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शुक्रवार, 26 मई 2017

समसामयिक कृषि :पौष-माघ (जनवरी) माह के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

खेती किसानी को आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियों  एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुँचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम जानकारियों  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाएँ । उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। ये सभी कृषि कार्य नियत समय में संपन्न करने पर ही किसान भाइयों को उनके श्रम और लागत का सही प्रतिफल प्राप्त हो सकेगा।  आइये हम अपने 'कृषिका' ब्लॉग पर खेती किसानी में विभिन्न महीनों में संपन्न किये जाने वाले समसामयिक कृषि कार्यों का संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत करते है।    
शीत ऋतु का जनवरी माह जिसे हम पौष-माघ भी कहते है, सबसे ठंडा महिना होता है। इस माह मकर शंक्राति, लोहड़ी और गणतन्त दिवस जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार पुरे जोश और उमंग से मनाये जाते है.  इस समय  दिन छोटे और रातें लम्बी हो जाती है.इस माह तापक्रम कम हो जाता है, कहीं-कहीं पाला पड़ने की संभावना रहती है. सापेक्ष आद्रता इस माह अधिक होती है. इस माह उच्चतम और न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28 और 14C के आस-पास हो सकता है।  कुछ स्थानों पर शीतकालीन वर्षा भी हो सकती है। फसलोत्पादन में पौष-माघ अर्थात जनवरी माह में संपन्न किये जाने वाले संभावित कृषि कार्यों पर फसलवार चर्चा प्रस्तुत है। 
माह के मूल मंत्र
कुशल जल प्रबंधन: सिचाई जल का किफायती उपयोग करने के लिए बूँद-बूँद सिंचाई और फब्बारा सिंचाई विधियों का उपयोग करें ताकि सीमित जल में अधिकतम फसलों की सिंचाई कर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।  फसलों को पाले से बचाने के लिए शाम के समय सिंचाई करना चाहिए. फसलों की क्रांतिक अवास्थों पर सिंचाई अवश्य करें।
वर्मी कम्पोस्ट: इस माह पशु शाळा का कूड़ा-करकट,घास-फूस और फसलों के अवशेष काफी मात्रा में उपलब्ध होते है।  इनसे बहुमूल्य वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करें. इसके इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में सुधार होगा और उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है। 
v गन्ना: शरदकालीन गन्ने में 1/3 नत्रजन की अंतिम क़िस्त कतारों में देकर सिंचाई करें. पिछले वर्ष लगाये गए  गन्ने की तैयार फसल की कटाई कर गुड़ बनाये अथवा उपज को यथाशीघ्र गन्ना कारखाने भेजने की व्यवस्था करें। गन्ने की पेड़ी फसल का प्रबंधन करें।
v गन्ने की बसंतकालीन  फसल लगाने के लिए खेत की तैयारी और उन्नत किस्म के स्वस्थ बीज का चयन कर करें ।
v गेहूँ : फसल 21-25 दिन में सिंचाई उत्तम पैदावार के लिए आवश्यक है क्योंकि इस समय शिखर जड़े (किरीट जड़ें) विकसित होती है। फसल में कल्ले फूटने की अवस्था में भी भूमि में पर्याप्त नमीं बनाए रखें। माह के अंत में 1/3  नत्रजन उर्वरक की शेष मात्रा फसल के कूंडों  में देवें।
v दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 5 लीटर क्लोरपायरोफ़ॉस 5 लीटर पानी में घोलकर 50 किग्रा रेत के साथ मिलाकर गेंहू की खड़ी फसल में भुरकाव कर सिंचाई करें।
v गेँहू के खेतो में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो की रोकथाम हेतु   2,4-डी सोडियम साल्ट (80 %)  या फिर 2,4-डी इस्टर (34.6 %) 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लिटर पानी में घोलकर बोआई के 30 दिन बाद परन्तु 32 दिन के अन्दर  छिडकाव करें।  संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे गेंहूसा, जंगली जई आदि के नियंत्रण हेतु फिनोक्साप्रोप पी 100-120 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर  की दर से 700 लिटर पानी में मिलाकर बोवाई के लगभग 28 दिन बाद किन्तु 35 दिन के अन्दर छिडकाव करें। मैट्रीब्युजिन 175-210 ग्राम सक्रिय तत्व अथवा सल्फोसल्फ्यूरोन 750-1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी के 25 दिन बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर छिडकाव करने से  संकरी पत्ती वाले और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रित रहते है। 
