Powered By Blogger

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

एक पेड़ दो मसाले-जायफल एवं जावित्री: स्वाद और सेहत के लिए प्रसिद्ध

 डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर, प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)

इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, कृषि महाविद्यालय,  कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

जायफल को संस्कृत में मालतीफल, अंग्रेजी में Nutmeg तथा वनस्पति विज्ञान में मिरिस्टिका फ्रेग्रेंस Myristica fragrans के नाम से जाना जाता है, जो Myristicaceae परिवार का वृक्ष है. इसका वृक्ष सदाबहार और 15-20 मीटर ऊंचा होता है. इसके फूल  छोटे-छोटे, सुगंधित और पीले-सफेद रंग के होते हैं। इसका फल छोटा, गोल या अण्डाकार हल्के लाल या पीले रंग का  गूदेदार होता है। फल पकने पर दो खण्डों में फट जाता है, जिसके अन्दर लाल सिंदूरी रंग की जावित्री (बीज के ऊपर मांसल कवच) दिखाई देती है। फल  सूखने पर जावित्री अलग हो जाती है। इसी जावित्री (Mace)के अन्दर एक गुठली होती है जिसे जायफल कहते है।



जायफल  अण्डाकार, गोल और बाहर से शमायला रंग का सिकुड़ा हुआ, और तीव्र गन्धयुक्त होता है। सर्दी- जुकाम से निजात देने में भी जावित्री काफी मदद करती है. इसमें एंटी-माइक्रोबियल (जीवाणुरोधी), एंटी-इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाले), एंटी-कैंसर और एंटीडायबिटिक गुण पाए जाते हैं।  इसे तंत्रिका तंत्र और लिवर  के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर मानी जाती है. जायफल के बीज से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र और औषधी बनाने में किया जाता है। इसे  दस्त, मतली, पेट रोग और दर्द,  कैंसर, गठिया, गुर्दे की बीमारी और अनिद्रा के उपचार में कारगर माना जाता है। इस तेल का उपयोग माँसपेशियों के दर्द से राहत देने के लिए भी किया जाता है। जायफल की जेम, जेली, वाइन, कैंडी एवं अचार बनाया जाता है.

कोई टिप्पणी नहीं: