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गुरुवार, 14 मार्च 2019

बटन मशरूम उत्पादन: स्वास्थ्य और समृद्धि का साधन


             बटन मशरूम उत्पादन: स्वास्थ्य और समृद्धि का साधन
डॉ.जी.एस.तोमर (प्रोफ़ेसर,सस्यविज्ञान)
एवं
डॉ.ए.के सिंह (प्रोफ़ेसर,पौध रोग विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
मशरूम की खेती भारत के ग्रामीण और शहरी बेरोजगारों को रोजगार तथा खेतिहर एवं भूमिहीन किसानों को अतिरिक्त आमदनी का बेहतर जरिया बनती जा रही है। भारत में अधिकतर लोग शाकाहारी है, जिनके भोजन में प्रोटीन की कमीं महसूस की जा रही है जिसके परिणामस्वरूप बड़ी आबादी कुपोषण की गिरफ्त में आती जा रही है देश में खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ लोगों को पोषण सुरक्षा की भी महती आवश्यकता है। बटन मशरूम की बाजार में अच्छी मांग है। पंच सितारा होटलों एवं ढाबों में मशरूम की सब्जी महंगे दामों में परोशी जाती है जिसे लोग बड़े ही चाव से खाते है। भूमिहीन किसान, महिलाएं इसकी खेती कर परिवार के लिए ताजी और पौष्टिक सब्जी उपलब्ध करा सकते है बल्कि इसका व्यवसायिक उत्पादन कर सीमित निवेश से आकर्षक लाभ अर्जित कर सकते है। इस प्रकार से मशरूम उत्पादन परिवार के स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि का बेहतरीन विकल्प सिद्ध हो सकता है।   मशरूम अर्थात खुम्बी एक गूदेदार खाद्य फफूंद है जो खाने में स्वादिष्ट एवं पौष्टिक पोषक तत्वों से भरपूर सब्जी है।   पौष्टिक मान की दॄष्टि से प्रति 100 ग्राम ताजा मशरूम में 90% जल, 3.1 ग्राम प्रोटीन,0.8 ग्राम वसा, 4.3 ग्राम कार्बोहाईड्रेट, 0.8 ग्राम रेशा, 6.0 मि.ग्रा. कैल्शियम 110 मि.ग्रा. फॉस्फोरस, 1.5 मि.ग्रा. लोहा, 43 किलो कैलोरी उर्जा, 12 मि.ग्रा. विटामिन-सी, 24 मि.ग्रा. फोलिक एसिड, 2.4 मि.ग्रा. नियासिन तथा अन्य विटामिन्स भी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। मशरूम खाने से गर्भवती महिलाओं तथा खून की कमीं (एनीमिक) रोगियों को लाभ होता है। सोडियम तथा पोटैशियम का अनुपात अधिक होने के कारण यह उच्च रक्तचाप को भी दूर करता है।  कम कैलोरी का भोजन होने के कारण यह मोटापा दूर करने के लिए उपयोगी है। इसमें शर्करा तथा स्टार्च नहीं होने के कारण इसे ‘डिलाइट ऑफ़ ड़ाइ बिटिक’ कहा जाता है। इसमें वसा तथा कार्बोहाइड्रेट की न्यूनता के कारण यह डायबिटीज तथा हृदय रोगियों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। प्रमुख वैज्ञानिक डॉ.ए.के.सिंह द्वारा राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, अंबिकापुर के शोध प्रक्षेत्र पर मात्र 18-20 हजार की लागत से 2400 वर्ग फुट में धान के पैरा, बांस,बल्ली की सहायता से निर्मित झोपणी में बटन मशरूम उत्पादन प्रारंभ किया गया जिसके नतीजे उत्साहवर्धक रहे. इसमें 25 जनवरी से उत्तम गुणवत्ता की 5-6 किलो मशरूम प्रतिदिन तोड़ी जा रही है।  अभी तक 150 किलो बटन मशरूम तोड़कर स्थानिय बाजार में 100-150 रूपये प्रति किलो की दर से बेचीं जा चुकी है।
