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गुरुवार, 25 मई 2017

समसामयिक कृषि: मार्गशीर्ष-पौष (दिसम्बर) माह की प्रमुख कृषि गतिबिधियाँ



डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर 
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 


         कृषि और किसानों  के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की खेती-किसानी की विज्ञान सम्मत समसामयिक जानकारियां खेत किसान तक उनकी अपनी मातृ भाषा में पहुंचाई  जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर पौध सरंक्षण,फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं  से किसानों को अवगत  कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
हेमन्त ऋतु के  माह दिसम्बर यानी मार्गशीर्ष-पौष  में तापक्रम काफी कम हो जाता है, इसलिए ठंड बढ़ जाती है।सापेक्ष आद्रता मध्यम एवं वायुगति शांत रहती है। इस माह औसतन  अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 27 एवं 10.1 डिग्री सेन्टीग्रेड होता  है। वायु गति 4.2 किमी प्रति घंटा के आस-पास  होती है। कुछ स्थानों  में कोहरा-पाला पड़ने की संभावना रहती है। इस माह गुरूघासीदास जयंती, ईद-ए-मिलाद एवं क्रिसमस डे  जैसे महत्वपूर्ण त्योहार जोश और उमंग के साथ मनाये जाते है।  फसलोत्पादन में इस माह नियत समय पर संपन्न किये जाने वाले आवश्यक कृषि कार्य प्रस्तुत है।

गेहूँ: यदि गेहूँ की बुवाई अब तक न कर सके हों तो इस महीने के पहले पखवाड़े तक अवश्य कर लें। इस समय की बुवाई के लिए पिछेती किस्मों का चयन करें। प्रति हक्टेयर 125 किलोग्राम बीज प्रयोग करें। बुवाई कतारों  में 15-18 सेमी की दूरी पर करें।  बुवाई से 30 दिन के अन्दर एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2,4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 625 ग्राम प्रति हे. दवा को बुवाई के 35-40 दिन के अन्दर एकसार छिड़काव करें। गेंहू के प्रमुख खरपतवार  गेंहूँसा और जंगली जई की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटूरान की 0.75 सक्रिय तत्व 30-35 दिन में या अंकुरण पूर्व पैडीमेथालीन 1.0 किग्रा. सक्रिय तत्व 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

पूर्व में बोये गये गेंहू में नत्रजन की शेष मात्रा दें तथा 15-20 दिन के  अन्तराल से सिंचाई करते रहें। शरद ऋतु की वर्षा होने  पर असिंचित गेंहू में नत्रजन धारी उर्वरक सिफारिस अनुसार गेंहू की कतारों में देवें ।

जौः जौ  की पछेती किस्मों की बुवाई करें। एक हैक्टेयर  के लिए 100-110 किलो बीज लेकर बुवाई कतारों में 18-20 से.मी. की दूरी पर करें। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के बाद ही करें। समय पर बोई गई फसल में बुवाई के 30-35 दिन बाद पानी लगायें, निराई करें।

तोरिया व सरसों: तोरिया दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक आमतौर पर पक जाती है। पकी हुई फसल की कटाई करें तथा समय पर बोई गई सरसों में दाने भरने की अवस्था में यदि वर्षा न हो तथा प्रथम पखवाडे में सिंचाई न की हो तो सिंचाई करना चाहिए।

मटरः समय से बोई गई मटर में फूल आने से पहले एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। तना छेदक की रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व 3 प्रतिशत कार्बोफ्यूरान की 30 किग्रा. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। फसल में भभूतिया रोग के  लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक या केराथिन या कार्बेन्डाजिम के दो  छिड़काव करना चाहिए। गेरूआ रोग लगने पर जिनेब या ट्राइडेमार्फ या आक्सीकार्बाक्सिन फंफूदनाशी का दो  बार छिड़काव करें।

मसूरः मसूर की पछेती बुवाई इस माह भी कर सकते हैं। इसके लिए 50-60 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। बोने से पहले बीजोपचार करें। एक हैक्टेयर में 15 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा फॉस्फोरस  प्रयोग करना चाहिए। बुवाई कूड़ों में 15-20 से.मी. दूरी पर करनी चाहिए। पूर्व में बोई गई फसल में फूल-फली बनते समय सिंचाई करें। 

बरसीम,लूर्सन एवं जईः बुवाई के  45-50 दिन बाद इन चारा फसलों  की प्रथम कटाई कर लेना चाहिए। इसके  बाद 25-30 दिन के  अन्तराल से कटाई करते रहें। भूमि सतह से 5-7 से.मी. की ऊंचाई पर कटाई करें। कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देना चाहिए। गर्मी में पशुओं  के  लिए लूर्सन व बरसीम चारे का संरक्षण करें।

गन्नाः शरदकालीन गन्ने में नवम्बर के द्वितीय पखवाडे़ में सिंचाई न की गई हो तो सिंचाई करके निराई-गुड़ाई करें। शरदकालीन गन्ने के साथ राई व तोरिया की सह फसली खेती में आवश्यकतानुसार सिंचाई करके निराई-गुड़ाई लाभप्रद होता है। गेंहूँ के साथ सह-फसली खेती में बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रथम सिंचाई करें । गेंहूँ के लिये 30 किग्रा नत्रजन प्रति हैक्टेयर की दर से ट्रापडेसिंग के रूप में प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने की बुवाई हेतु खेत तैयार करें।

धान व अन्य खरीफ फसलों  की कटाई गहाई संपन्न करें । शीघ्र पकने वाली अरहर की कटाई करें। उपज को  साफ कर मंडी या बाजार भेजें। शेष उपज को  उचित स्थान पर भंडारित करें।

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