Powered By Blogger

रविवार, 21 मार्च 2021

जीवन के लिए जरुरी है वन और वृक्षों का पुनर्रोपण एवं संरक्षण

 डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफेसर, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, जिला महासमुंद (छत्तीशगढ़)

भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का विकास वनों की छत्रछाया में ही हुआ है।लोक संस्कृति व लोक कथाएं वनों से जुड़ी है। देश के इतिहास को भी अरण्य संस्कृति से जोड़ कर देखा जाता है। प्राकृतिक संसाधनों में वनों का महत्त्व जगजाहिर है। वनों से हमें जीवनदायी प्राणवायु, वर्षा जल के अलावा सैकड़ों प्रकार की लकड़ी, बहुमूल्य बन उपजे जैसे बीडी पत्ता, औषधियां, नाना प्रकार के फल फूल प्राप्त होते है जिस पर देश के करोड़ों लोगों की जीविका निर्भर है। इनसे देश के 60 से अधिक कुटीर उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है. यही नहीं वन हमारी जैव विविधिता के महत्वपूर्ण स्त्रोत है. बीते कुछ वर्षों से वनों के बड़ी मात्रा में दोहन के फलस्वरूप इनके क्षेत्रफल में भारी कमीं आई है। कटते और उजड़ते वनों के कारण ही जलवायु परिवर्तन-बढ़ते तापक्रम और घटती वर्षा जैसे दुष्परिणाम देखने को मिल रहे है। आज   21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस (World Forest Day) मनाया जा रहा है । वानिकी दिवस मनाने का उद्देश्य है कि दुनियां के तमाम देश अपनी मातृभूमि की मिट्टी और वनसंपदा का महत्व समझें और जंगलों की कटाई  रोकने तथा इनके संरक्षण पर ध्यान दें ।

विश्व वानिकी दिवस पहली बार वर्ष 1971 ईस्वी में मनाया गया । भारत में इसकी शुरुआत 1950 में की गई । संयुक्त राष्ट्र संघ ने 28 नवंबर 2012 में एक संकल्प पत्र पारित किया इसके जरिए 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाने की घोषणा की गई ।21 मार्च को दक्षि‍णी गोलार्ध में रात और दि‍न बराबर होते हैं। यह दि‍न वनों और वानि‍की के महत्त्व और समाज में उनके योगदान  को प्रतिस्थापित करने तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने के लिए जन जागृति पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

इस साल विश्व वानिकी दिवस की थीम ‘Forest restoration: a path to recovery and well-being अर्थात *वन बहाली: पुनःप्राप्ति और कल्याण का मार्ग* रखा गया है, जो वनों के संरक्षण एवं संवर्धन से जुड़ा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इस साल की थीम UN Decade on Ecosystem Restoration (2021-2030) पर आधारित है, जिसका उद्देश्य दुनियाभर के ecosystem का बचाव करना है। इससे स्पष्ट है कि प्राकृतिक वनों के विस्तार व उनकी बहाली के लिए विश्व के देशों को गंभीरता से कार्य करना होगा तभी हमारे वन बचेंगे। वास्तव में प्राकृतिक वनों का सरंक्षण एवं संवर्धन  आज सबसे बड़ी चिंता और चिंतन का विषय है क्योंकि विश्व में तेजी से वनों का क्षेत्रफल घटता ही जा रहा है. प्रति वर्ष 100 लाख हेक्टेयर वन समाप्त होते जा रहे है और प्रति व्यक्ति वनों का क्षेत्र घट रहा है। वनों की बर्वादी का यह सिलसिला यूँ ही जारी रहा तो आने वाले समय में वन विहीनता, हमें जीवन विहीन कर देगा। वन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के द्योतक माने जाते है परन्तु देश में आज महज 21.6 फीसदी वन ही बचे है जबकि 1980 में लागू हमारी वन नीति के अनुसार किसी भी राज्य और देश में 33 फीसदी वनभूमि होनी चाहिए। देश में 2-4 राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में वनों की स्थिति चिंताजनक है। प्रगति और विकास की अंधी दौड़ के चलते हमारे वन उजड़ते जा रहे है एवं वृक्षों की निर्मम हत्या कर दी जा रहीं है जिसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, वातावरण का तापमान बढ़ता जा रहा है, बर्सफ के पहाड़ एवं ग्लेशियर पिघल रहे है जो हर वर्ष भूस्खलन और बाढ़ के रूप में तबाही का सबब बनता जा रहा है। यही नहीं जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर के पिघलने की वजह से हमारे समुद्र का  जल-स्तर बढ़ता जा रहा है जिससे समुद्र किनारे के इलाकों के जलमग्न होने का खतरा मंडरा रहा है। वनों के समाप्त होने से उन पर आश्रित जंगली जानवर भोजन-पानी की तलाश में शहरों की और पलायन कर जन-धन को को भारी क्षति पहुँचाने लगे है। इन  सब प्राकृतिक और मानव जनित घटनाओं और दुर्घटनाओं के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है जो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी चला रहा है। अतः पृथ्वी पर प्राणवायु ऑक्सीजन का निरंतर प्रवाह तथा पीने और जीने के लिए शुद्ध जल की सतत उपलब्धतता बनाये रखने के लिए, मानवता की रक्षा के लिए वन और वृक्षों का पुनर्रोपण एवं संरक्षण के लिए पूरी निष्ठा और ईमानदारी से  मजबूत कार्यनीति को धरातल पर उतारना ही होगा, तभी हम सबका और आने वाली पीढ़ियों का जीवन सुरक्षित और खुशहाल रह सकता है।

