Powered By Blogger

मंगलवार, 30 मई 2017

सामयिक कृषि: श्रावण-भाद्रपद (अगस्त) माह के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
श्रावण-भाद्रपद यानि अगस्त माह में बरसात की झड़ी लगी रहती है तथा प्रकृति हरियाली से सराबोर रहती है।  इसी माह भाई-बहिन के प्यार का पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन तथा हमारे देश की आजादी का महापर्व 15 अगस्त भी हम मनाते है. एक तरफ हरियाली से मन प्रफुल्लित रहता है तो दूसरी तरफ मच्छरों के प्रकोप से मलेरिया और डेंगू जैसे रोग फैलने की भी आशंका रहती है. फसलों में भी कीट-रोग और खरपतवारों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। 

माह के मूलमंत्र

कीट नियंत्रण: इस माह फसलों की बढ़वार चरम पर होती है. वातावरण में नमीं और तापमान अनुकूल होने से कीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है।  ये कीट फसलों की पत्तियों, कलियों, पुष्पों और फलों का खाकर उपज का क्षति पहुचाते है. सही समय पर फसल लगाकर, फसल चक्र अपनाकर तथा पौध सरंक्षण के उपाय अपनाकर हानिकारक कीट पतंगों पर काबू पाया जा सकता है। 
रोग नियंत्रण: इस माह फसलों में भांति-भांति के रोगों का प्रकोप भी होता है जिससे उपज में कमीं के साथ-साथ फसलोत्पादन की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।  इसके लिए रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करते हुए बीज उपचार कर फसल की बुआई करे तथा आवश्यकतानुसार रोगनाशक दवाईयों का इस्तेमाल कर रोगों से होने वाली क्षति से बचा जा सकता है। 
खरपतवार नियंत्रण: खरीफ फसलों में खरपतवार प्रकोप से उपज में  भारी नुकसान होने की संभावना रहती है. अतः खेतों और मेंड़ो पर खरपतवार विल्कुल ना पनपने दें।  सही समय और उचित विधि से खरपतवार नियंत्रण करें।  फसल बुआई से लेकर 35-40 दिन तक खेत खरपतवार मुक्त रखने का प्रयास करना चाहिए ताकि भरपूर उत्पादन प्राप्त हो सकें।
          श्रावण-भाद्रपद अर्थात अगस्त माह में किसान भाइयों को सतत चौकन्ना रहना है क्योंकि वातावरण में अधिक नमी होने के कारण फसलों के कीट-रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है साथ ही घास-पात भी फसल के साथ बढ़वार करने पर्तिस्पर्धा करने लगते है।  इस माह फसलोत्पादन में   संपन्न किये जाने वाले महत्वपूर्ण कृषि कार्यों की फसल्वर संक्षिप्त जानकारी अग्र प्रस्तुत है। 
धान: फसल में नत्रजन की  प्रथम ¼ मात्रा कल्ले फूटे समय एवं दूसरी ¼ मात्रा बालिओं में गोभ निकलते समय यूरिया के रूप में देवें।  खाद देते समय खेत में पानी भरा न रहें।  खैरा रोग के नियंत्रण हेतु जिंक सल्फेट 5 किग्रा तथा 2.5  किग्रा  चूना को 700  लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। फसल में झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर नाटीवो 75 डब्लू. जी. 4 ग्राम प्रति लीटर या ट्राईसायक्लाजोल कवकनाशी 6 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर 12-15 अंतराल पर छिड़काव करें।  को आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। सीधे बोये गए धान के खेत में पर्याप्त पानी होने पर  बियासी-चलाई का कार्य संपन्न कर प्रति इकाई ईष्टतम पौध संख्या स्थापित कर लेवें। धान में कटुआ इल्ली का प्रकोप दिखने पर डाइक्लोरोवास 80 ई.सी. 600 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 
सोयाबीन: फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए निदाई-गुड़ाई करें। फसल में फूल आते समय ब्रेसिनोस्टयराइड्स 0.25 ग्राम व सायटोकायनीन 2.5 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करने से सभी फूल नहीं झड़ते है जिससे फलियाँ अधिक बनती है। फसल की कीड़ों से सुरक्षा हेतु क्विनालफॉस 25 ई.सी. 1250 मिली अथवा ट्रायजोफॉस 40 ई.सी. 1 लीटर या क्लोरपायरोफॉस   20 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 