v पाला संभावित इलाकों में खेतों के आस-पास घास-फूस जलाकर धुआं करें जिससे तापमान बढ़ने से पाला पड़ने की संभावना कम हो जाती है. शाम के समय खेत में सिंचाई कर देने से भी पाले से फसल का बचाव होता है।    
v चना: फसल में फूल आने की अवस्था में एक सिंचाई देने से दाना अच्छा पड़ेगा तथा उपज में बढ़ोत्तरी होगी।  चने की फसल में फलीबेधक कीड़ा की रोकथाम के लिये फली बनना प्रारम्भ होते ही प्रोफेनोफ़ॉस 40 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 44 ई.सी. अथवा प्रोफेनोफ़ॉस 50 ई.सी. के 1 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v चना में संकरी  पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु  क्युजेलोफॉप इथाइल  40-50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 15 दिन बाद किन्तु 20 दिन के अन्दर छिडकाव करना चाहिए।
v सरसों: फसल  में फली बनने की अवस्था में सिंचाई अवश्य करें। इससे दाने मोटे होगे और उपज में बढ़त होगी।  वातावरण का तापमान कम तथा नमीं अधिक होने पर फसल में माहू  कीट का प्रकोप तेज हो जाता है. यह हलके हरे-पीले  रंग का कीट होता है जो समूह में रहकर पौधों की कलियाँ,पुष्प और फलिओं का रस चूसकर फसल को भारी हानि पहुचाते है।  इसके नियंत्रण  हेतु मिथाइलऑक्सीडेमेटोन 25 ई.सी.या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 750 मि.ली/हे. या इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल.का 200 मि.ली./हे.पानी में घोलकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिडकाव करें।  फसल में आरा मक्खी का प्रकोप होने पर ट्राइएजोफ़ॉस 40 ई.सी. दवा 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। 
v  मटर व मसूर: इन फसलों  में फूल बनते समय सिंचाई करें. खरपतवार नियंत्रण के उपाय करें. हरी मटर की  10-15 दिन के अंतर से मुलायम   फलियाँ तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें । इन फसलों में भभूतिया रोग (पावडरी मिल्ड्यू) के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 1.5 ग्राम या ट्राइडेमार्फ़ 1 मिली दवा का छिडकाव प्रति लीटर पानी की दर से  करना चाहिए। प्रथम छिडकाव के 15 दिन बाद दूसरा छिडकाव करना चाहिए। 
v अलसी में फूल और फल बनने की अवस्था में सिंचाई करें। फसल में कलिका मक्खी का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 125 मि.ली./हे. की दर से 15 दिन के अन्तराल से करें। पौधों में  कलियाँ  निकलते ही उक्त दवा का प्रथम छिडकाव करें।
v सूरजमुखी: फसल की बुआई इस माह भी की जा सकती है. पिछले माह बोई गई फसल में नाइट्रोजन की अंतिम क़िस्त बोआई के 30 दिन बाद कतारों में देकर सिंचाई करें।
v रबी मक्का: इसमें फसल की घुटनों तक की अवस्था और झंडा निर्माण की अवस्था में सिंचाई करें। सिंचाई के पूर्व निराई-गुड़ाई और मिट्टी चढाने के समय नत्रजन की शेष मात्रा देवें।
v अरहर: फसल में फूल और फलियों में दाना भरने की अवस्था में सिंचाई करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है। फली छेदक कीट के नियंत्रण हेतु फसल में फूल निकलते समय क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी. 1250 मिली या ट्राईएजोफ़ॉस 40 ई.सी. 1 लीटर या स्पाइनोसेड 45 एस.सी.250 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर शाम के समय छिडकाव करें।

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