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सोमवार, 15 जून 2020

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)


छत्तीसगढ़ में कृषि शिक्षा, शोध एवं प्रसार गतिविधियों के सुचारू संचालन के लिए रायपुर में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना 1987 को हुई. राज्य गठन के पूर्व इस विश्वविद्यालय में एक कृषि महाविद्यालय, एक दुग्ध प्रोद्योगिकी महाविद्यालय, रायपुर तथा एक पशुपालन महाविद्यालय संचालित किये जा रहे थे. राज्य गठन के पश्चात  प्रदेश के चहुमुखी विकास के साथ-साथ कृषि शिक्षा, शोध एवं विस्तार गतिविधियों का तेजी से विकास हुआ. वर्तमान में इस कृषि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत 30  कृषि महाविद्यालय ( 21 विश्वविद्यालय के घटक एवं 9 विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त), 6 उद्यानिकी महाविद्यालय (2 घटक एवं 2 निजी क्षेत्र) के अलावा 4 कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय ( 2 घटक एवं 2 निजी क्षेत्र) कुल 40 महाविद्यालय आते है. कृषि महाविद्यालय रायपुर में कृषि स्नातक स्तर की शिक्षा के साथ-साथ अनेक विषयों में स्नातकोत्तर एवं पी.एच.डी. स्तर की शिक्षा और उपाधि प्रदान की जाती है. छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ में 40 महाविद्यालय एवं 30 कृषि विज्ञान केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है. कृषि शिक्षा, कृषि अनुसन्धान और कृषि प्रसार के क्षेत्र में यह विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख   कृषि विशेविद्यालयों में शुमार है.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के घटक  कृषि, उद्यानिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय

1

कृषि महाविद्यालय ,कृषक नगर , रायपुर

UG, PG and Ph.D.

1961-62

2

स्वामी विवेकानंद कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कृषक नगर, रायपुर

UG, PG and Ph.D.

1996-97 (PG,Ph.D.);2013-14 (UG)

3

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, सरकंडा, बिलासपुर

UG, PG

2001-2002(UG), 2015-16(PG)

4

राजमोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, अजिरमा, अम्बिकापुर, सरगुजा

UG, PG

2001-2002(UG), 2015-16(PG)

5

शहीद गुण्डाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कुम्हरावन्ड, जगदलपुर,

UG, PG

2001-2002(UG), 2015-16(PG)

6

संत कबीर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कवर्धा

UG

2007-2008

7

भवानीलाल रामलाल साव मेमोरियल कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, पंडरिया रोड, मुंगेली

UG

2007-2008

8

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, जांजगीर-चांपा

UG

2011-2012

9

पं. किशोरी लाल शुक्ला उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव

UG, PG

2011-2012

2017-18(PG)

10

दाऊ कल्याण सिंह कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, खपराडीह, भाटापारा

UG

2012-2013

11 

पं. शिव कुमार शास्त्री कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, राजनांदगांव

UG

2013-2014

12

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, बोईरदादर फार्म, रायगढ़

UG

2013-2014

13

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, प्रथम तल, शासकीय गर्ल्स कालेज, ओड़गी नाका, बैकुण्ठपुर, कोरिया

UG

2013-2014

14

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, शासकीय बालक हायर सेकेण्डरी स्कूल के पास, बेमेतरा

UG

2013-2014

15

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, न्यू गर्ल्स कालेज बिल्डिंग, अलबेला पारा, कांकेर

UG

2013-2014

16

उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कुम्हरावण्ड फार्म, जगदलपुर

UG

2013-2014

17

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, नारायणपुर

UG

2018-2019

18

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, गरियाबंद

UG

2018-2019

19

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कुरुद

UG

2018-2019

20

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कोडार मोटेल,कांपा,महासमुंद

UG

2018-2019

21

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, छुईखदान, राजनंदगांव

UG

2018-2019

22

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, जशपुर

UG

2018-2019

23

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, कोरबा

UG

2018-2019

24

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, मर्रा, पाटन, जिला दुर्ग

UG

2019-20

25

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, मुर्रा, साजा, जिला दुर्ग

UG

2019-20

       इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त निजी कृषि, उद्यानिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय

क्रमांक

महाविद्यालय का नाम

पाठ्यक्रम

स्थापना वर्ष

1

भारतीय कृषि महाविद्यालय, पदमनाभपुर, पुलगांव चौक, दुर्ग

UG

2001-2002

छत्तीसगढ़ कृषि महाविद्यालय, रिसाली (भिलाई) धनोरा रोड, पो.-हनौदा, जिला-दुर्ग

UG

2001-2002

3

दन्तेश्वरी उद्यानिकी महाविद्यालय, मनोपचार हास्पिटल के पास, माना बस्ती, रायपुर

UG

2001-2002

महामाया कृषि महाविद्यालय, नगरी रोड़, ग्राम-सियादेही, पो.- अरौद, धमतरी

UG

2001-2002

5

भोरमदेव कृषि महाविद्यालय, ग्राम-घुघरी कला, खुटु नर्सरी के पास, कवर्धा, जिला कबीरधाम

UG

2002-2003

6

मार्गदर्शन संस्थान कृषि महाविद्यालय, रिंग रोड, चोपड़ा पारा, अम्बिकापुर, जिला-सरगुजा

UG

2002-2003

7

श्रीराम़ कृषि महाविद्यालय,श्रीराम परिसर,ग्राम-ठाकुर टोला, पो.-सोमनी, , राजनांदगांव

UG

2002-2003

गायत्री उद्यानिकी महाविद्यालय, गोकुलपुर, रूद्री रोड, धमतरी

UG

2002-2003

9  

के.एल. उद्यानिकी महाविद्यालय, गुण्डदेही रोड, पोटियाडीह, धमतरी

UG

2002-2003

10 

रानी दुर्गावती उद्यानिकी महाविद्यालय, मेढुका, वि.ख.-गौरेला, तह.-पेन्ड्रा रोड, बिलासपुर

UG

2002-2003

11

भारतीय कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पदमनाभपुर, पुलगांव चैक, दुर्ग

UG

2002-2003

12

छत्तीसगढ़ कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय,रिसाली (भिलाई) धनोरा रोड,पो.-हनौदा,जिला-दुर्ग

UG

2002-2003

13

कृषि महाविद्यालय, चिल्हाटी रोड, अम्बागढ चैकी, जिला-राजनांदगांव

UG

2003-2004

14

कृषि महाविद्यालय,चिता लंका, कलेक्ट्रेट कार्यालय के सामने, दन्तेवाड़ा

UG

2003-2004

15

कृषि महाविद्यालय, जोरापाली (केनापाली) रोड़, रायगढ़

UG

2003-2004

 
कृषि महाविद्इंयालय एवं अनुसंधान केंद्र, कांपा, जिला महासमुंद  
                      इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अधीन शासकीयकृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कांपा, जिला महासमुन्द वर्तमान में पर्यटन विभाग के कोडार रिसोर्ट में संचालित किया जा रहा है। ज्ञात हो इस महाविद्यालय के  उदघाटन तत्कालीन कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल के कर कमलों से कोडार रिसोर्ट, कांपा जिला महासमुन्द में 1 अक्टूबर, 2018 को सम्पन्न हुआ ।
रायपुर-सरायपाली राष्ट्रिय राजमार्ग स्थित ग्राम कांपा कोडार मोटल, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र 
नवोदित महाविद्यालय के लिए उपयुक्त भवन एवं प्रयोगशाला की सुविधा न होने के कारण  वर्ष  2018-19 सत्र में बी एस सी (कृषि) प्रथमवर्ष में 24 छात्रों को प्रवेश देकर रायपुर स्थित कृषि महाविद्यालय में इस नवीन महाविद्यालय का शुभारंभ हुआ । जुलाई 2020 में कलेक्टर महासमुंद ने शिक्षा विभाग के डाइट भवन में अस्थाई तौर पर कृषि महाविद्यालय संचालित करने की सहमति प्रदान कई गई तदनुरूप जुलाई 2020 से सत्र 2019-20 में प्रथम एवं द्वितीय वर्ष की कक्षाएं नियमित रूप से उक्त भवन में संचालित होने लगी. कृषि स्नातकों की कक्षाएं, प्रयोगशाला, कृषि प्रयोग हेतु कृषि भूमि, प्राध्यापकों के बैठने की उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से  कृषि महाविद्यालय के छात्रों एवं कृषि शोध में व्यवधानहो रहा था. इसे देखते हुए स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं जिला प्रसाशन के सहयोग से राष्ट्रिय राजमार्ग स्थित पर्यटन विभाग का कोडार रिसोर्ट, कांपा (महासमुंद) महाविद्यालय को उपलब्ध हो गया है. तदनरूप सत्र 2020-21 से यह महाविद्यालय  उक्त भवन में संचालित किया जा रहा है. कोविड-19 संक्रमण के कारण अप्रैल 2020 से शैक्षणिक गतिविधियाँ स्थगित है.
 
