुकड़ों की बुआई (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) करके पाटा चलाकर   5-7 से.मी. मिट्टी से ढंक दिया जाता है। आज कल  ट्रेक्टर चालित गन्ना प्लांटर से भी बुआई की जाती है।
2. कूँड़ में गन्ना बोनाः इस विधि  मे गन्ना रिजर द्वारा उत्तरी भारत में  10 - 15 सेमी. गहरे कूँड़ तथा दक्षिण भारत मे 20 से.मी. गहरे कूँड़ तैयार किये जाते है। गन्ने के टुकड़ों को एक - दूसरे के सिरे से मिलाकर इन कूंडों में बोकर ऊपर से 5-7 से.मी. मिट्टी चढ़ा देते है । इस विधि में बुवाई के तुरन्त बाद पानी दे दिया जाता है, पाटा नहीं लगाया जाता ।
3. नालियों में गन्ना बोना (ट्रेंच विधि): गन्ने की अधिकतम उपज लेने के लिए यह श्रेष्ठ विधि है ।गन्ने की बुआई नालियों में करने के लिए 120  से.मी. की दूरी पर 20-25 से.मी. गहरी एवं 40 से.मी. चौड़ी नालियाँ बनाई जाती है। सामान्यतः 40 सेमी. की नाली और 40 से.मी. की मेढ़ बनाते है। गन्ने के टुकड़ों को  नालियों के मध्य में लगभग 5 - 7 से.मी. की गहराई पर बोते है तथा कलिका के ऊपर 2.5 से.मी. मिट्टी होना आवश्यक है। प्रत्येक गुड़ाई के समय थोड़ी सी मिट्टी मेढ़ो की नाली में गिराते रहते है। वर्षा आरम्भ होने तक मेढ़ो की सारी मिट्टी नालियों में भर जाती है और खेत समतल हो जाता है। वर्षा आरंभ हो जाने पर गन्ने में  नत्रजन की टापड्रेसिंग करके जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देते हैं। इस प्रकार मेढ़ों के स्थान पर नालियाँ और नालियों के स्थान पर मेढ़ें बन जाती हैं। इन नालियों द्वारा जल निकास भी हो जाती है। इस विधि से गन्ना लगाने के लिए ट्रेक्टर चालित गन्ना प्लान्टर यंत्र सबसे उपयुक्त रहता है। नालियो  में गन्ने की रोपनी करने से फसल गिरने से बच जाती है । खाद एवं पानी की बचत होती है । गन्ने की उपज में 5-10 टन प्रति हैक्टर की वृद्धि होती है । गन्ना नहीं गिरने से चीनी की मात्रा  में भी वृद्धि होती है ।
4. गन्ना बोने की दूरवर्ती रोपण विधि (स्पेस ट्रांस्प्लान्टिंग):  यह विधि भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित की गई है । इसमें 50 वर्ग मीटर क्षेत्र में (1 वर्ग मीटर की 50 क्यारियाँ) पोधशाला बनाते हैं। इनमें एक आँख वाले 600 - 800 टुकड़ें लगाते हैं। इसमें सिर्फ 20  क्विंटल ही  बीज  लगता है। बीज हेतु गन्ने के  ऊपरी भाग का ही प्रयोग करना चाहिए। क्यारियों में नियमित रूप से सिंचाई करें। बीज लगाने के 25 -30 दिन बाद (3-4 पत्ती अवस्था) पौध को मुख्य खेत में रोपना  चाहिए। इस विधि से गन्ना लगाने हेतु पौध स्थापित होने तक खेत में नमी रहना आवश्यक है। इस विधि से बीज की बचत होती है। खेत में पर्याप्त गन्ना (1.2 लाख प्रति हे.) स्थापित होते हैं। फसल में कीट-रोग आक्रमण कम होता है। परंपरागत विधियों की अपेक्षा लगभग 25 प्रतिशत अधिक उपज मिलती है।
5. गन्ना बोने की दोहरी पंक्ति विधिः भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित गन्ना लगाने की यह पद्धति अच्छी उपजाऊ एवं सिंचित भूमियों  के लिए उपयुक्त रहती है । दोहरी पंक्ति विधि में गन्ने के दो  टुकड़ो  को  अगल-बगल बोया जाता है जिससे प्रति इकाई पौध घनत्व बढ़ने से पैदावार में 25-50 प्रतिशत तक बढोत्तरी होती है ।
6. पौध रोपण विधि: गन्ने के एक आँख के टुकड़े की नर्सरी तैयार करके गन्ने की बुवाई करने से बीज की बचत होती है और पौध स्थापन बेहतर होता है।  इस विधि में मात्र  7-6  क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर लगता है. एक आँख के स्वस्थ टुकड़ों को उपचारित कर ट्रे/पोलीबेग या फिर क्यारियों में लगाकर पौध तैयार कर ली जाती है।  तैयार पौधों को 4-5 फीट की दूरी पर लगाया जाता है।  इस विधि में उत्पादन लागत बहुत कम आती है और उत्पादन में अधिकतम प्राप्त होता है।
संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन  
            गन्ना दीर्ध अवधि की एवं अधिक मात्रा में वानस्पतिक वृद्धि करने वाली फसल होने के कारण भूमि से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण करती है।  अतः बेहतर उत्पादन के लिए गन्ने में खाद एवं उर्वरको  को  सही एवं संतुलत मात्रा में  देना आवश्यक रहता है । खेत की अंतिम जुताई के पूर्व 10-12 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी गोबर की खाद भूमि में मिला दें। यदि मिट्टी  परीक्षण  नहीं किया गया है तो 250 कि.ग्रा. नत्रजन, 80 कि.ग्रा. स्फुर व 60 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए । भूमि मे जस्ते की कमी होने पर 20 से 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर  गन्ना लगाते समय देना चाहिए । नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा गन्ना लगाने के समय कूँड़ में डालें । नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में बांटकर बुवाई के 60 एवं  90 दिन बाद समान रूप से कूंडों में देकर मिटटी में मिलाना चाहिए ।
सिंचाई और जल निकासी
    गन्ने की फसल को जीवन काल में 200-300 सेमी. पानी की आवश्यकता होती है। फसल की जलमांग  क्षेत्र, मृदा का प्रकार, किस्म, बुआई का समय और बोने की विधि पर निर्भर करती है। गन्ने की विभिन्न अवस्थाओं में जल माँग को निम्नानुसार विभाजित किया गया है -
फसल की अवस्थाएं
समय (दिनों में)
जल मांग
अंकुरण
बुआई से 45
30
कल्ले बनने की अवस्था
45-120
55
वृद्धि काल
120-270
100
पकने की अवस्था
270-360
65
गन्ने में सर्वाधिक पानी की माग बुआई के 60 दिन से लेकर 250 दिन तक होती है। फसल में प्रति सिंचाई 5-7 सेमी. पानी देनी चाहिए। गर्मी में 10 दिन व शीतकाल में 15 से 20 के अंतर से सिंचाई करें। मृदा में उपलब्ध नमी 50 प्रतिशत तक पहुचते ही गन्ने की फसल में सिंचाई कर देनी चाहिए। शरदकालीन फसल के लिए औसतन 7 सिंचाईयाँ (5 मानसून से पहले व 2 मानसून के बाद) और बसन्तकालीन फसल के लिए 6 सिंचाईयों की आवश्यकता पड़ती है। पानी की कमी वाली स्थिति में गरेडों  में सूखी पत्तियाँ बिछाने से सिंचाई संख्या कम की जा सकती हैं। खेत को छोटी-छोटी क्योरियों में बाँटकर नालियों मे सिंचाई करना चाहिए।  गन्ना सिंचाई की उभरी कूंड विधि से 35 % जल की बचत की जा सकती है। गन्ने के अंकुरण के बाद (बुवाई के 35-40 दिन बाद) 45 से.मी.चौड़ा और 15 से.मी. गहरी एकांतर पंक्तियों में कूंड बनाकर सिंचाई करने से जल उपयोग क्षमता में 64 % की वृद्धि की जा सकती है। सिंचाई की बूँद-बूँद (ड्रिप) पद्धति सबसे कारगर साबित हो रही है।  इस विधि से पानी के साथ साथ घुलनशील उर्वरक एवं कीटनाशक भी फसल को दिए जा सकते है। इसके साथ मल्च का प्रयोग करने से खरपतवार प्रकोप भी नहीं होता है।  वर्षा ऋतु में मृदा मे उचित वायु संचार बनाये रखने के लिए जल-निकास का प्रबन्ध करना अति आवश्यक ह।
पौधों पर मिट्टी चढ़ाना
          गन्ने को गिरने से बचाने के लिए दो बार गुड़ाई करके पौधों पर मिट्टी चढाना   चाहिए। अप्रैल या मई माह में प्रथम बार व जून माह में दूसरी बार यह कार्य करना चाहिए। गुड़ाइयों से मिट्टी में वायु संचार, नमी धारण करने की क्षमताखरपतवार नियंत्रण तथा कल्ले विकास मे प्रोत्साहन मिलता है।
गन्ने के पौधों को  सहारा भी देना है 
