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शुक्रवार, 19 मई 2017

उद्यानिकी:माघ-फाल्गुन (फरवरी) माह में बागवानी के प्रमुख कार्य


डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए। भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है ।  इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   
शिशिर ऋतु फरवरी यानी माघ-फाल्गुन माह में भी वातावरण ठंडा होता है परन्तु जनवरी माह की तुलना में तापक्रम अधिक होता है। गर्मी का थोड़ा आभास होने लगता है। वायुगति बढ़ जाती है और सापेक्ष आद्रता बीते माह की अपेक्षा कम हो जाती है। माह के  दूसरे पखवाड़े से मौसम सुहाना होने लगता है। औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.8 एवं 12.5 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 6 किमी प्रति घंटा होती है। बसंत पंचमी का त्योहार भी इसी माह पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं । चारों  तरफ पीले फूलों  की बसंती छटा मन को प्रफुल्लित कर देते है।  माघ-फाल्गुन यानि फरवरी  माह के दौरान उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत है। 

सब्जियों में इस माह

v आलूः आलू में पछेती अंगमारी रोग आने पर मेटालेक्जिल (1.5 ग्राम) या सायमाक्सीनील (2 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल  बनाकर छिड़काव करें। आलू की खुदाई से 10-15 दिन पहले पौधों  का ऊपरी हिस्सा (तना व पत्तियाँ) काट दें। खुदाई पश्चात मध्यम आकार एवं बिना कटे आलूओं को बोरों में भरकर शीतभण्डार में भेजने की व्यवस्था करें।
v टमाटरः यदि ग्रीष्मकालीन टमाटर की रोपाई नहीं की है तो  तैयार क्यारियों  में शीघ्र ही 60 कतार से कतार तथा 45 सेमी. पौध  से पौध  की दूरी पर  रोपाई संपन्न करें । रोपाई से पूर्व खेत में 100 किग्रा. नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर से डालें। रोपाई सायंकाल में की जाये एवं रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें। जनवरी माह में रोपी गई फसल में 50 किग्रा. यूरिया/हे. की दर से जमीन में निराई-गुड़ाई करते समय मिलायें।
v बैंगनः बैगन रोपाई के लिये यह उत्तम समय है। भूमि की तैयारी के समय 200-300 कुन्तल गोबर की खाद या कम्पोस्ट भूमि में मिला देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त 100 किग्रा. नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस  तथा 80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर दर से देवें । रोपाई कतारों  में 60 सेमी. की दूरी पर पौधों के  मध्य 45 सेमी. का फासल रखते हुए करें । रोपाई सांयकाल के समय की जाये तथा रोपाई के तुरन्त बाद तुरन्त हल्की सिंचाई करें।
v मटरः कीट एवं रोगग्रस्त फलियों को बाजार भेजने से पूर्व छांट दें। बीज वाली फसल से आवांछित पौधों को निकालें तथा चूर्णी फंफूदी नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.06 प्रतिशत कैराथेन नामक दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें। पकी फसल की अविलम्ब कटाई करें।