गणतंत्र दिवस 26.01.2020 के अवसर पर ध्वजारोहण कार्यक्रम 
 जुलाई 2020 से यह महाविद्यालय महासमुन्द स्थित शिक्षा विभाग (डाइट) भवन में स्थानांतरित हो गया तथा कुल 50 छात्र-छात्राओं के साथ प्रथम व द्वितीय वर्ष की कक्षाएं प्रारम्भ हुई।
कृषि महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा खेल-कूंद प्रतियोग्यता में उच्च प्रदर्शन करने पर पदक प्राप्त करने के पश्चात प्राध्यापकों के साथ फोटो 
देश मे फैली कोविड-19 महामारी के कारण द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षाएं रद्द कर दी गई । छात्र-छात्राओं को प्राध्यापक अपने-अपने विषय में ऑनलाइन मार्गदर्शन दे रहे है. 
 फोटो-कृषि महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.एस.के.पाटिल 

कृषि महाविद्यालय को छत्तीसगढ़ शासन ने ग्राम  कांपा में राष्ट्रीय राजमार्ग से लगी हुई 87 एकड़ पड़ती भूमि आवंटित की  है जिसमें महाविद्यालय भवन, छात्रावास एवं प्रोफेसर्स-कर्मचारियों के लिए भवनों का निर्माण होना है तथा शेष भूमि को विकसित कर कृषि शोध कार्य किया जाएगा।मा कोविड-19 महामारी के कारण उक्त कृषि प्रक्षेत्र का विकास कार्य धीमी गति से चल रहा है. महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना के तहत खेत-नाली निर्माण का कार्य संपन्न किया जा रहा है. कृषि भूमि में तार घेरा का कार्य प्रारम्भ है साथ ही खरीफ फसलों की बुवाई एवं फल-फूल एवं शोभाकारी वृक्षों का रोपण कार्य भी किया जा रहा है. 
फोटो-कृषि महाविद्यालय को ग्राम  कांपा, जिला महासमुंद में छत्तीसगढ़ शासन द्वार  आवंटित कृषि  भूमि का मुआयना करते हुए विश्विद्यालय के कुलपति डॉ.एस.के.पाटील, निदेशक विस्तार डॉ.मुखर्जी, अधिष्ठाता डॉ.राठोर एवं प्रोफ़ेसर जी.एस.तोमर 

शुक्रवार, 5 जून 2020

कोरोना वायरस का कहर-प्रकृति को सजाने-संवारने का अवसर

विश्व पर्यावरण दिवस, शुक्रवार 5 जून,2020 पर विशेष आलेख 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, पोस्ट-बिरकोनी, जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)

 

