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रविवार, 28 मई 2017

समसामयिक उद्यानिकी: आषाढ़-श्रावण (जुलाई) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
सस्यविज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय,  
राज मोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर  (छत्तीसगढ़)

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए. भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है. स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है। इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है। प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं।  अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।   इसी तारतम्य में हम उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में जुलाई (आषाढ़-श्रावण) माह में संपन्न किये जाने वाले  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे है। 

सब्जियों में इस माह
  • टमाटरः टमाटर की रोपाई हेतु खेत की तैयारी अच्छी तरह करें। तैयार खेत की आखिरी जुताई पर 160 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 80 किलोग्राम पोटाशधारी उर्वरक भूमि में मिलायें।
  • बैंगनः अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिये इस माह के प्रथम व द्वितीय सप्ताह से ही रोपाई करें। तैयार खेत में क्यारियां बनायें तथा 60 x 60 सेमी. की दूरी पर सांयकाल के  समय रोपाई करें व हल्की सिंचाई करें।
  • मिर्चः फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। आगामी फसल के लिए इस माह में पौध की रोपाई खेत में 60 x 45 सेमी. की दूरी पर करें।
  • फूलगोभीः अगेती फूलगोभी की फसल की रोपाई ऊंचे खेत में करें। खेत की अच्छी तरह तैयारी करें तथा क्यारियां बनाकर 50 x 30 सेमी. की दूरी पर पौधों की रोपाई करें।
  • मूली: अगेती फसल प्राप्त करने के लिए ऊंचे स्थान पर मूली की बुवाई की जाती है लेकिन फसल की बहुत देखभाल करनी पड़ेगी। इसके लिए 30 सेमी. की दूरी पर हल्की सी मेड़े बनायें उन पर 10-15 सेमी. की दूरी पर बीज बोयें।
  • पालकः अगेती पालक की बुवाई की जा सकती है। ऊंचे खेत में आखिरी जुताई पर 60:50:50 के अनुपात में नत्रजन फॉस्फोरस तथा पोटाश मिलायें तथा 30 सेमी. की दूरी पर कतारें में बुवाई करें।
  • भिण्डी, लोबियाः इन फसलों की तैयार मुलायम फलियों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करें। जल निकास की उचित व्यवस्था करें। फसल में 0.15 प्रतिशत मैटासिस्टाक्स नामक कीटनाशी का छिड़काव अवश्य करें जिससे बीमारियां नहीं बढ़ेगी तथा कीटों का आक्रमण कम होगा।
  • ग्वारः  इसकी मुलायम तैयार फलियों को तोड़कर बाजार भेजें।  कीटों के बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत थायोडान नामक कीटनाशी का एक छिड़काव अवश्य करें।
  • खीरावर्गीय फसलें: इस वर्ग की फसलों में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई और सिंचाई करें। कीटों के बचाव के लिए यथोचित कीटनाशी का छिड़काव करें। इनकी लताओं को  मचान बनाकर चढ़ाएं। खेत में जल निकासी की व्यवस्था करें।
  • चौलाईः तैयार चैलाई के पौधों को उखाड़े व साफ करें व बाजार भेजें। बाजार में भेजने से पूर्व छोटी-छोटी गड्ड़िया बना लें।
  • शकरकन्दः शकरकन्द की बुआई इस माह में करने से अच्छी पैदावार होती है। खेत को तैयार कर 60 से.मी. की दूरी पर कतारों में  रोपाई करें।
  • अदरक एवं हल्दीः इन कन्दीय  फसलों में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व जल निकास की उचित व्यवस्था करे। अरबी की खुदाई करके बाजार भेजने की व्यवस्था करें। इन फसलों में झुलसा बीमारी से बचाव के लिए 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब नामक दवा का एक छिड़काव करें।

फलोत्पादन में इस माह
  • आमः आम के  नए बाग लगाने हेतु उन्नत किस्म के पौधों  की रोपाई का कार्य प्रारम्भ करें। मध्यम समय में पकने वाली किस्मों के फलों को तोड़कर बाजार भेजें। बाग में जल निकास की व्यवस्था करें। नर्सरी में वीनियर कलम बांधने का कार्य प्रारम्भ करें।
  • केलाः केले के पौधों  से अवांछित पुत्तियों को निकाल दें। निराई-गुड़ाई कर पेड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें। फल वाले पेड़ों में बांस या लकड़ी का सहारा दें। नए बाग की  रोपाई का कार्य करें। रोपाई हेतु तलवार की शक्ल की पुत्तियों का चयन करें।
  • नीबूवर्गीय फलः नए बाग लगाने का कार्य प्रारम्भ करें। पौधशाला की सफाई करें। बाग में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। कैंकर र¨ग की रोकथाम हेतु काॅपर ऑक्सी क्लोराइड का छिड़काव करें।
  • अमरूदः नए बाग रोपण का कार्य करें। फलदार बाग में नाइट्रोजन धारी उर्वरकों का प्रयोग करें।
  • पपीताः बाग में जल निकास का प्रबंध करें। तना विगलन रोग की रोकथाम हेतु पेड़ों की कॉपर  आक्सीक्लोराइड घोल से सिंचाई करें।
  • बेर: बगीचे में जल निकास का प्रंबध करें। नये बाग रोपण का कार्य करें। पौधशाला में बीजों की बोआई करें। चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम हेतु कैराथेन का छिड़काव करें।
  • लीचीः बगीचे में जल निकास का प्रंबध करें। नए बाग रोपाई का कार्य प्रारम्भ करें। नए पौधे तैयार करने के लिए गूटी बांधने का कार्य इस माह अवश्य समाप्त कर लें।
  • आवंलाः बाग की रोपाई का कार्य प्रारंभ कर दें। जल निकास की व्यवस्था करें। प्ररोह गांठ व रस्ट रोग की रोकथाम हेतु नुवाक्रान व इन्डोफिल एम-45 अथवा मैनकोजेब का छिड़काव करें।
  • कटहलः कटहल फलों को तोड़कर बाजार भेजें। जल निकास की व्यवस्था करें। पौधे रोपाई का कार्य करें।
  • फल-सब्जी संरक्षणः आम के विभिन्न उत्पाद, जामुन का सिरका बना सकते है। नींबू से अचार व स्क्वैश, बनाएं । बरसाती अमरूद की जैम या जेली बना सकते हैं। करौंदा की जैली तथा अचार बना सकते हैं। अनानास से विभिन्न उत्पाद भी बना सकते है। करेले का अचार बना सकते है।
पुष्पोत्पादन में इस माह
  • देशी गुलाब से एक शाख वाले तैयार पौधों को जिनमें आगे बडिंग  किया जाना है क्यारियों में एक फीट की दूरी (फ्लोरीबन्डा 70 सेमी. की दूरी) पर लगायें । अवांछित कल्लों  को तोड़कर निराई करें। 
  • रजनीगन्धा में यदि वर्षा न हो रही हो तो सिंचाई एवं निराई गुड़ाई। पोषक तत्वों के मिक्सचर का 15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें । 
  • रजनीगंधा में स्पाइक की कली में फुटाव आते ही सिकेटियर से स्पाइक को 4-6 सेमी. नीचे से काटकर बाजार में बेचने भेजें। गेंदा में जल निकास का उचित प्रबंध करें।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

सामयिक उद्यानिकी :कार्तिक-मार्गशीर्ष (नवम्बर) माह के प्रमुख कृषि कार्यक्रम

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
सस्य विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
राज मोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर  (छत्तीसगढ़)

शरद-हेमन्त ऋतु के  माह नवम्बर यानी कार्तिक-मार्गशीर्ष (अग्रहायण) में तापक्रम कम हो जाने से ठंड का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। वायु लगभग शांत हो जाती है। कहीं-कहीं शरदकालीन वर्षा होने से सापेक्ष आद्रता बढ़ जाती है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.6 एवं 12.6 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति लगभग  4.4 किमी प्रति घंटा होती है।