v फूलगोभी व पत्ता गोभी: फूलगोभी जब उचित आकार की हो जाये। तब उसकी कटाई करें। बीज वाली फसल में हल्की सी सिंचाई करें। पातगोभी के  अवांछित पौधों को निकालें तथा माहू के बचाव के लिये 0.15 प्रतिशत मैटासिस्टाक्स नामक दवा का छिड़काव करें।
v प्याज, लहसुन, हल्दी एवं अदरकः इन फसलों  में आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई व गुड़ाई करें व 50 किग्रा. यूरिया की खड़ी मात्रा फसल में डालें। यदि अभी तक रोपाई नहीं की है तो अविलम्ब खेत की तैयारी करें व 20 x 10 सेमी. की दूरी पर रोपाई करें। रोपाई सांयकाल में करें व तुरन्त बाद सिंचाई करें।फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई गुड़ाई करें व पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं होने पर  50 किग्रा. यूरिया खड़ी फसल की कतारों में देवें । हल्दी एवं अदरक की खुदाई करें ।
v पालक, मैंथी व धनियाँ: इन हरी सब्जियों की कटाई करें व तुरन्त गड्डिया बांधकर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। खरपतवारों  को निकालें, सिंचाई व निराई करें।
v भिण्डी एवं बरबटी: इस माह के पहले पखवाड़े में इन सब्जियों  की बोआई करें । पूसा सावनी, पूसा मखमली, परभनी क्रान्ति, अर्का अभय व अर्का अनामिका भिणडी की तथा पूसा सुकोमल, पूसा दो  फसली, पूसा फाल्गुनी, काशी व श् यामल बरबटी की उन्नत किस्में है । भिण्डी का 20 किलोग्राम एवं  बरबटी का 20-25 किग्रा. बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है। एक ग्राम कार्बन्डेजिम व 3 ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार कर बुवाई करें । भिण्डी को  कतारों  में 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे 12-15 सेमी. की दूरी पर बुवाई करें । बरबटी को  कतारों  में 50 सेमी. की दूरी पर लगाएं तथा पौध  से पौध  25 सेमी. का अन्तर रखें। भिण्डी में बुवाई के समय गोबर की खाद 120 से 200 क्विंटल क¢ अलावा 50 किलो नत्रजन, 40 किलो फॉस्फोरस तथा 30 किलो पोटाश बुवाई के पूर्व प्रति हैक्टेयर की दर से देवें। बरबटी में नत्रजन की मात्रा 25-30 किग्रा. प्रति हैक्टेयर तथा स्फुर व पोटाश भिण्डी की भांति देवें। सिंचाई, निराई गुड़ाई आवश्यकतानुसार करें।
v शिमला मिर्चः जनवरी माह में रोपित फसल में निराई-गुड़ाई करें व 50 किग्रा. यूरिया खड़़ी फसल में डालें। कीट तथा बीमारियों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इण्डोफिल-45 तथा 0.2 प्रतिशत थायोडान नामक दवा का एक छिड़काव अवश्य करें।
v बेल बाली सब्जियाँ : कद्दू, खीरा, तोरई, करेला की बुवाई करें । कद्दू की पूसा अलंकार, पूसा विश्वास, पूसा विकास, पूसा हाइब्रिड-1, लौकी की पूसा नवीन,पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी, पूसा संदेश, काशी गंगा, काशी बहार, नरेन्द्र संकर लौकी-4, तरोई की पूसा चिकनी, पूसा नसदार, पंजाब सदाबहार, पूसा स्नेह, पूसा सुप्रिया तथा करेला की पूसा विशेष, अर्का हरित,कलणपुर, बारामासी, पूसा हाइब्रिड-1,पूसा दो मौसमी उन्नत किस्में है।