             गन्ने की फसल को गिरने  से बचाने हेतु जून - जुलाई में  बँधाई की क्रिया  की जाती है। इसमें गन्नों के झुड   को जो कि समीपस्थ दो पंक्तियों में रहते हैं, आर - पार पत्तियों से बाँध देना चाहिए । गन्ने की हरी पत्तियों के समूह को एक साथ नहीं बाँधते है क्यांेकि इससे प्रकाश संश्लेषण बाधित होती है। लपेटने  की क्रिया में एक - एक झुंड को पत्तियों के सहारे तार या रस्सी से लपेट देते है और बाँस या तार के सहारे तनों को खड़ा रखते है। यह खर्चीली विधि है। इसके लिए गुडीयत्तम की विधि सर्वोत्तम है। इस विधि में जब गन्ने के तने 75 - 150 सेमी. के हो जाते है तब नीचे की सूखी एवं हरी पत्तियों की सहायता से रस्सियाँ बांध ली जाती है और उन्हे गन्ने की ऊँचाई तक लपेट देते है। इससे गन्ने की कोमल किस्में फटती नहीं है। सहारा देना  विधि से बाँधे या लपेटे हुए झुंडों  को सहारा देने के लिए बाँस या तार का प्रयोग करते है। उपर्युक्त क्रियाओं से गन्ने का गिरना रूक जाता है और उपज में भी वृद्धि होती है।  
गन्ने के साथ सहफसली खेती 
गन्ना की खेती धान, गेहूँ, मक्का, ज्वार, आलू या सरसो के बाद की जाती है। बसन्तकालीन गन्ने में सहफसली खेती कर अतिरिक्त मुनाफा लिया जा सकता है. इसके लिए  गन्ना + मूंग(1+1), गन्ना +उड़द (1+1), गन्ना+धनिया (1:3) अथवा  गन्ना +मेथी (1:3) में से कोई भी अंतरवर्ती फसल पद्धति अपनाई जा सकती है .
फसल को रखें  खरपतवार मुक्त
गन्ना बुआई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करने एवं धान के साथ फसल चक्र अपनाने से खरपतवार काफी हद तक नियंत्रित रहते है. खरपतवारों की अधिक समस्या वाले खेतों में जुताई करने के बाद सिंचाई कर दें. इसके बाद उगने वाले खरपतवारों पर पैराक्वाट 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव कर नष्ट किया जा सकता है।  खेत में बहुवर्षीय खरपतवारों जैसे मोथा और दूब घास की समस्या होने पर ग्लायफोसेट 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के घोल का छिडकाव करें.  बुआई के 2-3 दिन बाद एट्राजीन 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें. यदि गन्ने के साथ सहफसलें (दलहन/तिलहन या सब्जी) लगाई है तो मैट्रिब्युजिन (सिंकार) 750 ग्राम या ऑक्सीफ्लोरफेन (गोल) 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें । गन्ना बुवाई के 45 दिन बाद हाथ या हैण्ड हो की सहायता से निराई-गुड़ाई करे और फिर 60 एवं 90 दिन बाद गुड़ाई करें. खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार उगने पर 2,4-डी 1 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव किया जा सकता है. गन्ने के पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध कराने तथा खरपतवार नियंत्रण के दृष्टिकोण से गुड़ाई अति आवश्यक है।
कीट-रोग से फसल की सुरक्षा 
रोगरोधी जातियों का चयन।स्वस्थ बीज का चयन। रोगी फसल की पेड़ी नहीं रखनी चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए । खेत में जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। फसल कटाई के उपरान्त गहरी जुताई करनी चाहिए। गन्ना बीज को ऊपर बताये अनुसार उपचारित करके बोना चाहिए। गन्ने के बीज को 50  डिग्री से. तथा 95-99 % आद्रता पर ढाई घंटो के लिए नमीयुक्त गर्म वायु से उपचारित करने पर बीजजनित रोगों जैसे पेड़ी का बौना रोग, घासी प्ररोह रोग तथा कंडुआ रोग का काफी हद तक उन्मूलन हो जाता  हैं। गन्ना फसल में प्रकोप करने वाले संभावित कीट एवं उनके नियंत्रण के कारगर उपाय अग्र प्रस्तुत है.