सब्जियों में इस माह
  • आलू: आलू की बोआई इस माह भी की जा सकती है। आलू की कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, कुफरी ख्याति,कुफरी चिपसोना-1, कुफरी सूर्या एवं कुफरी पुष्कर प्रमुख उन्नत किस्में है।  आलू की  खेत की आखिरी जुताई पर 75:100:100 किलोग्राम नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालें तथा 60 x 15 सेमी. की दूरी पर बोआई करें। पूर्व में लगाये गये आलू फसल की माहू से रक्षा हेतु फ़ोरेट 10 जी 10 किग्रा. प्रति हेक्टेयर फसल पर मिट्टी चढ़ाते समय मिलायें तथा झुलसा रोग के  नियंत्रण हेतु बोर्डो मिक्सर  एक प्रतिशत या डायथेन एम-45 के 0.25 प्रतिशत घोल  का छिड़काव करें।
  • टमाटर, मिर्च, बैंगनः  तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजें। बाजार भेजने से पूर्व छटाई करे। कीड़ों से फसल  की सुरक्षा के  लिए मैलाथियान दवा का छिड़काव करें।
  • मूली, गाजरः इन फसलों की तैयार जड़ों की खुदाई एवं सफाई कर बाजार भेजें। आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करते रहें।
  • मटरः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। तैयार हरी मुलायम  फलियों की तुड़ाई कर बाजार भेजें। बीज वाली फसल से अवांछित पौधों को निकाले।
  • फूलगोभी, पात गोभी, गांठ गोभी: तैयार गोभियों की कटाई कर बाजार भेजें। देर से रोपी गई फसलों में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल की कतारों में देवें  एवं आवश्यकतनुसार निराई-गुड़ाईव सिंचाई करते रहें।
  • पालक, मैथी, धनियां: तैयार हरी पत्तियों की कटाई करें, छोटी-छोटी गड्डियाँ बनायें व बाजार भेजें। कटाई के बाद 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से डालें व हल्की सी सिंचाई करें। धनियाँ फसल को  पाउडरी मिल्डयू रोग से बचाने के  लिए सल्फेक्स 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
  • लहसुनः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से डालें। यदि पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत मैंक¨जेब नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
  • शकरकंदः फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। यूरिया डालते समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें।
  • अदरक, हल्दीः तैयार अदरक की खुदाई कर बाजार भेजें। खुदाई के बाद कंदो को अच्छी तरह साफ करें व सुखायें। हल्दी की फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाइर्, सिंचाई करें। पत्तियों पर धब्बे दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
  • अरबीः तैयार अरबी की खुदाई कर बाजार भेजें। बाजार भेजने से पूर्व अरबी की छटाई करें व सफाई करें।
फलोत्पादन में इस माह
  • आमः आम को मीली बग से बचाने के लिए तनों पर पालीथीन की 30 से.मी. चैड़ी पट्टी गोलाई में बांधकर दोनों सिरों पर ग्रीस लगाना चाहिए। थालों व तनों पर फालीडाल धूल का बुरकाव करना चाहिए।
  • केले के पौधों से  अवांछित पुत्तियों को निकाल देना चाहिए। 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। बाग की निराई करें।
  • नीबूवर्गीय फलः पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें। थालों की सिंचाई व एक बार निराई करें। यदि फल गिर रहे हों तो नेफथलीन एसिटिक अम्ल (10 पी.पी.एम.) का छिड़काव करें।
  • अमरूदः बाग की सिंचाई करें। फलों को चिड़ियों से बचाएं।
  • पपीता के पौधों में  15 दिन के अंतराल से सिंचाई करें। थालों की निराई करें।
  • अंगूर बाग की सफाई करें।
  • बेरः बाग की सफाई उपरांत  सिंचाई करें। फल मक्खी की रोकथाम हेतु मैलाथियान अथवा डायमेक्रान का छिड़काव करें।
  • लीचीः पेड़ों के थालों की सफाई करें। बाग को स्वच्छ रखें। छोटे   पौधों को पाले से बचाने हेतु छप्पर का  प्रयोग करें।
  • आंवला बाग की सफाई करें। यदि फल गिर रहे हों तो बोरेक्स का छिड़काव करें। बाग की सफाई करें। इस माह के अंत तक अगेती किस्मों के पेड़ों की तुड़ाई करें।
  • कटहल, बेल एवं करोंदा: इन फलों के   बाग की सफाई करें। एक सिंचाई करें।
  • फल-सब्जी संरक्षणः कुम्हणा से पेठा से मुरब्बा तथा कैण्डी, अदरक से अचार, मुरब्बा तथा कैण्डी बनाई जाती है। अंगूर से रस तथा शर्बत बना सकते है। केले के विभिन्न उत्पाद, पपीते की चटनी तथा सब्जियों के अचार बना सकते है। आवले के भी उत्पाद इस माह बनाये जाते है
पुष्पोत्पादन में इस माह
  • देशी गुलाब की कलम काटकर अगले वर्ष के स्टाक के लिए क्यारियों में लगाना। गुलाब के पौधों को यदि जुलाई अगस्त में न लगाया गया हो तो तैयार खेत में संस्तुत दूरी पर इस माह तैयार खेत में  लगावें । आवश्यकता अनुरूप  सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई कार्य करते रहे। 
  • ग्लैडियोलस के स्थानीय मौसम के अनुसार सप्ताह में एक या दो बार सिंचाई तथा कीटों एवं रोगों की रोकथाम हेतु समयानुसार दवाओं का छिड़काव करें। 
  • रजनीगन्धा के स्पाइक की कटाई, छटाई, पैकिंग एवं विपणन कर पोषक तत्वों के मिश्रण का अन्तिम पर्णीय छिड़काव (पुष्पन अवधि में कुल 16 छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर)। जनवरी माह में रोपाई हेतु गेंदा को क्यारियों में दुबारा लगा दें।  
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

समसामयिक कृषि: कार्तिक-मार्गशीर्ष (नवम्बर) माह के प्रमुख कृषि कार्यक्रम

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय
राजमोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर  (छत्तीसगढ़)

