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शुक्रवार, 5 जून 2020

कोरोना वायरस का कहर-प्रकृति को सजाने-संवारने का अवसर

विश्व पर्यावरण दिवस, शुक्रवार 5 जून,2020 पर विशेष आलेख 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, पोस्ट-बिरकोनी, जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)

 

हम जो खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिस हवा  की हम सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो जलवायु हमारे पृथ्वी ग्रह को रहने योग्य बनाती है,वह सब प्रकृति की अनमोल देन है। कल्पना कीजिए अगर हमारी जमीनें खाद्यान्न का उत्पादन करने में विफल हो जाएँ, हमारे भूजल के भंडार सूख  जायें हमारी नदियां प्रदूषित हो जायें र हमारे जंगल नष्ट हो जायें, तो क्या मानवता का अस्तित्व खतरे में नहीं पड़  जायेगा ऐसा होने पर निश्चित ही  सम्पूर्ण मानव जाति भी विलुप्त हो जाएगी  परमेश्वर ने धरती पर आदमी के साथ-साथ नाना प्रकार के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, पेड़-पौधे और वनस्पतियों की रचना की है और ये सभी एक दूसरे पर निर्भर है इनमें से किसी एक के अस्तित्व पर संकट आने का अर्थ है दूसरे के अस्तित्व पर संकट आना, यदि प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष  जीवन के लिए प्रकृति में शुद्ध हवा और शुद्ध पानी के साथ साथ अनेक प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियों में संतुलन का होना जरूरी है। हमारा जीवन प्रकृति पर  आश्रित  होने के बावजूद भी पिछले कुछ दशकों से हमने आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक सम्पदा (जल,जंगल,जमीन और जानवर) का दोहन-शोषण करके प्राकृतिक संतुलन को नेस्तनाबूत कर दिया है ।विज्ञान  के अजेय रथ पर आरूढ़ मानव आज विधाता को चुनौती दे रहा है. विश्व की यह प्रगति मानों प्रकृति को विस्मृत भी कर रही है प्रकृति  का अमर्यादित उपभोग, वनों की कटाई, उद्योग धंधों की भरमार, उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन, व्यापार और इसी प्रकार का एक परिवेश बनता जा रहा है जो प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी और मानव जाति  के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है मर्यादाओं की सीमाएं लांघना ही मानवों की दुर्दशा का कारण बनता जा रहा है आज समूचा विश्व मानव निर्मित जैविक और प्राकृतिक आपदाओं मसलन चक्रवाती तूफ़ान अम्फान, महातूफान निसर्ग, टिड्डी आक्रमण, भूकंप के झटको के अलावा इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना वायरस महामारी का दंश झेल रहा है। वर्ष 2020 में जैविक आपदा और प्राकृतिक आपदाओं का कहर ये साबित करता है कि मानव काफी लम्बे समय से  प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता आ रहा है। इसलिए आज पूरा विश्व प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से सहमा हुआ है एक मामूली से अदृश्य वायरस (कोविड-19) ने सम्पूर्ण मानव जाति के ताने-बाने और  वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है सामाजिक दूरी, सेनेटाइजेशन, प्लास्टिक की पन्नी ओढ़कर  और  सम्पूर्ण लॉक डाउन  करके इस जैविक  महामारी को हम कुछ हद तक  नियंत्रित तो कर सकते है, लेकिन  समाप्त नहीं कर सकते है वायरस से होने वाली अधिकांश बीमारियाँ वन्य जीवों से ही आती है. अतः वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है इसके अलावा  हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन पर समुचित ध्यान देना होगा यानि प्रकृति से दूर होती मानवता को प्रकृति की ओर लौटना होगा तभी हमारा आज और कल सुरक्षित रह सकता है। यदि समय रहते प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की ओर जनमानस का ध्यान आकर्षित नहीं किया गया तो प्रलय की स्थिति का आगमन अवश्यंभावी हो जायेगा.

