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शुक्रवार, 19 मई 2017

सम-सामयिक कृषिः माघ-फ़ाल्गुन (फरवरी) माह की कृषि कार्य योजना


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर, रायपुर (छत्तीसगढ़)

         कृषि और किसानों  के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। 
          शिशिर ऋतु फरवरी यानी माघ-फाल्गुन माह में भी वातावरण ठंडा होता है परन्तु जनवरी माह की तुलना में तापक्रम अधिक होता है। गर्मी का थोड़ा आभास होने लगता है। वायुगति बढ़ जाती है और सापेक्ष आद्रता बीते माह की अपेक्षा कम हो जाती है। माह के  दूसरे पखवाड़े से मौसम सुहाना होने लगता है। औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.8 एवं 12.5 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति 6 किमी प्रति घंटा होती है। बसंत पंचमी का त्योहार भी इसी माह हर्षोल्लास से मनाते हैं । चारों  तरफ पीले फूलों  की छटा मन को प्रफुल्लित कर देते है। प्रस्तुत है माह  माघ-फाल्गुन यानि फरवरी  माह के  सम-सामयिक कृषि कार्य :
इस माह के  मूलमंत्र
  • चूर्णी फंफूदी रोग: इस माह बहुत सी रबी फसलों  में चूर्णी फंफूदी रोग  का प्रकोप होने  की संभावना रहती  है जिसके  कारण पत्तियों  पर भूरा-सफेद  चूर्ण नजर आता है। रोग  की रोकथाम के  लिए 1 किग्रा. घुलनशील गंधक (सल्फर) का फसल पर छिड़काव करें।
  • कीट सुरक्षाः इस माह चेंपा व तेला कीट अनेक फसलों  की पत्तियों, पुष्पों, फलों  व बालियों  से रस चूसते है जिससे उपज एवं उसकी गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन कीटों  का अधिक प्रकोप होने  पर 400 मिली. मैलाथियान 50 ईसी दवा  250 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित फसल पर छिड़काव करें। ग्रीष्मकालीन फसलों  की बुवाई के  पूर्व दीमक से सुरक्षा हेतु भूमि का उपचार क्लोरपायरीफ़ॉस  1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से करें। 
माघ-फाल्गुन माह में फसलोत्पादन में  संपन्न किये जाने वाले  प्रमुख कृषि कार्यों  का विवरण विषयवार प्रस्तुत है।
  • गेहूँ एवं जौ: समय से बोई गई गेंहू  की फसल अब पुष्पावस्था में आ रही है। इस समय खेत में सिंचाई अवश्य करें। देर से बोये  गये गेंहूं में किरीट जड.अवस्था, कंशे तथा तना गांठ बनने की अवस्था पर सिंचाई करें। दिसम्बर के द्वितीय पखवाड़े में बोई गई फसल में चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई के 40-45 दिन बाद 2,4-डी. 80 प्रतिशत शुद्धता वाली दवाई की 625 ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। जंगली जई व गुली डंडा (गेहूँ-सा खरपतवार) पहचानने  योग्य हो जाने पर खड़ी फसल से  इन्हें उखाड़ कर पशुओं को चारे के रूप में खिलाएँ। गेंहू फसल में गेरूआ रोग के लक्षण दिखने पर जिनेब (3 ग्राम) या ट्राइएडीमीफान  50 मिग्री. प्रति 10 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें । अगर माहू का प्रकोप हो तो मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. का 1.0 लीटर दवा  800-1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। जौ में फूल आते समय व दाने की दूधिया अवस्था पर नमी की कमी नहीं होनी चाहिये।
  • राई-सरसों : इन फसलों में चूर्णी फंफूदी या भभूतिया रोग का प्रकोप होने पर सल्फेक्स (3 ग्राम प्रति लीटर) या डिनोकेप  (1 मिली.) एवं कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) दवा का प्रति लीटर पानी में घोल  बनाकर् छिड़काव करना चाहिए। राई-सरसों की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फूल आने व दाना भरने की अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करें। असिंचित क्षेत्रों  में राई-सरसों  की फसल की कटाई समय पर करें। खलिहान में पेन्टेड बग से बचाव हेतु जमीन पर 2 प्रतिशत पेराथियान पाउडर का भुरकाव करें।
  • दलहनी फसलें: चना में आवश्यकता हो तो फल(घेंटियां) आने से पूर्व ही सिंचाई करें । फूल आते समय सिंचाई नहीं करना चाहिए अन्यथा फूल झड़ने से हानि होती है। चना, मटर एवं मसूर में फलीछेदक, कीट की सूड़ियों के नियंत्रण हेतु उन्हें हाथ से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए। चिड़ियों द्वारा इस कीट के नियंत्रण हेतु चिड़ियों के बैठने के लिए 4-5 फीट के बांस के टुकड़ों पर लकड़ियां बांध कर खेत में कई स्थानों में गाड़ना चाहिए। चने में फलीछेदक एवं सेमीलूपर कीट  की संख्या बढ़ने लगे तो इनके नियंत्रण हेतु जैसे ही फली बनना शुरू हो, फेनवेलरेट 20 ई.सी. का 500 मिली. दवा  800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़कें अथवा मिथाइल पॅराथियान 2 प्रतिशत धूल की 25 कि०ग्रा० मात्रा का बुरकाव करें। असिंचित क्षेत्रों में चने की कटाई फरवरी के अन्त में होने लग जाती है। 