         कृषि और किसानों के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियो एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सस्य क्रियाओं  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। कृषि के ये कार्य यदि नियत समय पर संपन्न नहीं होते है तो फसलों का लागत मूल्य भी हाथ में आना मुश्किल हो जाता है। अतः किसान भाइयों को कृषि के सभी कार्य उचित समय पर संपन्न करने का प्रयास करना चाहिए।  
शरद-हेमन्त ऋतु के  माह नवम्बर यानी कार्तिक-मार्गशीर्ष (अग्रहायण) में तापक्रम कम हो जाने से ठंड का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। वायु लगभग शांत हो जाती है। कहीं-कहीं शरदकालीन वर्षा होने से सापेक्ष आद्रता बढ़ जाती है। इस माह औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28.6 एवं 12.6 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। वायु गति लगभग  4.4 किमी प्रति घंटा होती है। इस माह भाई दूज, तुलसी विवाह एवं गुरूनानक जयंती जैसे महत्वपूर्ण पर्व धूम धाम से मनाये जाने के  साथ साथ किसान भाई खरीफ फसलों की विदाई कर नव धान्य घर में भंडारित करते है, साथ ही वें  रबी फसलों के  स्वागत की तैयारी में व्यस्त हो जाते है। खरीफ की लहलहाती फसलों  से बेहतर पैदावार की उम्मीद लगाए एवं रबी फसलों  से खेतों  में हरियाली स्थापित करने किसान भाई प्रयासरत होते है। इस माह की प्रस्तावित कृषि कार्य योजना अग्र-प्रस्तुत है।

इस माह के मूलमंत्र

1.प्रमाणित आदान-उन्नत खेतीः हम पूर्व में भी चर्चा कर चुके  है कि लाभकारी खेती का मूल आधार क्षेत्र विशेष के  लिए सुझाई गई उन्नत किस्मों के  प्रमाणित बीज, शुद्ध खाद-उर्वरक एवं आवश्यक कीटनाशक, नींदानाशक, फंफूदनाशक दवाएं वैज्ञानिकों  की सलाह पर विश्वसनीय प्रतिष्ठानों  से खरीदकर प्रयोग करने से फसलोत्पादन में इच्छित लाभ अर्जित किया जा सकता है। कम खर्च में अधिकतम फसल सुरक्षा के  लिए आवश्यक है कि बुवाई से पूर्व उचित रोगनाशक व कीटनाशक दवाइयों  से बीज उपचार करें।
2.मिश्रित खेती बेहतर लाभः प्रति इकाई क्षेत्र प्रति इकाई समय के  हिसाब से अधिकतम उपज एवं आमदनी लेने के  लिए मिश्रित खेती (अन्तर्वती खेती) अपनाना चाहिए। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति में तो  इजाफा होता ही है, साथ ही भूमि-नमीं एवं प्रकाश का भी अधिकतम लाभ मिलता है तथा  खेती में संभावित जोखिम भी कम हो जाता है।
3.गेंहू की शिखर जड़ अवस्था के  समय सिंचाईः गेंहू में 21 दिन बाद शिखर जड़ें विकसित होती है। इस समय खेत में नमीं की कमीं होने पर उपज में भारी गिरावट हो सकती है। अतः बुवाई के 20-25 दिन के  दौरान  सिंचाई अवश्य करें। धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों में  बहुधा गेंहू बुवाई के 25-30 दिन बाद पौधों  में तीसरी-चौथी पत्तियों पर हल्के  पीले धब्बे बनते है, जो  कि जस्ते की कमीं के लक्षण है। ऐसी स्थिति में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट व 2.5 प्रतिशत यूरिया का घोल बनाकर 10-15 दिन के  अन्तराल पर छिड़काव करें।