v प्रति हैक्टेयर कद्दू का 5-6 किग्रा.,खीरा का 1 किग्रा.,तोरई का 4-5 किग्रा. लौकी का 3-5 किग्रा. एवं करेला का 4-5 किग्रा. बीज लगता है। कतार से कतार एवं पौध  से पौध  की दूरी कद्दू के  लिए 2.5 मीटर व 60 सेमी., खीरा के  लिए 1.5 मीटर व 90 सेमी., तोरई के  लिए 1.5 मीटर व 50 सेमी.,लौकी  के  लिए 2.5 मीटर व 60 सेमी. तथा करेला के  लिए 1.2 मीटर व 50 सेमी. रखना चाहिए। नालियाँ बनाकर इन फसलों की  नाली के ऊपर मेंड़ो के  किनारे लगाएं। बुवाई के  समय 10 टन गोबर  की खाद, 1 बोरा  यूरिया, 1.5 बोरा  सिंगल सुपर फॉस्फेट  तथा आधा बोरा  म्युरेट ऑफ़ पोटाश  मिट्टी में मिलाएं। बेल बाली सब्जियां  होने के कारण इन्हे बांस या लकड़ी के सहारे ऊपर चढ़ाने से उपज अधिक प्राप्त होती है और गुणवत्ता अच्छी होने के कारण  बाजार दर भी अच्छी प्राप्त होती है।
फलोत्पादन में इस माह
v आम, लीची, किन्नो,संतरा व नींबू आदि फल वृक्षों  में फूल एवं फल लगना प्रारंभ ह¨ जाता है। इन पौधों  के  थालों  की गुड़ाई कर खाद-उर्वरक डालें तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।
v आम फसल में मिलीबग कीट से बचाव हेतु पेड़ में जमीन से लगभग एक फीट ऊपर ग्रीस बैंड लगाएँ तथा पेड़ के  नीचे जमीन की जुताई कर क्लोरपायरीफ़ॉस  1.5 प्रतिशत चूर्ण का भुरकाव करें। फुदका कीट प्रकोप  होने  पर मिथाइल डिमेटान 25 मिली. या डायमिथोएट 30 ईसी 2 मिली. या इमिडाक्लोप्रिड 0.4 मिली. प्रति लीटर पानी में घोललकर छिड़काव करें। शाम के  समय आम के  बगीचे में सूखा कचरा जलाकर उसमें गंधक चूर्ण डालकर पौधों के  पास धूम्रण करें।
v इस माह तरबूज एवं खरबूज की फसलें लगाई जा सकती है। तरबूज 3 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से 75-90 सेमी. की दूरी पर बनी मेंड़ों  पर बोयें  तथा बीज से बीज 60 सेमी. की दरी रखें। बुवाई से पहले बीज को 1 ग्राम बविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलें  तथा 10-15 घंटे तक भिंगोने के  पश्चात अंकुरित कर लें । बुवाई के  पूर्व खेत में 10 टन जोबर की खाद, 2 बोरा यूरिया, 2 बोरा  सिंगल सुपर फॉस्फेट और  1 बोरा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश  मिट्टी में मिलाएं। खरबूज को 60-75 सेमी. की दूरी पर मेंड़ों  पर लगाएं ।
फल-सब्जी संरक्षण कार्य 
v इस माह आलू, फूलगोभी, मटर गाजर आदि सब्जियों के विभिन्न प्रकार के अचार, मोटी लाल मिर्च का भरवा अचार, आलू के चिप्स तथा पापड़ बनाये जा सकते है। गाजर व आंवले का मुरब्बा तथा कैण्ड़ी टमाटर का कैचप तथा अन्य उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इसके अलावा जाड़े वाली सब्जियों को सुखाकर सुरक्षित किया जा सकता है।
v पुष्पोत्पादन में इस माह
v गुलाब के सूखे फूलों व अनावश्यक अंकुरों को तोड़ना, नये पौधे लगाना तथा बंडिग का कार्य। नियमित निराई-सिंचाई करते रहें तथा माहूं के रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। गलैडियोलस की मुरझाई हुई टहनियों को निकालें। स्पाइक के नीचे के फूल थोड़ा खिलने के बाद डण्ठल को काटकर बाजार भेजें।
v रजनीगन्धा के बल्बों के रोपण से 10-15 दिन क्यारियों में 10 किग्रा गोबर की खाद प्रतिवर्गमीटर तथा सिंगल सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट आफ पोटाश प्रत्येक 80-100 ग्राम प्रतिवर्गमीटर की दर से बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें ।