हम जो खाद्य पदार्थ खाते हैं, जिस हवा  की हम सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो जलवायु हमारे पृथ्वी ग्रह को रहने योग्य बनाती है,वह सब प्रकृति की अनमोल देन है। कल्पना कीजिए अगर हमारी जमीनें खाद्यान्न का उत्पादन करने में विफल हो जाएँ, हमारे भूजल के भंडार सूख  जायें हमारी नदियां प्रदूषित हो जायें र हमारे जंगल नष्ट हो जायें, तो क्या मानवता का अस्तित्व खतरे में नहीं पड़  जायेगा ऐसा होने पर निश्चित ही  सम्पूर्ण मानव जाति भी विलुप्त हो जाएगी  परमेश्वर ने धरती पर आदमी के साथ-साथ नाना प्रकार के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, पेड़-पौधे और वनस्पतियों की रचना की है और ये सभी एक दूसरे पर निर्भर है इनमें से किसी एक के अस्तित्व पर संकट आने का अर्थ है दूसरे के अस्तित्व पर संकट आना, यदि प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष  जीवन के लिए प्रकृति में शुद्ध हवा और शुद्ध पानी के साथ साथ अनेक प्रकार के जीव-जंतु व वनस्पतियों में संतुलन का होना जरूरी है। हमारा जीवन प्रकृति पर  आश्रित  होने के बावजूद भी पिछले कुछ दशकों से हमने आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक सम्पदा (जल,जंगल,जमीन और जानवर) का दोहन-शोषण करके प्राकृतिक संतुलन को नेस्तनाबूत कर दिया है ।विज्ञान  के अजेय रथ पर आरूढ़ मानव आज विधाता को चुनौती दे रहा है. विश्व की यह प्रगति मानों प्रकृति को विस्मृत भी कर रही है प्रकृति  का अमर्यादित उपभोग, वनों की कटाई, उद्योग धंधों की भरमार, उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन, व्यापार और इसी प्रकार का एक परिवेश बनता जा रहा है जो प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी और मानव जाति  के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है मर्यादाओं की सीमाएं लांघना ही मानवों की दुर्दशा का कारण बनता जा रहा है आज समूचा विश्व मानव निर्मित जैविक और प्राकृतिक आपदाओं मसलन चक्रवाती तूफ़ान अम्फान, महातूफान निसर्ग, टिड्डी आक्रमण, भूकंप के झटको के अलावा इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना वायरस महामारी का दंश झेल रहा है। वर्ष 2020 में जैविक आपदा और प्राकृतिक आपदाओं का कहर ये साबित करता है कि मानव काफी लम्बे समय से  प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता आ रहा है। इसलिए आज पूरा विश्व प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से सहमा हुआ है एक मामूली से अदृश्य वायरस (कोविड-19) ने सम्पूर्ण मानव जाति के ताने-बाने और  वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है सामाजिक दूरी, सेनेटाइजेशन, प्लास्टिक की पन्नी ओढ़कर  और  सम्पूर्ण लॉक डाउन  करके इस जैविक  महामारी को हम कुछ हद तक  नियंत्रित तो कर सकते है, लेकिन  समाप्त नहीं कर सकते है वायरस से होने वाली अधिकांश बीमारियाँ वन्य जीवों से ही आती है. अतः वन्य जीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है इसके अलावा  हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन पर समुचित ध्यान देना होगा यानि प्रकृति से दूर होती मानवता को प्रकृति की ओर लौटना होगा तभी हमारा आज और कल सुरक्षित रह सकता है। यदि समय रहते प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की ओर जनमानस का ध्यान आकर्षित नहीं किया गया तो प्रलय की स्थिति का आगमन अवश्यंभावी हो जायेगा.

विश्व पर्यावरण-2020: प्रकृति के लिए समय 

 विश्व पर्यावरण दिवस फोटो साभार गूगल  
आज विश्व  पर्यावरण दिवस (5 जून,2020) हम ऐसे मौके पर मना रहे है, जबकि समूची मानवजाति एक बड़े स्वास्थ्य संकट अर्थात कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही है इस वर्ष जर्मनी की साझेदारी में कोलंबिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है इंसानों व् प्रकृति के बीच के गहरे संबंध को देखते हुए इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का विषय प्रकृति के लिए समय और जैव विविधिता रखा गया है जो  प्रकृति के साथ बिगड़े तारतम्य को फिर से सुधारने के लिए प्रेरित करता है जैव विविधता प्रकृति की जैविक सम्पदा और समृद्धि का संपूर्ण स्वरूप है जिसमें बड़े से बड़े और छोटे से छोटे जीवाणु, सभी तरह के जीव, पेड़-पौधे तथा वनस्पतियां शामिल है। जैव विविधता कृषि का आधार है। जैव विविधता फसलों और पालतू पशुओं की सभी प्रजातियों और उनके भीतर की विविधता का मूल है। जैव विविधता और कृषि का परस्पर संबंध है क्योंकि जहां जैव विविधता कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं कृषि जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग में भी योगदान दे सकती है। प्रकृति ने मानवता को पौधों और पशुओं की प्रचुर विविधता प्रदान की है परन्तु सयुंक्त राष्ट्र एवं कृषि संघठन (FAO) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार खाध्य प्रणाली को मजबूत आधार प्रदान करने वाली जैव विविधिता धीरे-धीरे गायब हो रही है। इससे भोजन, आजीविका, स्वास्थ्य और पर्यावरण के भविष्य के लिए बड़ा खतरा पैदा होता जा रहा है । वैश्‍विक कुपोषण, जलवायु परिवर्तन, कृषि उत्‍पादकता बढ़ाना, जोखिम कम करना और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने जैसी वैश्‍विक चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें बहुमूल्‍य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना होगा, क्‍योंकि हमारी कृषि पद्धति में इनसे आवश्‍यक कच्‍चे माल की आपूर्ति होती है और बड़ी संख्या में  लोगों को आजीविका उपलब्ध होती है। नई दिल्ली में आयोजित प्रथम अंतराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कांग्रेस- आईएसी 2016 के उद्घाटन के अवसर पर लोगों का संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जैव विविधता को बचाने और तकनीक की मदद से गरीबी हटाने की अपील की है । साथ ही यह भी कहा कि कृषि जैव विविधता के मामले में भारत बहुत समृद्ध है। मानव ने प्रकृति में दखल देकर ही जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा की है। उसकी इसी गलती से तापमान बढ़ रहा है जो जैव विविधिता को नुकसान पहुंचा रहा है। जैव विविधता की सुरक्षा का अर्थ है कि उसके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना। हमारे पूर्वज सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे। उनके संस्कार जनित प्रयासो से ही हम जैव विविधता बचा पाये हैं और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए सबकी जरूरत पूरा करते रहे है  