रबी फसलों की बुआई और खरीफ की तैयार फसलों की कटाई और गहाई के लिए सबसे महत्वपूर्ण माह है। फसलोत्पादन में इस माह संपन्न किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यो का संक्षिप्त विवरण अग्र प्रस्तुत है. 
  • धानः शीघ्र व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली धान किस्मों  की कटाई करें। कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई व गहाई कार्य किया जा सकता है। खेत कको रबी फसलों  की बुवाई हेतु तैयार करें।
  • उर्द व मूंगः देर से बोई गई फसल की कटाई कर लें और सुखाकर भंडारण की व्यवस्था करें।
  • सोयाबीन: फसल  की कटाई मे देर नहीं  करना चाहिए अन्यथा फल्लियाँ चटकने लगती है . अतः  पत्तियों के पीले पडते ही फसल काटकर सुखा लें तथा गहाई करके बीज को सुखाकर भण्डारण करना चाहिए।
  • मूंगफलीः मूंगफली की फसल की खुदाई करें एवं फल्लियों को  अच्छी प्रकार से सुखाएं।
  • अरहरः शीध्र पकने वाली किस्मों की 75-80 प्रतिशत फलियां पकने पर कटाई कर लें। लम्बी अवधि की किस्मों में फलीछेदक कीट के रोकथाम के लिए प्रोफेनोफास (50 ईसी.) 1500 मिली. दवा या बी.टी. 8 एल.1000 मिली. प्रति हेक्टर की दर से से छिड़काव करें।
  • तोरियाः सिलिक्व़ा में दाना भरने की अवस्था में यदि खेत में नमीं  की कमीं होने पर  सिंचाई करें। झुलसा, तुलासिता, सफेद गेरूई रोग के नियंत्रण के लिये जिंक मैंगनीज कार्बामेंट 75 प्रतिशित की 2.0 किग्रा दवा को, आवश्यक पानी में घेालकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। माहू, आरा-मक्खी के  नियंत्रण के लिये डाईमेथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल आक्सीडेमेटान 25 ई.सी. 750 मिली. प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घेालकर छिड़काव करें।
  • गेहूं: प्रमुख खाद्यान्न फसल गेंहू की बुवाई का उपयुक्त समय है।सिंचित अवस्था में गेंहू की उन्नत किस्में जैसे कल्याण सोना, सोनालिका, राज-911, एचडी-4530 तथा असिंचि परिस्थिति हेतु हा-65,सी-306 की बुवाई करें। बुवाई पूर्व बीजोपचार करना न भूले। बुवाई हेतु  100-125 किग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। बुवाई कतारों  में 18-22 सेमी. की दूरी पर करें। इसके  लिए बीज बुवाई यंत्र(सीड ड्रिल) या पैरा  विधि का प्रयोग किया जा सकता है। गेंहू की बौनी  किस्मों  की बुवाई 3-4 सेमी. की गहराई पर करें । धान-गेंहू फसल चक्र वाले क्षेत्रों के  लिए शून्य जुताई बुवाई विधि (जीरो  टिल सीड ड्रिल) अपनाने से समय श्रम व पैसे की वचत होती है तथा उपज भी भरपूर प्राप्त होती है। फसल की दीमक से सुरक्षा हेतु बीज को  150 मिली. क्लोरपाइरीफ़ॉस  20 ईसी से उपचारित करने के  पश्चात एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक 10 पैकेट (प्रत्येक 200 ग्राम) से उपचारित करें तथा  छाया में सुखा कर बुवाई करने से पौध सुरक्षा होती है तथा उपज में बढ़ोत्तरी भी होती है।
  • छिडकवां विधि से गेंहू की बुवाई करने पर 25 प्रतिशत ज्यादा बीज का प्रयोग करें। मृदा परीक्षण के अभाव में 120-150 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी से दो तिहाई मात्रा बुवाई के समय आखिरी जुताई के समय मिला दें। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20-25 किग्रा. जिंक सल्फेट खेत में बुवाई के समय प्रयोग करें। गेंहू में प्रथम सिंचाई शीर्ष जड़ निकलने की अवस्था (बुवाई के  21-25 दिन) पर अवश्य करें।
  • राई-सरसों: पिछले माह बोई गई फसल से 15-20 दिन के अन्दर घने पौधे निकालकर उनकी आपस की दूरी 15 से.मी. कर देनी चाहिए। आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचित क्षेत्रों में शेष नत्रजन की टापड्रेसिंग बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिंचाई पर करें। रोग व कीट नियंत्रण तोरिया की तरह करें। सरसों  की बुवाई 15 नवम्बर तक संपन्न कर लें। बुवाई हेतु 4-5 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। पूसा बोल्ड, वरदान, वरुणा, क्रांति, पूसा जय किसान, वैभव व कृष्णा उन्नत किस्में है।
  • चनाः सिंचित दशा में चना की बुवाई इस माह के अंतिम सप्ताह तक संपन्न कर लें। छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों के लिये 60-80 किग्रा तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिये 80-100 किग्रा प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। बुवाई  30 सेमी. की दूरी पर लाइनों से करें। राइजोबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर का प्रयोग बीजोपचार हेतु करना लाभप्रद है। मृदा परीक्षण के अभाव में  20 किग्रा. नत्रजन, 40-50 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कर सकते हैं। बुवाई के 25-30 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई कर दें। बुवाई हेतु जेजी-16, जेजी-11, जेजी-74, जेजी-130, जेजी-315, विजय,वैभव, जेजीके-1, श्वेता (काबुली), जेजीजी-1(गुलाबी) तथा आकाश (हरा) चने की उन्नत किस्में हैं।
  • मटर, मसूरः अक्टूबर माह में बोई गई फसल में सिंचाई, निराई-गुड़ाई आदि करनी चाहिए। इन फसलों की बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवाड़े तक कर लें। मटर के लिये सामान्यतया 80-100 किग्रा बीज तथा मसूर के लिये 30-35 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई लाइनों में करें। दलहनी फसलों को राइबोयिम कल्चर से बीज शोधन करना लाभप्रद है। उर्वरकों  का प्रयोग  चने की भांति करें। मटर की रचना, शुभ्रा, अम्बिका, पारस, जेपी-885, अपर्णा एवं आईपीएफडी-9913 तथा मसूर की लेंश-4076, के-75,जेएल-3 व आईपीएल-81 उन्नत किस्में है।
  • रबी दलहनों  में खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के  3 दिन के  अन्दर पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. 750-1000 मिली. सक्रिय तत्व (2.5-3 लीटर दवा) प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। अंकुरण पश्चात चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के  नियंत्रण के  लिए क्यूजेलोफाप इथाइल (टर्गा सुपर) 40-50 मिली. सक्रिय तत्व (दवा की मात्रा 800-1000 मिली.) प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • तिवड़ाः इस माह की प्रथम पखवाड़े तक तिवड़ा की बुवाई संपन्न करें। पूसा-24, प्रतीक, महातिवड़ा, रतन आदि उन्नत किस्में है। प्रति हैक्टेयर 40-50 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
  • अलसीः अलसी की बुवाई 15 नवम्बर तक पूर्ण कर लें। आर-552, इंदिरा अलसी-32,कार्तिका, दीपिका, पदमिनी, आरएलसी-92, किरण व नीलम अलसी की उन्नत किस्में है। प्रति हैक्टेयर 20-25 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई कतारों  में 25-30 सेमी. की दूरी पर की जाती है।सिंचित अवस्था में 60:30:30 किग्रा. नत्रजन, स्फुर व पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के  समय खेत में मिलाना चाहिए।
  • कपास की चुनाई नियमित समय पर करते रहें। मूँगफली की खुदाई पूर्ण करते हैं। ज्वार-बाजरा, मक्का के भुट्टों की समय पर तुड़ाई करें । भुट्टों को  साफ जगह पर धूप में सुखाने के  लिए एकसार  फैला दें।
  • गन्नाः शरदकालीन गन्ने की बुवाई संपन्न करें। तापक्रम कम होने  से अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गन्ना अंकुरण के  लिए 16-30 डिग्री. से.ग्रे. तापक्रम उत्तम रहता है । देर से गन्ना बुवाई हेतु पालीबैग तकनीक से एक आँख वाले  टुकड़ों  की नर्सरी डालें । देर से कटने वाली  धान फसल के उपरान्त पालीबैग से तैयार गन्ने के पौधों  की रोपाई कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। गत माह में बोये गये गन्ने की फसल में जमाव उपरान्त एक हल्की सिंचाई करें तथा खेत में ओल  आने पर 5 किग्रा. एजोटोबैक्टर व 10 किग्रा. पीएसबी कल्चर प्रति हेक्टर की दर से कतारों में देकर गुड़ाई करें । यदि सह-फसली खेती की गई है तो फसलानुसार शस्य क्रियाएं करें। गन्ने की फसल अगर तैयार हो गई हो तो उसे काट लेते हैं
  • चारा फसलें: पशुओं के  लिए पौष्टिक हरे चारे हेतु  बरसीम, रिजका, जई की बुवाई करें। पिछले माह लगाई गई इन फसलों में सिंचाई करें। 
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समसामयिक उद्यानिकी :अश्विन-कार्तिक (अक्टूबर) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
सस्य विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