सम-सामयिक कृषिः माघ-फ़ाल्गुन (फरवरी) माह की कृषि कार्य योजना


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर, रायपुर (छत्तीसगढ़)

         कृषि और किसानों  के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। 
          शिशिर ऋतु फरवरी यानी माघ-फाल्गुन माह में भी वातावरण ठंडा होता है परन्तु जनवरी माह की तुलना में तापक्रम अधिक होता है। गर्मी का थोड़ा आभास होने लगता है। वायुगति बढ़ जाती है और सापेक्ष आद्रता बीते माह की अपेक्षा कम हो जाती है। माह के  दूसरे पखवाड़े से मौसम सुहाना होने लगता है। औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.8 एवं 12.5 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 6 किमी प्रति घंटा होती है। बसंत पंचमी का त्योहार भी इसी माह हर्षोल्लास से मनाते हैं । चारों  तरफ पीले फूलों  की छटा मन को प्रफुल्लित कर देते है। प्रस्तुत है माह  माघ-फाल्गुन यानि फरवरी  माह के  सम-सामयिक कृषि कार्य :
इस माह के  मूलमंत्र
  • चूर्णी फंफूदी रोग: इस माह बहुत सी रबी फसलों  में चूर्णी फंफूदी रोग  का प्रकोप होने  की संभावना रहती  है जिसके  कारण पत्तियों  पर भूरा-सफेद  चूर्ण नजर आता है। रोग  की रोकथाम के  लिए 1 किग्रा. घुलनशील गंधक (सल्फर) का फसल पर छिड़काव करें।
  • कीट सुरक्षाः इस माह चेंपा व तेला कीट अनेक फसलों  की पत्तियों, पुष्पों, फलों  व बालियों  से रस चूसते है जिससे उपज एवं उसकी गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन कीटों  का अधिक प्रकोप होने  पर 400 मिली. मैलाथियान 50 ईसी दवा  250 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें। ग्रीष्मकालीन फसलों  की बुवाई के  पूर्व दीमक से सुरक्षा हेतु भूमि का उपचार क्लोरपायरीफ़ॉस  1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से करें। 
माघ-फाल्गुन माह में फसलोत्पादन में  संपन्न किये जाने वाले  प्रमुख कृषि कार्यों  का विवरण विषयवार प्रस्तुत है।
  • गेहूँ एवं जौ: समय से बोई गई गेंहू  की फसल अब पुष्पावस्था में आ रही है। इस समय खेत में सिंचाई अवश्य करें। देर से बोये  गये गेंहूं में किरीट जड.अवस्था, कंशे तथा तना गांठ बनने की अवस्था पर सिंचाई करें। दिसम्बर के द्वितीय पखवाड़े में बोई गई फसल में चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई के 40-45 दिन बाद 2,4-डी. 80 प्रतिशत शुद्धता वाली दवाई की 625 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। जंगली जई व गुली डंडा (गेहूँ-सा खरपतवार) पहचानने  योग्य हो जाने पर खड़ी फसल से  इन्हें उखाड़ कर पशुओं को चारे के रूप में खिलाएँ। गेंहू फसल में गेरूआ रोग के लक्षण दिखने पर जिनेब (3 ग्राम) या ट्राइएडीमीफान  50 मिग्री. प्रति 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें । अगर माहू का प्रकोप हो तो मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. का 1.0 लीटर दवा  800-1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। जौ में फूल आते समय व दाने की दूधिया अवस्था पर नमी की कमी नहीं होनी चाहिये।
  • राई-सरसों : इन फसलों में चूर्णी फंफूदी या भभूतिया रोग का प्रकोप होने पर सल्फेक्स (3 ग्राम प्रति लीटर) या डिनोकेप  (1 मिली.) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी में घोल  बनाकर् छिड़काव करना चाहिए। राई-सरसों की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फूल आने व दाना भरने की अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें। असिंचित क्षेत्रों  में राई-सरसों  की फसल की कटाई समय पर करें। खलिहान में पेन्टेड बग से बचाव हेतु जमीन पर 2 प्रतिशत पेराथियान पाउडर का भुरकाव करें।
  • दलहनी फसलें: चना में आवश्यकता हो तो फल(घेंटियां) आने से पूर्व ही सिंचाई करें । फूल आते समय सिंचाई नहीं करना चाहिए अन्यथा फूल झड़ने से हानि होती है। चना, मटर एवं मसूर में फलीछेदक, कीट की सूड़ियों के नियंत्रण हेतु उन्हें हाथ से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए। चिड़ियों द्वारा इस कीट के नियंत्रण हेतु चिड़ियों के बैठने के लिए 4-5 फीट के बांस के टुकड़ों पर लकड़ियां बांध कर खेत में कई स्थानों में गाड़ना चाहिए। चने में फलीछेदक एवं सेमीलूपर कीट  की संख्या बढ़ने लगे तो इनके नियंत्रण हेतु जैसे ही फली बनना शुरू हो, फेनवेलरेट 20 ई.सी. का 500 मिली. दवा  800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़कें अथवा मिथाइल पॅराथियान 2 प्रतिशत धूल की 25 कि०ग्रा० मात्रा का बुरकाव करें। असिंचित क्षेत्रों में चने की कटाई फरवरी के अन्त में होने लग जाती है। 
