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बुधवार, 19 सितंबर 2018

हरियाली और खुशहाली के लिए करें करौंदा की वैज्ञानिक खेती

ज्योति बजेली1, अरूणिमा त्रिपाठी1 एवं पूजा पाण्डेय2
1उद्यान अनुभाग, राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अजिरमा, अंबिकापुर, छ.ग.
2कृषि विज्ञान विभाग, श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखण्ड

                          करौंदा (कैरिसा कैरन्डास) एपोसाइनेसी कुल का एक झाड़ी नुमा, बहुवर्षीय एवं सदाबहार पौधा है । करौंदे की झाड़ी में अत्यन्त नुकीले कांटे होने के कारण इसे ’क्रास्ट के कांटे’ के नाम से  भी जाना जाता हैं। यह पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़  एवं हिमालय के क्षेत्रों में समुद्र तल से 300 मीटर से 1800 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। घनी कांटेदार झाड़ी होने के कारण करौंदा प्रायः जिवंत बाड़ के रूप में बाग़-बगीचों तथा खेतों में लगाया  जाता हैं जिससे जानवरों से फसल, पेड़-पौधों की सुरक्षा के अतिरिक्त इससे बहुपयोगी फल भी प्राप्त हो जाते है। झाड़ियों की बढ़वार ऊपर की तरफ 3-4 मीटर की ऊँचाई तक हो सकती है। इसकी पत्तियां छोटी व अंडाकार आकार की होती है। नई पत्तियों  पर हल्की लालिमा पाई जाती हैं। फूल सफेद अथवा गुलाबी रंग के, सुगन्धित तथा गुच्छो में आते हैं। यह एक गैर पारंपरिक फल है जो मुख्यतः वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाया जाता  है। एक बार करोंदा के पौधे स्थापित होने के बाद, न्यूनतम प्रबंधन एवं देखभाल से भी इनसे अच्छी उपज प्राप्त हो जाती हैं। पहाड़ी-पठारी  क्षेत्रों में, इसके पेड़ मृदा एवं जल संरक्षण में सहायक हैं। भारत के अनेक राज्यों मेंविशेषकर छत्तीसगढ़ राज्य में प्रायः मवेशियों को खुल्ला चराने की कुप्रथा  है। इससे खाध फसलों का अत्यधिक नुकसान होता है एवं द्विफसलीय खेती करने में बाधा आती है। किसान अपने खेत को करौंदे की जीवंत बाड( फेंसिंग) से घेर कर अपनी फसल की जानवरों से सुरक्षा कर सकते हैं।  इस प्रकार  स्वास्थ्य रक्षा, फसल सुरक्षा, एवं धन वर्षा  के उद्देश्य से  करौदा का रोपण कर अपने आस पास के क्षेत्रों में हरियाली और खुशहाली  स्थापित की जा सकती है।

बेहद  उपयोगी है करौंदा

करौंदा झड़ी, फोटो साभार गूगल
करौंदा के फल  स्वाद में बेहद खट्टे परन्तु पौष्टिकता की दृष्टि से यह स्वास्थ्य के लिए बेहद गुणकारी है। परिपक्व फल अम्लीय स्वाद के साथ एक विशेष सुगंध लिए होते हैं जिनसे  जेली, सॉस, करौंदा क्रीम और जूस जैसे  सर्वप्रिय फल उत्पादों को तैयार किया जाता है. इसके  कच्चे फल खट्टे और कसैले होते हैं जिनका प्रयोग अचार, सॉस और चटनी तैयार करने में  बखूबी से किया जाता है। करौंदे के अधपके फलों में छिद्र करके व चीनी की चाशनी मे खाने वाला रंग मिलाकर ’नकल चेरी’ नामक बहुत ही बढ़िया उत्पाद बनाया जाता है जिसे 5-6 महीने तक कम तापमान पर सुरक्षित रखा जा सकता हैं। आज कल कुछ स्थानों पर करौंदे का उपयोग मिठाई एवं पेस्ट्री को सजाने के लिए रंगीन चेरी की जगह भी किया जाने लगा है।करौंदे की लकड़ी सफेद, कड़ी व चिकनी होने के कारण चम्मच व कंघे बनाने के काम आती हैं। इसकी पत्तियों का टसर रेशम के कीडों के चारे के रूप में प्रयोग होता है।  भूमि क्षरण से प्रभावित क्षेत्रों में करौंदे की झाड़ियाँ मृदा कटाव रोकने में सहायक होती है। इस प्रकार से करौदा के पौधों को शोभाकारी झाड़ी के रूप में लगाकर न केवल खेत और बागों की सुरक्षा मजबूत होगी वल्कि यह  भूमि सरंक्षण में सहायक होने के साथ साथ हमें  पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक फल भी प्रदान करता है जिन्हें बेच कर किसान भाई अच्छा मुनाफा भी अर्जित कर सकते है ।