कृषि प्रधान देश होते हुए भी भारत में फल एवं सब्जिओं की खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 80 ग्राम है,जबकि अन्य विकासशील देशों में 191 ग्राम, विकसित देशों में 362 ग्राम और  संसार में औसतन 227  ग्राम है।  संतुलित आहार में फल एवं सब्जिओं की मात्रा 268 ग्राम होना चाहिए. भारत में फल एवं सब्जिओं की खेती सीमित क्षेत्र में की जाती है जिससे उत्पादन में कम प्राप्त होता है। स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण फल और सब्जिओं के अन्तर्गत क्षेत्र विस्तार के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन बढाने की आवश्यकता है. इन फसलों से अधिकतम उत्पादन और लाभ अर्जित करने के लिए किसान भाइयों को सम सामयिक कृषि कार्यो पर विशेष ध्यान देना होगा तभी इनकी खेती लाभ का सौदा साबित हो सकती है।  समय की गति के साथ कृषि की सभी क्रियाए चलती रहती है।  अतः समय पर कृषि कार्य संपन्न करने से ही आशातीत सफलता प्राप्त होती है।  प्रकृति के समस्त कार्यो का नियमन समय द्वारा होता है।  उद्यान के कार्य भी समयबद्ध होते हैं। अतः उद्यान के कार्य भी समयानुसार संपन्न होना चाहिए।  इसी तारतम्य में हम उद्यान फसलों (सब्जी, फल और पुष्प) में जुलाई (आषाढ़-श्रावण) माह में संपन्न किये जाने वाले  समसामयिक  कृषि कार्यो पर विमर्श प्रस्तुत कर रहे है। 
आश्विन-कार्तिक यानि अक्टूबर माह में  गुलाबी जाड़े का अहसास होने लगता है। इस माह में मौसम सुहावना और स्वस्थ्यप्रद होने लगता है।  दुर्गोत्सव, दशहरा और दीपावली के उत्सव की चारों  और धूम रहती है। शीत ऋतु की बागवानी को अपनी कल्पना और सूझ-बूझ से सुन्दर,आकर्षक और लाभप्रद  बनाने का यह व्यस्ततम माह है।  इस माह सब्जी और फल-फूल में काफी कार्य करना होता है। इसके लिए मजदूरों की व्यवस्था कर लेवें। वर्षा ऋतु में वाटिका में उगे खरपतवारों की साफ़-सफाई और खेतों की जुताई-गुड़ाई इस माह करना आवश्यक है ताकि शीत ऋतु की फसलों की बुआई/रोपाई नियत समय पर संपन्न की जा सकें।  उद्यानिकी-बागवानी में इस माह के नियत कृषि कार्यों  फसल वार संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। 