  • सिंचित क्षेत्रों  में चने की अगेती किस्में कटाई के  लिए तैयार हो सकती हैं। देरी से बोई गई मटर व मसूर की फसल में फली आनें पर सिंचाई करें। इनकी अगेती किस्में पकने की अवस्था में होगी, अतः समय पर कटाई करें।
  • गन्ना: बसंतकालीन गन्ने की बुवाई करें । बुवाई हेतु उन्नतशील नवीनतम प्रजतियों का चुनाव करें। बीज प्रमाणित पौधशाला से या निरोगी नौलख फसल से लेना चाहिए। प्रति हैक्टेयर तीन आँख वाले 23000 हजार और दो  आँख वाले 35000 बीजू टुकड़ों  (लगभग 35-40 क्विंटल) की बुवाई हेतु आवश्यकता होती है। बीज हेतु गन्ने का ऊपरी  दो तिहाई हिस्सा प्रयोग  करने से अंकुरण अच्छा होता है। बुवाई से पूर्व गन्ने के टुकड़ों को  पारायुक्त फंफूदीनाशक रसायन से उपचारित करें तथा लाल सड़न रोगग्रस्त इलाकों में गन्ने की बुवाई, गर्म हवा से बीज उपचारित कराकर ही करनी चाहिए। बुवाई 75 सेमी. दूरी पर बने कूड़ों में करनी चाहिए। अच्छी उपज के लिए गन्ना के बसंतकालीन फसल में 120-150 किलोग्राम नत्रजन,50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 30-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नत्रजन को  तीन समान समान किस्तों  में देना लाभप्रद रहता है। दीमक और  जड़बेधक कीट से फसल की सुरक्षा हेतु टुकड़ों के  ऊपर 2.5 लीटर क्लोरपाइरीफ़ॉस  20 ईसी दवा को  600-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। शरद ऋतु में लगाये गये गन्ने में 25-30 दिन के  अन्तर से सिंचाई करते रहें तथा खेत खरपतवार मुक्त रखें।
  • गन्ना पेड़ीः अच्छी पेड़ी लेने हेतु गन्ने की नौलख फसल की कटाई फरवरी के मध्य से शुरू करें। गन्ना की कटाई जमीन से सटाकर करना चाहिए।
  • सूरजमुखीः सूरजमुखी की संकर या अधिक उपज देने वाली किस्में 90 से 110 दिन में पकती हैं। अक्टूबर-नवम्बर में बोई गई सूरजमुखी फसल पकने की स्थिति में होगी । देरी से बोई गई फसल में सिंचाई अवश्य करें। ग्रीष्मकालीन सूरजमुखी की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी का दूसरा पखवाड़ा है। बुवाई हेतु सूरजमुखी की उन्नतशील संकर किस्में जैसे के.बी.एस.एच-1, दिव्यामुखी, ज्वालामुखी आदि तथा संकुल किस्म मार्डन का चुनाव करें। संकुल किस्म का 12-15 किलोग्राम तथा संकर प्रजाति का 5-6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से 4-5 सेमी. की गहराई पर बुवाई कतारों  में करें। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी. रखें और बुवाई के 15-20 दिन बाद सिंचाई से पूर्व थिनिंग (विरलीकरण) द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 15 से.मी. कर देनी चाहिए। अच्छे अंकुरण हेतु बीज को 12 घंटे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घंटे सुखाकर बुवाई करें। बुवाई पूर्व कार्वेन्डाजिम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से से बीज का शोधन कर लेना चाहिए। बुवाई के समय 40 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग कतारों  में करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमैथेलिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर मात्रा का प्रति हैक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद अथवा जमाव से पहले बुवाई के 2-3 दिनों के अंदर छिड़काव करें।
  • मेंथा: फरवरी माह में बोयी जाने वाली फसलों में मैन्था एक नगदी सगंध फसल है। इसके  लिए उचित जलनिकास युक्त मध्यम से लेकर हल्की भारी भूमि उपयुक्त रहती है। बुवाई हेतु प्रति हैक्टेयर 400 से 500 किलोग्राम जड़े पर्याप्त होते हैं। जड़ों के 5 से 7 से.मी. लम्बे टुकड़े , जिसमें 3-4 गांठे हों, को काटकर 5-6 इंच की गहराई पर 45 से 60 सेमी. की दूरी पर बनी कतारों में बुवाई करें। बुवाई के समय 30 किलोग्राम नत्रजन, 75 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए। बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई अति आवश्यक है। अन्य सिंचाइयाँ आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए।
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सोमवार, 15 मई 2017

