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शुक्रवार, 29 मार्च 2013

बगैर जुताई करे बोवाई : मील का पत्थर साबित हो रही है शून्य भू-परिष्करण


                                   बेहतर कमाई  के लिए बगैर जुताई करे बोवाई 

                                                                   गजेन्द्र सिंह तोमर 
                                                               प्राध्यापक (सश्यविज्ञान )
                                 इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय , कृषक नगर , रायपुर (छत्तीसगढ़ )
 
              परम्परागत रूप से खेतों की तैयारी में अधिक जुताई करने में ज्यादा  समय, श्रम और धन अधिक लगता है। दिनों दिन महंगी होती खेती के कारण किसानो का खेती किसानी से मोह भंग होने लगा है. भूपरिष्करण की आधुनिक विचारधारा के तहत अब यह सिद्द हो चूका है कि तमाम फसलो की बोवाई अब सुन्य भू-परिष्करण पर भी सफलता पूर्वक की जा सकती है। शून्य भू परिश्करन अर्थात  जीरो टिलेज फसल उत्पादन में मील का पत्थर साबित होगा। जीरो टिलेज पारंपरिक खेती से अलग कृषि की एक नई विधा है, जिसमें खेत की जुताई के बिना बुआई की जा सकती है।  इसके फायदों को देखते हुए केंद्र व् राज्य सरकारो  द्वारा भी इसमें इस्तेमाल होने वाले यंत्र ( सीड ड्रिल) पर किसानों को 50 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है, ताकि इस विधा को बढ़ावा मिल सके। खेती की लागत कम करने के लिए अब  कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को इसी के जरिये खेती करने की सलाह दे रहे हैं। गौरतलब है कि खरीफ यानि धान की कटाई के बाद किसानों को रबी की फसल गेहूं आदि के लिए खेत तैयार करने पड़ते हैं। गेहूं के लिए किसानों को अमूमन 5-7 जुताइयां करनी पड़ती हैं। ज्यादा जुताइयों की वजह से किसान समय पर गेहूं की बिजाई नहीं कर पाते, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है। इसके अलावा इसमें लागत भी ज्यादा आती है। ऐसे में किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। जीरो टिलेज से किसानों का वक्त तो बचता ही है, साथ ही लागत भी कम आती है, जिससे किसानों का मुनाफा काफी बढ़ जाता है। जीरो टिलेज के जरिये खेत की जुताई और बिजाई दोनों ही काम एक साथ हो जाते हैं। इस विधा से बुआई में प्रति हेक्टेयर किसानों को करीब 2000-2500 रुपए की बचत होती है। बीज भी कम लगता है और पैदावार करीब 15 फीसदी बढ़ जाती है। खेत की तैयारी में लगने वाले श्रम व सिंचाई के रूप में भी करीब 15 फीसदी बचत होती है। इसके अलावा खरपतवार भी ज्यादा नहीं होता, जिससे खरपतवार नाशकों का खर्च भी कम हो जाता है। समय से बुआई होने से पैदावार भी अच्छी होती है। किसान अगेती फसल की बुआई भी कर सकते हैं।
       देश के अनेक राज्यों में  गेहूँ रबी की एक प्रमुख फसल है जो एक बड़े भूभाग  में उगाई जाती है। गेहूँ की भरपूर पैदावार लेने के लिए बोआई का समय नवम्बर का पहला सप्ताह उपयुक्त होता है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में धान की फसल की कटाई देर से होने के कारण अथवा  कुछ क्षेत्रों में नमी बने रहने के कारण खेत की तैयारी समय से न होने पर गेहूँ की बुआई समय से नहीं हो पाती जिससे उपज में काफी गिरावट आती है। जैसे- गेहूँ की बुआई 30 नवम्बर के बाद करने पर प्रत्येक दिन 30-35 किग्रा. उपज प्रति हे. की दर से कम होती है, इसलिए जीरो टिल मशीन से खेत की बिना जुताई किये हुये गेहूँ की बुआई जल्द कम समय में कर ली जाती है जिससे किसान पर आर्थिक बोझ कम पड़ता है।  यही नहीं जीरो टिलेज विधि से न केवल  गेहूँ  बल्कि धान, मक्का, ज्वार , बाजरा, चना, मटर आदि फसलो की बोवाई भी की जा सकती है। देश के उत्तरी राज्यों में किसान जीरो टिलेज को अपना रहे हैं।
                      जीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन में लगे कुंड बनाने वाले फरो-ओपनर  पतले धातु की मजबूत शीट से बने होते हैं, जो जुते खेत में एक कूड़ बनाते हैं। इसी कूड़ में खाद और बीज एक साथ  गिरता  जाता है। यह सीड ड्रिल 9 और 11 फरो-ओपेनर आकार में उपलब्ध हैं। इसमें फरो-ओपेनर इस तरह लगाए गए हैं कि उनके बीच की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है। यह मशीन गेहूं और धान के अलावा दलहन फसलों के लिए भी बेहद उपयोगी है। इससे दो घंटे में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की जा सकती है। इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर शक्ति के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है।
                     इसके इस्तेमाल से पहले कुछ सावधानियां बरतना आवश्यक है । खेत समतल और साफ-सुथरा होना चाहिए। कंबाइन हार्वेस्टर  से कटे धान से बिखरे हुए पुआल को हटा देना चाहिए, वरना यह मशीन में फंसकर खाद-बीज के बराबर से गिरने में बाधक हो सकते हैं। धान की फसल को जमीन  के पास से काटना चाहिए, ताकि बाद में डंठल खड़े न रह जाएं क्योकि  इन डंठलों को हटाने में काफी समय बर्वाद  हो जाता है। बुआई के समय  मिट्टी में नमी का होना बेहद जरूरी है। अगर नमी कम है तो बुआई से कुछ दिन पहले खेत में हल्का पानी (पलेवा) लगा  लें। बुआई के वक्त दानेदार उर्वरकों का ही इस्तेमाल करें, ताकि वे ठीक से कूड में  गिर सके। इसके अलावा सीड ड्रिल को चलाते समय ही उठाना या गिराना चाहिए, वरना फरो-ओपनर में मिट्टी भर जाती है, जिससे कार्य प्रभावित होता है।

जीरो टिल  कृषि से लाभ

    1. खेत की तैयारी  में लगने वाली  लागत, समय व श्रम की बचत तथा  कम खर्च में बीज की बोआई समय पर हो जाती है।
    2. मृदा अपरदन कम होता है।
    3. खरपतवार कम उगते हैं जैसे गेहूँसा के पौधे। अन्य खरपतवार जुताई न करने से गहराई में पड़े रहते हैं।
    4. बीज, खाद, सिंचाई इत्यादि संसाधनों का बेहतर प्रबन्धन होता है।
    5. ऊसर भूमि में भी इसकी बोआई अत्यन्त लाभप्रद पायी गई है।
    6. जीरो टिल मशीन से बोआई करने पर खाद की पूरी मात्रा पौधे ले लेते हैं, तथा अन्य खरपतवार उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं, जिससे खरपतवार कम पनपते  है, और उपज अच्छी मिलती है।

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