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सोमवार, 29 मई 2017

सामयिक उद्यानिकी :फाल्गुन-चैत्र (मार्च) में बागवानी के प्रमुख कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए। भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है ।  इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) के सामयिक कार्यों को समझना और नियत समय पर उन्हें व्यवहार में लाना अति आवश्यक है।  आइये हम बागवानी में कौन से कार्य कब संपन्न करना आवश्यक है, इस पर माह वार चर्चा करते है। 
फाल्गुन-चैत्र  अर्थात मार्च  माह में खेतों में सरसों के पीले फूलों की न्यारी छटा निहारते ही बनती है। होली आती है तो लगने लगता है की शर्दी की विदाई का समय आ गया है।  वास्तव में यह प्रकृति की जाती हुई बहार और ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का महिना है। कद्दू वर्गीय सब्जिओं जैसे लौकी, खीरा, करेला, तोरई आदि की खेती मचान बनाकर करने से परम्परागत विधि (समतल खेत एवं मेड़ें बनाकर) से उगाई गई फसल की अपेक्षा प्रति इकाई क्षेत्र से 3-4 गुना अधिक आमदनी प्राप्त होती है।  मचान विधि द्वारा उगाई गई बेल वाली सब्जी के पौधों को अधिक प्रकाश और हवा मिलने से उनमें पर्याप्त बढ़वार होती है। पौधों में अधिकतर फल लटके होने की वजह से अधिक लम्बे होते है, उनका आकर और रंग अधिक समरूप और आकर्षक होने से बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त होता है।  इस माह  बागवानी में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श करते  है। 

सब्जियों में इस माह

v इस माह तैयार सब्जियां जैसे पछेती गोभी, मटर, शिमला मिर्च,टमाटर,बैगन, मिर्च, सूरन, मूली,गाजर, शलजम  आदि की तुड़ाई/खुदाई कर बिक्री हेतु बाजार भेजें। प्याज और लहसुन की फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिचाई करते रहें। इन फसलों की  रोगों से सुरक्षा हेतु 0.2 % इंडोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। 
v भिन्डी: ग्रीष्मकालीन फसल की बुआई इस माह भी की जा सकती है.  पीत  शिरा रोग प्रतिरोधी किस्में किसी प्रतिष्ठित संस्थान से खरीदे।  भिन्डी की उन्नत किस्मों का बीज 18-20 किलो तथा संकर किस्मों का बीज 15 किलो प्रति हेक्टेयर बुआई हेतु पर्याप्त होता है. बीज बोने से पहले 24 घंटे पानी में डुबोकर रखने के बाद बुआई करने से अंकुरण अच्छा होता है। 
v टमाटर: पूर्व में लगाई गई फसल/पौध में निंदाई-गुड़ाई-सिंचाई समय पर करते रहें। पौध लगाने के 30 और 50 दिन बाद उन्नत किस्मों में 25-25 किलो नत्रजन तथा संकर किस्मों में 35-35 किलों नत्रजन कतारों में देकर सिंचाई करें। 
v बैगन: वर्षाकालीन फसल के लिए तैयार नर्सरी में पानी देकर सावधानी से पौध निकालकर तैयार खेत में रोपाई करें। रोपाई से पूर्व खेत की अंतिम जुताई के समय 8-10 टन गोबर की खाद के अलावा 40-50 किलो नत्रजन, 60-70 किलो फॉस्फोरस और 30-40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें. पौधों की रोपाई शाम के समय कतारों में 60-70 से.मी. तथा पौधों के मध्य 50-60 से.मी. की दूरी पर करने के पश्चात हल्की सिंचाई करें. पौध रोपाई के 20 दिन बाद तथा पुष्पन अवस्था के समय 20-20 किलो नत्रजन कतार में देकर गुड़ाई और सिंचाई करे। 
v मिर्च: ग्रीष्मकालीन फसल हेतु यदि पिछले माह नर्सरी तैयार नहीं की है तो इस माह नर्सरी लगाई जा सकती है।  एक हेक्टेयर के लिए 1-1.5 किलों बीज की नर्सरी पर्याप्त होती है. नर्सरी में 8-10 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाने के उपरांत बुआई कर हल्की सिंचाई करें।    
v कुष्मांड कुल की सब्जियां: इस माह के प्रथम सप्ताह तक तोरई, कद्दू,करेला, टिंडा, लौकी  आदि की बुआई करें। बुआई पूर्व बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें।  खेत की अंतिम जुताई के समय 10-12 टन गोबर की खाद तथा बुआई के पहले 25 किलो नत्रजन, 30 किलो फॉस्फोरस तथा 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से थालों  में देवें। बुआई के एक माह बाद 30 किलो नत्रजन फसल में फूल आते समय देकर सिंचाई करें।  गत माह लगाई गई सब्जिओं में आवश्यकतानुसार उर्वरक और प्रति सप्ताह सिंचाई देते रहें। 
v ग्रीष्मकालीन सब्जिओं की पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर (मिलड्यू रोग) दिखने पर 500 ग्राम वेविस्टिन को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।  पत्तों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे नज़र आने पर 1000 ग्राम डाईथेन एम-45 को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें। खीरा वर्गीय फसलों में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिंचाई करते रहें। ककड़ी के तैयार मुलायम फलों को तोड़कर बाजार भेजें। कददू का लाल गिडार कीट की रोकथाम हेतु एसीफेट 75 एस.पी. के 0.1 % घोल का छिड़काव करें। माहू और फल वेधक मक्खी की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. के 0.1 % घोल का फल तोड़ने के पश्चात  छिड़काव करें। प्रति थाला 10-15 ग्राम यूरिया डालकर सिंचाई करें। 
v गत माह लगाई गई बैंगन और टमाटर की फसलों में आवश्यकतानुसार गुड़ाई और सिंचाई करें।  फल छेदक कीट के नियंत्रण हेतु 500 मिली मैलाथियान 500 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें।  दवाई छिडकने से पहले तैयार फलों को तोड़ कर बिक्री हेतु बाजार भेजें। 
v हल्दी/अदरक: इन फसलों में समय-समय पर सिंचाई करते रहे।  तैयार फसल की खुदाई-सफाई कर  विक्रय हेतु बाजार भेजें।  अदरक और हल्दी  की नई फसल  लगाने का यह उपयुक्त समय है। खेत की अंतिम जुताई के समय 100 किग्रा नत्रजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से कतारों में देवें।  इनके स्वस्थ कंदो को 45  x 15  से.मी. की दूरी पर मेंड़ों पर लगाना चाहिए। बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमीं होना चाहिए।     
v आलू: फसल में सिंचाई देना बंद कर देना चाहिए और इसकी पत्तिया सूखने पर खुदाई आरम्भ कर देना चाहिए। देर से खुदाई करने  आलू सड़ना शुरू हो जाता है। हरे,छोटे और कटे-फटे आलुओं को अलग कर शेष मात्रा को या  विक्रय हेतु बाजार भेजें अथवा  शीत गृह भेजने की व्यवस्था करें। 

फलोत्पादन में इस माह

v बाग-बगीचों में अधिकतर पेड़ लगाने, काट-छांट तथा खाद-पानी देने का कार्य संपन्न कर लेवें।बगीचे में आवश्यकतानुसार पानी देते रहें। 
v आम: आम के वृक्षों में फूल आने के बाद फल बनने तक सिंचाई नहीं करें।   जिन पौधों में फूल/फल नहीं आ रहे है, उनमें थालों की निंदाई-गुड़ाई कर समय-समय पर सिंचाई करते रहें। इस माह  आम के वृक्षों में भुनगा (मेंगो हॉपर) कीट का प्रकोप हो सकता है। कीड़े दिखने पर क्यूनालफॉस 0.05 % (2 मिली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर) छिड़काव करें। कीड़ो का प्रकोप कम नहीं होता है तो दूसरा छिड़काव मिथाइल डिमेटॉन 0.04 % (1.5  मिली. दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर) का करने से कीड़े समाप्त हो जाते है।  पत्तों पर सफ़ेद चूर्ण रोग के लक्षण दिखते ही फल बनने के तुरंत बाद डाइनोकेप 0.05  % (0.5  मिली. दवा प्रति लीटर पानी) का  छिड़काव 20  दिन के अंतराल से दो बार  करें।
v सिंचाई की सुविधा होने तथा गर्म हवा/धूप  से पौधों की सुरक्षा कर सकें तो इस माह अमरुद, आंवला, अनार, नीबू आदि के पौधे लगाये जा सकते है।  इन पौधों की कटिंग्स लगाने से पहले आई.बी.ए. के 1000  पी.पी.एम. घोल (एक ग्राम प्रति लीटर पानी) में डुबोकर लगाये. पौधे लगाने के लिए गड्ढे निर्धारित आकार के खोदें।  नीबू के लिए 90 x 90 x 90 से.मी., अनार व आंवला के लिए 60 x 60 x 60 से.मी.तथा बेर के लिए 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोदकर 10-15 दिन तक धूप में तपायें जिससे मिट्टी में उपस्थित कीड़े-मकोड़े नष्ट हो जावें।  इसके बाद 15-20 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 1 किलो सुपर फॉस्फेट के अलावा क्युनालफ़ॉस 1.5% डस्ट  मिट्टी में मिलाकर  गड्ढों में भरने के पश्चात इनमें  पौधे लगाकर हल्की सिंचाई करें। इसके पश्चात 7-8 दिन के अंतराल से बून्द-बून्द विधि से सिंचाई की व्यवस्था करें। 
v अमरुद: अमरुद के पौधों से वर्षा ऋतु के फल लेना है तो 1-3 वर्षीय पौधों में 100 ग्राम, 4-6 वर्षीय में 150-200 ग्राम, 7-10 वर्षीय में 250-300 ग्राम यूरिया  खाद  प्रति पौधा देकर सिंचाई करें।   फल नहीं लेना है तो खाद और सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। तना भेदक कीट की रोकथाम के उपाय करें।   
vलीची: इस माह लीची में फूल आने के 15  दिन पूर्व 3 ग्राम जिंक सल्फेट और 3 ग्राम यूरिया को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से फूल अधिक आते है। फूल आने के दो सप्ताह पहले एक सिंचाई करें। 
v  नीबू वर्गीय फल: केंकर रोग से रोगथाम हेतु ब्लाइटॉक्स-50 (0.25%) का छिड़काव करें।  पीले-पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें। पेड़ों के टनों को चूने से पॉट देवें। पौधों में गूटी बांधने का कार्य करें।  पौधशाला में मूलवृंत तैयार करने के वास्ते बीजों की बुआई करें।  
v फल परिरक्षण: संतरा और नींबू  का शरबत  तैयार करें। केला,पपीता, सेब तथा आंवला का जैम तैयार करें। अनार का रस तैयार किया जा सकता है।  आंवला और सेब का मुरब्बा तैयार किया जा सकता है।  आलू के चिप्स तैयार किये जा सकते है। 