कृषि महाविद्यालय अंबिकापुर में  उत्पादित बटन मशरूम का प्रदर्शन करते हुए लेखकगण 
तथा वैज्ञानिकों के साथ जिले के एस पी श्री सदानंद   

मशरूम की प्रजातियाँ
भारत में जलवायु के अनुसार मशरूम की 4-5 प्रजातियों का उत्पादन किया जा रहा है. जिसमें मुख्य रूप से बटन मशरूम (एगेरिक्स बाइस्पोरस), ढिंगरी (प्ल्युरोटस प्रजातियाँ), धान पुवाल मशरूम (वोल्वारिएला वोल्वासिया), दूधिया मशरूम (कैलोसाइबी इंडिका) का उत्पादन प्रमुखता से किया जाता है।  इनमे से बटन मशरूम को भोजन में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है और देश में कुल मशरूम उत्पादन में  बटन मशरूम की भागीदारी सबसे अधिक है।  बटन मशरूम की एस-11, यू-3, पन्त-31 तथा एम्.एस.-39 उन्नत किस्में है।
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
बटन मशरूम शीत ऋतु की फसल है। बटन मशरूम उत्पादन  के लिए कवक जाल फैलाव के दौरान  22 से 25  डिग्री सेल्सियस तथा फलन के समय 14 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इससे ज्यादा तापमान मशरूम के लिए हानिकारक होता है। उत्तम बढ़वार के लिए 80-85 प्रतिशत नमीं की जरुरत पड़ती है। शीत ऋतु के आरंभ व अंत तिक इस तापमान और नमीं को आसानी से बनाये रखा जा सकता है छत्तीसगढ़ सहित भारत के उत्तरी मैदानी भागों में अक्टूबरमार्च तक उगाया जा सकता है।
बटन मशरूम उतपादन विधि
मशरूम की खेती के लिए भूमि की आवश्यकता नही पड़ती है।  इसीलिए इसकी खेती को भूमि बचत अथवा भूमि रहित खेती भी कहते हैं। इसकी खेती साधारण कमरों बरामदा,ग्रीन हाउस, झोपड़ी  तथा गैराज आदि में आसानी से की जा सकती हैं परन्तु विशेष प्रकार से निर्मित मशरूम उत्पादन कक्ष में इसकी व्यवसायिक खेती करना उत्तम रहता है। मशरूम उगाने के लिए मूल रूप से मशरूम घर (घास-पात और बांस-बल्लियों से निर्मित झोपडी अथवा कच्चा घर), कम्पोस्ट, स्पान तथा केसिंग मिश्रण की आवश्यकता होती है।
कृषि महाविद्यालय, अंबिकापुर में बांस-बल्ली से तैयार झोपणी में बटन मशरूम उत्पादन
मशरूम की खेती हेतु कम्पोस्ट तैयार करना
मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट एक माह में आसानी से तैयार कर सकते हैं।  इसके लिए खुली हवादार पक्का फर्श का उपयोग कर सकते हैं।   मशरूम उगाने के लिए खाद तैयार करने हेतु गेंहू का भूसा अथवा पैरा कुट्टी-300 किलोग्राम, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (कैन)- 9 किलोग्राम, यूरिया-4 किलोग्राम, म्यूरेट ऑफ़ पोटाश-3 किलोग्राम,सुपर फॉस्फेट-3 किलोग्राम, गेंहू का चोकर-15 किलोग्राम एवं जिप्सम-20 किलोग्राम की आवश्यकता होती है।  अधिक मात्रा में मशरूम पैदा करने के लिए इस सामग्री को इस अनुपात में बढाया जा सकता है।   