जीवन में पेड़ो का महत्त्व फोटो साभार गूगल 

वन ऋतुचक्र  एवं प्रकृति में संतुलन बनाये रखने में सक्षम होते है। वन अधिक वर्षा के समय मिट्टी  के कटाव को रोकते है तथा उसकी उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहयोग करते है। यही नहीं पेड़-पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से भूमि के जल को अवशोषित करते है जो पुनः वाष्पित होकर वायुमंडल में बादल का रूप ले लेते है, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा होती है और यह चक्र निरंतर चलता रहता है। एकअध्ययन से ज्ञात हुआ है कि दुनियां के तीन चौथाई इलाकों में बेहतर पानी का कारण वहां के बेहतर वन ही रहे। दुनियां में जो बड़े 230 जलागम है, उनमें 40 फीसदी जलागमों में 50 % तक वनों की क्षति हुई है और यदि ऐसा ही होता रहा तो भविष्य में हमें भीषण जल संकट का सामना करना पड़ेगा जिसकी आहट सुनाई पड़ने लगी है। वन न केवल हमें जीवन दायिनी ऑक्सीजन देते है और बहुमूल्य वर्षा जल प्रदाता है बल्कि मनुष्य के लिए रोजी-रोटी, कपड़ा और मकान के लिए आवश्यक वस्तुएं भी प्रदान करते है। मानव को निरोगी बने रहने के लिए बहुमूल्य औषधियां हमें वनों से ही मिलती है। वनों की सुरक्षा, वृक्षारोपण तथा पेड़-पौधों की रक्षा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि देश के हर नागरिक का भी नैतिक दायित्व और पुनीत कर्तव्य है।

हम सब को अपने पर्यावरण को सुरक्षित बनाये रखने के लिए  प्राकृतिक वनों के संरक्षण एवं संवर्धन में सहयोग करने के अलावा अपने निवास, कार्यालय परिसर, सार्खेवजनिक स्थानों, खलिहान और मार्गो पर अधिक से अधिक वृक्षों का रोपण करना चाहिए और उन पेड़ों का लालन पालन भी करना चाहिए। वृक्षों पर ही मानव जीवन आश्रित है। वृक्ष हमारी संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक उन्नति का अहम हिस्सा है। आइए आज हम संकल्प लें कि इस वर्ष कम से कम 5 बहुपयोगी वृक्ष रोपित करेंगे, उनमें पानी और खाद देते हुए बड़ा करेंगे तथा कटने से उन्हें बचाएंगे। तभी हमें वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभवों,भीषण गर्मी से मुक्ति मिल सकती है। वृक्षारोपण जैसा और कोई पूण्य कार्य नहीं है।हमारे ऋषि-मुनि जानते थे कि प्रकृति जीवन का स्रोत है और पर्यावरण के समृद्ध और स्वस्थ होने से ही हमारा जीवन भी समृद्ध, सुरक्षित और सुखी होता है।

पर्यावरण के संतुलन में वृक्षों के महान् योगदान एवं भूमिका को स्वीकार करते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने बृहत् चिंतन किया है। हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि एक वृक्ष सौ पुत्र समाना, मतलब 100 पुत्र उतनी सेवा नहीं करते जितना कि मात्र एक वृक्ष करता है और यह सही भी है. एक वृक्ष एक किमी. तक शुद्ध प्राणवायु फैला सकता है. पेड़ों के महत्व को स्वीकार करते हुए मत्स्यपुराण (154.511-512) में कहा गया है कि दस कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है-दशकूपसमावापी दशवापी समो ह्रदः।दशह्रदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः।।

वृक्षारोपण ही नहीं दूसरों द्वारा रोपित पौधों के पालन पोषण और उनकी सुरक्षा करने में भी पूण्य मिलता है।विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3.296.17) में वृक्षों के विषय में कहा गया है कि दूसरे द्वारा रोपित वृक्ष का सिंचन करने से भी महान् फलों की प्राप्ति होती है, इसमें विचार करने की आवश्यकता नही है: सेचनादपि वृक्षस्य रोपितस्य परेण तु।महत्फलमवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।। हमारे शास्त्रों के ये सूत्र इस वर्ष के विश्व वानिकी दिवस के विषय की सार्थकता को प्रतिपादित करते है।

इस प्रकार से हम सब को मिलकर वृक्षारोपण के माध्यम से धरती की हरियाली को बहाल करने का प्रयास करना चाहिए तथा हमारे आस-पास लगे हुए पेड़-वृक्षों को सिंचित करने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का कार्य भी करना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति में वनों के महत्त्व को देखते हुए यह बेहद जरुरी है की हम सब मिलकर वनों के दोहन को रोकने तथा नये वनों की स्थापना की दिशा में ईमानदारी, समर्पण एवं अंतर्भावना से कार्य करें। वनों के संरक्षण के अलावा हम सब सामूहिक रूप से अपने निवास, कार्यालय परिसर, अपनी कॉलोनी और गाँव की गलियों में भी अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें तथा जीवन दायी पेड़ों को पाल पोष कर उन्हें फलने-फूलने का अवसर दें ताकि आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित और खुशाल वातावरण में जीने का अवसर प्राप्त हो सकें। 


कोई टिप्पणी नहीं: