डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
भारत में अब पारंपरिक खेती घाटे का सौदा होती जा रही है। इसलिए किसानों का रुझान धीरे
धीरे गैर पारंपरिक खेती की तरफ बढ़ रहा है। इससे देश में फसल विविधिकरण को भी बढ़ावा मिल रहा है। दूसरी तरफ देश में पौष्टिक खद्यान्न के अभाव की वजह से वच्चों और नव युवकों में कुपोषण की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। दक्षिण अमेरिका से चलकर भारत पहुंची चिया (साल्विया हिस्पानिका एल.) ने अपने पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण विश्व समुदाय में सुपर फ़ूड के रूप में अलग पहंचान बना ली है।अंतराष्ट्रीय और भारतीय बाजार में इस सर्व गुण संपन्न फसल की मांग बढ़ने की वजह से इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। भारत के किसानों के मध्य इसकी खेती को विस्तारित
करने में सेंट्रल फ़ूड टेक्नोलॉजिकल रिसर्च
इंस्टिट्यूट, मैसूर के वैज्ञानिको की महती भूमिका है।
क्या है चिया बीज?
चिया (साल्विया हिस्पनिका एल.) को मेक्सिकन चिया तथा सल्बा के नाम से भी जाना जाता है। चिया लेमियेसी यानि पौदीना परिवार का एक वर्षीय पौधा है। खाद्य के रूप में चिया का उपयोग 3500 बी.सी. में किया जाता था परन्तु मध्य मेक्सिको में 1500 बीसी और 900 बीसी के दरम्यान फसल के रूप में चिया को महत्व मिला है। आजकल चिया फसल की खेती मेक्सिको, बोलविया, अर्जेंटीना, इकुआडोर और ग्वाटेमाला में प्रचलित है। भारत में कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी चिया की खेती प्रारम्भ हुई है। इसका पौधा 70-100 सेमि. की ऊंचाई तक बढ़ता है। पौधों में बैंगनी-सफ़ेद रंग के फूल लगते है। फसल जब यौवन अवस्था में होती है तो खेत में हरे और बैंगनी रंग की निराली छटा देखने को मिलती है। इसके बीज छोटे (0.8-1.0 मिमी मोटे) काले व सफ़ेद रंग के होते है। काले बीजों की अपेक्षा सफ़ेद बीज में तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है।
चिया बीज में छुपा है पौष्टिकता का खजाना
चिया बीज देखने में बहुत छोटे होते है परंतु स्वास्थ्य और पौष्टिकता का पूरा खजाना इनमें समाहित है। इसके बीज में 30-35 % उच्च गुणवत्ता वाला तेल पाया जाता है जो की ओमेगा-3 और
ओमेगा-6 फेटी एसिड का बेहतरीन (60 % से अधिक) स्त्रोत है . यह तेल सामान्य स्वास्थ्य
और ह्रदय के लिए अति उत्तम पाया गया है . यही नहीं इसके बीज में अधिक मात्रा में प्रोटीन
(20-22 %), खाने योग्य रेशा (लगभग 40%)
तथा एंटी ओक्सिडेंट, खनिज लवण (कैल्शियम,फॉस्फोरस,पोटैशियम) और विटामिन्स (नियासिन,राइबोफ्लेविन
और थायमिन) विद्यमान होते है। चिया में नियासिन विटामिन की मात्रा मक्का, सोयाबीन
और चावल से अधिक होती है। चिया बीज में दूध की तुलना में छह गुना अधिक कैल्शियम, ग्यारह गुना अधिक फॉस्फोरस एंड चार गुना अधिक पोटैशियम पाया गया
है। चिया बीज में अपने वजन से 12 गुना से
अधिक मात्रा में पानी सोखने की क्षमता
होती है जिससे इसे खाद्य उद्योग के लिए
अधिक उपयोगी माना जा रहा है। चिया बीज से बने आहार और व्यंजन शक्ति महत्वपूर्ण स्त्रोत माने जाते है। बीज का इस्तेमाल खाद्यान्न (रोटी, दलिया या हल्वा) या बीज अंकुरित कर सलाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। दूध या छाछ के साथ इसका पाउडर मिलाकर पौष्टिक पेय के रूप में भी इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। चिया के हरे ताजे या सूखे पत्तों से निर्मित चाय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बताई जाती है।
चिया बीज का तुलनात्मक पोषक मान (प्रति 100 ग्रा.बीज)
बीज/दाने
|
चिया बीज
|
अलसी बीज
|
किन्वा बीज
|
सूर्यमुखी बीज
|
सरसों बीज
|
जई बीज
|
गुआर फली बीज
|
ऊर्जा (कि केल)
|
486
|
534
|
368
|
584
|
508
|
374
|
332
|
प्रोटीन (ग्रा.)