सब्जिओं में इस माह  
  • टमाटरः आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करें। फल सड़न व एन्थ्रोक्नोस रोग  से सुरक्षा हेतु  मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। नई फसल की रोपाई का उचित समय है। 60 x 45 सेमी. दूरी पर रोपाई करें। सितम्बर में रोपी गई खड़ी फसल में 50 किग्रा. प्रति हे. की दर से यूरिया खाद देवें।
  • बैंगन, मिर्च एवं मटरः तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। फसल में फल तथा तना छेदक नामक कीट के बचाव के लिये मेलाथियान 50 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1 मिली. या इमीडेक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.3-0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। मिर्च के  तैयार हरे फलों को तोड़कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। हरी मटर की उन्नत किस्मों  की बुवाई करें। सभी  फसलों  में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें।
  • मूली, गाजर, शलजमः इस माह में सभी की बुवाई करें, उचित समय है। खेत की अंतिम जुताई  के  समय 200-250  क्विंटल  सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फॉस्फोरस  व पोटाश मिलाएं । खेत में 30 सेमी. की दूरी पर मेंड़े बनाकर उन पर 10 सेमी. की दूरी पर बीज बोयें।
  • आलूः आलू की बुवाई का कार्य माह के  अंतिम सप्ताह से प्रारंभ करें। बीज 2.5 सेमी. व्यास का 25-30 ग्राम वजन के  लगभग 25-30 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होगी। बुवाई से पूर्व बीज को  कार्बेण्डाजिम 0.1 प्रतिशत के  घोल में एक मिनट तक डुबोकर उपचारित करने के  उपरान्त एजेटोबैक्टर कल्चर से भी उपचारित करें। बुवाई पूर्व 250-300 क्विंटल  गोबर की खाद, 60-75 किग्रा. नत्रजन, 80-100 किग्रा. फॉस्फोरस  एवं 80-100 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलायें । कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी ज्योति आलू की उन्नत किस्में है।
  • फूलगोभी व पत्तागोभीः इनकी रोपाई का उचित समय है। अगेती किस्मों  की तैयार पौध को  60 x 60 सेमी. तथा पिछेती किस्मों को  60 x 45 सेमी. की दूरी पर लगावें। रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें। पौध  लगाने से पूर्व 200-250 क्विंटल  गोबर  की खाद, 75:100:100 किलोग्राम 60-75 किग्रा.नत्रजन, 80 किग्रा. फॉस्फोरस  व 60-80 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलावें। पत्तीखाने वाले कीड़ों के  नियंत्रण के  लिए फूल बनने से पूर्व कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मेलाथियान 5 प्रतिशत डस्ट 20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
  • पालक,मैंथी, धनियां:पूर्व में बोई गई फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। यदि अभी तक बोआई नहीं हो पाई है तो शीघ्र ही बोआई करें। खेत की आखिरी जुताई पर 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालकर 30 सेमी. की दूरी पर कतारे बनायें उनमें बुआई करें।
  • प्याजः रबी प्याज के  लिए नर्सरी तैयार करें। प्याज की सफेद किस्मों  में पूसा व्हाईट फ्लेट व राउन्ड, पंजाब सफेद, नासिक रेड,एग्रीफाउन्ड डार्क रेड, अर्का कल्याण आदि उपयुक्त है। प्रति हेक्टेयर फसल के  लिए 10 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। बीज को  उचित क्यारियों  में बोकर बारीक भुरभुरी देशी खाद या मिट्टी तथा  सूखी घास से ढंक दें तथा अंकुरण उपरान्त हटा दें।
  • लहसुनः लहसुन की बोआई का यह उचित समय है। खेत की आखिरी जुताई के  समय 200-250 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाएं। बुवाई से पहले 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश उर्वरक  देवें । तैयार  क्यारियों में कलिकाओं  (लहसुन की पुत्तियों) की बुवाई कतार से कतार 10-15 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 7-8 सेमी. रखें। बुवाई हेतु 5 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर कलिकाओं (पुत्तियों) की आवश्यकता होती है। खेत की मृदा  में इस समय पर्याप्त मात्रा में नमीं होनी चाहिए।
  • कद्दूवर्गीय सब्जियाँ: तैयार फलों की तोड़ाई कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। फल मक्खी की रोकथाम के  लिए मैलाथियान 50 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें  अथवा 100 ग्राम शक्कर को  एक लीटर पानी में घोलकर उसमें 10 मिली. मेलाथियान 50 ई.सी. डाल दें तथा जगह-जगह पर मिट्टी के  प्यालों  में इसे लटका कर रखें। तुलासिता (डाउनी मिल्ड्यू) व झुलसा रोग  से बचाव हेतु मेंकोजेब 2 ग्राम या कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें।
  • शकरकंदः फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करें। बेलों की पलटाई करें।
  • अदरक, हल्दी, अरबी व सूरनः तैयार फसलों  की खुदाई करें। देर से बोई गई फसल में 50 किलोग्राम यूरिया, खड़ी फसल में डालें। बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। हल्दी की फसल में एक बार मिट्टी चढ़ायें। तैयार अरबी की खुदाई करें व बाजार भेजें। बाजार भेजने से पूर्व कंदों  की छंटाई व सफाई करें।

