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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

जैविक खेती की सफलता प्रमाणित एवं गुणवत्ता युक्त जैविक खाद पर निर्भर

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर 
प्राध्यापक, सस्य विज्ञानं विभाग,
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)  

          भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि पर निर्भर है और कृषकों की मुख्य आय का साधन खेती है। देश में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए प्रति इकाई उत्पादन बढ़ाना नितांत आवश्यक है। हरित क्रांति की सफलता में उन्नत किस्मों के साथ साथ उर्वरक, सिचाई एवं पौध सरंक्षण उपायों का अहम योगदान रहा है। वर्तमान परस्थितिओं में भी अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशको  का उपयोग करना पड़ता है, जिससे सामान्य व छोटे कृषको की खेती की लागत बढ़ रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है, साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। रासायनिकों के अन्धादुंध उपयोग से जलवायु एवं मृदा स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के बारें में किसानों को आगाह किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक उर्वरकों व जैविक खाद की तरफ किसानो का रुझान बढ़ गया।  इसलिए बीते कुछ वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे देश के विभिन्न राज्यों के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते है। भारत सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है। प्रमाणीकृत, भली भांति परीक्षित गुणवत्ता युक्त जैविक खादों के इस्तेमाल से किसानो को लाभ भी होने लगा है।
         भारत एवं विश्व के अन्य देशों के किसानों के अनुभव रहे हैं कि रासायनिक खेती को तत्काल छोड़कर जैविक खेती अपनानेवाले किसानों को पहले तीन साल तक आर्थिक रूप से घाटा हुआ था, चौथे साल ब्रेक-ईवन बिन्दु आता है तथा पांचवे साल से लाभ मिलना प्रारम्भ होता है। व्यवहार में बहुत से किसान पहले साल ही घाटा झेलने के बाद पुन: रासायनिक खेती प्रारम्भ कर देते हैं। भारत में 70 प्रतिशत छोटी जोत वाले सीमित साधनवाले किसान हैं। अब तो इन किसानों के पास पशुओं की संख्या भी तेजी से कम होती जा रही है। जैविक खेती के लिए उन्हें जैविक खाद खरीदना होता है। वैसे तो जैविक खाद निर्माताओं की संख्या की दृष्टि से देखें तो भारत में साढ़े पांच लाख जैविक खाद निर्माता हैं, जो विश्व के जैविक खाद निर्माताओं के एक तिहाई हैं।  किन्तु भारत के 99 प्रतिशत खाद उत्पादक असंगठित लघु क्षेत्र के हैं तथा इनमें से अधिकांश  बिना प्रमाणीकरण करवाए आकर्षक पैकिंग मे नित नए प्रकार के ढेरों  जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों की धड़ल्ले से बिक्री एवं सरकारी माध्यम से आपूर्ति करते हैं। बाजार में उपलब्ध एवं विक्रय किये  जाने जैविक खाद एवं  जैव उर्वरकों के आकर्षक ब्रांडों के माध्यम भारत के भोले भाले किसानों को क्या बेचा जा रहा है, इसका कोई मापदण्ड नहीं था। इससे ना केवल किसान छले जा रहे है ठगे जा रहे है वल्कि फसलों की उपज में भी गिरावट देखने को मिल रही है। खेती अपनानेवाले जागरूक किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें उक्त खाद से दावा की हुई उपज की आधा उपज भी प्राप्त नहीं होती तथा भारी घाटा होता है। रासायनिक खेती छोड़कर बाजार से जैविक खाद खरीदकर जैविक खेती अपनाने वाले इन छोटे किसानों के कटु अनुभव को देखकर आसपास के ग्रामों के अन्य किसान जैविक खेती करने का इरादा त्याग देते हैं। जैविक खेती न अपनाए जाने का यह एक बड़ा कारण है ।

 उर्वरक नियंत्रण आदेश-2006 का कड़ाई से अनुपालन हो  

                   वैसे तो जैविक खाद खरीदने या बेचने की वस्तु नहीं होना चाहिए।  इसके लिए किसानो को जैविक खाद एवं जैव उर्वरक स्वयं बनाकर अपने खेत में प्रयोग करना चाहिए क्योंकि बाजार में उपलब्ध जैविक आदानों की विश्वसनियता पर अक्सर सवालिया निशान  लगते रहे है। भारत में जैविक खेती की संभावनाएं तभी उज्जवल हो सकती हैं जब सरकार जैविक खेती करने वालों को प्रमाणीकृत खाद स्वयं के संस्थानों से सब्सिडी पर उपलब्ध करवाए   इसके अलावा सरकार को पशुपालन को बढ़ावा देना चाहिए जिससे किसान जैविक खाद के लिए पूरी तरह बाजार पर आश्रित रहे। जैविक खाद एवं जैव उर्वरक के निर्माण एवं बिक्रय में हो रही अनियमतता एवं किसानों के साथ धोखाधड़ी को रोकने के लिए कृषि एवं सहकारिता विभाग, केंद्र सरकार दिल्ली ने इन खादों की गुणवत्ता सम्बंधित मानकों के निर्धारित करने के उद्देश्य से उर्वरक नियंत्रण आदेश -1985 में संसोधन करके इन आदानों को भी सम्मलित कर लिया है जिसका प्रकाशन 24 मार्च,2006 के राजपत्र में किया गया है। इस आदेश के तहत वर्मीकम्पोस्ट, सिटी कम्पोस्ट एवं जैव उर्वरकों में अज़ोटोबेक्टर, राइजोबियम, एजोस्पिरिलियम तथा पीएसबी को आदेश के दायरे में लिया गया है तथा इन खादों में उपस्थित विभिन्न तत्वों के मानकों को निर्धारित किया गया है। दुर्भाग्यवश हमारे देश में अभी भी अमानक जैविक खाद धड़ल्ले से खुले आम बाज़ार में महंगे दामों में बेचे जा रहे है जिस पर सरकार को लगाम कसना चाहिए नहीं तो किसान ठगी एवं धोखाधड़ी के शिकार होते रहेंगे। 