|
16.54
|
18.29
|
14.12
|
20.78
|
26.08
|
13.6
|
4.60
|
वसा (ग्रा.)
|
30.74
|
42.16
|
6.07
|
51.46
|
36.24
|
7.6
|
0.50
|
कार्बोहायड्रेट (ग्रा.)
|
42.12
|
28.88
|
64.16
|
20.0
|
28.09
|
66.27
|
77.3
|
नमीं (ग्रा.)
|
5.80
|
6.96
|
13.28
|
4.73
|
5.27
|
8.22
|
15
|
स्त्रोत-सुखनीत सूरी एवं साथी (2016)
इस प्रकार चिया के बीज में प्रोटीन और उच्च गुडवत्ता का वसा, महत्वपूर्ण विटामिन्स और खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। भोजन के साथ साथ चिया बीज के सेवन से भारत के नोनिहालों में तेजी से फ़ैल रही कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है। इसके अलावा सभी वर्ग के लोगो के स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन फायदेमंद रहता है।
2. चिया के बीजों में एंटी ऑक्सिडेंट्स पर्याप्त मात्रा में होते है, जो शरीर से फ्री रैडिकल्स को बाहर निकलने में मदद करता है, जिससे ह्रदय रोग और कैंसर रोग से बचा जा सकता है।
3. चिया के बीजों में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड पाया जाता है, जो ह्रदय रोग और कोलेस्ट्रॉल की समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होता है।
4. चिया के बीजों के नियमित सेवन करने से शरीर में सूजन की समस्या से निजात मिलती है।
5. चिया के बीज भूख शांत करने और बजन घटाने में कारगर साबित हो रहे है।
6. चिया के बीज का सेवन करने से शरीर में 18 % कैल्शियम की कमीं पूरी होती है जोकि दांत और हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में मददगार होती है।
7. शरीर की त्वचा को कांतिमय बनाने के लिए इसका नियमित सेवन अत्यंत लाभकारी बताया जा रहा है।
8. पाचन तंत्र को सुधारने और मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी खाद्य है।
चिया के ओषधीय गुण
1. चिया के बीज में प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन्स प्रचुर मात्रा में विद्यमान होती है जिसके कारण इसके सेवन से मांसपेशियां, मस्तिष्क कोशिकाएं और तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।2. चिया के बीजों में एंटी ऑक्सिडेंट्स पर्याप्त मात्रा में होते है, जो शरीर से फ्री रैडिकल्स को बाहर निकलने में मदद करता है, जिससे ह्रदय रोग और कैंसर रोग से बचा जा सकता है।
3. चिया के बीजों में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड पाया जाता है, जो ह्रदय रोग और कोलेस्ट्रॉल की समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होता है।
4. चिया के बीजों के नियमित सेवन करने से शरीर में सूजन की समस्या से निजात मिलती है।
5. चिया के बीज भूख शांत करने और बजन घटाने में कारगर साबित हो रहे है।
6. चिया के बीज का सेवन करने से शरीर में 18 % कैल्शियम की कमीं पूरी होती है जोकि दांत और हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में मददगार होती है।
7. शरीर की त्वचा को कांतिमय बनाने के लिए इसका नियमित सेवन अत्यंत लाभकारी बताया जा रहा है।
8. पाचन तंत्र को सुधारने और मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी खाद्य है।
कैसे करें चिया की सफल खेती