  • सिंचित क्षेत्रों  में चने की अगेती किस्में कटाई के  लिए तैयार हो सकती हैं। देरी से बोई गई मटर व मसूर की फसल में फली आनें पर सिंचाई करें। इनकी अगेती किस्में पकने की अवस्था में होगी, अतः समय पर कटाई करें।
  • गन्ना: बसंतकालीन गन्ने की बुवाई करें । बुवाई हेतु उन्नतशील नवीनतम प्रजतियों का चुनाव करें। बीज प्रमाणित पौधशाला से या निरोगी नौलख फसल से लेना चाहिए। प्रति हैक्टेयर तीन आँख वाले 23000 हजार और दो  आँख वाले 35000 बीजू टुकड़ों  (लगभग 35-40 क्विंटल) की बुवाई हेतु आवश्यकता होती है। बीज हेतु गन्ने का ऊपरी  दो तिहाई हिस्सा प्रयोग  करने से अंकुरण अच्छा होता है। बुवाई से पूर्व गन्ने के टुकड़ों को  पारायुक्त फंफूदीनाशक रसायन से उपचारित करें तथा लाल सड़न रोगग्रस्त इलाकों में गन्ने की बुवाई, गर्म हवा से बीज उपचारित कराकर ही करनी चाहिए। बुवाई 75 सेमी. दूरी पर बने कूड़ों में करनी चाहिए। अच्छी उपज के लिए गन्ना के बसंतकालीन फसल में 120-150 किलोग्राम नत्रजन,50-60 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 30-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नत्रजन को  तीन समान समान किस्तों  में देना लाभप्रद रहता है। दीमक और  जड़बेधक कीट से फसल की सुरक्षा हेतु टुकड़ों के  ऊपर 2.5 लीटर क्लोरपाइरीफ़ॉस  20 ईसी दवा को  600-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। शरद ऋतु में लगाये गये गन्ने में 25-30 दिन के  अन्तर से सिंचाई करते रहें तथा खेत खरपतवार मुक्त रखें।
  • गन्ना पेड़ीः अच्छी पेड़ी लेने हेतु गन्ने की नौलख फसल की कटाई फरवरी के मध्य से शुरू करें। गन्ना की कटाई जमीन से सटाकर करना चाहिए।
  • सूरजमुखीः सूरजमुखी की संकर या अधिक उपज देने वाली किस्में 90 से 110 दिन में पकती हैं। अक्टूबर-नवम्बर में बोई गई सूरजमुखी फसल पकने की स्थिति में होगी । देरी से बोई गई फसल में सिंचाई अवश्य करें। ग्रीष्मकालीन सूरजमुखी की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी का दूसरा पखवाड़ा है। बुवाई हेतु सूरजमुखी की उन्नतशील संकर किस्में जैसे के.बी.एस.एच-1, दिव्यामुखी, ज्वालामुखी आदि तथा संकुल किस्म मार्डन का चुनाव करें। संकुल किस्म का 12-15 किलोग्राम तथा संकर प्रजाति का 5-6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से 4-5 सेमी. की गहराई पर बुवाई कतारों  में करें। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी. रखें और बुवाई के 15-20 दिन बाद सिंचाई से पूर्व थिनिंग (विरलीकरण) द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 15 से.मी. कर देनी चाहिए। अच्छे अंकुरण हेतु बीज को 12 घंटे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घंटे सुखाकर बुवाई करें। बुवाई पूर्व कार्वेन्डाजिम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से से बीज का शोधन कर लेना चाहिए। बुवाई के समय 40 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग कतारों  में करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमैथेलिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर मात्रा का प्रति हैक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद अथवा जमाव से पहले बुवाई के 2-3 दिनों के अंदर छिड़काव करें।
  • मेंथा: फरवरी माह में बोयी जाने वाली फसलों में मैन्था एक नगदी सगंध फसल है। इसके  लिए उचित जलनिकास युक्त मध्यम से लेकर हल्की भारी भूमि उपयुक्त रहती है। बुवाई हेतु प्रति हैक्टेयर 400 से 500 किलोग्राम जड़े पर्याप्त होते हैं। जड़ों के 5 से 7 से.मी. लम्बे टुकड़े , जिसमें 3-4 गांठे हों, को काटकर 5-6 इंच की गहराई पर 45 से 60 सेमी. की दूरी पर बनी कतारों में बुवाई करें। बुवाई के समय 30 किलोग्राम नत्रजन, 75 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए। बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई अति आवश्यक है। अन्य सिंचाइयाँ आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए।
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