कम्पोस्ट बनाने के लिए गेंहू/धान के भूसे को किसी पक्के फर्श पर 30 सेंटीमीटर ऊंची तह बिछाकर उसे 1-2 दिन तक रुक रुक कर  पानी का छिडकाव कर भिगो दिया जाता हैं।  भूसे को गीला करते समय पैरों से दबाना अच्छा रहता है।  गीले भूसे की ढेरी बनाने के 12-16 घंटे पहले सभी उर्वरकों व चोकर (जिप्सम छोड़कर) को एक साथ मिलाकर हल्का गीला कर लेते है तथा ऊपर से गीली बोरी से ढँक देते है।
कम्पोस्ट का ढेर बनाना
गीले किये गए मिश्रण (भूसा +उर्वरक+चोकर) को मिलाकर 5 फुट चौड़ा व 5 फुट ऊंचा ढेर बनाते है। ढेर की लम्बाई सामग्री की मात्रा पर निर्भर करती है, परन्तु ऊंचाई व चौड़ाई ऊपर बताये माप से अधिक व कम नहीं होनी चाहिए। यह ढेर पांच दिन तक ज्यों का त्यों बना रहने देवें।  बाहरी परतों में नमीं कम होने पर आवश्यकतानुसार पानी का छिडकाव करते रहें। दो तीन दिनों में इस ढेर का तापमान करीब 65-700 से.ग्रे. हो जाता है जो कि एक अच्छा संकेत है।
कम्पोस्ट पलटाई क्रम
पहली पलटाई(6वां दिन): छठवें दिन ढेर की प्रथम पलटाई की जाती है।  पलटाई करते समय ध्यान रखें कि ढेर के प्रत्येक भाग की उलट-पलट अच्छी प्रकार से हो जाए ताकि प्रत्येक हिस्से को सड़ने-गलने के लिए पर्याप्त वायु व नमीं प्राप्त हो जाये।  ढेर बनाते समय यदि खाद में नमीं कम हो तो आवश्यकतानुसार पानी का छिडकाव कर देना चाहिए।  नए ढेर का आकर व नाप पहले ढेर की भांति रखा जाता है। आगे की पलटाईयां भी पहली पलटाई की भांति की जाती है।  दूसरी पलटाई 10 वें दिन  करें तथा तीसरी पलटाई (13 वें दिन) के समय जिप्सम भी मिलायें इसके बाद चौथी, पांचवी एवं छठवी पलटाई क्रमशः 16, 19 व 22 वें दिन करें। सातवी पलटाई (25 वें दिन) करते समय मैलाथियान (0.1%) का छिडकाव करें। इसके बाद आठवीं पलटाई (28 वें दिन) करते समय कम्पोस्ट में अमोनिया व नमीं का परीक्षण करें। खाद को मुट्ठी में दबाने पर हथेली व उँगलियाँ गीली हो जाये परन्तु खाद से पानी निचुड़कर न बहे।  इस अवस्था में खाद में नमीं का स्तर उचित होता है तथा इस दशा में कम्पोस्ट में 68-70% नमीं मौजूद होती है जो बिजाई के लिए उपयुक्त होती है।  अमोनिया का परीक्षण करने के लिए खाद को सूंघ जाता है, सूंघने पर यदि अमोनिया की गंध (पशु मूत्र जैसी गंध) आती है तो 3 दिन के अंतर से एक या दो पलटाई और करना चाहिए।  अमोनिया की गंध समाप्त होने पर कम्पोस्ट को फर्श पर फैला दिया जाता है और उसे 250 सेल्सियस तापमान तक ठण्डा होने के पश्चात बिजाई करें।
मशरूम के लिए स्पान (बीज)
मशरूम अथवा खुम्ब के बीज को स्पान कहा जाता है ।बटन मशरूम का शुद्ध कल्चर प्रमाणित प्रयोगशालाओं (कृषि महाविद्यालय, कृषि अनुसन्धान केंद्र अथवा कृषि विज्ञान केंद्र) से क्रय किया जाना चाहिए. श्वत बटन मशरूम की उन्नत किस्मों में एन सी एस-101,पन्त-31,एम् एस-39, एस-7, एस-91, एन सी एच-102 आदि है जिनसे 15-20 कि.ग्रा.मशरूम प्रति क्विंटल कम्पोस्ट से प्राप्त किया जा सकता है ।

