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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

फसलों की उपज और गुणवत्ता बढाने अवश्य करे गंधक का इस्तेमाल

                                                  डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्राध्यापक (सस्य्विज्ञान)

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कोडार रिसोर्ट,कांपा, जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)

पौधों के लिए आवश्यक पोशाक तत्वों में नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश के बाद बाद गंधक चौथा प्रमुख पोषक तत्व है. हमारे देश में बोई जाने वाली प्रमुख तिलहनी फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिल, सरसों, सूरजमुखी, अलसी आदि  तथा दलहनी फसलों में अरहर, मूंग,  उड़द, चना, मटर, मसूर आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा प्याज, लहसुन, मूली, कपास आदि  फसलों में भी गंधक की विशेष जरूरत होती है। एक ही खेत में हर वर्ष इन फसलों की खेती करने से खेतों में गंधक की कमी हो रही है. जिससे फसल की पैदावार व गुणवत्ता में निरन्तर कमी आ रही है। आमतौर पर किसान फसलों में प्रायः गंधक रहित उर्वरक जैसे डी.ए.पी. एवं यूरिया का उपयोग अधिक करते है, जबकि गंधक युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट व जिप्सम का उपयोग प्रायः कम करते है  जिससे खेतों में गंधक की कमीं होने से उत्पादन और गुणवत्ता में गिरावट होती है। राष्ट्रिय एव विभिन्न प्रदेशों में किये गए परीक्षणों से ज्ञात होता है, कि एक किलोग्राम गंधक के प्रयोग से 12 किग्रा गेंहूँ, 5 किग्रा मूंगफली, 7 किग्रा सरसों और 74 किग्रा कंद की बढ़ोत्तरी होती है. गंधक के उपयोग से सरसों में 8.5 %, मूंगफली में 5.1 %, सूरजमुखी में 3.6% और सोयाबीन में 6.8 प्रतिशत तेल में बढ़ोत्तरी होती है।

क्यों जरुरी है गंधक

गंधक कार्बनिक पदार्थों की सरंचना का अभिन्न अंग है. यह पौधों के क्लोरोफिल के निर्माण में सहायक होता है, जो कि पौधों के लिए अत्यंत आवश्यक है. पौधों की वानस्पतिक वृद्धि और जड़ों के विकास में भी गंधक सहायता करता है।तिलहनी फसलों में गंधक के उपयोग से दानों में तेल की मात्रा में बढोतरी होती है, साथ ही दाने सुडौल व चमकीले बनते है तथा पैदावार अधिक प्राप्त होती है। इसी प्रकार दलहनी फसलों में प्रोटीन के निर्माण के लिए गंधक अतिआवश्यक पोषक तत्व हैं. गंधक से दलहनी फसलों में भी दाने सुडौल बनते हैं व पैदावार बढ़ती है। यहीं  नहीं, दलहनी फसलों की जडो में ग्रंथियों के निर्माण में गंधक मदद करता है जिससे राइजोबियम जीवाणुओं की क्रियाशीलता को बढ़ावा मिलता है।

गंधक की कमीं के लक्षण

मृदा में गंधक की कमिं होने के साथ ही पौधों पर लक्षण दिखाई देने लगते है. ये लक्षण विभिन्न फसलों में अलग-अलग होते है। गंधक की कमिं के लक्षण सर्प्र्थम नविन पत्तियों पर दिखाई देते है, ये पत्तियां पीली पड़ने लगती है और पौधों की बढ़वार अवरुद्ध हो जाती है। तना पतला और बौना दिखाई देता है। इसकी कमीं के लक्षण नाइट्रोजन की कमिं के लक्षणों से मिलते-जुलते है। नाइट्रोजन के अभाव में पुरानी  पत्तियां हरी बनी रहती है, जबकि गंधक की कमीं से नई पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा पुरानी पत्तियां हरी बनी रहती है.अधिक कमीं के कारण पूरा पौधा पीला पड़ जाता है। खाद्यान्न फसलों में गंधक की कमीं से परिपक्वता की अवधि बढ़ जाती है। पौधों की पत्तियों का रंग हरा रहते हुए भी बीच का भाग पीला हो जाता है। दलहनी और तिलहनी फसलों में गंधक की कमीं के लक्षण अधिक उभरते है।सरसों वर्गीय फसलों में गंधक की कमीं के कारण फसल प्रारंभिक अवस्था में पट्टी का निचला भाग बैंगनी रंग का हो जाता है।

