राष्ट्रिय किसान दिवस-2021; देश के अन्नदाता के सम्मान का अवसर
डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर, प्राध्यापक
कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कांपा,महासमुंद
हमारे देश की
आधी से अधिक आबादी आज भी अपनी रोजी-रोटी के लिए पूर्णतः कृषि पर निर्भर हैं। आजादी के बाद से भारत में कृषि ने विकास के कई आयामों को देखा हैं। साठ के दशक में आई हरित क्रांति ने पूरे देश
में कृषि का परिदृश्य बदल दिया था।
इससे ना केवल देश का आर्थिक विकास हुआ, बल्कि किसानों की आवश्यकता और महत्ता को सरकार से लेकर आम-जन तक प्रत्येक वर्ग ने
समझा है । इसी क्रम में राष्ट्र एवं समाज के विकास में
किसानों के योगदान को रेखांकित करने के साथ-साथ देश के अन्नदाता के सम्मान और
अधिकारों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2001 से प्रति वर्ष 23 दिसम्बर को
राष्ट्रिय किसान दिवस के रूप में मनाने का सराहनीय कदम उठाया है ।
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राष्ट्रिय किसान दिवस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.एस.सेंगर द्वारा उद्भोदन |
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कृषि महाविद्यालय,
रायपुर के सभागार में 23 दिसम्बर,2021 को राष्ट्रिय किसान दिवस-2021 का भव्य आयोजन
किया गया। कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.एस.एस.सेंगर के मुख्य आतिथ्य एवं अधिष्ठाता कृषि महाविद्यालय की
अध्यक्षता में किया गया जिसमें सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक,
वैज्ञानिक, जिले के किसान, ग्रामीण जन प्रतिनिधि एवं विद्यालयीन छात्र-छात्रएं उपस्थित रहे. कृषि
क्षेत्र को समोन्नत बनाने में किसानों के योगदान को सराहा गया तथा उनके उल्लेखनीय
कार्यों के लिए कुलपति द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया।
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कुलपति डॉ.एस.एस.सेंगर द्वारा उत्कृष्ट कृषक का सम्मान |
ज्ञात हो कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं किसानों के मसीहा चौधरी
चरण सिंह के जन्म दिवस को राष्ट्रिय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। चौधरी जी का जन्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले मे 23 दिसंबर 1902 को एक किसान परिवार मे हुआ था। वे बहुत ही सरल एवं शांत स्वभाव वाले
व्यक्ति थे। चौधरी चरण सिंह जी हमेशा कहा करते थे कि देश की खुशहाली तथा समृद्धि
का रास्ता हमेशा खेतों तथा खलिहानो से होकर ही गुजरता है। वे आजीवन किसानों के लिए
संघर्ष करते रहे एवं उनकी खुशहाली के लिए ही
राजनीति में भी आये। दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद केंद्र
में वित्त मंत्री और उप प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया. उन्हें उत्तर प्रदेश
जमींदारी उन्मूलन अधिनियम का प्रधान वास्तुकार माना जाता है । भारत में राष्ट्रिय
कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान
रहा ।
भारत के पांचवे प्रधानमंत्री के रूप में अल्प कार्यकाल में ही
उन्होंने किसानों के हितों की रक्षा करने बहुत सी नीतियाँ बनाई। उन्होंने
पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के “जय जवान-जय किसान” के नारे का वास्तविक रूप में अनुसरण किया था। उनका
मानना था कि इस देश में यदि उन्नति लानी है, तो सबसे पहले किसानों को उन्नत करना पड़ेगा
क्योंकि वहीं इस अर्थव्यवस्था की नींव है और यदि नींव ही कमज़ोर रहेगी तो आगे
विकास की इमारत खड़ी करना असंभव है।
कृषि की उन्नति एवं किसानों के हितो को सुरक्षित करने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित
करने वाले चौधरी जी को हम सादर नमन करते है।
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कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. सेंगर द्वारा महिला कृषक का सम्मान |
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की पहल पर प्रदेश पहली बार विश्वविद्यालय
के समस्त कृषि महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर अभिनव किसान दिवस
