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सोमवार, 29 मई 2017

सामयिक उद्यानिकी :फाल्गुन-चैत्र (मार्च) में बागवानी के प्रमुख कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए। भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है ।  इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) के सामयिक कार्यों को समझना और नियत समय पर उन्हें व्यवहार में लाना अति आवश्यक है।  आइये हम बागवानी में कौन से कार्य कब संपन्न करना आवश्यक है, इस पर माह वार चर्चा करते है। 
फाल्गुन-चैत्र  अर्थात मार्च  माह में खेतों में सरसों के पीले फूलों की न्यारी छटा निहारते ही बनती है। होली आती है तो लगने लगता है की शर्दी की विदाई का समय आ गया है।  वास्तव में यह प्रकृति की जाती हुई बहार और ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का महिना है। कद्दू वर्गीय सब्जिओं जैसे लौकी, खीरा, करेला, तोरई आदि की खेती मचान बनाकर करने से परम्परागत विधि (समतल खेत एवं मेड़ें बनाकर) से उगाई गई फसल की अपेक्षा प्रति इकाई क्षेत्र से 3-4 गुना अधिक आमदनी प्राप्त होती है।  मचान विधि द्वारा उगाई गई बेल वाली सब्जी के पौधों को अधिक प्रकाश और हवा मिलने से उनमें पर्याप्त बढ़वार होती है। पौधों में अधिकतर फल लटके होने की वजह से अधिक लम्बे होते है, उनका आकर और रंग अधिक समरूप और आकर्षक होने से बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त होता है।  इस माह  बागवानी में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श करते  है। 