विश्व पर्यावरण-2020: प्रकृति के लिए समय 

 विश्व पर्यावरण दिवस फोटो साभार गूगल  
आज विश्व  पर्यावरण दिवस (5 जून,2020) हम ऐसे मौके पर मना रहे है, जबकि समूची मानवजाति एक बड़े स्वास्थ्य संकट अर्थात कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है इस वर्ष जर्मनी की साझेदारी में कोलंबिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है इंसानों व् प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को देखते हुए इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का विषय प्रकृति के लिए समय और जैव विविधिता रखा गया है जो  प्रकृति के साथ बिगड़े तारतम्य को फिर से सुधारने के लिए प्रेरित करता है जैव विविधता प्रकृति की जैविक सम्पदा और समृद्धि का संपूर्ण स्वरूप है जिसमें बड़े से बड़े और छोटे से छोटे जीवाणु, सभी तरह के जीव, पेड़-पौधे तथा वनस्पतियां शामिल है। जैव विविधता कृषि का आधार है। जैव विविधता फसलों और पालतू पशुओं की सभी प्रजातियों और उनके भीतर की विविधता का मूल है। जैव विविधता और कृषि का परस्पर संबंध है क्योंकि जहां जैव विविधता कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं कृषि जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग में भी योगदान दे सकती है। प्रकृति ने मानवता को पौधों और पशुओं की प्रचुर विविधता प्रदान की है परन्तु सयुंक्त राष्ट्र एवं कृषि संघठन (FAO) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार खाध्य प्रणाली को मजबूत आधार प्रदान करने वाली जैव विविधिता धीरे-धीरे गायब हो रही है। इससे भोजन, आजीविका, स्वास्थ्य और पर्यावरण के भविष्य के लिए बड़ा खतरा पैदा होता जा रहा है । वैश्‍विक कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, कृषि उत्‍पादकता बढ़ाना, जोखिम कम करना और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने जैसी वैश्‍विक चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें बहुमूल्‍य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा, क्‍योंकि हमारी कृषि पद्धति में इनसे आवश्‍यक कच्‍चे माल की आपूर्ति होती है और बड़ी संख्या में  लोगों को आजीविका उपलब्ध होती है। नई दिल्ली में आयोजित प्रथम अंतराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस- आईएसी 2016 के उद्घाटन के अवसर पर लोगों का संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जैव विविधता को बचाने और तकनीक की मदद से गरीबी हटाने की अपील की है । साथ ही यह भी कहा कि कृषि जैव विविधता के मामले में भारत बहुत समृद्ध है। मानव ने प्रकृति में दखल देकर ही जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा की है। उसकी इसी गलती से तापमान बढ़ रहा है जो जैव विविधिता को नुकसान पहुंचा रहा है। जैव विविधता की सुरक्षा का अर्थ है कि उसके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना। हमारे पूर्वज सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे। उनके संस्कार जनित प्रयासो से ही हम जैव विविधता बचा पाये हैं और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए सबकी जरूरत पूरा करते रहे है  

मानव और प्रकृति का एक दूसरे से अभिन्न सम्बंध है। मानव का प्रकृति के प्रति कर्तव्य है उसे संजोए रखने का। जहाँ प्रकृति मानव जीवन के पहलुओं को निर्धारित करती है वहीं मानव के क्रियाकलापों से प्रकृति प्रभावित भी होती है और यही प्रभाव कुछ समय बाद मानव जीवन पर असर डालता हैं। पृथ्वी पर आज लाखों विशिष्ट जैव प्रजातियों के रूप में प्राकृतिक संसाधन है जिनसे समस्त प्राणियों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती होती है और  इसी जैव विविधिता से हम सबका जीवन चलता है परन्तु विश्व में तेजी से विलुप्त हो रही अनेक प्रजातियों के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से भी जलवायु संकट और स्वास्थ्य सम्बन्धी महामारी विकराल रूप ले रही है चूंकि पृथ्वी से बहुत सी प्रजातियाँ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रहीं है या विलुप्त होने की कगार पर हैं ऐसे में इनमे पल्लवित होने वाले सूक्ष्म जीव और वायरस भी अपने लिए दूसरा ठिकाना ढूंढ रहे है इन सूक्ष्म जीवों और वायरसों ने अब मानव आबादी को अपना आश्रय बनाना शुरू कर दिया है जैव विविधिता के हो रहे क्षरण के कारण चमगादड़ से उत्पन्न वायरस (कोविड-19) संक्रमण मानवता के लिए खतरा बन गया है इस संक्रमन से पूरी दुनिया में अब तक 65 लाख से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया है इस महामारी से करीब 4 लाख से अधिक लोगों की जान भी जा चुकी है विज्ञान कितनी भी उन्नति-प्रगति कर लें परन्तु प्रकृति के समक्ष वह सदैव बोना ही रहेगा कोरोना वायरस से लड़ने के लिए या बचने के लिए  भले ही वेक्सीन की खोज हो जाये लेकिन कल अन्य दूसरी प्राकृतिक आपदा या महामारी पैदा हो जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है हमें अपनी प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित करने उसे संवारने और सजाने के आवश्यक उपाय अपनाने ही होंगे तभी इस गृह पर मानवता सुरक्षित और खुशहाल रह सकती है