मूंगफली:समय पर बोई गई फसल फलियों में दाना भरने की दूधिया अवस्था में होगी।  इस समय कोई सस्य क्रिया नहीं की जानी है।  देर से बोई गई फसल में सुइयां (पेग्स) भूमि में प्रवेश करने की अवस्था में होंगी।  इस अवस्था में भी भूमि में कोई सस्य कार्य नहीं करना है परन्तु जिन क्षेत्रों में फसल सुइयां बनने की पूर्व की अवस्था में हो, वहां पर फसल में निराई-गुड़ाई कर मिट्टी को पौधों के चारों ओर चढाने का कार्य संपन्न किया जाना चाहिए।  यदि मूंगफली की पत्तियाँ पीली पड़ रही है तो फेरस सल्फेट 0.5% का घोल (500 ग्राम फेरस सल्फेट का 100 लीटर पानी में घोल)  अथवा व्यापारिक श्रेणी का गंधक अम्ल 0.1% (100 मिली अम्ल 100 लीटर पानी में घोल) का फसल पर छिडकाव करें। 
गन्ना:  वर्षा और तेज हवाएं चलने के कारण पौधे गिर सकते है जिससे पैदावार और गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है।  पौधों को गिरने से बचाने के लिए गन्ने की दो कतारों के पौधों की पत्तियों को चोटी की तरह आपस में बाँध देना चाहिए। इससे पौधे सीधे खड़े रहेंगे तथा दो-दो कतारों के बीच खुला स्थान हो जाने के कारण वायु संचार अच्छा होगा। कीट रोग से फसल की सुरक्षा हेतु पौध सरंक्षण के  आवश्यक उपाय करें। 
मक्का: खेत से वर्षा जल के निकास हेतु उचित व्यवस्था करना आवश्यक है।  देर से बोई गई मक्का फसल में पौधे घुटनों की ऊंचाई पर आ जाने पर नत्रजन की दूसरी क़िस्त कतारों में देवें।  जहाँ मक्का फसल झंडे आने की अवस्था में है, वहां नत्रजन उर्वरक की अंतिम क़िस्त पौधों के आस-पास देवें। मक्का में तनभेदक कीट की रोकथाम हेतु कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 20-25 दिन बाद प्रयोग करें । हरे भुट्टों के लिए लगाई गई मक्का/स्वीट कॉर्न  के मुलायम भुट्टों की तुड़ाई कर विक्रय हेतु  बाजार भेजें। 
ज्वार/बाजरा: खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था रखें। फसल में  निराई-गुड़ाई कर नत्रजन की शेष  क़िस्त को कतारों में देवें।  फूल और दाना विकास की अवस्था में खेत में पर्याप्त नमीं बनाये रखें. कीट-रोग नियंत्रण के आवश्यक उपाय  मक्का की भांति करें। 
दलहन एवं तिलहन: अरहर, मूंग, उर्द आदि  के खेत में जल निकासी की व्यवस्था करें।  इन फसलों में फूल आने की अवस्था पर खेत में हल्की नमीं बनाए रखने से उपज में इजाफा होता है। फसल को सफ़ेद मक्खी के प्रकोप से बचाने के लिए मैटासिस्टाक्स (1 मिली प्रति लीटर पानी) या नुवान (1 मिली प्रति ३ लीटर पानी) का छिड़काव करें।  सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण से फसल में पीत शिरा रोग फैलने की सम्भावना कम हो जाती है। 
मूंगफली: फसल में फूल और फल विकसित होने की अवस्था के समय वर्षा न होने की स्थिति में हल्की सिंचाई करें।  फूल आने के पूर्व फसल में निंदाई-गुड़ाई और पौधों पर मिट्टी चढाने का कार्य संपन्न कर लेवें। 
तिल: जुलाई में बोई गई फसल में निराई-गुड़ाई करें तथा अधिक उत्पादन हेतु फसल पर 0.5% जिंक सल्फेट तथा 0.25% चूने के पानी को मिलकर छिडकाव करे।  वर्षा थमने पर इस माह भी तिल की बुआई की जा सकती है। फसल में झुलसन रोग के लक्षण दिखने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम या मेटलेक्जिल 2 ग्राम दवा प्रति पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें।  
कपास: फसल में निराई-गुड़ाई कार्य करें। नत्रजन की शेष एक तिहाई मात्रा जुलाई के अंत में तथा शेष बची एक तिहाई मात्रा फूल आते समय कतार में देवें।  फसल में फूल और बाल (टिन्डे) बनते समय हस्त चलित स्प्रयेर से यूरिया 2.5% घोल का पर्णीय छिडकाव करें। कपास में फूल आते समय एन.ए.ए. का छिडकाव (125 मिली/हे.) लाभप्रद पाया गया है।

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

कोई टिप्पणी नहीं: