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रविवार, 28 मई 2017

समसामयिक कृषि: कार्तिक-मार्गशीर्ष (नवम्बर) माह के प्रमुख कृषि कार्यक्रम

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
राजमोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर  (छत्तीसगढ़)

         कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। कृषि के ये कार्य यदि नियत समय पर संपन्न नहीं होते है तो फसलों का लागत मूल्य भी हाथ में आना मुश्किल हो जाता है। अतः किसान भाइयों को कृषि के सभी कार्य उचित समय पर संपन्न करने का प्रयास करना चाहिए।  
शरद-हेमन्त ऋतु के  माह नवम्बर यानी कार्तिक-मार्गशीर्ष (अग्रहायण) में तापक्रम कम हो जाने से ठंड का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। वायु लगभग शांत हो जाती है। कहीं-कहीं शरदकालीन वर्षा होने से सापेक्ष आद्रता बढ़ जाती है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.6 एवं 12.6 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति लगभग  4.4 किमी प्रति घंटा होती है। इस माह भाई दूज, तुलसी विवाह एवं गुरूनानक जयंती जैसे महत्वपूर्ण पर्व धूम धाम से मनाये जाने के  साथ साथ किसान भाई खरीफ फसलों की विदाई कर नव धान्य घर में भंडारित करते है, साथ ही वें  रबी फसलों के  स्वागत की तैयारी में व्यस्त हो जाते है। खरीफ की लहलहाती फसलों  से बेहतर पैदावार की उम्मीद लगाए एवं रबी फसलों  से खेतों  में हरियाली स्थापित करने किसान भाई प्रयासरत होते है। इस माह की प्रस्तावित कृषि कार्य योजना अग्र-प्रस्तुत है।

इस माह के मूलमंत्र

1.प्रमाणित आदान-उन्नत खेतीः हम पूर्व में भी चर्चा कर चुके  है कि लाभकारी खेती का मूल आधार क्षेत्र विशेष के  लिए सुझाई गई उन्नत किस्मों के  प्रमाणित बीज, शुद्ध खाद-उर्वरक एवं आवश्यक कीटनाशक, नींदानाशक, फंफूदनाशक दवाएं वैज्ञानिकों  की सलाह पर विश्वसनीय प्रतिष्ठानों  से खरीदकर प्रयोग करने से फसलोत्पादन में इच्छित लाभ अर्जित किया जा सकता है। कम खर्च में अधिकतम फसल सुरक्षा के  लिए आवश्यक है कि बुवाई से पूर्व उचित रोगनाशक व कीटनाशक दवाइयों  से बीज उपचार करें।
2.मिश्रित खेती बेहतर लाभः प्रति इकाई क्षेत्र प्रति इकाई समय के  हिसाब से अधिकतम उपज एवं आमदनी लेने के  लिए मिश्रित खेती (अन्तर्वती खेती) अपनाना चाहिए। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति में तो  इजाफा होता ही है, साथ ही भूमि-नमीं एवं प्रकाश का भी अधिकतम लाभ मिलता है तथा  खेती में संभावित जोखिम भी कम हो जाता है।
3.गेंहू की शिखर जड़ अवस्था के  समय सिंचाईः गेंहू में 21 दिन बाद शिखर जड़ें विकसित होती है। इस समय खेत में नमीं की कमीं होने पर उपज में भारी गिरावट हो सकती है। अतः बुवाई के 20-25 दिन के  दौरान  सिंचाई अवश्य करें। धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों में  बहुधा गेंहू बुवाई के 25-30 दिन बाद पौधों  में तीसरी-चौथी पत्तियों पर हल्के  पीले धब्बे बनते है, जो  कि जस्ते की कमीं के लक्षण है। ऐसी स्थिति में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट व 2.5 प्रतिशत यूरिया का घोल बनाकर 10-15 दिन के  अन्तराल पर छिड़काव करें।

रबी फसलों की बुआई और खरीफ की तैयार फसलों की कटाई और गहाई के लिए सबसे महत्वपूर्ण माह है। फसलोत्पादन में इस माह संपन्न किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यो का संक्षिप्त विवरण अग्र प्रस्तुत है. 
  • धानः शीघ्र व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली धान किस्मों  की कटाई करें। कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई व गहाई कार्य किया जा सकता है। खेत कको रबी फसलों  की बुवाई हेतु तैयार करें।
  • उर्द व मूंगः देर से बोई गई फसल की कटाई कर लें और सुखाकर भंडारण की व्यवस्था करें।
  • सोयाबीन: फसल  की कटाई मे देर नहीं  करना चाहिए अन्यथा फल्लियाँ चटकने लगती है . अतः  पत्तियों के पीले पडते ही फसल काटकर सुखा लें तथा गहाई करके बीज को सुखाकर भण्डारण करना चाहिए।
  • मूंगफलीः मूंगफली की फसल की खुदाई करें एवं फल्लियों को  अच्छी प्रकार से सुखाएं।
  • अरहरः शीध्र पकने वाली किस्मों की 75-80 प्रतिशत फलियां पकने पर कटाई कर लें। लम्बी अवधि की किस्मों में फलीछेदक कीट के रोकथाम के लिए प्रोफेनोफास (50 ईसी.) 1500 मिली. दवा या बी.टी. 8 एल.1000 मिली. प्रति हेक्टर की दर से से छिड़काव करें।
  • तोरियाः सिलिक्व़ा में दाना भरने की अवस्था में यदि खेत में नमीं  की कमीं होने पर  सिंचाई करें। झुलसा, तुलासिता, सफेद गेरूई रोग के नियंत्रण के लिये जिंक मैंगनीज कार्बामेंट 75 प्रतिशित की 2.0 किग्रा दवा को, आवश्यक पानी में घेालकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। माहू, आरा-मक्खी के  नियंत्रण के लिये डाईमेथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल आक्सीडेमेटान 25 ई.सी. 750 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घेालकर छिड़काव करें।
  • गेहूं: प्रमुख खाद्यान्न फसल गेंहू की बुवाई का उपयुक्त समय है।सिंचित अवस्था में गेंहू की उन्नत किस्में जैसे कल्याण सोना, सोनालिका, राज-911, एचडी-4530 तथा असिंचि परिस्थिति हेतु हा-65,सी-306 की बुवाई करें। बुवाई पूर्व बीजोपचार करना न भूले। बुवाई हेतु  100-125 किग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बुवाई कतारों  में 18-22 सेमी. की दूरी पर करें। इसके  लिए बीज बुवाई यंत्र(सीड ड्रिल) या पैरा  विधि का प्रयोग किया जा सकता है। गेंहू की बौनी  किस्मों  की बुवाई 3-4 सेमी. की गहराई पर करें । धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों के  लिए शून्य जुताई बुवाई विधि (जीरो  टिल सीड ड्रिल) अपनाने से समय श्रम व पैसे की वचत होती है तथा उपज भी भरपूर प्राप्त होती है। फसल की दीमक से सुरक्षा हेतु बीज को  150 मिली. क्लोरपाइरीफ़ॉस  20 ईसी से उपचारित करने के  पश्चात एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक 10 पैकेट (प्रत्येक 200 ग्राम) से उपचारित करें तथा  छाया में सुखा कर बुवाई करने से पौध सुरक्षा होती है तथा उपज में बढ़ोत्तरी भी होती है।
  • छिडकवां विधि से गेंहू की बुवाई करने पर 25 प्रतिशत ज्यादा बीज का प्रयोग करें। मृदा परीक्षण के अभाव में 120-150 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी से दो तिहाई मात्रा बुवाई के समय आखिरी जुताई के समय मिला दें। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20-25 किग्रा. जिंक सल्फेट खेत में बुवाई के समय प्रयोग करें। गेंहू में प्रथम सिंचाई शीर्ष जड़ निकलने की अवस्था (बुवाई के  21-25 दिन) पर अवश्य करें।
  • राई-सरसों: पिछले माह बोई गई फसल से 15-20 दिन के अन्दर घने पौधे निकालकर उनकी आपस की दूरी 15 से.मी. कर देनी चाहिए। आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचित क्षेत्रों में शेष नत्रजन की टापड्रेसिंग बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई पर करें। रोग व कीट नियंत्रण तोरिया की तरह करें। सरसों  की बुवाई 15 नवम्बर तक संपन्न कर लें। बुवाई हेतु 4-5 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। पूसा बोल्ड, वरदान, वरुणा, क्रांति, पूसा जय किसान, वैभव व कृष्णा उन्नत किस्में है।
  • चनाः सिंचित दशा में चना की बुवाई इस माह के अंतिम सप्ताह तक संपन्न कर लें। छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों के लिये 60-80 किग्रा तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिये 80-100 किग्रा प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। बुवाई  30 सेमी. की दूरी पर लाइनों से करें। राइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर का प्रयोग बीजोपचार हेतु करना लाभप्रद है। मृदा परीक्षण के अभाव में  20 किग्रा. नत्रजन, 40-50 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। बुवाई के 25-30 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई कर दें। बुवाई हेतु जेजी-16, जेजी-11, जेजी-74, जेजी-130, जेजी-315, विजय,वैभव, जेजीके-1, श्वेता (काबुली), जेजीजी-1(गुलाबी) तथा आकाश (हरा) चने की उन्नत किस्में हैं।
  • मटर, मसूरः अक्टूबर माह में बोई गई फसल में सिंचाई, निराई-गुड़ाई आदि करनी चाहिए। इन फसलों की बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवाड़े तक कर लें। मटर के लिये सामान्यतया 80-100 किग्रा बीज तथा मसूर के लिये 30-35 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई लाइनों में करें। दलहनी फसलों को राइबोयिम कल्चर से बीज शोधन करना लाभप्रद है। उर्वरकों  का प्रयोग  चने की भांति करें। मटर की रचना, शुभ्रा, अम्बिका, पारस, जेपी-885, अपर्णा एवं आईपीएफडी-9913 तथा मसूर की लेंश-4076, के-75,जेएल-3 व आईपीएल-81 उन्नत किस्में है।
  • रबी दलहनों  में खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के  3 दिन के  अन्दर पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. 750-1000 मिली. सक्रिय तत्व (2.5-3 लीटर दवा) प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। अंकुरण पश्चात चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के  नियंत्रण के  लिए क्यूजेलोफाप इथाइल (टर्गा सुपर) 40-50 मिली. सक्रिय तत्व (दवा की मात्रा 800-1000 मिली.) प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • तिवड़ाः इस माह की प्रथम पखवाड़े तक तिवड़ा की बुवाई संपन्न करें। पूसा-24, प्रतीक, महातिवड़ा, रतन आदि उन्नत किस्में है। प्रति हैक्टेयर 40-50 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
  • अलसीः अलसी की बुवाई 15 नवम्बर तक पूर्ण कर लें। आर-552, इंदिरा अलसी-32,कार्तिका, दीपिका, पदमिनी, आरएलसी-92, किरण व नीलम अलसी की उन्नत किस्में है। प्रति हैक्टेयर 20-25 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई कतारों  में 25-30 सेमी. की दूरी पर की जाती है।सिंचित अवस्था में 60:30:30 किग्रा. नत्रजन, स्फुर व पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के  समय खेत में मिलाना चाहिए।
  • कपास की चुनाई नियमित समय पर करते रहें। मूँगफली की खुदाई पूर्ण करते हैं। ज्वार-बाजरा, मक्का के भुट्टों की समय पर तुड़ाई करें । भुट्टों को  साफ जगह पर धूप में सुखाने के  लिए एकसार  फैला दें।
  • गन्नाः शरदकालीन गन्ने की बुवाई संपन्न करें। तापक्रम कम होने  से अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गन्ना अंकुरण के  लिए 16-30 डिग्री. से.ग्रे. तापक्रम उत्तम रहता है । देर से गन्ना बुवाई हेतु पालीबैग तकनीक से एक आँख वाले  टुकड़ों  की नर्सरी डालें । देर से कटने वाली  धान फसल के उपरान्त पालीबैग से तैयार गन्ने के पौधों  की रोपाई कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। गत माह में बोये गये गन्ने की फसल में जमाव उपरान्त एक हल्की सिंचाई करें तथा खेत में ओल  आने पर 5 किग्रा. एजोटोबैक्टर व 10 किग्रा. पीएसबी कल्चर प्रति हेक्टर की दर से कतारों में देकर गुड़ाई करें । यदि सह-फसली खेती की गई है तो फसलानुसार शस्य क्रियाएं करें। गन्ने की फसल अगर तैयार हो गई हो तो उसे काट लेते हैं
  • चारा फसलें: पशुओं के  लिए पौष्टिक हरे चारे हेतु  बरसीम, रिजका, जई की बुवाई करें। पिछले माह लगाई गई इन फसलों में सिंचाई करें। 
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