बायोगैस संयंत्र : रसोई
गैस के साथ खाद मुफ्त और मिलेगी
प्रदूषण से मुक्ति
प्रदूषण से मुक्ति
डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर
(सस्य विज्ञान), इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज
मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
पशुधन की
दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। हमारे देश में लगभग 250 लाख पशुधन है जिनसे लगभग 1200 लाख टन
अपशिष्ट पदार्थ का उत्पादन होता है। आमतौर पर पशुधन से प्राप्त अपशिष्ट का उपयोग
खाना पकाने के ईंधन (उपले) के रूप में ग्रामीण परिवारों द्वारा किया जाता है । गोबर
का उपयोग उपले (कण्डे) बनाकर जलाने से हमे केवल राख मिलती है जो किसी काम की नहीं
है, परन्तु गोबर को बायोगैस सयंत्र में काम लेने से ईंधन, रोशनी, यांत्रिक ऊर्जा
के साथ-साथ मुफ्त में बहुमूल्य जैविक खाद भी मिलती है जिसके इस्तेमाल से खेतों की उर्वरा शक्ति और फसलों का उत्पदान बढ़ता
है । इसके अलावा बायोगैस का उपयोग करने से लकड़ी एवं बिजली की बचत कर सकते है और लकड़ी की बचत
से वनों को कटने से रोका जा सकता है । इससे हरियाली और खुशहाली का वातावरण निर्मित हो सकेगा । देश में उपलब्ध पशुधन स्त्रोत से अनुमानित 1
करोड़ 20 लाख 50 हजार बायो गैस सयंत्रों का निर्माण किया जा सकता है। बायोगैस कभी न
समाप्त होने वाली वैकल्पिक ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है,
जिसका उपयोग रसोई गैस, रौशनी करने तथा तमाम कृषि उपकरणों के संचालन के लिए भी किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में हर गाँव में स्थापित होंगे बायो (गोबर) गैस संयंत्र
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने सम्पूर्ण ग्राम विकास एवं किसानों के
कल्याण हेतु एक अभिनव नारा दिया है-“छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी, नरवा-गरुआ-घुरवा अऊ
बारी, ऐला बचाना है संगवारी” जिसे सुराजी गाँव योजना के तहत प्रदेश के सभी गांवों
में क्रियान्वित किया जा रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत प्रत्येक गाँव में पशुओं के
आवास एवं पोषण हेतु गौठानों का निर्माण तथा चारागाहों का विकास किया जा रहा है। इसके अलावा गौठानों के समीप गोबर गैस संयंत्रों की स्थापना
की जानी है। गोबर गैस प्लांट की स्थापना से कृषक परिवार को न सिर्फ धुआं रहित ईंधन प्राप्त होता है, अपितु इससे प्राप्त
स्लरी (जैविक खाद) के प्रयोग से
मृदा उर्वरता और फसलों की उत्पादकता में आशातीत बढ़ोत्तरी हो सकती है ।
गांवों में गोबर गैस का निर्माण कर वृक्षों की कटाई
पर रोक लगाकर ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है
।
बायोगैस
क्या है ?
जब
गोबर व पानी का घोल 1:1 के अनुपात में हवा की अनुपस्थिति में सड़ाया जाता है तो
जीवाणुओं की क्रियाओं के कारण एक ज्वलनशील गैस उत्पन्न होती है, जिसे बायोगैस कहते
है । इन जैविक पदार्थों को जिस सयंत्र में सड़ाया जाता है, उसे बायोगैस सयंत्र कहते
है । बायोगैस
मीथेन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का एक मिश्रण होती है, जिसमे 55-70 प्रतिशत मीथेन
तथा 30-45 प्रतिशत कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस होती है, साथ ही अल्प मात्रा में
हाईड्रोजन सल्फाइड, हाईड्रोजन तथा ऑक्सीजन आदि गैसे पाई जाती है। दो घन मीटर क्षमता
के एक बायोगैस सयंत्र के लिए 4-5 बड़े पशुओं से प्राप्त 50 किलोग्राम गोबर एवं इसके
बराबर पानी (50 लीटर) की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। बायोगैस सयंत्र से जो गोबर का
घोल सड़कर बाहर निकलता है, उसे बायोगैस की खाद (स्लरी) कहते है। इस सयंत्र में डाले
गए गोबर का लगभग 10% भाग गैस में परिवर्तित हो जाता है तथा शेष 90 प्रतिशत भाग एक
बहुमूल्य जैविक खाद के रूप में प्राप्त होता है । अतः बायो गैस प्रोद्योगिकी
कार्बनिक पदार्थों जैसे-गोबर, मानव मॉल-मूत्र, कृषि एवं पौल्ट्री अपशिष्ट,
पेड़-पौधों के अवशेष आदि से दोहरा लाभ (ईंधन एवं खाद) प्राप्त करने के लिए एक
उपयुक्त तकनीक है ।
बायोगैस
सयंत्र की क्षमता का चुनाव
बायोगैस
सयंत्र की क्षमता का चुनाव पशुधन से प्रतिदिन उपलब्ध गोबर की मात्रा एवं परिवार
में सदस्यों की संख्या के आधार पर करना चाहिए ताकि संयंत्र सुचारू रूप से कार्य
करता रहे। एक छोटा बायोगैस संयंत्र स्थापना में लगभग 20-25 हजार रूपये का खर्चा आता है और इस कार्य के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है ।
गोबर की
आवश्यक मात्रा
|
पशुधन की
संख्या
|
सयंत्र
की क्षमता (घन मीटर)
|
सदस्यों
की संख्या
|
50
|
4-5
|
2
|
5-6
|
75
|
6-8
|
3
|
7-9
|
100
|
9-11
|
4
|
10-12
|
150
|
12-16
|
5
|
13-16
|
बायोगैस
सयंत्र के प्रकार
बायोगैस
संग्रह करने की विधि के आधार पर दो प्रकार के बायोगैस संयंत्रों का निर्माण किया
जाता है:
1.तैरते
ड्रमनुमा के.वी.आई.सी.संयंत्र : इसमें गैस धातु के बने एक ड्रम में
एकत्र होती है। यह ड्रम गाइड फ्रेम में ऊपर-नीचे चलता है। गोबर और पानी को 1:1 के
समान अनुपात में मिलाकर प्रवेश पाइप की मदद से पाचन कक्ष तक पंहुचाया जाता है।
पाचन कक्ष में प्रतिक्रिया होती है और बायोगैस पैदा होती है। उत्पन्न बायोगैस उलटे
ड्रम में एकत्र होती है और बचा हुआ घोल (स्लरी-बायो खाद) निकास पाइप के जरिये बाहर
निकल जाता है। के.वी.आई.सी. डिज़ाइन पर लागत अधिक आती है, क्योंकि इसके गैस होल्डर
की कीमत अधिक होती है। इसके अलावा इस संयंत्र की नियमित जांच और रखरखाव की
आवश्यकता होती है।
2.स्थिर
गुम्बदनुमा दीनबंधू संयंत्र: इस प्रकार के बायोगैस सयंत्र में
लागत कम आने के कारण ये सर्वत्र उपयोग में
लाये जा रहे है। इस संयंत्र का पाचन कक्ष गोलाकार होता है। पाचन कक्ष में सतह
क्षेत्र कम किया गया है परन्तु घोल की मात्रा में कोई कमीं नहीं की गई है। घोल को
पाचन कक्ष तक पहुँचाने के लिए लगभग 100 मिमी के सीमेंट पाइप का उपयोग किया जाता है।
प्रवेश पाइप व निकास पाइप को विपरीत दिशाओं में लगाया जाता है। गैस के निष्कासन के
लिए गुम्बद के शिखर पर एक निकास पाइप लगाया जाता है।
गोबर गैस संयंत्र फोटो साभार गूगल |
गोबर
गैस संयंत्र के फायदे
1.खाना
पकाने हेतु गैस:गोबर गैस/बायोगैस सयंत्र से घरेलू ईंधन के रूप
में गैस प्राप्त होती है.
खाना
पकाने के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 0.24 घन मीटर बायोगैस की आवश्यकता होती
है। इस प्रकार दो घन मीटर के सयंत्र से 5-8 सदस्यों वाले परिवार का खाना पकाया जा सकता है ।दो
घन मीटर के गोबर गैस संयंत्र से माह में करीब 1.5 से 2 एल.पी.जी. सिलेंडर के बराबर गैस प्राप्त होती है ।
2.रोशनी
के लिए:
ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर की उपलब्धतता के आधार पर बड़ा बायोगैस सयंत्र लगाकर
उत्पन्न गैस का उपयोग प्रकाश/रोशनी के लिए किया जा सकता है । बायोगैस लैम्प, मेंटल
लैम्प ही होते है जिससे 40 वाट के बल्ब के बराबर प्रकाश उत्पन्न होता है।
3.कृषि
कार्य हेतु:
बायो गैस से डीजल/पेट्रोल इंजन चलाकर अनेक प्रकार के कृषि कार्य जैसे सिंचाई हेतु
कुए से पानी खीचना, चारा काटना, फसलों की गहाई हेतु थ्रेशर चलाना आदि किये जा सकते
है ।डीजल/पेट्रोल इंजन चलाने हेतु 0.50 घन मीटर बायोगैस प्रति अश्व-शक्ति (एच.पी.)
की प्रति घंटा आवश्यकता होती है।
4.बहुमूल्य
जैविक खाद: संयंत्र से प्राप्त घोल (स्लरी) का उपयोग जैविक खाद के रूप में
किया जाता है । दो घन मीटर के एक सयंत्र से प्रतिदिन लगभग 30-90 किग्रा जैविक खाद
तैयार हो सकती है । यह एक उत्तम किस्म की खाद होती है जिसमे फसलों के लिए आवश्यक
पोषक तत्व यथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम देशी गोबर खाद की तुलना में अधिक
मात्रा में निम्नानुसार पाए जाते है:
सारिणी-गोबर
गैस खाद एवं गोबर खाद में पोषक तत्वों की मात्रा
पोषक
तत्व
|
बायोगैस
खाद (स्लरी)
|
देशी
गोबर खाद
|
|
ताजा
अवस्था
|
सूखी
अवस्था
|
||
नाइट्रोजन
(%)
|
1.5-2.0
|
0.8-1.3
|
0.5-1.0
|
फॉस्फोरस
(%)
|
1.0
|
0.5-0.8
|
0.5-0.8
|
पोटैशियम
(%)
|
1.0
|
0.5-0.8
|
0.5-0.8
|
बायोगैस
खाद में खरपतवार के बीज भी नहीं होते है, क्योंकि संयंत्र में गोबर के साथ-साथ इनके
बीजों का भी किण्वन हो जाता है। जबकि देशी गोबर खाद में खरपतवार के बीज अधिक
मात्रा में पाए जाते है, जो खेत में पहुँच कर उग जाते है और फसल को क्षति पहुंचाते
है। बायोगैस
खाद का उपयोग सभी प्रकार की फसलों/भूमियों में लाभप्रद एवं प्रभावकारी होता है ।
सिंचित भूमि में इसे 8-10 टन प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित भूमियों में 4-5 टन प्रति
हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसके प्रयोग से फसलों की 20-30 प्रतिशत
पैदावार और फसल उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।
इस
प्रकार हम कह सकते है कि ऊर्जा के उपयोग
में लाए जाने वाले सभी स्त्रोतों में बायो गैस सबसे सरल एवं सस्ता साधन साबित हो
सकता है ।गोबर संयंत्र से न केवल घर का खाना बनाने के लिए गैस मिल सकती है, बल्कि इससे कुदरती खाद भी प्राप्त होती है जिसके प्रयोग से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ने के साथ पैदावार भी बढ़ती
है। अधिक पशुधन होने पर उच्च क्षमता वाला संयंत्र लगाने से घर की रोशनी तथा कृषि
उपकरण संचालित करने के लिए यांत्रिक ऊर्जा भी प्राप्त हो सकती है। इसके अलावा ईंधन
की व्यवस्था सुनिश्चित हो जाने से हरे भरे पेड़ कटने से बच सकते है जिससे पर्यावरण
सरंक्षण में सहायता मिल सकती है। गाँव/घर में गोबर गैस प्लांट लगाने से गांवों में
चौतरफा साफ-सफाई भी रह सकती है और हमारा पशु धन भी सुरक्षित रह सकता हैं।
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