बिजाई (स्पानिंग) करना
मशरूम अथवा खुम्ब के बीज को स्पान कहा जाता है, जिसे कम्पोस्ट में मिलाया जाता है । स्पान देखने में श्वेत व रेशमी कवक जालयुक्त हो तथा इसमें किसी भी प्रकार की अवांक्षित गंध न हो । याद रहे स्पान एक माह से अधिक पुराना न हो । स्पान मिलाने से पूर्व बिजाई स्थान (फर्श) व बिजाई में प्रयुक्त किये जाने वाले बर्तनों को  2 % फोर्मेलिन घोल में धोएं व बिजाई करने वाले व्यक्ति अपने हांथों को साबुन से धोयें, ताकि कम्पोस्ट में किसी प्रकार का संक्रमण न फैले. इसके पश्चात 100 किलोग्राम तैयार कम्पोस्ट में 500-700 ग्राम स्पान (बीज) मिलायें. 

                     बीजित खाद को पोलिबेग/बोरी में भरना व कमरों में रखना

हवादर कमरे/झोपणी में मजबूत  बांस/बल्ली की सहायता से लगभग दो-दो फुट की दूरी पर कमरे की ऊंचाई की दिशा में (अलमारी के समान) एक के ऊपर एक मचान बना लेवें।  मचान की चौड़ाई 4’ से अधिक न रखें।  यह कार्य प्रारंभ में ही कर लेना चाहिए।  खाद भरे थैले रखने से 2 दिन पूर्व इस कमरे के फर्श को 2 % फार्मेलीन घोल से धोये तथा दीवारों व छत पर इस घोल का छिडकाव करें।  इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियाँ बंद करे जिससे अन्दर की हवा बाहर न आ सके।   अब बिजाई करने के साथ-साथ, 10-12 किलोग्राम बीजित खाद को पोलीबेग में भरते जाये तथा थैलों का मुंह मोड़कर बंद कर दें।  ध्यान रखें कि थैले में खाद 1 फुट से ज्यादा न भरें।  इसके पश्चात इन थैलों को कमरे में बने बांस के मचान पर एक-दुसरे से सटाकर रख देवें।  कम्पोस्ट को बिजाई करने के उपरान्त मचान पर लगभग 6’’ मोटाई में ऐसे ही फैला कर रखा जा सकता है।  ऐसी दशा में मचान की सतह पर पोलीथिन की शीट  बिछा देना चाहिए। कम्पोस्ट को फैला देने के बाद ऊपर से अख़बारों से ढँक दिया जाता है और अख़बारों पर दिन में एक या दो बार पानी का छिडकाव करते रहना चाहिए।  तत्पश्चात कमरे में 22-260 से.ग्रे. तापमान व 80-90 % नमीं बनाये रखें।  इस तापमान को कूलर, हीटर, प्रकाश बल्ब  आदि की सहायता से नियंत्रित किया जा सकता है।  नमीं कम होने पर कमरे की दीवारों पर पानी का छिडकाव करके व फर्श पर पानी भरकर नमीं को बढाया जा सकता है। मशरूम उत्पादन कक्ष बंद रखें।  बिजाई के लगभग 12-15 दिनों में मशरूम  का कवकजाल पूरी तरह कम्पोस्ट में फ़ैल जाता है और कम्पोस्ट पर सफेदी छा जाती है। अब समाचार पत्रों को हटा कर केसिंग की जाती है।
कम्पोस्ट पर केसिंग करना