आयोजित किया गया. इसी कड़ी में कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कांपा,
महासमुंद में आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में क्षेत्र के किसान एवं
विद्यालयीन छात्र-छात्राएं उपस्थित हुए. यह कार्यक्रम महाविद्यालय के वरिष्ठ
प्राध्यापक डॉ.जी.एस.तोमर के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ जिसमें महाविद्यालय के
प्राध्यापक डॉ.नवनीत राणा, डॉ. संदीप भंडारकर, इंजी. महिलांग के अलावा अतिथि
शिक्षकों का सक्रिय योगदान रहा। डॉ. जी.एस.तोमर ने भारत में कृषि शिक्षा एवं कृषि
प्रौद्योगिकी की महत्ता पर विस्तार से व्यक्त
करते हुए बताया की कृषि क्षेत्र में रोजगार की असीम संभानाएं है। इस अवसर पर देश
की प्रगति एवं उन्नति में किसानों के योगदान
की सराहना की तथा आमंत्रित किसानों एवं विद्यार्थियों को फलदार वृक्षों के पौध
भेंटकर उन्हें अपनी बाड़ी में रोप कर उनका
पालन-पोषण करने का आह्वान किया ।
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कृषि महाविद्यालय, कांपा, महासमुंद में राष्ट्रिय किसान दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.जी.एस.तोमर का संबोधन |
किसान
अर्थात अन्नदाता, जिनके
बगैर अन्न का एक दाना भी मिलना मुश्किल है। इसमें कोई सन्देश नहीं है कि हमारी और
आपकी थाली में स्वादिष्ट पकवान इसलिए रहता
है क्योंकि किसान खेत-खलिहान में पसीना बहाता है।
बास्तव में किसानों
के बिना जिन्दगी और दुनिया का अस्तित्व सोचा भी नही जा सकता हैं,ये बहुत ही खुश नसीबी की बात हैं
कि हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा हैं जो हमारे भरण-पोषण का काम देखता हैं और इसके
बदले में यदि हम उनका जीवन स्तर ऊपर उठाने, उन्हें आर्थिक दृष्टि से खुशहाल बनाने में
यदि हम उनका सहारा बन सके, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो
सकता । कृषि ही किसान की शक्ति है और यही उसकी भक्ति है
। कृषि क्षेत्र की उन्नति एवं प्रगति से ही किसान की खुशहाली का राज छुपा है। |
विद्यालय की छात्रा को उपहार स्वरूप कटहल का पौधा प्रदान करते हुए डॉ. जी.एस. तोमर |
कोविड-19 जैसे चुनौतीपूर्ण दौर में भी देश की खाद्यान्न
आवश्यकताओं की आपूर्ति एवं इस महामारी में
बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार मुहैया कराने हमारा कृषि-क्षेत्र और किसान भाई डटकर खड़े रहे ।
विश्वव्यापी संकट काल में उनके योगदान को देश कभी भुला नहीं सकेगा। किसान
भाइयों एवं बहिनों के अथक परिश्रम,
कृषि-वैज्ञानिकों के अनुसंधान, सरकार की
नीतियों तथा जीडीपी में योगदान देने की दृष्टि से कृषि-क्षेत्र सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, इसलिए किसानों की आय को दोगुना
करने व उत्पादन तथा उत्पादकता को बढ़ाने के लिए भारत सरकार के साथ-साथ छत्तीसगढ़
सरकार ने भी किसानों की आर्थिक मदद के
साथ-साथ जमीनी स्तर पर अनेक कृषि एवं किसान कल्याणकारी योजनाओं को संचालित किया जा रहा है। हरित क्रांति (1960) से लेकर विभिन गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमो तक, हमारा
प्रदेश कृषि प्रौद्योगिकी में लगातार विकास कर रहा हैं। परन्तु यह दुर्भाग्य जनक है की आज भी भारतीय किसानों में से केवल एक तिहाई ने उन्नत
प्रौद्योगिकी अपनाई है। शेष कृषि नवाचारों और खेती के आधुनिक
तरीको से अभी तक अनभिज्ञ है जो उच्च फसल पैदावार और देश को आर्थिक समृद्धि की तरफ
ले जा सकते हैं।
कृषि
प्रधान देश होने के नाते, भारत विकास के उस स्तर तक पहुंच गया है जहां अब ‘सदाबहार क्रांति’ जरुरत है, यानी सीमित प्राकृतिक संसाधन (पानी, जमीन
और ऊर्जा) के साथ अधिक उत्पादन करना। गुजरात के आनंद
में आयोजित कॉन्क्लेव ऑन नेचुरल फार्मिंग में हिस्सा लेते हुए विश्व के लोकप्रिय
नेता और हमारे देश के प्रधानमंत्री ने देश के सभी राज्य सरकारों से प्राकृतिक खेती
को जनआंदोलन बनाने के लिए आग्रह किया।
उनका मानना है कम लागत में अधिक मुनाफा ही प्राकृतिक खेती का मूल मंत्र है। उनकी ‘बैक टु बेसिक’ की सोच
प्रकृति की और वापिस लौटने का इशारा करती है अर्थात कृषि से जुड़े हमारे प्राचीन
ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है, बल्कि उसे
आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी जरूरत है। खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की
प्रयोगशाला से जोड़ना होगा अर्थात लैब टु लैंड कार्यक्रम को पुनः ईमानदारी से अमल
में लाना होगा। कृषि
वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे अनुसंधान कार्य तभी सफल होगा, जब उसे धरातल तक
पहुँचाया जाये तभी हमारी कृषि समोन्नत
होगी और किसान आर्थिक रूप से सम्पन्न होंगे।
भारत सरकार
की महत्वपूर्ण योजनाओं में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बिमा
योजना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, प्रधानमंत्री किसान मानधन (किसान पेंशन), डेयरी
उद्यमिता विकास योजना,मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, राष्ट्रिय खाध्य सुरक्षा योजना,
जैविक खेती योजना आदि चलाई जा रही है।
इसी प्रकार छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजीव गांधी किसान न्याय योजना, कृषि यंत्र योजना, कृषक समग्र विकास योजना,
छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना, उद्यानिकी वानिकी की अनेक योजनाएं, सोलर पम्प योजना,
कृषि मजदूर न्याय योजना आदि संचालित की जा रही है। इन योजनाओं से अंचल के सुदूर गावों के किसानों तक
पहुँचाने में हमारे महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों को अहम किरदार की भूमिका अदा करना होगी ।
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस. एस. सेंगर ने कहा कि मुझे ख़ुशी
है की हमारा विश्वविद्यालय अपने विभिन्न कृषि/उद्यानिकी/अभियांत्रिकी
महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिको के माध्यम से किसानों को कृषि की उन्नत तकनीकों के
बारे में लगातार शिक्षित और जागरुक कर रहा है। लेकिन अभी भी प्रदेश के सुदूर अंचल के किसानों को कृषि
कल्याणकारी योजनाओं एवं कृषि की उन्नत प्रोद्योगिकी के बारे में जानकारी नहीं मिल
पा रही है। मेरा कृषि वैज्ञानिकों से अनुरोध है की वे किसान
हितैषी कार्यक्रम मसलन कृषि प्रसिक्षण एवं उन्नत कृषि प्रोद्योगिकी से सम्बंधित
खेत प्रदर्शन का कार्य सडक के किनारे बसे गावों तक ही सीमित न रखे बल्कि इन
कार्यक्रमों को सडक पहुँच विहीन गावों एवं कृषि प्रोद्योगिकी से अनभिज्ञ
छोटे-मझोले किसानों तक पहुंचाने का कार्य करें।
डॉ. सेंगर ने अपने उद्भोदन में बताया कि विश्वविध्यालय
के अधीन सभी महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर किसान दिवस मनाया गया और आगामी दिनों में ‘विश्वविद्यालय आपके
द्वार’ कार्यक्रम के तहत हमारे सभी संस्थान 5-5 गांवों के विद्यालयों में जाकर
कृषि शिक्षा एवं कृषि तकनिकी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करेंगे जिसमें विद्यालय के
छात्र-छात्राओं के साथ-साथ कृषक परिवारों की सहभागिता होगी। इस प्रकार के कार्यक्रम वर्ष भर आयोजित होना चाहिए।
कृषि नवाचारों एवं आधुनिक कृषि प्रोद्योगिकी को गांव-गांव के हर एक किसान तक पहुंचाने के लिए
हमारा विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़ राज्य के
प्रत्येक विकास खंड स्तर पर “कृषि ज्ञान एवं किसान कल्याण केंद्र”
स्थापित करने की कार्य योजना तैयार कर रहा है। राज्य सरकार की सहमति प्राप्त होने पर विश्वविद्यालय की इस
महत्वाकांक्षी योजना को अमल में लाया जायेगा। किसान दिवस कार्यक्रम में विशेष रूप से
आमंत्रित विद्यालयीन छात्र-छात्राओं के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ उन्हें
बताना चाहूँगा कि कृषि शिक्षा में रोजगार और अपना स्वयं का व्यापर स्थापित करने की
असीम संभावनाएं है। यही ऐसा क्षेत्र है जिसके महत्त्व को कभी नाकारा नहीं जा सकता
है। कृषि विज्ञान को आप अपने कैरियर के रूप में अपना सकते है। मेरा प्रयास रहेगा कि विश्वविद्यालय के प्राध्यापक
गण आपके विद्यालय में पहुंचकर कृषि शिक्षा के महत्व एवं कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर पर विस्तार से
चर्चा-विमर्श करने कार्यक्रम आयोजित करें।
जय
जवान-जय किसान-जय विज्ञान ! जय जोहार- जय छत्तीसगढ़