कोविड-19 ने दिखाई भविष्य की राह

वर्कोतमान कोविड-19 संकट हम सभी को अपना भविष्य सुरक्षित करने का एक मौका  दे  रहा है। प्रकृति को फिर से हरा-भरा और समृद्ध करने के लिए चेतावनी दे रहा है आज पूरा विश्व कोरोना वायरस की महामारी से भयभीत है परन्तु यह वायरस हमें प्रकृति और पर्यावरण को सजाने–संवारने का एक सन्देश लेकर आया है। यह वायरस  हमें बता रहा है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा प्रकृति के साथ पुनः  तारतम्य स्थापित करना होगा अन्यथा भविष्य में और भी बड़े लॉक डाउन और संकट का सामना करना पड़ सकता है दरअसल हमने विकास की अंधी-दौड़ में पूरी प्रकृति को अपने कब्जे में ले लिया है,जल-जंगल,जमीन और जानवरों पर अपना अधिपत्य जमा लिया हैं। लेकिन हम यह भूल गए हैं कि हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि और सुंदर भविष्य के सपने एक छोटे से अदृश्य जीव यानि वायरस  द्वारा  नष्ट किये जा सकते है। कोरोना संकट के चलते लम्बे समय से तमाम कल कारखाने और वाहनों का आवागमन बंद रहने और मानवीय गतिविधियों के लॉकडाउन के चलते विस्श्व भर में वायु प्रदूषण कम होने के संकेत मिल रहे है हमारे देश की नदियां विशेषकर गंगा-यमुना निर्मल प्रतीत होने लगी है प्राणवायु भी स्वच्छ हो गई है नासा की रिपोर्ट के अनुसार भरत का प्रदूषण पिछले 20 वर्षों की तुलना में सबसे नीचे पहुँच गया है कोविड-19 के माध्यम से प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखा कर हमें मजबूर कर दिया है कि हम प्रकृति की जैव विविधिता और अपने पर्यावरण को सुरक्षित बनाने का प्रयास करें प्रकृति का सरंक्षण करना मानव जाति का कर्तव्य भी है और अधिकार भी क्योंकि यह संतुलन हमने बिगाड़ा है और हम सब को मिलकर इसे ठीक करना होगा तभी मानव जाति का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित रह पायेगा हमें  निश्चित  रूप से  प्रकृति की  ओर लोटना और उसके साथ चलना ही होगा प्रकृति के साथ जो भूल हमने जाने-अनजाने में की है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा । अपनी सुरम्य प्रकृति को कायम करना होगा प्रकृति को सजाने-संवारने और पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए हमे हरियाली से ही खुशहाली के मूलमंत्र को आत्मसात करते हुए अधिक से अधिक क्षेत्र और अपने घरों के आस-पास वृक्षारोपण करने के लिए जन समुदाय को प्रेरित करना चाहिए रोपित पौधों के प्रबंधन अर्थात इनके रख रखाव पर समुचित ध्यान  देने की आवश्यकता है यदि बच्चों  के जन्पमदिवस और स्वजनों की स्मृति में तथा विशिष्ट अवसरों पर वृक्ष लगाने की भावना को जागृत किया जाय तो निश्चित ही हरियाली और खुशहाली का वातावरण देखने को मिल सकता है    आस-पास के वातावरण और जल स्त्रोतों को स्वच्छ रखने के लिए जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है आवागमन हेतु सार्वजनिक यातायात के साधनों का इतेमाल करें बहुत आवश्यक हो तभी निजी वाहनों का उपयोग करें प्लास्टिक की वजह से कितने ही जिव जंतु विलुप्त होने की कगार पर है, अतः प्लास्टिक का उपयोग कम करें और प्रदूषण न फैलाएं। कृषि और बागवानी में कीट नाशकों और शाकनाशियों का उपयोग कम करें वर्षा जल संरक्षण की विभिन्न विधियां जैसे खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में, छत के पानी का संरक्षण करें. खेती में कुशल जल प्रबंधन तकनीकें अपनाएं। जल को व्यर्थ  बर्बाद ना करें जल संपत्ति ज़रूर आपकी हो सकती है, पर संसाधन नहीं अर्थात प्राकृतिक संसाधनों का सरंक्षण करते हुए इनका कुशल उपयोग करें कृषि में लाभदायक जीव जंतुओं और वनस्पतियों का संरक्षण करें  कृषि विविधिकरण अर्थात विभिन्न प्रकार की फसलें यथा धान, गेंहू, ज्वार, बाजरा, कोड़ों, कुटकी, रागी, दलहन, तिलहन, सब्जी वाली फसलों को हेर-फेर (फसल चक्र) कर उगाने का प्रयास करें

प्रकृति और पर्यावरण की करो सुरक्षा  

       यही है सबसे बड़ी तपस्या        


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