दीमक : गन्ने में दीमक का वर्षभर प्रकोप संभावित है.  इसके नियंत्रण हेतु  ब्यूवेरिया, बैसियाना 1.15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड 2.5-5.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से  60-75 कि. ग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त प्रयोग करना चाहिए। अधिक प्रकोप होने पर  इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस०एल० 350 मिली सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
अंकुर बेधक : इस कीट का प्रकोप ग्रीष्मकाल ग्रीष्मकाल में होता है।  इसके नियंत्रण हेतु  क्लोरपाइरीफास 20% घोल-1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर  800-1000 लीटर पानी के घोलकर छिडकाव करें  अथवा कार्बोफ्यूरान 30 किग्रा० प्रति हेक्टेयर  की दर से भुरकाव करना चाहिए
चोटी बेधक : गन्ने में इस कीट का प्रकोप मार्च से अक्टूबर माह तक संभावित रहता है।  इसके नियंत्रण हेतु  ट्राइकोग्रामा चिलोनिस 1-1.5 लाख अंडे  प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छोड़े। कार्बोफ्यूरान 3 जी. का 3 किग्रा. प्रति हेक्टेयर  की दर से नम खेत में प्रयोग करना ।
अग्रतना बेधक : गन्ने में तना भेदक का प्रकोप अगस्त से फरवरी माह में होने का अंदेशा रहता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु गन्ना बीज की बुवाई पूर्व 0.1 % क्लोरपाइरीफ़ॉस 25 ई सी घोल में 20 मिनट तक उपचारित करें. खड़ी फसल में प्रकोप होने पर फोरेट 10 जी 15-20 कि.ग्रा.  या कार्बाफ्यूरान 3 जी 33 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।  
सफेद गिड़ार: इस कीट के प्रकोप की  जुलाई से नवम्बर माह में संभावना रहती है।  इसके नियंत्रण के लिए क्लोपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए अथवा  फेनवलरेट 10 प्रतिशत 25 कि.ग्रा. का  बुरकाव करना चाहिए।
पायरिला : गन्ने में इस कीट का संक्रमण  मार्च से नवम्बर में हो सकता है. इस कीट की रोकथाम के लिए  डाईक्लोरवास 76 ईसी 300 मिली या क्वीनालफास 25% 800 मि.ली. प्रति हेक्टेयर  को (625 लीटर ग्रीष्म काल व 1250 लीटर वर्षाकाल) पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए ।
      गन्ना खेत में चूहों की समस्या होने पर उनके आहार में जिंक फास्फाइड (2%) या ब्रोमाडियोलोन  के मिश्रण को आटा/गुण आदि में मिलाकर बिलों के आस-पास रखना चाहिए। 
सही समय पर कटाई
    गन्ने की फसल 10 - 12 माह में पककर तैयार हो जाती है। गन्ना पकने पर इसके तने को ठोकने पर धातु जैसी आवाज आती है। गन्ने को मोड़ने पर गाँठों  पर आसानी से टूटने लगता है। गन्ने की कटाई उस समय करनी चाहिए जब रस में सुक्रोज की मात्रा  सर्वाधिक हो। गन्ने के रस में चीनीे की मात्रा (पकने का सही समय) हैण्डरिफ्रेक्टो मीटर से ज्ञात की जा सकती है। फसल की कटाई करते समय ब्रिक्स रिडिंग 17 - 18 के बीज में होना चाहिए या फिर पौधों के रस में ग्लूकोज 0.5 प्रतिशत से कम होने पर कटाई करना चाहिए। फेहलिंग घोल के प्रयोग से रस में ग्लूकोज का  प्रतिशत ज्ञात किया जा सकता है। तापक्रम बढ़ने से सुक्रोज का परिवर्तन ग्लूकोज मे होने लगता है। गन्ना सबसे निचली गाँठ से जमीन की सतह में गंडासे से काटना चाहिए। कटाई के पश्चात् 24 घंटे के भीतर गन्ने की पिराई कर लें अथवा कारखाना  भिजवाएँ क्योकि काटने के बाद गन्ने के भार में 2 प्रतिशत प्रतिदिन की कमी आ सकती है। साथ ही कारखाने में शक्कर की रिकवरी  भी कम मिलती है। यदि किसी कारणवश गन्ना काटने के बाद रखना पड़े तो उसे छाँव में ढेर के रूप में रखें। हो सके तो, ढेर को ढँक दें तथा प्रतिदिन पानी का छिड़काव करें। हर हाल में यथाशीघ्र गन्ना बेचने की व्यवस्था करें अथवा गन्ना का रस निकालकर गुड बनाने का प्रयास करें।
गन्ना उपज एवं आमदनी  
    गन्ने की उपज मृदा, जलवायु, किस्म एवं  सस्य प्रबन्धन पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर गन्ना का  800 1000 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है ।  गन्ने के  रस में 12-24 प्रतिशत तक सुक्रोज रहती है। देशी विधि से 6-7 प्रतिशत तथा चीनी मिलों से 9 - 10 प्रतिशत शक्कर प्राप्त होती है।  औसतन गन्ने के रस से 12-13 प्रतिशत गुड़, 18-20 प्रतिशत राब तथा 9-11 प्रतिशत चीनी प्राप्त होती है। गन्ने में 13-24 प्रतिशत सुक्रोज तथा 3-5 प्रतिशत शीरा पाया जाता है । गन्ना उपज 800 क्विंटल प्राप्त होती है तो इसे 275 रूपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर बेचने से 2 लाख 20 हजार कीमत मिलती है जिसमे से 50 हजार का लागत मूल्य घटाने  से 1 लाख 70 हजार का शुद्ध मुनाफा हो सकता है।

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