कम्पोस्ट में  मशरूम का कवकजाल पूरी तरह फैलने के पश्चात कम्पोस्ट को केसिंग मिश्रण की परत से ढकना पड़ता है।  किसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिटटी है जिसे  दो साल पुरानी गोबर की खाद व दोमट मिटटी (2:1) को मिलाकर तैयार किया जाता है।  केसिंग को रोग रहित बनाने के लिए इस पर 2 % फार्मोलिन (40 % सक्रिय तत्व) घोल (एक लीटर फोर्मेलिन को 20 लीटर पानी में घोलकर) का छिडकाव कर मिश्रण को गीला किया जाता है। घोल की मात्रा केसिंग मिश्रण की मात्रा पर निर्भर करती है। उपचारित केसिंग मिश्रण को पोलीथिन से चारों तरफ से ढँक देते है और इस पोलीथिन को केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के 24 घंटे पूर्व हटते है।  पोलीथिन हटाने के बाद केसिंग मिश्रण को साफ़ बेलचे से उलट-पलट देते है।  केसिंग तैयार करने का कार्य केसिंग प्रक्रिया शुरू करने से लगभग 15 दिन पहले समाप्त कर लेना चाहिए अर्थात बिजाई के बाद कार्य शुरू कर देना चाहिए। कवक जाल फैले कम्पोस्ट से अख़बार पेपर हटाकर कम्पोस्ट की सतह को हल्का-हल्का दबाकर एक सार कर लेते है तथा केसिंग मिश्रण की 3-4 से.मी.मोटी परत चढ़ा डी जाती है। थैलों की अतिरिक्त पोलीथिन को नीचे की ओर मोड़ देते है।  अब पहले की भांति थैलों को कमरे में रख देते है। केसिंग करने के  बाद  5 से 6 दिन तक मशरूम उत्पादन कक्ष  का तापमान 22 से 260  से.ग्रे. तथा 80-90 % नमीं बनाये रखना चाहिए।
फसल की देख रेख
केसिंग के बाद कम्पोस्ट माध्यम पर सुबह-शाम पानी का छिडकाव करते रहना चाहिए जिससे केसिंग माध्यम में पर्याप्त नमीं बनी रहे । कवक जाल कम्पोस्ट से धीरे-धीरे केसिंग माध्यम में फैलता है जिसमे 8-10 दिन का समय लग जाता है। अब कमरे के तापमान को 22-260 से.ग्रे. से घटाकर 16-180 से.ग्रे. पर ले आना चाहिए तथा इस तापमान को पूरे फसल उत्पादन काल तक बनाये रखना चाहिए।  इस तापमान पर  कवकजाल से श्वेत बटन मशरूम के छोटे-छोटे पिन हेड बनना प्रारंभ हो जाते है जो 7-8 दिन में पूर्ण विकसित होकर बटन का रूप ले लेते है। इस दरम्यान कमरे में नमीं 85 % तक बनाये रखना चाहिए। सुबह व शाम केसिंग पर पानी का छिडकाव करना चाहिए। तापमान व नमीं के अलवा, मशरूम उत्पादन के लिए वायु का आदान-प्रदान आवश्यक है. इसके लिए उत्पदान कक्ष में रोशनदान, खिड़की व दरवाजे सुबह-शाम खोल देना चाहिए। घास-फूस से निर्मित झोपणी में हवा का आवागमन होता रहता है।
मशरूम की तुड़ाई 
श्वेत बटन मशरूम की तुड़ाई सही अवस्था में करना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा उसकी महक, चमक, स्वाद और गुणवत्ता खराब हो जाती है। मशरूम कलिकाए बनने के लगभग 2-4 दिन बाद विकसित होकर बटन मशरूम में परिवर्तित हो जाती है। जब मशरूम की टोपी का आकर 3-4 से.मी. एवं टोपी बंद हो तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिए। तुड़ाई के समय बटन का आकार तने की लम्बाई से दुगुना होना चाहिए और छत्रक न बना हो। मशरूम छत्रकों की तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए। पूर्ण विकसित मशरूम की तुड़ाई चाकू से काट कर अथवा दो अंगुलियों के बीच में लेकर इसको मरोड़कर करना चाहिए। मशरूम तोड़ने के बाद पानी का छिडकाव करना चाहिए ।इस प्रकार करीब करीब प्रतिदिन मशरूम की पैदावार मिलती रहती है तथा 40-50 दिन तक उत्पादन लिया जा सकता है। 