गधंक के प्रमुख स्रोत एवं उपयोग 

उर्वरक का नाम

उपलब्ध पोषक तत्व की प्रतिशत मात्र

सिंगल सुपर फॉस्फेट

फॉस्फोरस-16, सल्फर-12 एवं कैल्शियम-21 %

जिप्सम

23% कैल्शियम, 18 % सल्फर

जिंक सल्फेट

जिंक 12% एवं सल्फर 11-18 %

फेरस सल्फेट

आयरन-19 % एवं सल्फर-12%

पोटैशियम सल्फेट

पोटाश-50% एवं सल्फर-18 %

अमोनियम सल्फेट

नत्रजन 21 % तथा  सल्फर 24  %

पायराईट

22-24 % सल्फर, 20-22 % आयरन,

विभिन्न फसलों में गधंक की मात्रा

फसल का नाम

मात्रा किग्रा प्रति हेक्टेयर

दलहनी फासले (चना, मटर,मसूर)

15-20

तिलहनी फसलें (मूंगफली, टिल, सरसों,अलसी आदि)

25-30

प्याज, लहसुन, आलू आदि

30-40

टमाटर व अन्य सब्जियों में

15-20

फसलों में गंधक के उपयोग का समय इसके स्त्रोत पर निर्भर करता है। जब गंधक उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाये तो सभी फसलों के लिए उसे खेत की अंतिम जुटी के समय इस्तेमाल करना चाहिए। गंधक युक्त उर्वरकों को बारीक पाउडर के रूप में खेत में फसल बुवाई के 20-25 दिन पहले मिला देना अधिक अच्छा होता है। मूंगफली में फली बनते समय, गंधक की पर्याप्त आपूर्ति के लिए गंधक को दो भागों में (बुवाई व फली बनते समय) बराबर मात्रा में बांटकर देना लाभदायक होता है। यदि किसान भाई अमोनियम सल्फेट, सिंगल सुपर फॉस्फेट, पोटैशियम सल्फेट जैसे उर्वरकों का प्रयोग करते है तो अलग से सल्फर युक्त उर्वरक देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

हरित क्रांति के बाद अधिक उत्पादन और मुनाफा कमाने के उद्देश्य से  खेतो में बेतहासा व असंतुलित रसायनिक खाद को डाल कर भूमि की उर्वरा शक्ति को नुक़सान पहुँचाया है सघन कृषि में अधिकांश किसान यूरिया, डी. ए. पी. जैसे उर्वरको का अधिक इस्तेमाल करते आ रहे है जिससे गंधक, कैल्शियम सहित अनेक सूक्ष्म तत्वों की भूमि में कमीं परिलक्षित होने लगी है इससे फसलोत्पादन और फसल उत्पाद की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है अतः मृदा उर्वरता को बरकरार रखने के लिए आवश्यक है कि किसान खेतों की मिट्टी परीक्षण कराने के उपरान्त पोषक तत्वों की सही एवं संतुलित मात्रा का उपयोग करें फसलोत्पादन के लिए आवश्यक नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के साथ-साथ सल्फर तत्व का भी उपयोग करे दलहनी, तिलहनी फसलों से अधिकतम  उत्पादन के साथ साथ में प्रोटीन एवं वसा की मात्रा बढाने के लिए उर्वरकों में गंधक का उपयोग आवश्यक है

















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