मानव और प्रकृति का एक दूसरे से अभिन्न सम्बंध है। मानव का प्रकृति के प्रति कर्तव्य है उसे संजोए रखने का। जहाँ प्रकृति मानव जीवन के पहलुओं को निर्धारित करती है वहीं मानव के क्रियाकलापों से प्रकृति प्रभावित भी होती है और यही प्रभाव कुछ समय बाद मानव जीवन पर असर डालता हैं। पृथ्वी पर आज लाखों विशिष्ट जैव प्रजातियों के रूप में प्राकृतिक संसाधन है जिनसे समस्त प्राणियों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती होती है और  इसी जैव विविधिता से हम सबका जीवन चलता है परन्तु विश्व में तेजी से विलुप्त हो रही अनेक प्रजातियों के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने से भी जलवायु संकट और स्वास्थ्य सम्बन्धी महामारी विकराल रूप ले रही है चूंकि पृथ्वी से बहुत सी प्रजातियाँ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रहीं है या विलुप्त होने की कगार पर हैं ऐसे में इनमे पल्लवित होने वाले सूक्ष्म जीव और वायरस भी अपने लिए दूसरा ठिकाना ढूंढ रहे है इन सूक्ष्म जीवों और वायरसों ने अब मानव आबादी को अपना आश्रय बनाना शुरू कर दिया है जैव विविधिता के हो रहे क्षरण के कारण चमगादड़ से उत्पन्न वायरस (कोविड-19) संक्रमण मानवता के लिए खतरा बन गया है इस संक्रमन से पूरी दुनिया में अब तक 65 लाख से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया है इस महामारी से करीब 4 लाख से अधिक लोगों की जान भी जा चुकी है विज्ञान कितनी भी उन्नति-प्रगति कर लें परन्तु प्रकृति के समक्ष वह सदैव बोना ही रहेगा कोरोना वायरस से लड़ने के लिए या बचने के लिए  भले ही वेक्सीन की खोज हो जाये लेकिन कल अन्य दूसरी प्राकृतिक आपदा या महामारी पैदा हो जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है हमें अपनी प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित करने उसे संवारने और सजाने के आवश्यक उपाय अपनाने ही होंगे तभी इस गृह पर मानवता सुरक्षित और खुशहाल रह सकती है