फलोद्यान में इस माह
  • आमः बाग में एक बार जुताई करके थालों की सफाई करें। पुष्प गुच्छा रोग की रोकथाम हेतु नेफ्थलीन एसिटिक अम्ल (200 पीपीएम) का छिड़काव करें। बाग में सिंचाई हेतु नालियां बना लेवें ।
  • नीबूवर्गीय फल: बाग की जुताई करें। टहनियों, पत्तियों  व फलों  पर भूरे उठे हुये धब्बे पड़ने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मिलीग्राम  कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके  अलावा यदि 2.5-3 ग्राम कॉपर  आक्सीक्लोराइड प्रति लीटर साथ में मिलाकर छिड़काव करने से प्रभावी नियंत्रण होता है। इल्लियों के  नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल या ट्राइएजोफ़ॉस  20 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधो  पर छिड़कव करें ।
  • पपीताः नये लगाये गये पौधों  में समय पर सिंचाई  करें। पपीते के  पौधों के  चारों तरफ  मिट्टी चढ़ावें जिससे पानी तने से न छुये अन्यथा तना गलन रोग  की संभावना रहती है।
  • बेरः थालों को साफ कर सिंचाई के लिए नालियां बना लें। सूटी मोल्ड रोग में पत्तियों  पर काले रंग का फफूंद होने पर पत्तियाँ काली पड़ने लगती है। इस रोग के  नियंत्रण हेतु मेंकोजेब 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • अनारः पौधों में फल आने का समय है अतः समय पर सिंचाई का ध्यान रखें। बगीचे को  साफ सुथरा और  खरपतवार रहित रखें। पौधों की कोमल टहनियों  व फूलों  का रस चूसने वाली मिलीबग के  नियंत्रण के  लिए डाइमेथोएट 1 मिली. या इमीडेक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों  पर छिड़काव करें।
  • आवंलाः बाग में सिंचाई की नालियां बना लें। छाल भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु हेक्साकोनाजोल  या ट्राइएजोफ़ॉस  20 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करें । रस्ट की रोकथाम हेतु कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें।
  • करौंदा: पुराने बाग में कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें। नए बाग लगाने का कार्य समाप्त करें।
  • कटहलः पुराने बाग में कॉपर  आक्सी क्लोराइड (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें। नए बाग रोपण का कार्य समाप्त करें। बाग की जुताई करें। थालों को साफ रखें।
  • अमरूद:बरसाती फसल को तोड़कर बाजार भेजें। म्लानि रोग  फैलने से पौधों  की शाखाएं सूखने लगती है जिसके  नियंत्रण हेतु 20 ग्राम कार्बेण्डाजिम 20 लीटर पानी में घोलकर पौधों  की जड़ों के आस पास डालें।
  • स्ट्राबेरी के सकर्स लगाने का यह उपयुक्त समय है। 
  • फल-सब्जी संरक्षण: कुम्हणा से पेठा, मुरब्बा तथा कैण्डी बना सकते है। अदरक का कैण्डी तथा अचार बना सकते हैं। अंगूर तथा अनार के स्क्वैश, शरबत बनाया जा सकता है। आंवलें और केले के फलों से भी  विभिन्न उत्पाद बना सकते हैं।
पुष्पोत्पादन में इस माह
  • सितम्बर माह में तैयार की गई क्यारिओं में बीजों से अंकुरित हुए मौसमी फूलों की पौध को क्यारिओं और गमलों में लगा देना चाहिए। 
  • गुलाब के पौधों की  छंटाई  और क्यारियों की निराई-गुड़ाई संपन्न करें .बेकार जंगली कल्ले तोड़ देवें । माह के तीसरे सप्ताह में पौधों की कटाई, छटाई तथा इनकी जड़ों को खोदना चाहिए । एक सप्ताह  बाद गोबर की सड़ी खाद और मिट्टी मिलाकर दोबारा जड़ों की भराई करें। 
  • ग्लैडियोलस के घनकन्दों को 0.05 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 10-15 मिनट डुबोकर उचित दूरी पर रोपण करें । रोपण से पूर्व क्यारियों में कार्बोफ्यूरान 5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाएं।
  • रजनीगन्धा के स्पाइक की कटाई, छटाई, पैकिंग एवं विपणन की व्यवस्था करें।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।