पुष्पोत्पादन में इस माह

v गर्मी वाले फूलों जैसे बालसम,फ्रेंच गेंदा, पिटूनिया, पोर्चुलाका, साल्विया, सूरजमुखी, जिनिया, वर्विना आदि की बुआई करें।  बुआई के बाद नियमित रूप से नर्सरी की सिंचाई तथा निराई-गुडाई करते रहें। 
v सर्दियों में जो फूल खिल चुके है उनके बीज एकत्रित करना प्रारंभ करें। 
v गुलाब के पौधों की सूखी डालें और फूलों को बराबर काटकर निकालते रहें. गमलों में प्रतिदिन पानी देना चाहिए तथा क्यारिओं में 4-5 दिन में पानी देवें. पौधों में बडिंग कर नए पौधे तैयार करें। 
v गमलों में लगे हुए कन्दीय पुष्प जैसे डह्लिया, लिलियम आदि में पानी देना बंद कर देवें। इनकी पत्तिय सूखने पर गमलों को छायादार स्थान में रख देवें। 
v गमलों में लगाये गए गुलदावदी के पौधों की निराई और सिंचाई करते रहे तथा तेज धुप से इनकी सुरक्षा करें। 
v इस माह नई हेज़ जैसे लेंटाना, टिकोमा, हेमेलिया,केशिया आदि  लगाने के लिए क्यारिओं में बीज बोये जा सकते है।  यह माह प्रसारण एवं कलम लगाने के लिए बहुत उपयुक्त है. हाईविस्क्स, हेमेलिया, एकलिफा, बोगेनविलिया, डूरेंटा, इरेंथियम आदि का प्रसारण भलीभांति किया जा सकता है। 
v इस माह लॉन की घास शीघ्रता से बढती है, अतः इसमें सिंचाई, मशीन से कटाई  और रोलर चलाने का कार्य करते रहे।  नए लॉन  में घास लगाने के लिए भूमि की तैयारी करें। 

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

सामयिक कृषि : फाल्गुन-चैत्र (मार्च) माह के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय
राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 

कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।

मार्च यानि फाल्गुन-चैत्र बसंत ऋतु आगमन का माह है।  इस माह पौधों में वृद्धि, पुष्पन तथा फलन की सक्रियता प्रारंभ हो जाती है।  वातावरण का तापमान बढ़ने से गर्मी का आभास होने लगता है। तापमान बढ़ने से फसलों की जलमांग बढ़ जाती है।  इस माह वातावरण का अधिकतम और न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 35.0 और 21. डिग्री  से.ग्रे. के आस पास रहता है। इस समय  सापेक्ष आद्रता कम हो जाती है तथा वायु की गति तेज होने लगती है। कभी-कभी तेज आंधी आने से आम की फसल को हांनि होती है। इस महीने हम महाशिवरात्रि और भाई चारे का त्यौहार  होली उमंग और उत्साह से मनाते  है।  बसंत ऋतु आगमन पर चारों तरफ फूलों की बहार  से  जीवन में खुशहाली छा जाती है । इस माह किसान  भाइयों को गर्मी से पौधों की सुरक्षा तथा सिंचाई नालियों की मरम्मत कर लेना चाहिए।  कृषि के लिए पानी की उपलब्धता निरंतर  घटती जा रही है. अतः दिन प्रति दिन घटते जल संसाधनों  से अधिकतम फसलों में सिंचाई कर भरपूर पैदावार लेने के लिए किसान भाइयों को फसलों में सिंचाई के लिए निम्न तीन विधियां अमल में लाना चाहिए।  
माह के तीन सूत्र
ü बूंद-बूंद सिंचाई: इस टपक सिंचाई भी कहते है जो की उथली मिट्टी, दोमट मिट्टी तथा ऊंची-नीची जमीनों के लिए सर्वश्रेठ तथा सब्जिओं, फल-फूलों में सिंचाई के लिए उपयुक्त विधि है।  इसमें पानी बूंद-बूंद कर गिरता है जो कि आवश्यकतानुसार  पौधों की जड़ो तक पहुँचता है।  इस विधि में जल रिसाव और वाष्पन से पानी की हांनि कम होती है जिससे 50-75 % पानी की वचत होती है और उपज में बढ़ोत्तरी होती है। 
ü फब्बारा विधि: सिंचाई की यह विधि कम पानी वाले क्षेत्रों की बलुई मिट्टी, ऊंची-नीची जमीनों के लिए सर्वथा उपयुक्त पाई गई है।  यह  गेंहू, गन्ना,कपास, मूंगफली, सब्जिओं तथा फूलों की खेती के लिए बेहद उपयोगी है।  इस विधि में पानी वर्षा की बौछारों की भांति गिरता है जिससे फसल में कीट-रोग कम लगते है तथा पैदावार में इजाफा होता है। 
ü सिंचाई की एकांतर कूंड विधि: सिंचाई की इस विधि में गन्ना, मक्का और कपास जैसी फसलों में प्रत्येक दुसरे कूंड में पानी दिया जाता है जिससे 20-30 % पानी की वचत होती है. फसलों की उपज और  उर्वरक दक्षता भी बढती है। 
फसलोत्पादन में फाल्गुन-चैत्र अर्थात मार्च महीने में संपन्न किये जाने वाले कृषि कार्यों की फसल वार चर्चा करते है .