पौष्टिकता एवं औषधीय उपयोग 

                 करौंदें के फल में स्वास्थ्य के लिए आवश्यक  पौष्टिक तत्वों का खजाना विद्यमान है। इसमें  पेक्टिन, कार्बोहाइड्रेट व विटामिन ‘सी‘ प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। इसके शुष्क फलों से 364 कैलोरी ऊर्जा, 2.3 प्रतिशत प्रोटीन, 2.8 प्रतिशत खनिज लवण, 9.6 प्रतिशत वसा, 67.1 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट  और 39.1 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम लोहा पाया जाता है। भारतीय बागवानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बैंगलोर के अनुसार करौंदा का फल थायमीन (विटामिन बी1), रिबोफ्लेविन (विटामिन बी2), पैंटोथेनिक एसिड (विटामिन बी5), पाइरोडॉक्सिन (विटामिन बी6), बायोटिन (विटामिन बी7), फोलिक एसिड (विटामिन बी9) का एक उत्तम स्रोत है। करौंदे में विद्यमान पौष्टिक तत्व और विटामिन्स के कारण इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाएं और औषधीय प्रदार्थ बनाने में किया जा रहा है। कच्चा करौंदा प्यास को शान्त करनेऔर  भूख बढ़ने में कारगर होता है जबकि पका करौंदा, हल्का मीठा रुचिकर और वातहारी होता है। लौह की  प्रचुरता होने के कारण एनीमिया रोग में उपचार के लिए करौंदा एक अत्यन्त लाभाकारी फल हैं।  इसमें पर्याप्त मात्रा में  विटामिन सी होने की वजह से स्कर्वी रोग से लड़ने में सहायक हैं। इसके पेड़ की जड़ों का रस छाती के दर्द से निजात दिलाने में सहयोगी है जबकि इसकी पत्तियों का रस बुखार में राहत दिलाने में कारगर है।

उपयुक्त जलवायु एवं भूमि का चुनाव

               काँटायुक्त स्वभाव होने के कारण करौंदा  की झाड़ियाँ गर्म जलवायु तथा सूखे के प्रति सहनशील है। इसलिए करौंदा सम्पूर्ण भारत के  उष्ण, समशीतोष्ण, शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए बहुत अधिक ठन्डे क्षेत्र उपयुक्त नहीं होते है। करौंदे की खेती अमूमन सभी प्रकार की भूमियों यथा बंजर, ऊसर,घास जमीन, छत्तीसगढ़ की भाटा जमीन  तथा कंकरीली-पथरीली भूमियों में की जा सकती है, परन्तु उपयुक्त जल निकास युक्त 6-8 पी एच मान वाली बलुई, दोमट भूमि करौंदे की बागवानी की लिए सर्वोत्तम होती है।