सब्जियों में इस माह

v इस माह तैयार सब्जियां जैसे पछेती गोभी, मटर, शिमला मिर्च,टमाटर,बैगन, मिर्च, सूरन, मूली,गाजर, शलजम  आदि की तुड़ाई/खुदाई कर बिक्री हेतु बाजार भेजें। प्याज और लहसुन की फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिचाई करते रहें। इन फसलों की  रोगों से सुरक्षा हेतु 0.2 % इंडोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। 
v भिन्डी: ग्रीष्मकालीन फसल की बुआई इस माह भी की जा सकती है.  पीत  शिरा रोग प्रतिरोधी किस्में किसी प्रतिष्ठित संस्थान से खरीदे।  भिन्डी की उन्नत किस्मों का बीज 18-20 किलो तथा संकर किस्मों का बीज 15 किलो प्रति हेक्टेयर बुआई हेतु पर्याप्त होता है. बीज बोने से पहले 24 घंटे पानी में डुबोकर रखने के बाद बुआई करने से अंकुरण अच्छा होता है। 
v टमाटर: पूर्व में लगाई गई फसल/पौध में निंदाई-गुड़ाई-सिंचाई समय पर करते रहें। पौध लगाने के 30 और 50 दिन बाद उन्नत किस्मों में 25-25 किलो नत्रजन तथा संकर किस्मों में 35-35 किलों नत्रजन कतारों में देकर सिंचाई करें। 
v बैगन: वर्षाकालीन फसल के लिए तैयार नर्सरी में पानी देकर सावधानी से पौध निकालकर तैयार खेत में रोपाई करें। रोपाई से पूर्व खेत की अंतिम जुताई के समय 8-10 टन गोबर की खाद के अलावा 40-50 किलो नत्रजन, 60-70 किलो फॉस्फोरस और 30-40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. पौधों की रोपाई शाम के समय कतारों में 60-70 से.मी. तथा पौधों के मध्य 50-60 से.मी. की दूरी पर करने के पश्चात हल्की सिंचाई करें. पौध रोपाई के 20 दिन बाद तथा पुष्पन अवस्था के समय 20-20 किलो नत्रजन कतार में देकर गुड़ाई और सिंचाई करे। 
v मिर्च: ग्रीष्मकालीन फसल हेतु यदि पिछले माह नर्सरी तैयार नहीं की है तो इस माह नर्सरी लगाई जा सकती है।  एक हेक्टेयर के लिए 1-1.5 किलों बीज की नर्सरी पर्याप्त होती है. नर्सरी में 8-10 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाने के उपरांत बुआई कर हल्की सिंचाई करें।    
v कुष्मांड कुल की सब्जियां: इस माह के प्रथम सप्ताह तक तोरई, कद्दू,करेला, टिंडा, लौकी  आदि की बुआई करें। बुआई पूर्व बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।  खेत की अंतिम जुताई के समय 10-12 टन गोबर की खाद तथा बुआई के पहले 25 किलो नत्रजन, 30 किलो फॉस्फोरस तथा 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से थालों  में देवें। बुआई के एक माह बाद 30 किलो नत्रजन फसल में फूल आते समय देकर सिंचाई करें।  गत माह लगाई गई सब्जिओं में आवश्यकतानुसार उर्वरक और प्रति सप्ताह सिंचाई देते रहें। 
v ग्रीष्मकालीन सब्जिओं की पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर (मिलड्यू रोग) दिखने पर 500 ग्राम वेविस्टिन को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।  पत्तों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे नज़र आने पर 1000 ग्राम डाईथेन एम-45 को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें। खीरा वर्गीय फसलों में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिंचाई करते रहें। ककड़ी के तैयार मुलायम फलों को तोड़कर बाजार भेजें। कददू का लाल गिडार कीट की रोकथाम हेतु एसीफेट 75 एस.पी. के 0.1 % घोल का छिड़काव करें। माहू और फल वेधक मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. के 0.1 % घोल का फल तोड़ने के पश्चात  छिड़काव करें। प्रति थाला 10-15 ग्राम यूरिया डालकर सिंचाई करें। 
v गत माह लगाई गई बैंगन और टमाटर की फसलों में आवश्यकतानुसार गुड़ाई और सिंचाई करें।  फल छेदक कीट के नियंत्रण हेतु 500 मिली मैलाथियान 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।  दवाई छिडकने से पहले तैयार फलों को तोड़ कर बिक्री हेतु बाजार भेजें। 
v हल्दी/अदरक: इन फसलों में समय-समय पर सिंचाई करते रहे।  तैयार फसल की खुदाई-सफाई कर  विक्रय हेतु बाजार भेजें।  अदरक और हल्दी  की नई फसल  लगाने का यह उपयुक्त समय है। खेत की अंतिम जुताई के समय 100 किग्रा नत्रजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से कतारों में देवें।  इनके स्वस्थ कंदो को 45  x 15  से.मी. की दूरी पर मेंड़ों पर लगाना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमीं होना चाहिए।     
v आलू: फसल में सिंचाई देना बंद कर देना चाहिए और इसकी पत्तिया सूखने पर खुदाई आरम्भ कर देना चाहिए। देर से खुदाई करने  आलू सड़ना शुरू हो जाता है। हरे,छोटे और कटे-फटे आलुओं को अलग कर शेष मात्रा को या  विक्रय हेतु बाजार भेजें अथवा  शीत गृह भेजने की व्यवस्था करें। 