  •     गेंहू एवं जौ : समय पर बोई गयी  गेंहू की फसल में दानों की दुधियावस्था एवं  दाना पकते समय सिंचाई आवश्यक है। देरी से बोये गए गेंहू में बालियां आने की अवस्था पर सिंचाई करें। फसल में फूल बनते और दाना विकसित होते समय मिट्टी में नमीं की कमीं से उपज में भारी गिरावट होती है।   असिंचित क्षेत्रों में गेंहू की कटाई व मड़ाई का कार्य करें। जौ की फसल में दानों की दुधिया अवस्था में सिचाई करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है।   
  •     रबी दलहन : चना, मटर, तिवड़ा   और  मसूर की फसल में 75 % फलियाँ और पत्तियाँ पीली हो जाय  तथा पौधे सूखने लगें तो इन फसलों की सावधानीपूर्वक  कटाई संपन्न करें  और फसल के पूरी तरह सूखने पर  मड़ाई करें । देर से बोई गई इन फसलों में दाना भरने की अवस्था में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोत्तरी होती है। 
  •     राइ-सरसों: सरसों फसल की कटाई और गहाई का कार्य यथाशीघ्र संपन्न करें। फसल की 75 % फलियों के सुनहरा पीला पड़ने पर कटाई करना उचित रहता है।  कटाई सुबह करने से फलिओं के चटकने का अंदेशा नहीं रहता है।  अधिक पकने पर दाने झड़ने लगते है. काटी हुई फसल को खलिहान में अधिक समय तक ना रखे अन्यथा पेन्टेड बग नमक कीट  दानों को क्षति पहुंचा सकता है।  यदि शीघ्र गहाई संभव नहीं है तो खलिहान की भूमि (फर्श) को गोबर से लीप कर उसमे मिथाइल पैराथियान 2% पाउडर का भुरकाव कर फसल ढेर बनाकर रखें।
  •     अलसी एवं सूरजमुखी : फसल की समय पर कटाई एवं मड़ाई संपन्न करें। देर से कटाई करने पर दाने छिटकने लगते है जिससे उपज में नुकसान होता है।  सूरजमुखी में बुआई के 15-20 दिन बाद विरलीकरण द्वारा पौधों से पौधों के मध्य 25-30 से. मी. की दूरी कायम कर लेवें। इसमें प्रथम सिंचाई 20-25 दिन में करें। इसके बाद 30 किलो नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से कतारों में देकर पौधों में मिटटी चढाने का कार्य करें। 
  •     धान : ग्रीष्मकालीन धान  में  बकाया नत्रजन कतारों में देवें।  खेत में उपयुक्त जल स्तर बनाये रखने के लिए   सिंचाई करते रहें। कीट रोग आक्रमण से फसल की सुरक्षा करें। 
  •    मक्का: पूर्व में बोई गई मक्का में झंडे आने पर बकाया नत्रजन पौधों के तने के पास डालकर मिट्टी चढाने का कार्य करें जिससे फसल का गिरने से बचाव हो सके. इस समय एक हल्की सिंचाई भी करें।  इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल से सिंचाई तथा  आवश्यकतानुसार पौध सरंक्षण कार्य करे। 
  •       गन्ना: बसंतकालीन गन्ने की बुआई/रोपाई करने का यह उचित समय है। ध्यान रहे कि बीज हेतु उन्नत किस्म के स्वस्थ गन्ने के ऊपरी दो तिहाई भाग से 2-3 आँखों वाले टुकड़ों को ही बुआई के लिए इस्तेमाल करें।  गन्ने की तैयार फसल की कटाई कर शीघ्र ही विक्रय हेतु शक्कर कारखाना भेजने की व्यवस्था करें। 
  •          गन्ने के साथ सहफसली खेती: गन्ने में शुरू में बढ़वार धीमी होती है इसका लाभ उठाते हुए गन्ने की दो कतारों के बीच एक पंक्ति शीघ्र तैयार होने वाली मूंग, उर्द, गुआर फली, लोबिया, भिन्डी आदि की अन्तः फसली खेती की जा सकती है।  इससे गन्ने में खरपतवार प्रकोप कम होता है तथा अतरिक्त फसल भी मिल जाती है। 
  •      गन्ने में दीमक और जड़ वेधक कीट से सुरक्षा हेतु 2.5 लीटर क्लोरोपायरोफ़ॉस 20 ई सी का 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। शरदकालीन गन्ने में 1/3 नत्रजन की दूसरी किश्त इस माह के अंत तक देवें और सिंचाई करें ।
  •        अरहर: देरी से बोई गई अरहर की फसल में फलियों में दाना भरते समय सिंचाई करें तथा फली छेदक कीट से फसल की सुरक्षा हेतु आवश्यक उपाय करें। समय पर लगाईं गई फसल पकने पर सावधानीपूर्वक  कटाई और गहाई करें ।
  •     मूंग व् उर्द : सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन उर्द और  मूंग  की बुआई इस माह के प्रथम पखवाड़े तक संपन्न कर लेवें।  इनकी शीघ्र तैयार होने वाली किस्मे लगाये जिससे वर्षा आगमन से पहले फसल तैयार हो जावे।  प्रति हेक्टेयर मूंग का 25-30 तथा उर्द का 30-35   किग्रा बीज को  थिरम से उपचारित करने के बाद 25-30 सेमी की दूरी पर कतारों में बोया जाना चाहिए। इन फसलों में बुआई के समय 20 किग्रा नत्रजन, 40-50 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 20 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। फसल बुआई पश्चात खेत में हल्की सिंचाई देवें। 
  •   चारा फसलें: बरसीम और लूसर्न की कटाई  आवश्यकतानुसार करते रहें  तथा प्रत्येक कटाई पश्चात सिंचाई  अवश्य करें। बीज बनाने हेतु बरसीम की कटाई इस माह रोक देवें। ग्रीष्काल हेतु हरे चारे के लिए  ज्वार व बाजरा की बुआई करें।  ज्वार का 30 किलो बीज प्रति हेक्टेयर 25 से.मी. की दूरी पर कतारों में बोये।  बाजरा की बुआई कतारों में 30 से.मी. की दूरी पर करें। इसके लिए 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है।   इन फसलो के  साथ मिश्रित फसल के रूप में  लोबिया की बुआई करे।  चारे हेतु ज्वार की कटाई पुष्पावस्था के समय ही करें। छोटी अवस्था में ज्वार चारा जहरीला (एच.सी. एन.) होता है। 
  •    वर्ष भर हरा चारा उत्पादन हेतु संकर हांथी घास (नैपियर) लगायें। इसे जड़ो या टनों के टुकड़ों से उगाया जाता है. लगभग 50 सेमी लम्बे 2-3 गांठों वाले 30,000 टुकड़े प्रति हेक्टेयर लगते है. इसके लिए आधा टुकड़ा जमीन  में तथा आधा टुकड़ा ऊपर रखक कर कतार से कतार  75 से.मी. तथा पौध से पौध  60 से.मी. की दूरी रखते हुए तैयार खेत में इनका रोपण करने के बाद  सिंचाई करें।

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

रविवार, 28 मई 2017

उद्यानिकी:भाद्रपद-अश्विन (सितम्बर) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य


डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

वर्षा-शरद ऋतु के  सितम्बर यानी भाद्रपद-अश्विन माह में गणेशोत्सव, ईद-उल-जुहा, नवाखाई  जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाये जाते है । पितृ मोक्ष अमावस्या भी इस माह मनाते है।   सितम्बर माह में वर्षा की सघनता कम होने लगती है जिसके  कारण वातावरण का तापक्रम कुछ बढ़ जाता है। इस माह औसतन  अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 31 एवं 23 डिग्री सेन्टीग्रेड के  आस-पास होता है। वायु गति भी अमूमन  8.2 किमी प्रति घंटा होती है।  इस प्रकार जलवायु सम रहती है। भूमि जल से पूरी तरह संतृप्त हो जाती है। प्रकृति में चहु ओर हरियाली और  खुशहाली नजर आती है। खरीफ की विभिन्न फसलें फूल एवं फलन अवस्था में रहती हैं। इस माह की संभावित कृषि कार्य योजना अग्र-प्रस्तुत है।

सब्जियों में इस माह
  • टमाटरः अच्छी पैदावार व आमदनी प्राप्त करने के लिये इस माह टमाटर की रोपाई करें। खेत की आखिरी जुताई के  समय खेत में 75 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फॉस्फोरस  व 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालें। टमाटर पौध  की 50 x 50 से.मी. की दूरी (कतार एवं पौध के मध्य) पर सांयकाल के समय रोपाई करें। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सी सिंचाई करें। पुरानी फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई करें। तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें।
  • बैंगनः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें । तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। यदि फल छेदक,कीट का आक्रमण अधिक दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत सेविन नामक दवा का घोल बनाकर फल तोड़ने के पश्चात छिड़काव करें। बीज वाली फसल से अवांछित पौधों को निकालें व पके फलों से बीज निकालकर सुखायें।
  • मिर्च:फसल में आवश्यकतानुासार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। बीज वाली फसल से अवांछित पौधों को निकालें व पकी मिर्चो को तोड़कर सुखायें व बीज निकालें।
  • भिन्डी व लोबिया: फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। तैयार मुलायम फलों  व  फलियों को समय से तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
  • फूलगोभी,पातगोभी,गांठगोभी: पूर्व में लगाई गई गोभी वर्गीय फसलों  में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से गुड़ाई करते समय डालें। मध्यकालीन फूलगोभी की रोपाई का उचित समय है। खेत की आखिरी जुताई पर 75 किग्रा. नत्रजन, 100 किग्रा. फॉस्फोरस  व 100 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर डाले। 5050 से.मी. की दूरी पर रोपाई करें, व तुरन्त हल्की सिंचाई करें। पातगोभी, गांठगोभी व पिछेती गोभी की  पौधशाला में बोआई करें जिससे अक्टूबर माह में इनकी रोपाई की जा सके।
  • खीरावर्गीय सब्जियां: तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार निकाई गुड़ाई व सिंचाई करें । खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
  • अदरक,हल्दी व अरबी:फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई तथा  मिट्टी चढ़ाने के  पश्चात नमीं की कमी होने पर सिंचाई करें। निंदाई-गुड़ाई के समय 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल की कतारों  में डालें। यदि फसल पर झुलसा नामक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
  • आलू: माह के अंत में अगेती आलू (कुफरी चन्द्रमुखी) की बोआई की जा सकती है। खेत की अच्छी तरह तैयारी करे। खेत की अंतिम जुताई के समय  100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फॉस्फोरस  व 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर डालकर बोआई करें।
  • पालक, धनियां व मैथीः अगेती फसलों की बोआई  इस माह की जा सकती है। खेत की अच्छी तरह जुताई करने के उपरांत  50 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस  व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालकर बोआई करें। पालक की  आलग्रीन, पूसा ज्योति, धनिया की  पंतहरितमा तथा मैंथी की पूसा अर्लीवंचिग, पूसा कसूरी तथा पंत रागिनी  उन्नत किस्में हैं।
  • मूली: पूर्व में बोई गई मूली की फसल में निराई, गुड़ाई करें। तैयार जड़ों को बाजार भेजने की व्यवस्था करें। इस माह बोआई के लिये तैयार खेत में 50 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर डालकर बोआई करें।