                                      उत्पादन एवं लाभांश 
सम्पूर्ण मौसम में श्वेत बटन मशरूम का उत्पादन 12-15 कि.ग्रा. प्रति 100 किलो कम्पोस्ट की दर से प्राप्त किया जा सकता है।  मशरूम का उत्पादन वातावरण एवं प्रबंधन पर निर्भर करता है ।  सामन्य तौर पर एक टन कम्पोस्ट से  लगभग 120 किलो  बटन मशरूम का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, जिसे 120 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर 14400 रुपये प्राप्त होते है। इसमें उत्पादन लागत 5000 रूपये प्रति टन कम्पोस्ट को घटाने पर 9400 रूपये का शुद्ध मुनाफा होता है। यदि किसान भाई 10 टन कम्पोस्ट पर मशरूम उत्पादन करते है तो उन्हें तीन माह में एक लाख से अधिक यानि 1100 रूपये से ज्यादा का मुनाफा हो सकता है। मशरूम की कटाई उपरान्त शेष बचे कम्पोस्ट को फसल उत्पादन में जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करने से भूमि की उर्वरा शक्ति एवं फसल की उपज में बढ़ोत्तरी होती है। इस खाद को पशुओं के चारे के रूप में भी खिलाया जा सकता है। 
पेकिंग एवं भण्डारण
साफ़ और ताजे मशरूम को एकत्रित कर तने के मिटटी वाले भाग को चाकू से काटकर अलग कर दें. स्वच्छ पानी से धोने के बाद उनकी छटाई करें।  बंद टोपी वाले 3-4 से.मी. व्यास के छत्रक ए ग्रेड के माने जाते है, इन्हें अलग रखें तथा बड़े या थोड़े खुले छत्रक अलग रखें।   छटाई के बाद अलग-अलग श्रेणियों के छत्रकों को  200-250 ग्राम के हिसाब से पोलीथिन की थैलियों/डिब्बों  में भरकर बाजार में विक्रय हेतु भेजा जा सकता है । इन थैलियों में मशरूम भरते समय 0.5 % जगह वायु के आने जाने के लिए छोड़ना चाहिए, ताकि मशरूम को रेफ्रिजेटरों में भंडारित किया जा सकें। तोड़ने के बाद मशरूम को कमरे के तापक्रम पर 12  घंटे तथा रेफ्रिजेटरों में 4-5 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सामान्य तौर पर भण्डारण हेतु 50 से.ग्रे. तापक्रम एवं 85-90 % आपेक्षिक आद्रता होना चाहिए। लम्बे समय तक मशरूम का भण्डारण करने के लिए इसे 18% नमक के घोल में रखा जा सकता है। सामान्य रूप से मशरूम की सफेदी बनाये रखने के लिए इसे पोटेशियम मेटाबाई सल्फाइड (0.025 से 0.05 %) तथा साइट्रिक अम्ल (0.25%) के घोल में डुबोकर साफ़ करके रखा जा सकता है।

कृपया ध्यान रखें: बिना लेखक/ब्लोगर  की आज्ञा के बिना  इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में  प्रकाशित करना ही है तो लेख में  ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।

1 टिप्पणी:

Abhay ने कहा…

बहुत ही अच्छा कार्य.... किसानों की आमदनी दुगुनी करने में सहायक हो सकता है बटन मशरूम का उत्पादन