फलोत्पादन में इस माह

v बाग-बगीचों में अधिकतर पेड़ लगाने, काट-छांट तथा खाद-पानी देने का कार्य संपन्न कर लेवें।बगीचे में आवश्यकतानुसार पानी देते रहें। 
v आम: आम के वृक्षों में फूल आने के बाद फल बनने तक सिंचाई नहीं करें।   जिन पौधों में फूल/फल नहीं आ रहे है, उनमें थालों की निंदाई-गुड़ाई कर समय-समय पर सिंचाई करते रहें। इस माह  आम के वृक्षों में भुनगा (मेंगो हॉपर) कीट का प्रकोप हो सकता है। कीड़े दिखने पर क्यूनालफॉस 0.05 % (2 मिली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर) छिड़काव करें। कीड़ो का प्रकोप कम नहीं होता है तो दूसरा छिड़काव मिथाइल डिमेटॉन 0.04 % (1.5  मिली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर) का करने से कीड़े समाप्त हो जाते है।  पत्तों पर सफ़ेद चूर्ण रोग के लक्षण दिखते ही फल बनने के तुरंत बाद डाइनोकेप 0.05  % (0.5  मिली. दवा प्रति लीटर पानी) का  छिड़काव 20  दिन के अंतराल से दो बार  करें।
v सिंचाई की सुविधा होने तथा गर्म हवा/धूप  से पौधों की सुरक्षा कर सकें तो इस माह अमरुद, आंवला, अनार, नीबू आदि के पौधे लगाये जा सकते है।  इन पौधों की कटिंग्स लगाने से पहले आई.बी.ए. के 1000  पी.पी.एम. घोल (एक ग्राम प्रति लीटर पानी) में डुबोकर लगाये. पौधे लगाने के लिए गड्ढे निर्धारित आकार के खोदें।  नीबू के लिए 90 x 90 x 90 से.मी., अनार व आंवला के लिए 60 x 60 x 60 से.मी.तथा बेर के लिए 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोदकर 10-15 दिन तक धूप में तपायें जिससे मिट्टी में उपस्थित कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जावें।  इसके बाद 15-20 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 1 किलो सुपर फॉस्फेट के अलावा क्युनालफ़ॉस 1.5% डस्ट  मिट्टी में मिलाकर  गड्ढों में भरने के पश्चात इनमें  पौधे लगाकर हल्की सिंचाई करें। इसके पश्चात 7-8 दिन के अंतराल से बून्द-बून्द विधि से सिंचाई की व्यवस्था करें। 
v अमरुद: अमरुद के पौधों से वर्षा ऋतु के फल लेना है तो 1-3 वर्षीय पौधों में 100 ग्राम, 4-6 वर्षीय में 150-200 ग्राम, 7-10 वर्षीय में 250-300 ग्राम यूरिया  खाद  प्रति पौधा देकर सिंचाई करें।   फल नहीं लेना है तो खाद और सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। तना भेदक कीट की रोकथाम के उपाय करें।   
vलीची: इस माह लीची में फूल आने के 15  दिन पूर्व 3 ग्राम जिंक सल्फेट और 3 ग्राम यूरिया को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फूल अधिक आते है। फूल आने के दो सप्ताह पहले एक सिंचाई करें। 
v  नीबू वर्गीय फल: केंकर रोग से रोगथाम हेतु ब्लाइटॉक्स-50 (0.25%) का छिड़काव करें।  पीले-पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें। पेड़ों के टनों को चूने से पॉट देवें। पौधों में गूटी बांधने का कार्य करें।  पौधशाला में मूलवृंत तैयार करने के वास्ते बीजों की बुआई करें।  
v फल परिरक्षण: संतरा और नींबू  का शरबत  तैयार करें। केला,पपीता, सेब तथा आंवला का जैम तैयार करें। अनार का रस तैयार किया जा सकता है।  आंवला और सेब का मुरब्बा तैयार किया जा सकता है।  आलू के चिप्स तैयार किये जा सकते है। 

पुष्पोत्पादन में इस माह

v गर्मी वाले फूलों जैसे बालसम,फ्रेंच गेंदा, पिटूनिया, पोर्चुलाका, साल्विया, सूरजमुखी, जिनिया, वर्विना आदि की बुआई करें।  बुआई के बाद नियमित रूप से नर्सरी की सिंचाई तथा निराई-गुडाई करते रहें। 
v सर्दियों में जो फूल खिल चुके है उनके बीज एकत्रित करना प्रारंभ करें। 
v गुलाब के पौधों की सूखी डालें और फूलों को बराबर काटकर निकालते रहें. गमलों में प्रतिदिन पानी देना चाहिए तथा क्यारिओं में 4-5 दिन में पानी देवें. पौधों में बडिंग कर नए पौधे तैयार करें। 
v गमलों में लगे हुए कन्दीय पुष्प जैसे डह्लिया, लिलियम आदि में पानी देना बंद कर देवें। इनकी पत्तिय सूखने पर गमलों को छायादार स्थान में रख देवें। 
v गमलों में लगाये गए गुलदावदी के पौधों की निराई और सिंचाई करते रहे तथा तेज धुप से इनकी सुरक्षा करें। 
v इस माह नई हेज़ जैसे लेंटाना, टिकोमा, हेमेलिया,केशिया आदि  लगाने के लिए क्यारिओं में बीज बोये जा सकते है।  यह माह प्रसारण एवं कलम लगाने के लिए बहुत उपयुक्त है. हाईविस्क्स, हेमेलिया, एकलिफा, बोगेनविलिया, डूरेंटा, इरेंथियम आदि का प्रसारण भलीभांति किया जा सकता है। 
v इस माह लॉन की घास शीघ्रता से बढती है, अतः इसमें सिंचाई, मशीन से कटाई  और रोलर चलाने का कार्य करते रहे।  नए लॉन  में घास लगाने के लिए भूमि की तैयारी करें। 

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