फलोत्पादन में इस माह
  • आमः  इस माह तक नए बाग की रोपाई का कार्य पूरा कर लें। शाखा गांठ कीट की रोकथाम हेतु रोगर (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें। श्याम वर्ण रोग की रोकथाम हेतु कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव करें। पछेती किस्मों की आम की   गुठलियों को इकट्ठा करके पौधशाला में बुआई करें।
  • केलाः  पौधों के बगल से निकलने वाली अवांछित पुत्तियों को निकाल दें। नए बाग रोपण का कार्य इस माह तक  पूरा कर लें।
  • नीबूवर्गीय फलः  पेड़ों में नत्रजन व पोटाश की तीसरी मात्रा का प्रयोग करें। सूक्ष्म तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें। फल गिरने से बचाने के लिए 2,4-डी या नेप्थलीन एसिटिक अम्ल का छिड़काव करें।              
  • अमरूदः बरसाती फसल को तोड़कर बाजार भेजें। तनाबेधक कीट की रोकथाम हेतु थायोडान का छिड़काव करें।
  • पपीताः नए बाग लगाने हेतु पौधों की रोपाई का कार्य करें।
  • बेरः  पौधों पर चूर्णिल आसिता रोग लगने की संभावना होती है, जिसकी  रोकथाम हेतु कैराथेन का छिड़काव करें।
  • लीचीः  वृक्षों में उर्वरकों ( 50 किलो सड़ी गोबर की खाद, 3 किलो कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट, 3  किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 1 किग्रा म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पेड़) का प्रयोग करें।  तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए रूई को पेट्रोल में भिगोकर, छिद्रों में भरकर इन छिद्रों को गीली मिट्टी से बंद कर दें।
  • कटहलः पके फलों के बीजों को निकाल कर पौधशाला में बुआई करें। नए बाग लगाने के लिए रोपण का कार्य करें।
  • बेल पेड़ों पर शाटहोल रोग की रोकथाम हेतु कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव करें। नए बाग लगाने हेतु रोपण का कार्य करें।
  • करौंदाः पके फलों की तुड़ाई करके बीज निकाल लंे तथा नए पौधे तैयार करने के लिए बीजों की पौधशाला में बुआई करें।              
  • फल एवं सब्जी संरक्षण: बाजार में उपलब्ध सेब तथा नाशपती के विभिन्न उत्पाद इस माह  बनाये जा सकते है। केला से  जैम व  टाफी बना सकते हैं। केले के पेड़ के भीतरी कोमल तने से मुरब्बा तथा कैंण्डी बना सकते है। इसके अलावा नींबू के विभिन्न उत्पाद बनाकर परिरक्षित किये जा सकते है ।

पुष्पोत्पादन में इस माह
  • रजनीगंधा स्पाइक की कटाई-छटाई, पैकिंग एवं विपणन कार्य करें।
  • ग्लैडियोलस के लिए क्यारियों की तैयारी करें तथा 10 किग्रा सड़े गोबर की खाद, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 200 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाएं।
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समसामयिक उद्यानिकी: आषाढ़-श्रावण (जुलाई) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
सस्यविज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय,  
राज मोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर  (छत्तीसगढ़)

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए. भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है. स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है। इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं।  अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   इसी तारतम्य में हम उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में जुलाई (आषाढ़-श्रावण) माह में संपन्न किये जाने वाले  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे है। 

सब्जियों में इस माह
  • टमाटरः टमाटर की रोपाई हेतु खेत की तैयारी अच्छी तरह करें। तैयार खेत की आखिरी जुताई पर 160 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 80 किलोग्राम पोटाशधारी उर्वरक भूमि में मिलायें।
  • बैंगनः अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये इस माह के प्रथम व द्वितीय सप्ताह से ही रोपाई करें। तैयार खेत में क्यारियां बनायें तथा 60 x 60 सेमी. की दूरी पर सांयकाल के  समय रोपाई करें व हल्की सिंचाई करें।
  • मिर्चः फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। आगामी फसल के लिए इस माह में पौध की रोपाई खेत में 60 x 45 सेमी. की दूरी पर करें।
  • फूलगोभीः अगेती फूलगोभी की फसल की रोपाई ऊंचे खेत में करें। खेत की अच्छी तरह तैयारी करें तथा क्यारियां बनाकर 50 x 30 सेमी. की दूरी पर पौधों की रोपाई करें।
  • मूली: अगेती फसल प्राप्त करने के लिए ऊंचे स्थान पर मूली की बुवाई की जाती है लेकिन फसल की बहुत देखभाल करनी पड़ेगी। इसके लिए 30 सेमी. की दूरी पर हल्की सी मेड़े बनायें उन पर 10-15 सेमी. की दूरी पर बीज बोयें।
  • पालकः अगेती पालक की बुवाई की जा सकती है। ऊंचे खेत में आखिरी जुताई पर 60:50:50 के अनुपात में नत्रजन फॉस्फोरस तथा पोटाश मिलायें तथा 30 सेमी. की दूरी पर कतारें में बुवाई करें।
  • भिण्डी, लोबियाः इन फसलों की तैयार मुलायम फलियों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें। जल निकास की उचित व्यवस्था करें। फसल में 0.15 प्रतिशत मैटासिस्टाक्स नामक कीटनाशी का छिड़काव अवश्य करें जिससे बीमारियां नहीं बढ़ेगी तथा कीटों का आक्रमण कम होगा।
  • ग्वारः  इसकी मुलायम तैयार फलियों को तोड़कर बाजार भेजें।  कीटों के बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत थायोडान नामक कीटनाशी का एक छिड़काव अवश्य करें।
  • खीरावर्गीय फसलें: इस वर्ग की फसलों में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई और सिंचाई करें। कीटों के बचाव के लिए यथोचित कीटनाशी का छिड़काव करें। इनकी लताओं को  मचान बनाकर चढ़ाएं। खेत में जल निकासी की व्यवस्था करें।
  • चौलाईः तैयार चैलाई के पौधों को उखाड़े व साफ करें व बाजार भेजें। बाजार में भेजने से पूर्व छोटी-छोटी गड्ड़िया बना लें।
  • शकरकन्दः शकरकन्द की बुआई इस माह में करने से अच्छी पैदावार होती है। खेत को तैयार कर 60 से.मी. की दूरी पर कतारों में  रोपाई करें।
  • अदरक एवं हल्दीः इन कन्दीय  फसलों में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व जल निकास की उचित व्यवस्था करे। अरबी की खुदाई करके बाजार भेजने की व्यवस्था करें। इन फसलों में झुलसा बीमारी से बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब नामक दवा का एक छिड़काव करें।