समसामयिक कृषि :भाद्रपद-अश्विन (सितम्बर) माह के प्रमुख कृषि कार्यक्रम

डॉ.गजेन्द्र सिंह
सस्य विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) 


किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुँचाया जाना जरुरी है । समय अविराम रूप से गतिमान है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय से होता रहता है। अतः कृषि के समस्त कार्य यानि बीज अंकुरण, पौधों की वृद्धि, पुष्पन और परिपक्वता समय पर ही संपन्न होती है। कृषि के कार्य समयवद्ध होते है अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने पर ही आशातीत सफलता की कामना की जा सकती है। "का वर्षा जब कृषि सुखाने" जैसी कहावते भी समय के महत्त्व को इंगित करती है।  जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयनसही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाईमृदा परीक्षण के आधार पर उचित समय पर पोषक तत्वों का इस्तेमालफसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाईपौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाईगहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
वर्षा-शरद ऋतु के  सितम्बर यानी भाद्रपद-अश्विन माह में गणेशोत्सव, ईद-उल-जुहा, नवाखाई तथा  पितृ मोक्ष अमावस्या जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाये जाते है ।  सितम्बर माह में वर्षा की सघनता कम होने लगती है जिसके  कारण वातावरण का तापक्रम कुछ बढ़ जाता है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 31 एवं 23 डिग्री सेन्टीग्रेड के  आस-पास होता है। वायु गति भी अमूमन  8.2 किमी प्रति घंटा होती है।  इस प्रकार जलवायु सम रहती है। भूमि जल से संतृप्त हो  जाती है। प्रकृति में चहु ओर हरियाली और  खुशहाली नजर आती है। खरीफ की विभिन्न फसलें फूल एवं फलन अवस्था में देखकर मन मष्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता हैं। 

सितम्बर माह के  तीन मंत्र

पहलाः नमीं संरक्षण- खेत व तालाब में वर्षा जल संरक्षण हेतु प्रभावी कदम उठाएं। खरीफ में ऐसे सभी उपाय अपनाएं जिससे खेत में अधिकतम नमीं बरकरार रहें ताकि बारानी (असिंचित) परिस्थिति में भी आगामी रबी फसलें सफलतापूर्वक ली जा सकें  ।
दूसराः विश्वसनीय स्त्रोत  से ही संस्तुत किस्मों  का प्रमाणित बीज क्रय करें. स्वयं का बीज इस्तेमाल करने पर  बुवाई पूर्व बीजोपचार अवश्य करें।
तीसराः खरीफ फसलों में कीट-रोग और खरपतवार प्रकोप की निगरानी रखें तथा आवश्यकतानुसार पौध सरंक्षण के उपाय करें। 
         खेती-किसानी से मन बांक्षित उत्पादन और आमदनी हासिल करने के लिहाज से यह महत्वपूर्ण महीना है। खरीफ की तमाम फसलें पुष्पावस्था और फलन अवस्था में आ जाती है।  ऐसे में फसलों में कीट, रोग और खरपतवार जैसी बियाधियाँ आक्रमण कर सकती है।  अतः किसान भाइयों को अपने खेत और फसलों की सतत निगरानी करते रहना चाहिए। फसलोत्पादन में इस माह की संभावित कृषि कार्य योजना अग्र-प्रस्तुत है।