उर्वरक संसोधन आदेश 2006 में सम्मलित प्रमुख विन्दुओं का सार-संक्षेप 

1. जैव उर्वरक एवं कार्बनिक उर्वरकों के विनिर्माण अवं विक्रय कारोबार हेतु राज्य कृषि विभाग के सक्षम अधिकारी से  प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य कर दिया गया है। 
2. जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट व सिटी कम्पोस्ट एवं जैव उर्वरक जैसे अज़ोटोबेक्टर, राइजोबियम, एजोस्पिरिलियम तथा पीएसबी का मानकीकरण निर्धारण करना। 
3. निर्धारित मानक एवं विनिर्देश के नहीं पाये जाने पर इनके विक्रय पर खण्ड 19 के तहत प्रतिबन्ध।
4. इन आदानों के बैग पर नियंत्रक द्वारा समय-समय पर दिए गए ब्योरे अंकित करने के साथ ही जैव उर्वरक या कार्बनिक उर्वरक लिखना/अंकित करना अनिवार्य कर दिया गया है.
5. इसके लिए अलग से निरीक्षक या मनोनीत नियुक्त होगा तथा पृथक रूप से नमूने लेने की प्रक्रिया तथा विश्लेषण करने की विधि का निर्धारण किया गया है। 
         भारत सरकार का राजपत्र (असाधारण) भाग-2 खंड-3, उपखण्ड-II के प्राधिकार में दिनांक 24 मार्च 2006 को प्रकाशित इस आदेश के तहत ऐसे किसी भी जैविक प्रकृति (पौधा या पशु) के एक अथवा अधिक अप्रसंस्कृत सामग्री (सामग्रियों) से बने पदार्थ है और इसमें अप्रसंस्कृत खनिज सामग्रियाँ सम्मलित हो सकती है जिन्हे सूक्ष्म जैवकीय उपघटन अपघटन पद्धत्ति के माध्यम से परवर्तित किया गया हो, को कार्बनिक उर्वरक कहा गया है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति :
1. उर्वरकों के किसी भी मिश्रण (ठोस या तरल) का तब तक विनिर्माण नहीं करेगा, जब तक की ऐसा मिश्रण राजपत्र में सरकार द्वारा जारी की जाने वाली अधिसूचना में निर्धारित मानकों के अनुरूप न हों। 
2. जैव उर्वरकों का विनिर्माण नहीं करेगा, जब तक की ऐसा उर्वरक अनुसूची-3 के भाग क में निर्धारित मानकों के अनुरूप न हो। 
3. किसी कार्बनिक उर्वरक का विनिर्माण नहीं करेगा जब तक की ऐसा कार्बनिक उर्वरक अनुसूची-4 के भाग क में निर्धारित मानकों के अनुरूप न हो। 
        देश में जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों को बेचने के लिए कृषि विभाग से लाइसेंस लेना पड़ेगा क्योंकि उर्वरक नियंत्रण संसोधन आदेश-2006 देश में प्रभावी हो गया है। कृषि विभाग द्वारा आकस्मिक जांच करके जैविक खाद के नमूने लिए जा सकते है।  निर्धारित मानकों का जैविक खाद  जैव उर्वरक नहीं मिलने पर कार्यवाही होगी।  इसकी बिक्री हेतु बेग पर कार्बनिक या जैव उर्वरक लिखना होगा तथा उर्वरक नियंत्रण आदेश-2006 द्वारा तय समस्त सूचनाओं को अंकित करना अनिवार्य होगा। तदनुसार सभी खाद विनिर्माण कर्ताओं एवं विक्रेताओं के लिए  कृषि विभाग द्वारा लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया जारी की गई है जिसका कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना होगा तभी हमारे किसान भाईयों को गुणवत्ता युक्त प्रमाणित जैविक खाद एवं जैव उर्वरक प्राप्त हो सकता है जिसके प्रयोग से उन्हें जैविक खेती से बांक्षित परिणाम प्राप्त हो सकते है। 
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