फलोत्पादन में इस माह
  • आमः आम के  नए बाग लगाने हेतु उन्नत किस्म के पौधों  की रोपाई का कार्य प्रारम्भ करें। मध्यम समय में पकने वाली किस्मों के फलों को तोड़कर बाजार भेजें। बाग में जल निकास की व्यवस्था करें। नर्सरी में वीनियर कलम बांधने का कार्य प्रारम्भ करें।
  • केलाः केले के पौधों  से अवांछित पुत्तियों को निकाल दें। निराई-गुड़ाई कर पेड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें। फल वाले पेड़ों में बांस या लकड़ी का सहारा दें। नए बाग की  रोपाई का कार्य करें। रोपाई हेतु तलवार की शक्ल की पुत्तियों का चयन करें।
  • नीबूवर्गीय फलः नए बाग लगाने का कार्य प्रारम्भ करें। पौधशाला की सफाई करें। बाग में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। कैंकर र¨ग की रोकथाम हेतु काॅपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव करें।
  • अमरूदः नए बाग रोपण का कार्य करें। फलदार बाग में नाइट्रोजन धारी उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • पपीताः बाग में जल निकास का प्रबंध करें। तना विगलन रोग की रोकथाम हेतु पेड़ों की कॉपर  आक्सीक्लोराइड घोल से सिंचाई करें।
  • बेर: बगीचे में जल निकास का प्रंबध करें। नये बाग रोपण का कार्य करें। पौधशाला में बीजों की बोआई करें। चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम हेतु कैराथेन का छिड़काव करें।
  • लीचीः बगीचे में जल निकास का प्रंबध करें। नए बाग रोपाई का कार्य प्रारम्भ करें। नए पौधे तैयार करने के लिए गूटी बांधने का कार्य इस माह अवश्य समाप्त कर लें।
  • आवंलाः बाग की रोपाई का कार्य प्रारंभ कर दें। जल निकास की व्यवस्था करें। प्ररोह गांठ व रस्ट रोग की रोकथाम हेतु नुवाक्रान व इन्डोफिल एम-45 अथवा मैनकोजेब का छिड़काव करें।
  • कटहलः कटहल फलों को तोड़कर बाजार भेजें। जल निकास की व्यवस्था करें। पौधे रोपाई का कार्य करें।
  • फल-सब्जी संरक्षणः आम के विभिन्न उत्पाद, जामुन का सिरका बना सकते है। नींबू से अचार व स्क्वैश, बनाएं । बरसाती अमरूद की जैम या जेली बना सकते हैं। करौंदा की जैली तथा अचार बना सकते हैं। अनानास से विभिन्न उत्पाद भी बना सकते है। करेले का अचार बना सकते है।
पुष्पोत्पादन में इस माह
  • देशी गुलाब से एक शाख वाले तैयार पौधों को जिनमें आगे बडिंग  किया जाना है क्यारियों में एक फीट की दूरी (फ्लोरीबन्डा 70 सेमी. की दूरी) पर लगायें । अवांछित कल्लों  को तोड़कर निराई करें। 
  • रजनीगन्धा में यदि वर्षा न हो रही हो तो सिंचाई एवं निराई गुड़ाई। पोषक तत्वों के मिक्सचर का 15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें । 
  • रजनीगंधा में स्पाइक की कली में फुटाव आते ही सिकेटियर से स्पाइक को 4-6 सेमी. नीचे से काटकर बाजार में बेचने भेजें। गेंदा में जल निकास का उचित प्रबंध करें।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।