प्रजातियाँ एवं उन्नत किस्में

            विश्व में करौंदे की लगभग तीस प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से कैरिसा कैरन्डास को लेकर चार प्रजातियों की उत्पत्ति भारत में हुई है। इसकी कैरिसा कैरन्डास प्रजाति भारत में सबसे अधिक प्रचलित है । करौंदे की प्रमुख प्रजातियाँ एवं उन्नत किस्मों की विशेषताएं अग्र प्रस्तुत है।
केरिसा ग्रैन्डीफ्लोरा (नेटल प्लम): इस प्रजाति का फल गहरा लाल, छिलका पतला तथा छोटे-छोटे गोल आकार के बीज होते है। फल की परिपक्वता पूरे वर्ष तक चलती रहती है। इसका रोपण घरेलू उपयोग के लिए लाभकारी होता है तथा यह विटामिन ‘सी‘ का अच्छा स्त्रोत है जिससे उत्तम किस्म की जेली बनाई जाती है।
कैरिसा इडूलिसाः यह बाड़ के लिए काफी उपयुक्त प्रजाति है। इसके फूल खुशबदूर सफेद व हल्के लाल (गुलाबी) रंग के गुच्छो में आतें हैं। इसके फल गोल अंडाकार लाल रंग के होते है तथा  पकने पर काले हो जाते है। इसके प्रति पौध 25-30 किलोग्राम  फल प्राप्त होते हैं।
पंत मनोहर: इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई एवं घनी झाड़ीनुमा होते हैं। इसके फल सफेद रंग पर गहरी गुलाब आभा लिए हुए होते हैं। फलों का औसत भार 3.49  ग्राम होता है. प्रत्येक फल में 3-4 बीज पाए जाते है। प्रति झाडी लगभग 27 किग्रा फल प्राप्त होते है ।
पंत सुदर्शन: इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई तथा फल सफेद पृष्ठभूमि पर  गुलाबी आभा लिए हुए होते हैं । फलों का औसत वजन 3.46 ग्राम होता है तथा प्रति झाडी 29  किग्रा फल प्राप्त होते है ।
पंत स्वर्णा: इस किस्म के पौधे अधिक ऊंचाई वाले और झाड़ीनुमा होते हैं जिनके फल गहरी हरी पृष्ठभूमि पर हल्की भूरी आभा लिए हुए  होते हैं, जो पकने पर गहरे भूरे रंग के हो जाते है। प्रत्येक फल में 4-6 बीज पाए जाते है. फलों का औसत भार 3.62 ग्राम होता है। औसतन 22 किग्रा प्रति झाडी फल प्राप्त होते है।
सी.आई.एस.एच. करौंदा-2: यह किस्म केन्द्रीय उपोष्ण उद्यान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित की गयी हैं। यह शीघ्र पकने वाली किस्म हैं। इसके फलों का रंग लाल तथा फलों का  औसत भार 6.0 ग्राम होता है । प्रति पौधे से लगभग 35-40 किलोग्राम फल प्राप्त होते हैं।

ऎसे तैयार करें करौंदे के पौधे

                    करौंदे के पौधे मुख्यतः बीज द्वारा तैयार किये जाते  है। पूर्ण रूप से पके हुए फलों से जुलाई-अगस्त माह में  बीज निकाल कर पौधशाला में बुवाई की जाती है। बीजो को अधिक दिनों तक रखने से उनकी अंकुरण क्षमता कम हो जाती है। एक से दो महीने के पौध को सफ़ेद पारदर्शी पॉलिथीन की थैलियों में भर कर शेड नेट अथवा अर्ध छायादार स्थानों में स्थानांतरित कर देना चाहिए । अवर्षा की स्थिति में अंकुरित पौधों में झारे से सिंचाई करते रहें. बीजू पौधे दो वर्ष बाद बाग में रोपने योग्य हो जाते हैं। बीजू  पौधों में पुष्पन-फलन  देर से होता है. शीघ्र फलन और अच्छी उपज के लिए वानस्पतिक विधि अर्थात कटिंग,बडिंग गूटी से तैयार  करना चाहिए । कटिंग या बडिंग से प्रवर्धित पेड़ बीज से प्रवर्धित पेड़ों की तुलना में जल्दी फल देने लगते है। करौंदा के पौधे गूटी अथवा स्टूल दाब लगाकर भी तैयार किये जाते है। लेकिन इन विधियों में हार्मोन का प्रयोग  करने जड़ों का विकास शीघ्र होता  है। गूटी बांधने  का कार्य जुलाई  माह में करना चाहिए । गूटी हेतु इंडोल ब्यूटरिक अम्ल 5000 पी.पी.एम. व स्टुल दाब हेतु 1000 पी.पी.एम सांद्रता के लेनोलिन लेप के साथ मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी पाया गया है। करौंदा की 2-3 माह पुरानी शीर्षस्थ कलमों पर 8000 पी.पी.एम. इडोंल ब्यूटरिक अम्ल को लेनोलिन लेप के साथ मिलाकर उपचारित करने के बाद मिस्ट चेंबर में रोपने जड़ों का विकास तेजी से होता है। करौंदा का प्रवर्धन ऊतक संवर्धन, शाखा शीर्ष सवंर्धन विधि से सफलतापर्वूक किया जा सकता है।

कब और कैसे करे रोपाई

               करौंदा के पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्त तथा सिंचित क्षेत्रों में  फरवरी-मार्च माह में की जा सकती  हैं। करौंदे के पौधों को बाढ़ के रूप में लगाने हेतु़ पौध से पौध के बीच 1 मीटर की दूरी रखना चाहिए । करौंदे का बगीचा  लगाने के लिए वर्गाकार अथवा आयताकार विधि 3 x 3 या  4 x 4 मीटर की दूरी पर खेत में  रेखांकन करना चाहिए। रोपण से लगभग एक माह पर्वू 30-40 घन सें.मी. आकार के गड्ढे खोद कर उनमें 25-30 कि.ग्रा. सडी़ गोबर की खाद प्रति गड्ढा मिटटी में  मिलाकर  भर देना चाहिए । पौध लगाते समय गड्ढे के बीच से मिट्टी निकाल कर पिण्डी को गड्ढे के मध्य मे रख कर, चारों  ओर की मिट्टी को भली-भांति दबा कर हल्की सिंचाई कर कर देना चाहिए ।

अच्छी उपज के लिए उचित पोषण

                पौधे को स्वस्थ रखने, उचित बढ़वार एवं अधिक उपज के लिए संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति आवश्यक है। प्रारंभिक वर्षों में 5 किग्रा. गोबर की खाद, 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सिगंल सुपर फास्फेट व 75 ग्राम पोटास की मात्रा प्रति वर्ष देना चाहिए। उर्वरकों की इस निर्धारित मात्रा को इसी अनुपात में तीन वर्ष तक बढ़ाते रहना चाहिए। इस प्रकार तीन वर्ष  एवं उससे अधिक आयु वाले पौंधों 300 ग्राम यूरिया, 450 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 225 ग्राम पोटाश व 15-20 किलो ग्राम गोबर की सडी़ हुई खाद प्रति पौधा प्रति वर्ष देना चाहिए। उर्वरकों को बराबर-बराबर चार  भागो में बांटकर तीन-तीन  महीने के अंतराल पर देना चाहिए। उर्वरकों के प्रयोग थालों में पानी देना आवश्यक है ।

जीवन रक्षक सिंचाई आवश्यक

                आमतौर पर करौंदा सूखा रोधक झाड़ी है तथा एक बार स्थापित हो जाने के उपरांत इसे पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती है परन्तु नये लगाये पौधों में सिंचाई की आवश्यकता गर्मी के महीनों में रहती है। ग्रीष्मकाल  पौधों में  फूल लगने का समय होता है। अतः गर्मियों में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। सर्दी के दिनों में पानी की आवश्यकता नहीं होती है । वर्षा ऋतु के दौरान बगीचे में जल निकास की उचित व्यवस्था रखना आवश्यक है।

