रोजगार और आमदनी का शानदार  जरिया: हरा चारा उत्पादन 
डॉ
गजेन्द्र सिंह तोमर,
इंदिरा
गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज
मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर
भारत
वैश्विक दुग्ध उत्पादन परिदृश्य में पहले स्थान पर है, परन्तु प्रति पशु दुग्ध
उत्पादकता में वह विकसित डेयरी देशों के औसत से बहुत पीछे है। हमारे देश में पशुधन
उत्कृष्टता की अपेक्षा संख्या में दूसरे  देशों
की तुलना में बहुत अधिक है।  भारत में  पशुधन सर्वेक्षण 2012 के अनुसार गाय और भैसों की
संख्या क्रमशः 76685 एवं 133271 हजार है एवं छत्तीसगढ़ में इनकी संख्या 3327 एवं
3736 हजार है।  देश की कुल सकल आय का लगभग 15 प्रतिशत आय पशुधन से प्राप्त होती है।  
इन मूक प्राणियों के भरण पोषण की पर्याप्त
व्यवस्था न होने के कारण इनकी उत्पादन क्षमता में निरंतर कमीं होती जा रही है।   देश में श्वेत क्रांति की सफलता में हरे चारे का
महत्त्वपूर्ण भूमिका है लेकिन  हरे चारे एवं
दाने की कमीं के कारण देश में  औसत दुग्ध
उत्पादन 1-2 लीटर प्रति दिन प्रति पशु है।  छत्तीसगढ़ में तो औसतन एक पशु से बमुश्किल
500 ग्राम दूध प्राप्त हो पा रहा है. सम्पूर्ण देश में हरे  चारे की कमीं एक विकट समस्या है।  दरअसल देश की कुल कृषि योग्य भूमि के  मात्र 4.4  प्रतिशत क्षेत्रफल में ही चारा फसलें उगाई जाती
है जो देश की विशाल पशु संख्या के लिए अपर्याप्त है।  हरे
चारे की खेती एवं चरागाहों से आच्छादित कुल क्षेत्र से वर्तमान में हमारे पशुधन को
45-60 प्रतिशत हरे चारे की आवश्यकता की पूर्ति हो पा रही है।  वर्षा ऋतु को छोड़कर
अन्य ऋतुओं में चारे की हमेशा कमीं बनी रहती है।  प्रत्येक वर्ष के मई-जून और
अक्टूबर-नवम्बर दो ऐसे समय होते है जब हरे चारे का सबसे अधिक संकट रहता है।  चारे
के आभाव के समय में पशुओं को धान का पुआल तथा भूसा जैसे अल्प पोषकता वाले सूखे
चारे खिलाये जाते है।  सूखे चारे से पशु जीवित तो रहते है परन्तु उनका दुग्ध
उत्पादन बहुत कम हो जाता है।  
अधिक
दुग्ध उत्पादन के लिए दुधारु पशुओं के लिए पौष्टिक दाने और चारे के साथ हरा चारा
खिलाना बहुत जरुरी है। हरा चारा पशुओं के अंदर पोषक तत्वों की कमीं को पूरा करता
है। एक दुधारू पशु जिसका औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे प्रति दिन कम से कम 10  किलोग्राम की मात्रा में हरा चारा खिलाया जाना
चाहिए । पशुपालन में 60-70 प्रतिशत खर्चा चारा-दाना पर आता है।  एक तरफ तो हरे
चारे की भारी कमी है, वहीँ दूसरी तरफ पशुओं को दिए जाने वाले
दानें और खली की कीमतें निरंतर बढ़ रही है। पौष्टिक दाना चारा के अभाव में  धान की पैरा कुट्टी अथवा भूसा ही पशुओं को खिलाना पड़ता है जिससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता निरंतर घटती जा रही है। ऐसे में पुशु पालन (डेयरी उद्योग) घाटे का सौदा बनता जा रहा है। इसलिए शहरी क्षेत्र में स्थापित अधिकांश
पशुपालन इकाई (डेयरी) अलाभकारी होती जा रही  है बहुतेरे पशुपालक इस पवित्र धंधे को छोड़ने
विवश है।  दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि लाने हेतु दुधारू पशुओं को उत्तम किस्म का हर
चारा उपलब्ध कराना आवश्यक है।  वर्ष पर्यंत चारे वाली फसलों की उन्नत खेती कर पशु
पालकों को उत्तम किस्म का गुणवत्ता युक्त हरा चारा उपलब्ध कराने से देश में बीमार
डेयरी उद्योग को उत्पादक और  आर्थिक रूप से
लाभकारी बनाया जा सकता है। शहरी क्षेत्रों के आस-पास के ग्रामीण युवा/बेरोजगार अपने
खेतों में हरा  चारा उत्पादन कर देश में
श्वेत क्रांति को एक नया आयाम देने में योगदान कर सकते है. यदि आपके पास कृषि भूमि
है तो न्यूनतम लागत और थोड़े से परिश्रम से चारा उत्पादन  को शानदार रोजगार और आमदनी का साधन बना सकते है। 
![]()  | 
| ज्वार चरी फसल फोटो साभार गूगल | 
पशुओं को हरा चारा खिलाने के लाभ
          पशुधन को निरंतर हरा चारा खिलाने से उनका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. हरा चारा खिलाने से अनेक फायदे होते है जैसे:  
1.हरे चारे पाचक, स्वादिष्ट तथा पोषक तत्वों से भरपूर होते है। पशु इन्हें चाव से खाते है। 
2. हरे चारे के उपयोग से दुग्ध उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि हरे चारे के पोषक तत्व सस्ते होते है।हरा चारा खिलने से दुग्ध उत्पादन में 20-25 % की वृद्धि होती है। 
3.वर्ष भर कोई न कोई हरा चारा उगाया जा सकता है।  अतः हर मौसम में हरा चारा खिलाने से पशुओं को ज्यादा दाना, चोकर एवं खली खिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। 
4.दलहनी हरा चारा पोषक तत्वों से भरपूर होता है अतः एकदलीय चारे के साथ मिलाकर इसे खिलाने से पशुओं के लिए सम्पूर्ण आहार के समान गुणकारी होता है। 
5.पशुपालक हरे चारे को स्वयं उगा सकते है अथवा खरीद कर खिला सकते है।
6. हरा चारा रसीला होता है।  अतः इन्हें खिलाने से पशुओं को पानी की आवश्यकता कम होती है। 
7. हरा चारा खेत से काटकर अथवा उसकी घर पर कुट्टी काटकर ताजा खिलाया जाता है।  अतः इसके भण्डारण की आवश्यकता नहीं होती है। 
8. हरे चारे में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन्स, कार्बोहाईड्रेट, रेशा एवं खनिज लवण पाए जाते है। अतः इसे खिलाने से पशुओं में रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और वे स्वस्थ रहते है। 
कहाँ और कैसे करें चारा फसलों की खेती
शहर/कस्बों के आस-पास उचित
जल निकास एवं पर्याप्त सिंचाई सुविधा वाली अमूमन सभी प्रकार की  भूमियों  में चारा फसलों की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती
है. जानवरों की चराई से फसल की सुरक्षा  के
लिए खेतों में बाड़ (तार घेरा) लगाना आवश्यक है. स्वयं की भूमि उपलब्ध न होने पर आप
कृषि भूमि किराये पर लेकर भी लाभकारी खेती कर सकते है. सबसे पहले खेतों की मिटटी
पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर घास-पात (खरपतवार) मिटटी में मिला कर खेत में सिंचाई
कर 4-5 दिन के लिए छोड़ देवें. इसके पश्चात 5-8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की
खाद/कम्पोस्ट अथवा 2-4 टन मुर्गी की खाद खेत में फैलाकर 2-3 बार कल्टीवेटर से आदि-खड़ी
जुताई कर पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए।  अब आप अग्र सारणी में दर्शित चारा
फसलों की उन्नत किस्मों का आवश्यकतानुसार बीज की व्यवस्था कर बुवाई कर सकते है. चारा
फसलों को 20-25 दिन के अन्तराल से अलग अलग समय पर बोने से आपको सतत हरा चारा
प्राप्त होता है. उत्तम एवं पौष्टिक हरे चारे के लिए एक बीज पत्रिय अर्थात घास कुल
की फसलों (ज्वार चरी, बाजरा, नेपिएर, जई आदि) के साथ दलहनी अर्थात लेग्युमिनेसी
कुल की फसलें (लोबिया, गुवार, बरसीम आदि) की खेती से अधिक मात्रा में गुणवत्ता युक्त
चारा प्राप्त किया जा सकता है. इस मिश्रित चारे को बाजार में ऊंचे दामों में बेचा
जा सकता है. इसके अलावा सहफसली (मिश्रित) खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति में सुधार भी
होता है.  हरे चारे की बुवाई के 60-65 दिन
बाद कटाई प्रारंभ कर आवश्यकतानुसार पशुपालकों को उपलब्ध कराया जा सकता है. 
                                प्रमुख चारा
फसलों की  उत्पादन समय सारणी 
चारा फसलें  
 | 
  
बुवाई का समय  
 | 
  
बीज दर (किग्रा./ हे.) 
 | 
  
चारा  उपलब्धता  
 | 
  
कटाई संख्या  
 | 
  
  उत्पादन  (क्विंटल/हे.) 
 | 
 
एमपी चरी  
 | 
  
फरवरी-जुलाई  
 | 
  
25-30   
 | 
  
अप्रैल-नवम्बर  
 | 
  
2-3  
 | 
  
500-600  
 | 
 
मक्का  
 | 
  
फरवरी-जुलाई 
 | 
  
50-60  
 | 
  
अप्रैल-नवम्बर 
 | 
  
01  
 | 
  
250-300  
 | 
 
मकचरी  
 | 
  
फरवरी-जुलाई 
 | 
  
25-30  
 | 
  
अप्रैल-नवम्बर 
 | 
  
2-3  
 | 
  
500-600  
 | 
 
बाजरा  
 | 
  
फरवरी-अगस्त  
 | 
  
12-15  
 | 
  
मार्च-अक्टूबर  
 | 
  
2-3  
 | 
  
250-300  
 | 
 
लोबिया  
 | 
  
मार्च-जुलाई  
 | 
  
40-50  
 | 
  
मई-सितम्बर  
 | 
  
01  
 | 
  
200-250  
 | 
 
नैपिएर घास  
 | 
  
मार्च-सितम्बर  
 | 
  
15-20 क्विंटल  
 | 
  
सम्पूर्ण वर्ष  
 | 
  
7-8  
 | 
  
1500-2000  
 | 
 
गिनी घास  
 | 
  
मार्च-सितम्बर 
 | 
  
12-15 क्विंटल 
 | 
  
सम्पूर्ण वर्ष 
 | 
  
7-8  
 | 
  
1500-2000  
 | 
 
पैरा घास  
 | 
  
मार्च-सितम्बर 
 | 
  
10-12  क्विंटल 
 | 
  
सम्पूर्ण वर्ष 
 | 
  
7-8  
 | 
  
1000-1200  
 | 
 
बरसीम  
 | 
  
अक्टूबर-नवम्बर  
 | 
  
25-30  
 | 
  
दिसंबर-मई  
 | 
  
5-6  
 | 
  
400-500  
 | 
 
लुसर्न  
 | 
  
अक्टूबर-नवम्बर 
 | 
  
20-25  
 | 
  
दिसंबर-मई 
 | 
  
6-7  
 | 
  
500-600  
 | 
 
जई  
 | 
  
अक्टूबर-दिसंबर  
 | 
  
75-90  
 | 
  
जनवरी-अप्रैल  
 | 
  
1-2  
 | 
  
250-300  
 | 
 
चारे को कहाँ और कैसे बेचें
![]()  | 
| नेपिएर घास फोटो साभार गूगल | 
चारा उत्पादन: कम खर्चे में अधिक आमदनी
डेयरी संचालक यदि अपने पशुओं
को हरा चारा खिलाना प्रारंभ कर देवें तो निश्चित रूप से पशुपालन सतत लाभ का
व्यवसाय हो सकता है।  खद्यान्न या अन्य  फसलों की खेती की तुलना में चारा उत्पादन कृषि
का सबसे लाभकारी व्यवसाय है।  चारा फसलों की खेती में लागत बहुत कम आती है और लाभ  बेसुमार हो सकता है।  उदहारण के लिए नेपिएर घास
की खेती करने में 25-30 हजार रुपये  प्रति
हेक्टेयर की लागत आती है। नेपिएर, गिनी एवं पैरा बहुवर्षीय घास है जिन्हें एक बार लगाने से 4-5 वर्ष तक हरा चारा प्राप्त होता रहता है। ग्रीष्म ऋतु में भी इनसे पर्याप्त चारा मिलता रहता है। नेपिएर घास  से  7-8
बार हरे चारे की कटाई करते हुए 1000 क्विंटल से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता
है।  पशुपालक हरी नेपिएर घास को 300 रूपये प्रति क्विंटल के भाव से भी खरीदते है तो
आपको 300,000 (तीन लाख) रुपये प्राप्त होंगे जिसमे से खेती की उत्पादन लागत (30
हजार रुपये) एवं अन्य खर्चे (जमीन का किराया,चारा कटाई,कुट्टी बनाने एवं परिवहन
में अधिकतम  40,000 रुपये) प्रति हेक्टेयर
घटाकर 2,30000/- (दो लाख तीस हजार) का शुद्ध मुनाफा हो सकता है जो अन्य फसलों की
खेती अथवा कृषि व्यवसाय से आकर्षक एवं लाभकारी माना जा सकता है। यदि किसी कारण आवश्यकता से अधिक चारा उत्पादन होने लगा है अथवा हरा चारा बच जाता है तो इसके गट्ठर बना कर अथवा कुट्टी काटकर अच्छी प्रकार से सुखा कर छायादार और सूखे स्थान पर सरंक्षित किया जा सकता है। इनका सूखा चारा पौष्टिकता में धान के पुआल से बेहतर होता है अतः सूखे चारे की कुट्टी को भी पशुपालकों को अच्छे भाव में  बेचा जा सकता है।
हरा चारा उत्पादन से संबंधित अधिक जानकारी अथवा व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए तकनीकी मार्गदर्शन हेतु लेखक से उनके ई मेल से संपर्क किया जा सकता है।
नोट: कृपया लेखक की अनुमति के बिना इस आलेख की कॉपी कर अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा कदाचित न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है, तो ब्लॉगर/लेखक से अनुमति लेकर /सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य देंवे एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
 
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