v धानः धान के  खेत में करगा (जंगली धान) उन्मूलन का कार्य जारी रखें। मध्यम देर से पकने वाली जातियों में शेष 30 किग्रा. नत्रजन तथा शीघ्र पकने वाली किस्मों  में शेष 25 किग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर की दर से बालियां  निकलने से पहले टापड्रेसिंग के रूप में दें। धान में कन्से फूटने व दुग्धावस्था के  दरम्यान खेत में 5-7 सेमी. पानी का स्तर बनाये रखें। धान सघनीकरण पद्धति से लगाये गये धान खेत में पर्याप्त नमीं बनाये रखें तथा नमीं  की कमीं होने  पर सिंचाई करें।
v धान फसल  में भूरा माहू  प्रकोपित स्थानों पर फोरेट दवा का प्रयोग  न करें । कीट प्रकोप  की तीव्रता होने  पर इमिडाक्लोरप्रिड 125 मिली. या इथीप्रोल और  इमिडाक्लोप्रिड 150 मिली. दवा का इस्तेमाल करें ।
v धान फसल  में झुलसा रोग के  लक्षण (पत्तीओं में  नाव आकार के  धब्बे के रूप  में) नजर आने पर ट्राइसाइक्लोजोल  (0.6 ग्रा. प्रति लीटर पानी) या आइसोप्रोथियोंलिन (1 मिली. प्रति लीटर पानी) या टेबुकोनाजोल (1.5 मिली. प्रति लीटर पानी) नामक फंफूदनाशक दवा का छिड़काव दोपहर बाद करें।
v धान फसल में  जीवाणु जनित झुलसा रोग के  लक्षण दिखने पर  (सिचाई उपलब्ध होने पर) खेत से जल निकासी कर 3-4 दिन तक  खुला रखने के उपरान्त उसमे  25 किग्रा. प्रति हेक्टर की दर से पोटाश उर्वरक का भुरकाव करें।
v मक्काः फसल की क्रांतिक अवस्था यथा सिल्किंग से दाना विकास की अवस्था तक खेत में पर्याप्त नमीं आवश्यक है। अतः अवर्षा की स्थिति में आवश्यकतानुसार सिंचाई की व्यवस्था करें । मक्का  की संकर प्रजातिओं  में 25-30 किग्रा. नत्रजन नर मंजरी बनते समय देवें । कीट (तना छेदक आदि) नियंत्रण हेतु कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 1.5 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। तुलासिता एवं पत्तियों का झुलसा रोग नियंत्रण के लिये जिंक मैगनींज कार्बामेंट की 2.5 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घेालकर छिड़काव करें। हरे भुट्टे के  लिए लगाई गई मक्का से  मुलायम दानों वाले भुट्टों को तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
v अरहरः फसल को पत्ती लपेटक एवं फलीबेधक कीट नुकसान पहुँचा सकते हैं। इन कीटों की रोकथाम के लिये क्विनालफ़ॉस  25 ई.सी. की 1000 मिली. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। सफ़ेद  मक्खी की रोकथाम के  लिए मिथाइल डेमेटोन   25 ई.सी. 625 मिली. प्रति हैक्टेयर का छिड़काव करें। उकठा रोग की रोकथाम के लिये बैनोमिल और  थीरम (1:1) 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें तथा फसल चक्र अपनाएं।बांझ रोग  से बचाव के  लिए कैलथैन 2 मिली. दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
v सोयाबीनः इस फसल में गर्डिल बीटिल व फलीछेदक कीटों की रोकथाम के लिये कार्बारिल 50 प्रतिशत धूल चूर्ण 2.0 किग्रा. या क्लोरोपायरीफ़ॉस  20 ई.सी. 1.5 लीटर दवा को आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर पुनः छिड़काव करें। सूखा होने की स्थिति में फूल आने से फली बनते समय एक सिंचाई की आवश्यकता होती है। ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में जल निकास की उचित व्यवस्था आवश्यक है।
v मूँगफलीः फसल में फूल बनने एवं नस्सों (खूटियों) के भूमि में प्रवेश तथा फलियों के विकास के समय भूमि में पर्याप्त नमी आवश्यक है। नमी के अभाव में सिंचाई का प्रबन्ध करें । दीमक नियंत्रण के लिये 4.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से क्लोरोपायरीफ़ॉस  का प्रयोग करें। बड निक्रोसिस रोग नियंत्रण के लिये फोसस्फेमिडान 85 प्रतिशत की 250 मि.ली. दवा प्रति हैक्टेयर को आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करें। टिक्का रोग नियंत्रण के लिये जिंक मैंगनीज कार्बामेट की 2.0 किग्रा. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
v उर्द व मूंगः यदि बुवाई अगस्त माह में देर से की गई हो तो ऐसी दशा में बुवाई के 20-25 दिन के अन्दर प्रथम निराई तथा आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद करनी दूसरी निराई करना चाहिए। विषाणु रोग को फैलाने वाले कीड़े की रोकथाम के लिये डायमेथ¨एट 30 ई.सी. 625 मिली. प्रति हेक्टेयर के  हिसाब से आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v गन्नाः वर्षा न होने पर गन्ने की फसल में  सिंचाई की व्यवस्था करें। गन्ने की बढवार क¢ अनुसार यदि आवश्यक हो तो  इस महिने गन्ने के पौधों की अन्तिम त्रिकोणात्मक बंधाई करें । इसमें एक पंक्ति को दो  थान तथा दूसरी पंक्ति को  एक थान को  एक साथ बांधा जाता है । शरदकालीन गन्ना के खेत की तैयारी करें। रोग ग्रसित पौधों को  सावधानीपूर्वक उखाड़कर नष्ट कर दें। पॉली बैग विधि से गन्ने की बुवाई करने हेतु सितम्बर-अक्टूबर में पॉलीबैग पौध  विकसित करने हेतु नर्सरी तैयार करें ।
v तोरियाः तोरिया की बुवाई इस माह के पहले पखवाड़े में कर दें। बुवाई हेतु उन्नत किस्मो का 3-4 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें। बुवाई लाइनों में 30 से.मी. की दूरी पर करें। बीज की गहराई 3-4 सेमी. तक रखें। बुवाई के पूर्व बीज का शोधन 2.5 ग्राम थाइरम प्रति किग्रा बीज की दर से करें। संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें। 

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