चिया की खेती सभी प्रकार की उपजाऊ और कम उर्वर भूमिओं में सफलता पूर्वक की जा सकती है। इस फसल से अधिकतम उपज और लाभ लेने की लिए अग्र प्रस्तुत वैज्ञानिक तरीके से खेती करना चाहिए।सही समय पर करें बुआई
प्रकाश सवेंदी फसल होने के कारण ग्रीष्म ऋतू में चिया के पौधों में पुष्पन और बीज निर्माण बहुत कम होता है। पौधो
की बेहतर बढ़वार और अधिक उपज के लिए चिया फसल की बुआई वर्षा ऋतु-खरीफ में जून-जुलाई
के पश्चात और शरद ऋतू-रबी में अक्टूबर-नवम्बर में करना श्रेष्ठतम पाया गया है।
तैयार करें पौधशाला
अच्छी प्रकार से तैयार खेत में वांक्षित आकर की उठी हुई क्यारी बना लें। चिया के बीज आकर में छोटे होते है अतः क्यारी की
मिट्टी भुरभरी और समतल कर लेना चाहिए। चिया के 100 ग्राम बीज को इतनी ही मात्रा
में रेत या राख के साथ मिलकर तैयार क्यारी में एकसार बोने के उपरांत बारीक़ वर्मी-कम्पोस्ट
या मिट्टी से ढक कर हल्की सिचाई करना चाहिए। क्यारी में नियमित रूप से झारे की
मदद से हल्की सिचाई करते रही जिससे क्यारी की मिट्टी नम बनी रहें।
मुख्य खेत की तैयारी और पौधरोपण
पौध रोपण हेतु खेत की भली भांति साफ़ सफाई करने के पश्चात जुताई कर भुरभुरा और
समतल कर लेना चाहिए. खेत की अंतिम जुताई के समय 4-5 टन अच्छी प्रकार से सड़ी हुई
गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट के साथ ही 100 किग्रा. सिंगल सुपर फॉस्फेट और 16
किग्रा. मिउरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ की दर से एकसार खेत में फैलाकर मिट्टी में
अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए। अब खेत में 60 सेमी. की दूरी पर कतारें बनाकर पौध
से पौध 30 सेमी. का फांसला रखते हुए पौधे रोपना चाहिए . शीत ऋतू-रबी में कतार से
कतार 45 सेमी और पौधे से पौधे के मध्य 30 सेमी की दूरी रखना उचित पाया गया है
क्योंकि ठण्ड के मौसम में पौध बढ़वार कम होती है। पौध रोपण के तुरंत बाद खेत में
हल्की सिचाई करना अनिवार्य होता है ताकि पौधे सुगमता से स्थापित हो सकें। पौध स्थापित होने के पश्चात 50 किग्रा प्रति एकड़
की दर से यूरिया खाद कतारों में देना चाहिए। भूमि में नमीं के स्तर और मौसम के अनुसार 8-10 दिन के अन्तराल पर हल्की सिचाई
करते रहे।
निंदाई-गुड़ाई
फसल को खरपतवार प्रकोप से बचाने के लिए खेत में 2-3 बार हैण्ड हो या कुदाली से
निराई-गुड़ाई करना चाहिए। खेत में खाली स्थानों में पौध रोपण का कार्य भी रोपण के
10-15 दिन के अन्दर संपन्न कर लेना चाहिए।
फसल कटाई
फसल तैयार होने में 90 से 120 दिन लगते हैं। पौध रोपण के 40-50 दिन
के अन्दर फसल में पुष्पन प्रारंभ हो जाता है . पुष्पन के 25-30 दिन में बीज पककर
तैयार हो जाते है। फसल पकते समय पौधे और
बालिया पीली पड़ने लगती है। पकने पर फसल की कटाई-गहाई कर दानों की साफ़-सफाई कर
उन्हें सुखाकर बाजार में बेच दिया जाता है अथवा बेहतर बाजार भाव की प्रत्याशा में
उपज को भंडारित कर लिया जाता है।
फसल उपज और लाभ
मौसम और शस्य प्रबंधन के आधार पर चिया फसल से प्रति एकड़ 350-400 किग्रा. दाना उपज प्राप्त हो जाती है। चिया की खेती करने में 8 -9 हज़ार रुपये प्रति एकड़ का ख़र्चा संभावित है।नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो लेखक और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।