डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर(सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
हमारी गतिविधियाँ-हमारा भविष्य है-वर्ष 2030 तक शून्य भूख
दुनियां संभव है । इसी मूल भावना के साथ हम प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी विश्व खाद्य दिवस-2018 मना रहे है
और वर्षो से इन्तजार कर रहे है कि ‘वो सुबह कभी तो
आयेगी, जब हर थाली सज जाएगी’ परन्तु साल-दर-साल भूखे और
कुपोषित लोगों की संख्या में निरंतर हो रही वृद्धि,
इस गरिमामयी आयोजन (उत्सव) पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है। संयुक्त राष्ट्र के अभिन्न अंग खाद्य एवं कृषि संगठन के स्थापना दिवस के सम्मान में 1980 से प्रति वर्ष अलग-अलग थीम पर 16 अक्टूबर को विश्व
खाद्य दिवस मनाया जाता है । इस दिवस को मानने का उद्देश्य विश्व में भूख और कुपोषण की समस्या और
समाधान के लिए विभिन्न देशों द्वारा संचालित योजनाओं के प्रति जन- जागरूकता को बढ़ावा देना है तथा सभी के लिए खाद्य
सुरक्षा और पौष्टिक आहार की व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक कदम उठाना है। वास्तव में प्रति व्यक्ति
आमदनी में इजाफा होने, प्रति इकाई
अधिकतम उत्पादन तथा खाद्यान्न की सभी तक पहुँच को आसान बनाकर हम शून्य भूख की तरफ अग्रसर हो सकते है।
खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा वर्ष 2030 तक शून्य भूख का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । शून्य भूख का मतलब है कि
हर किसी को हर जगह स्वस्थ और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक
साथ काम करने की आवश्यकता है। इसे प्राप्त
करने के लिए हमें एक ओर अधिक टिकाऊ जीवनशैली अपनाना चाहिए शून्य भूख लक्ष्य प्रतिपूर्ति होने से सुरक्षित एवं समृद्ध
दुनियां की परिकल्पना साकार हो सकती है।
विश्व खाध्य दिवस-2018-फोटो साभार गूगल |
भूख, कुपोषण और गरीबी का चोली दामन का साथ है।
विश्वभर में हर 8 में से 1 व्यक्ति भूख
के साथ जी रहा है। एक तरफ तो विश्व में करोड़ों लोग भूख और कुपोषण के शिकार है तो
600 मिलियन लोग मोटापा से पीड़ित है और 1.3 अरब लोग अपने वजन को लेकर चिंतित है। आज
दुनिया की 7.1 अरब आबादी में 80 करोड़ यानी बारह प्रतिशत लोग भुखमरी के शिकार है तथा प्रतिदिन 24 हजार लोग
किसी बीमारी से नहीं, बल्कि भूख से मरते हैं। इस संख्या का एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक
भारत में भूख एक गंभीर समस्या है। इस वर्ष 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत की रैंक नीचे गिर कर 103 वें पायदान पर आ पहुंची है । भारत इस सूचकांक में वर्ष 2016 में 100 वें एवं 2017 में 97वें स्थान पर था। यहां यह बता दें कि वर्ष 2006 में जब पहली बार यह सूची बनी थी, तब भी हमारा स्थान 119 देशों में 97वां था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में भूख और कुपोषण
से जूझ रहे लोगों की संख्या घटने
की बजाए और तेजी से बढ़ रही है। दुनियां के देशों के बीच भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र
की बन रही है जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है । हम चाहे कितनी भी तरक्की और विकास की नित नई इबारत लिख डालें लेकिन वैश्विक
भूख सूचकांक में कृषि प्रधान भारत का सबसे नीचे पायदान पर पहुँच जाना हम सब के लिए
लज्जा जनक और बेहद चिंता का विषय है। इससे यह बात साफ होती है कि विकास की तमाम ऊँचाइयों और रिकॉर्ड खाद्यान्न पैदा होने
के बावजूद भी देश में भूखे लोगों की संख्या
में लगातार इजाफा हो रहा है और ज्यादा भूख का मतलब ज्यादा कुपोषण है । विश्व
स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भुखमरी कुपोषण का चरम रूप है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य
एवं कृषि संगठन की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुपोषित
लोगों की संख्या 19.07 करोड़ है। यह आंकड़ा दुनियां में सर्वाधिक है। देश में 15 से 49 वर्ष की 51.4 प्रतिशत
महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। पांच वर्ष से कम उम्र के 38.4 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु के हिसाब से
कम लंबाई के हैं और 21 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित
है। शिशु मृत्युदर असामान्य होने का प्रमुख कारण भी कुपोषण ही है। भोजन की कमी से
हुई बीमारियों से देश में सालाना तीन हजार बच्चे असमय दम तोड़ देते हैं। ग्रामीण युवाओं और महिलाओं में भी कुपोषण की समस्या है । भूख और असंतुलित आहार ही कुपोषण का मुख्य कारण है । जब किसी
देश का 21 फीसदी बचपन कुपोषण से जूझ रहा है और बहुसंख्यक
नव-युवक वेरोजगार घूम रहे हो, तो हम उनके स्वस्थ और सुन्दर भविष्य और देश की समृद्धि की कल्पना नहीं कर सकते है ।
भूख और कुपोषण की समस्या की जड़
गरीबी और खाद्यान्न
का असमान वितरण ही भूख और कुपोषण की समस्या की मुख्य वजह है । हमारे देश में वर्ष 2016-17 के दौरान कुल खाद्यान्न उत्पादन 275.11 मिलियन टन था जिसके इस वर्ष
277.49 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो की गत वर्ष के
रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.37 मिलियन टन अधिक है। हमारा खाद्यान्न
उत्पादन देश की आबादी की आवश्यकता से भी
अधिक है परन्तु फिर भी बहुत से लोग (ज्यादातर गरीब आबादी) भूख और कुपोषण की समस्या
से जंग लड़ने मजबूर है। ऐसा अन्न की बर्बादी और राज्यों में लचर खाद्यान्न वितरण
प्रणाली के कारण हो रहा है । देश में अनाज का 25-30 फीसदी उत्पादन सही रखरखाव और
आपूर्ति के विभिन्न चरणों में बर्बाद हो जाता है। गेहूं की कुल पैदावार में से
अमूमन 2.1 करोड़ टन
गेंहू सड़ जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 2013 के
अध्ययन के मुताबिक प्रमुख कृषि उत्पादों की बर्बादी से देश को 92.651 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था जो अभी भी जारी है । इंडियन
इन्सटिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल एवं 21
टन सब्जियां वितरण, भण्डारण और प्रसंस्करण प्रणाली में खामियों के चलते
खराब हो जाती हैं। इसके अलावा हमारे देश में उत्सव, समारोह,
शादी−ब्याह आदि में बड़ी मात्रा में पका हुआ खाना ज्यादा बनाकर बर्बाद
कर दिया जाता है। यही नहीं एक ओर हमारे और आपके घर में रोज सुबह रात का बचा हुआ
खाना ठंडा या बासा समझकर फेंक दिया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर बहुतेरे लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पौष्टिक भोजन तो दूर, उन्हें एक वक्त का भरपेट खाना तक नसीब नहीं
होता है । एक तरफ देश में भुखमरी है, तो दूसरी तरफ हर साल उचित भण्डारण, रखरखाव और
लापरवाही के कारण लाखों टन अनाज बारिश और बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है। इन्ही सब
कारणों से भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये
खर्च किए जाने के बावजूद भुखमरी और कुपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बनी हुई है।
संभव है शून्य भूख लक्ष्य-2030
भारत को भुखमरी और कुपोषण से निजात दिलाने और शून्य भूख
लक्ष्य-2030 हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि गरीब-अमीर के बीच की खाई को पाटा
जाए और सबको जीने के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए । देश में कोई भूखा न रहे इसके लिए भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 लागू कर एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम उठाया है जिसे पूरे देश में लागू किया गया है । इसके तहत अनेक राज्यों में सार्वजानिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को न्यूनतम दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। इस दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार ने उल्लेखनीय कार्य करते हुए खाद्यान्न वितरण प्रणाली का एक उत्कृष्ट मॉडल प्रस्तुत किया है, जिस पर अन्य प्रदेश भी अमल कर रहे है। परन्तु अभी भी कुछ राज्य सरकारों की उदासीनता के कारण वहां के गरीब लोग खाध्य सुरक्षा अधिनियम के लाभ से वंचित है । दुनियां के 80 प्रतिशत
गरीब ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं जहां लोगों का जीवन कृषि, पशु पालन,मत्स्य पालन
या उद्यानिकी-वानिकी पर निर्भर करता है। गांवों में भूमिहीन कृषकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है । खेती की लागत में बढ़ोत्तरी और कृषि उत्पादों के बाजिब दाम न मिलने के कारण किसानों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है । अतः केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने ठोस कदम उठाये तथा कृषि क्षेत्र में अधिक पूँजी निवेश के अवसर पैदा करें । शहरी और अर्द्ध शहरी
क्षेत्रों के साथ कमजोर और खाद्य उत्पादकों को जोड़ने के लिए सामाजिक सुरक्षा
कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। देश में सीमान्त और लघु किसानों की संख्या 80 प्रतिशत के आस पास है । ऐसे किसानों को कृषि आधारित व्यवसाय स्थापित करने हेतु विशेष आर्थिक सहायता की व्यवस्था होनी चाहिए । इसी तारतम्य में केंद्र सरकार ने
वर्ष-2022 तक देश को कुपोषण से मुक्त करने अनेकों महत्वकांक्षी कार्यक्रमों और
योजनाओं पर तेजी से कार्य करना प्रारंभ कर
दिया है। इसके अलावा कृषि और किसानों को सक्षम बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2022 तक
किसानोंकी आमदनी दो गुनी करने के लिये सरकार द्वारा कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, जैसे- राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, प्रधान मंत्री
सिंचाई योजना, राष्ट्रीय जल मिशन, प्रधानमंत्री
फसल बीमा योजना, जलवायु अनुरूप कृषि आदि जिनके सफल
क्रियान्वयन से प्रधानमंत्री की ‘स्वस्थ और समृद्ध भारत’
की परि कल्पना साकार हो सकती है । वास्तव में भूख की वैश्विक समस्या विशेषकर भारत में व्याप्त भूख और
कुपोषण की समस्या को तभी हल किया जा सकता
है, जब प्रति इकाई उत्पादन बढ़ाया जाए और
खाद्यान्न की बर्वादी को रोका जाए । हमारे देश में हर वर्ष अनाज का रिकार्ड
उत्पादन तो होता है, पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक
पहुंचने की बजाय कुछ सरकारी गोदामों में तो कुछ इधर-उधर अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे
सड़ जाता है। संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक देश का लगभग 20 फीसद अनाज भण्डारण क्षमता के अभाव में बेकार
हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों
तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है।
भारत में 80% किसान सीमान्त और लघु कृषक की श्रेणी में आते
है जिनके पास उन्नत कृषि को अपनाने के साधन नहीं होते है। ये किसान आजीविका
निर्वाह खेती करते है। इन किसानों और खेती हर श्रमिकों के सतत विकास की योजना
बनाने और उसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है । साथ ही उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी
समान रूप से नजर रखी जाए। खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है, जब सभी लोगों को हर समय, पर्याप्त,
सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले, जो उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। साथ ही भूख और कुपोषण का
रिश्ता ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी,
आदि से भी है। इसलिए हमें शून्य भूख लक्ष्य हासिल करने के लिए कई मोर्चों पर एक साथ मजबूत इच्छाशक्ति के साथ भारत के बहुसंख्यक सीमान्त-छोटे किसानों,
भूमिहीन ग्रामीणों और बेरोजगारों के सतत विकास के लिए कार्य करना
होगा तभी हमारा हर थाली को पौष्टिक भोजन मुहैया कराने का सपना साकार हो सकता है ।
नोट: इस आलेख में प्रस्तुत आंकड़े विभिन्न रिपोर्ट और अपुष्ट स्त्रोतों से एकत्रित किये गए है. अतः ब्लोगर उपरोक्त आकड़ों की पुष्टि नहीं करता है. इस आलेख को बगैर लेखक की अनुमति के अन्यंत्र प्रकाशित न किया जाए. यदि प्रकाशित करना है तो लेखक का नाम और पता अवश्य अंकित करे तथा प्रकाशन की एक प्रति लेखक को अनिवार्य रूप से भेजने की व्यवस्था करें.
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