कोविड-19 ने दिखाई भविष्य की राह

वर्कोतमान कोविड-19 संकट हम सभी को अपना भविष्य सुरक्षित करने का एक मौका  दे  रहा है। प्रकृति को फिर से हरा-भरा और समृद्ध करने के लिए चेतावनी दे रहा है आज पूरा विश्व कोरोना वायरस की महामारी से भयभीत है परन्तु यह वायरस हमें प्रकृति और पर्यावरण को सजाने–संवारने का एक सन्देश लेकर आया है। यह वायरस  हमें बता रहा है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा प्रकृति के साथ पुनः  तारतम्य स्थापित करना होगा अन्यथा भविष्य में और भी बड़े लॉक डाउन और संकट का सामना करना पड़ सकता है दरअसल हमने विकास की अंधी-दौड़ में पूरी प्रकृति को अपने कब्जे में ले लिया है,जल-जंगल,जमीन और जानवरों पर अपना अधिपत्य जमा लिया हैं। लेकिन हम यह भूल गए हैं कि हमारी संपूर्ण आर्थिक समृद्धि और सुंदर भविष्य के सपने एक छोटे से अदृश्य जीव यानि वायरस  द्वारा  नष्ट किये जा सकते है। कोरोना संकट के चलते लम्बे समय से तमाम कल कारखाने और वाहनों का आवागमन बंद रहने और मानवीय गतिविधियों के लॉकडाउन के चलते विस्श्व भर में वायु प्रदूषण कम होने के संकेत मिल रहे है हमारे देश की नदियां विशेषकर गंगा-यमुना निर्मल प्रतीत होने लगी है प्राणवायु भी स्वच्छ हो गई है नासा की रिपोर्ट के अनुसार भरत का प्रदूषण पिछले 20 वर्षों की तुलना में सबसे नीचे पहुँच गया है कोविड-19 के माध्यम से प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखा कर हमें मजबूर कर दिया है कि हम प्रकृति की जैव विविधिता और अपने पर्यावरण को सुरक्षित बनाने का प्रयास करें प्रकृति का सरंक्षण करना मानव जाति का कर्तव्य भी है और अधिकार भी क्योंकि यह संतुलन हमने बिगाड़ा है और हम सब को मिलकर इसे ठीक करना होगा तभी मानव जाति का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित रह पायेगा हमें  निश्चित  रूप से  प्रकृति की  ओर लोटना और उसके साथ चलना ही होगा प्रकृति के साथ जो भूल हमने जाने-अनजाने में की है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा । अपनी सुरम्य प्रकृति को कायम करना होगा प्रकृति को सजाने-संवारने और पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए हमे हरियाली से ही खुशहाली के मूलमंत्र को आत्मसात करते हुए अधिक से अधिक क्षेत्र और अपने घरों के आस-पास वृक्षारोपण करने के लिए जन समुदाय को प्रेरित करना चाहिए रोपित पौधों के प्रबंधन अर्थात इनके रख रखाव पर समुचित ध्यान  देने की आवश्यकता है यदि बच्चों  के जन्पमदिवस और स्वजनों की स्मृति में तथा विशिष्ट अवसरों पर वृक्ष लगाने की भावना को जागृत किया जाय तो निश्चित ही हरियाली और खुशहाली का वातावरण देखने को मिल सकता है    आस-पास के वातावरण और जल स्त्रोतों को स्वच्छ रखने के लिए जन-जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है आवागमन हेतु सार्वजनिक यातायात के साधनों का इतेमाल करें बहुत आवश्यक हो तभी निजी वाहनों का उपयोग करें प्लास्टिक की वजह से कितने ही जिव जंतु विलुप्त होने की कगार पर है, अतः प्लास्टिक का उपयोग कम करें और प्रदूषण न फैलाएं। कृषि और बागवानी में कीट नाशकों और शाकनाशियों का उपयोग कम करें वर्षा जल संरक्षण की विभिन्न विधियां जैसे खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में, छत के पानी का संरक्षण करें. खेती में कुशल जल प्रबंधन तकनीकें अपनाएं। जल को व्यर्थ  बर्बाद ना करें जल संपत्ति ज़रूर आपकी हो सकती है, पर संसाधन नहीं अर्थात प्राकृतिक संसाधनों का सरंक्षण करते हुए इनका कुशल उपयोग करें कृषि में लाभदायक जीव जंतुओं और वनस्पतियों का संरक्षण करें  कृषि विविधिकरण अर्थात विभिन्न प्रकार की फसलें यथा धान, गेंहू, ज्वार, बाजरा, कोड़ों, कुटकी, रागी, दलहन, तिलहन, सब्जी वाली फसलों को हेर-फेर (फसल चक्र) कर उगाने का प्रयास करें

प्रकृति और पर्यावरण की करो सुरक्षा  

       यही है सबसे बड़ी तपस्या        


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