अधिक फायदे के लिए काट-छांट  एवं अंतरवर्ती खेती

करौंदा पौध रोपण के समय प्रत्येक पौधे को सहारा देने से पौधे सीधे बढ़ते है । यदि करौंदा की बाड़ लगाना है तो इस बात का ध्यान रखें कि शुरू से ही नियमित काट-छांट करते रहें जिससे पौधे नीचे से ही फैलकर झाड़ीनुमा बन जाएं। आरंभिक वर्षों में बगीचे के पौधों में इच्छित आकार देने के उद्देश्य से हल्की कांट-छांट करते है। इससे  पौधे मजबूत होते है  व बगीचे मे सस्य  क्रियाए आसानी से की जा सकती है। जब बाड़ अथवा बगीचे के पौधे बड़े  हो जाए एवं फूल-फल आने लगे  (फरवरी से सितंबर) तब इनकी कांट-छांट बिल्कुल ना करें। कांट-छांट के लिए अक्टूबर माह का समय उपयुक्त होता हैं। बाद के वर्षों में अधिक कांत-छांट  की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु ज्यादा घनी, सूखी व रोगग्रस्त शाखाओ  को निकालते रहने से पौधे के अंदरूनी भागों पर सूर्य का प्रकाश पंहुचता रहता है जो नई कलियों के बनने मे सहायक होता है। अधिक पुरानी झाड़ीयों का पुनरूद्धार (जीर्णोधार) करने के उद्देश्य से शीर्षकर्तन कर दिया जाता हैं। पहले एवं दुसरे वर्ष में करौंदे की दो कतारों के मध्य अन्तः फसले जैसे मूंग, उड़द, गुआर, लोबिया, पत्तेदार सब्जियां, मिर्च, बैंगन, ककड़ी आदि को उगाकर अतिरिक्त लाभ अर्जित किया  जा सकता हैं।

समय पर करें फलों की तुडाई

करौंदा में बीज द्वारा तैयार किए गए पौधों में फल प्रायः बुवाई के 4-5 वर्ष के बाद शुरू होते हैं किंतु गुटी द्वारा तैयार पौधों में रोपाई के 2-3 वर्ष बाद ही फल आना शुरू हो जाता है। फल लगने के लगभग 2-3 माह बाद (जुलाई-सितम्बर) परिपक्व होकर तोड़ने योग्य हो जाते हैं। फल की सतह का रंग बदलना परिपक्वता की निशानी हैं। तुड़ाई दो-तीन चरणो ंमें की जाती हैं।  फलों की तुड़ाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि सब्जी, आचार एवं चटनी के लिए कम विकसित एवं कच्चे फलों की तुड़ाई करें। जेली बनाने के लिए अधपके फलों की तुड़ाई करें। क्योंकि इस समय फलों में पेक्टिन की मात्रा अधिक होती है जो जेली के लिए उपयुक्त रहती है।

मिलेगी भरपूर उपज

                 करौंदे की उपज मुख्यतः जलवायु, पौधों की वृद्धि और सस्य प्रबंधन पर निर्भर करती है.सामान्यतौर पर करौंदा की पूर्ण  विकसित झाड़ी से लगभग 15-25 किग्रा. फल प्राप्त हो जाते हैं। तुड़ाई उपरांत फलों को छायादार स्थान पर रखना चाहिए। स्वस्थ फलों को बड़े, मध्यम व छोटे आकार के की श्रेणियों में बांट कर विक्रय हेतु बाजार भेजना चाहिए । कमरे के सामान्य तापमान पर करौंदा के फलो  को एक सप्ताह तक रखा जा सकता हैं। इसके परिपक्व फल जल्दी ख़राब होने लगते है जो केवल 2-3 दिन के लिए ही संग्रहीत किये जा सकते है।

करौंदे की खेती-लाभ-हाँनि का गणित  

                करौंदे के बगीचे  लगाने के लिए मुख्यतः 3 x 3 अथवा  4 x 4 मीटर की दूरी पर पौधों का रोपण किया जाता हैं। बाग़ में  4 x 4 मीटर की दूरी पर रोपण करने से  625 पौधे प्रति हैक्टर पौधे स्थापित हो जाते है।  पौधों की उचित देख रेख (कांट-छांट) तथा सही  समय पर सिंचाई एवं संतुलित मात्रा में  खाद उर्वरक प्रयोग करने से र पौधा लगाने के 2-3  साल बाद से  15-20  किलो ग्राम फल प्राप्त किये जा सकते हैं। बाजार में करौंदे का भाव 20-25 रूपये प्रति किलोग्राम रहता है।  इस प्रकार कुल खर्चा निकाल कर करौंदे के बागीचे  से प्रतिवर्ष लगभग 75000 से 80000 रूपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया जा सकता हैं।


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