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शनिवार, 27 मई 2017

सामयिक कृषि: वैशाख-ज्येष्ठ (मई) माह की कृषि कार्य योजना


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)


               ग्रीष्म ऋतु का माह मई अर्थात वैशाख-ज्येष्ठ में सूरज की तपन पूरे शबाब पर होती है। एक तरफ हम सब शादी-विवाह समारोह आयोजित करने और उसमे शिरकत करने में व्यस्त और मस्त  रहते है तो दूसरी तरफ  भयंकर गर्मी और  गर्म हवाएं, आंधी-तूफान के  अलावा पानी-बिजली की किल्लत से जन-जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। इस माह वातावरण का औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 4 एवं 26.5 डिग्री सेन्टीग्रेड के इर्द गिर्द होता है। वायु गति तेज यानी लगभग 10.2 किमी प्रति घंटा होती है। तापक्रम में निरंतर वृद्धि होना, आद्रता में कमीं  तथा तेज हवाएँ चलना इस माह की विशेषताएं हैं। तमाम कठिनाइयों के  बावजूद कृषि में ग्रीष्म ऋतु का अपना महत्व है। वातावरण और धरती की तपन से कीट-रोग और  खरपतवार नष्ट हो  जाते है।  अधिक गर्मी बेहतर मानसून का शुभ संकेत मानी जाती है। इस माह किसान भाइयों को तीन बातें व्यवहार में  लाने का संकल्प लेवें तो निश्चित ही कृषि को लाभप्रद बनाया जा सकता है। 

इस माह के  मूल मंत्र

गर्मी की जुताई-एक काम तीन आरामः गर्मी की जुताई से सूर्य की तेज किरणें भूमि के अन्दर प्रवेश कर जाती है जिससे भूमिगत कीड़ों के अण्डे, इल्लियां व वयस्क कीट नष्ट हो जाते हैं। फसलों में लगने वाले उखटा, जड़गलन आदि रोगों के रोगाणु व सब्जियों की जड़ों में गांठ बनाने वाले सूत्रकृमि भी नष्ट हो जाते हैं। दूब घास, कांस, मोथा, गाजर घास आदि खरपतवारों में कमी आती है तथा खेत की मिट्टी में ढेले बन जाने से वर्षा जल सोखने की क्षमता बढ़ जाती है।
खाद्यान्न का सुरक्षित भंडारण : देश में  प्रति वर्ष लगभग 10 % अनाज पर्याप्त और उचित भण्डारण न होने के कारण नष्ट हो जाता है। अतः अनाज की हानि से बचने के लिए इनका उचित भण्डारण परम आवश्यक है। अनाज भण्डारण वाले कमरे/पात्र की साफ़ सफाई कर मैलाथिऑन का छिड़काव करें. धुप में सुखाये अनाज को छाया में ठंडा करके ही भण्डारण करना चाहिए। भण्डारण के समय अनाज वाली फसलों में 12, तिलहनी फसलों में 8, दलहनी फसलों में 9 और सोयाबीन आदि के दानों में 10 % से कम नमीं रहना चाहिए।     
फसल अवशेष न जलाएँ : फसल कटाई उपरान्त खेत में फसल अवशेष (नरवाई) जलाने से एक ओर पर्यावरण प्रदूषित होता है, वही दूसरी ओर मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मिट्टी में इपस्थित लाभदायक सुक्ष्मजीवी और बहुपयोगी केंचुआ भी नष्ट हो जाते है। फसल अवशेष में आग ना लगाये बल्कि इससे भूषा तैयार कर पशुओं के आहार के रूप में प्रयोग करें। फसलों के ठूंठ आदि को खेत में रोटावेटर चलाकर भूमि में ही मिला देने से ये खाद का काम करते है। फसल अवशेष से उम्दा किस्म की जैविक खाद/कम्पोस्ट भी तैयार किया जा सकता है। 
            वैशाख-ज्येष्ठ अर्थात मई माह खरीफ फसलों के लिए खेत तैयार करने और विभिन्न फसलों में लगने वाले आदान की व्यवस्था का समय है। इस माह फसलोत्पादन में संपन्न किये जाने वाले कृषि कार्यों की चर्चा प्रस्तुत है।   
v खरीफ में बोई जाने बाली फसलों  की उन्नत किस्मों के प्रमाणित  बीज एवं आवश्यकतानुसार खाद एवं उर्वरकों  की व्यवस्था कर लेवें । खेतों  में ग्रीष्मकालीन जुताई करें एवं गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट मिटटी में अच्छी प्रकार से  मिलाएं। धान की फसल में हरी खाद देना चाहते है तो खेत में हरी खाद वाली फसलों जैसे ढैंचा, सनई आदि की बुआई करने का यह उत्तम समय है। 
v गेहूँ: फसल की थ्रेशर से गहाई कर उपज को  सुखाकर भण्डारण की उचित व्यवस्था करें । आगामी वर्ष के लिये प्रयोग किये जाने वाले गेहूँ बीज को सौर ताप विधि से उपचारित कर सहेज कर रखें।
v जौ, चना व मसूरः इन फसलों की गहाई न की गई हो तो जल्द कर उचित स्थान पर भण्डारित कर लें ताकि वर्षा आदि से नुकसान न हो।
v ग्रीष्म कालीन उर्द व मूंगः इन फसलों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। इन फसलों  में सफेद मक्खी तथा  फुदका कीट नियंत्रण हेतु मिथाइलडेमेटान 25 ई.सी. 625 मिली. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 750 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। फलियों की तुड़ाई के बाद शेष फसल को खेत में पलट देने से यह हरी खाद का कार्य करती है।
v सूरजमुखीः आवश्यकतानुसार फसल की गुड़ाई कर पौधों पर मिट्टी चढाने के उपरान्त  हल्की सिंचाई करें  ताकि पौधे गिरे नहीं। पक्षियों (विशेषकर तोते व चिड़ियों) से फसल का बचाव करें। रोमिल इल्ली से फसल की सुरक्षा के लिये पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण का 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें . माहू की रोकथाम के लिये मिथाइल डेमेटान 25 ई.सी. की एक लीटर दवा या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1000 मिली. दवा को 600-800 लीटर पानी में घ¨लकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।
v चारा फसलें: ज्वार चरी व मक्का की बुवाई करें। पूर्व में लगाई गई लोबिया की 60-70 दिन की अवस्था में कटाई करें। आवश्यकतानुसार  सिंचाई करें। सिंचित क्षेत्रों में खेत में अथवा खेत की मेंड़ों पर हाथी घास ( संकर नेपियर) लगाये। 
v मक्का: अप्रैल में बोई गई मक्का फसल में पानी लगायें तथा आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें।
v धानः सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में देर एवं मध्यम समय में पकने वाली  किस्मों के  समय पर रोपण हेतु पौधशाला में बीज की बुवाई मई माह के अन्तिम सप्ताह से 15 जून तक करें।
vगन्नाः  गर्मियों में 7-10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें। माह के अन्त तक निर्धारित शेष उर्वरक फसल की कतारों  में डालें।  कीट प्रकोप की संभावना होने पर  न्यूवाक्रान 40 ई.सी. को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें ।

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