डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर
प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय,
कृषि महाविद्यालय एवं
अनुसंधान केंद्र,कांपा, जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)
राजा भगीरथ स्वर्ग से गंगा को उतार कर लाये थे जिससे प्रतीत होता है कि भारत भूमि पर जल कितनी मुश्किल से आया। भगीरथ ब्रह्म देव और महादेव शिव को वचन देते है कि वह गंगा की शुद्धता बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे। साथ ही इसके जल का अनुचित दोहन नहीं होने देंगे। उन्होंने ही गंगा को देवी की प्रतिष्ठा देकर पूजनीय बनाया. भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि व्यर्थ में जल की एक बूँद बहाना भी जल का अपमान है. इस प्रकार से भारतीय संस्कृति तो सदियों से भारत समेत विश्व को पानी बचाने के लिए जागरूक कर रही है। विडंबना है कि न तो भारत में ही और न ही विश्व में इस बात को अब तक समझा गया है कि पानी की बर्बादी नहीं करना है। लेकिन वेद-पुराणों से ना सही अभियानों से ही यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना बेहतर होगा क्योंकि यह तो निश्चित है की जल है तो कल है। जल ही जीवन है. ये कोई मुहावरे या कोटेशन मात्र नहीं बल्कि अंतिम सच है। आज 22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस है यानी पानी को बचाने के संकल्प का दिन । पानी के महत्त्व को जानने और मानने का दिन । पानी के सरंक्षण के विषय में लोगों को जागृत करने का दिन । विश्वभर के लोगों को जल की महत्ता समझाने और लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के लिए सयुंक्त राष्ट्र संघ के आवाहन पर 1993 से प्रति वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के विश्व जल दिवस (World Water Day-2021) की थीम “वेल्यूइंग वाटर” अर्थात ‘पानी को महत्त्व देना’ है, जिसका लक्ष्य जलवायु परिवर्तन और बढती जनसंख्या के दौर में जन-जन को पानी का महत्व समझाना है,जल संरक्षण के महत्त्व को जन-जन तक पहुंचाना है ताकि भविष्य में हर किसी को पीने और जीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध होता रहे। पानी को सहेजने और पानी को बर्बाद करने से रोकने के लिए सिर्फ एक दिवस मनाने से काम नहीं चलने वाला है। इसके लिए तो हम सब को वर्ष भर 24 घंटे सचेत रहना पड़ेगा क्योंकि पानी का उपयोग तो हम सुबह से लेकर देर रात तक करते रहते है और कृषि क्षेत्र में to रात को ही खेतों की सिंचाई करते है। नहर का पानी खोलकर या सिंचाई पम्प चालू कर सो भी जाते है और पानी व्यर्थ बहता रहता है। इस प्रकार जाने अनजाने में हम प्रकृति के अनमोल रत्न को व्यर्थ ही बर्बाद करते रहते है।
पानी है अनमोल
समझों इसका मोल
पानी
है अनमोल, समझो इसका मोल-जो अभी नहीं समझोगे, तो फिर पानी के लिए तरसोगे। ज्ञात हो कि धरती का करीब तीन चौथाई भाग पानी
से भरा हुआ है। लेकिन इसमें से 97 फीसदी
पानी खारा है और सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा ही पीने योग्य है। इसमें से दो प्रतिशत
बर्फ और ग्लेशियर के रूप में है। ऐसे में
सिर्फ एक फीसदी पानी ही मानव उपभोग के लिए बचता है।
हम अपने पास उपलब्ध पानी का 70
फ़ीसदी खेती-बाड़ी में इस्तेमाल करते हैं और तेजी से बढती जनसँख्या
के भरण पोषण के लिए कृषि क्षेत्र में निरंतर पानी की मांग बढती ही जा रही है। प्रकृति हमें जल एक चक्र के रूप
में प्रदान करती है और हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस चक्र को गतिमान रखना हम सब की नैतिक और सामाजिक
जिम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ
है, हमारे जीवन के पहिये का थम जाना।
प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते है, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण तो नहीं कर सकते, परन्तु अपने
प्राकृतिक संसाधनों को सरंक्षित तो कर ही सकते है, उन्हें दूषित होने से भी बचाया
जा सकता है।
हमारे पास 1869 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध है जिसमें से
बड़ा हिस्सा भौगोलिक कारणों से उपयोग में नहीं आ पाता। हम भारतीय हर साल लगभग 1061 बिलियन
क्यूबिक मीटर पानी इस्तेमाल कर रहे है.उपलब्ध जल संसाधनों का 92 फीसद हिस्सा कृषि
कार्यों में, 5% उद्योगिक तथा 3 % घरेलू कार्यों में इस्तेमाल करते है। अन्तराष्ट्रीय मानक के अनुसार
प्रति व्यक्ति पानी की 1700 क्यूबिक मीटर से कम उपलब्धता वाले देश पानी की कमीं
(वाटर स्ट्रेस्ड) वाले देश की श्रेणी में आते है। अग्र प्रस्तुत सारणी के आंकणों से स्पष्ट है हमारे देश में प्रति व्यक्ति
पानी की उपलब्धता निरंतर घटती जा रही है जो एक गहन चिंता का विषय है।
प्रति व्यक्ति
पानी की उपलब्धतता: कल,आज और कल
वर्ष |
प्रति
व्यक्ति पानी की उपलब्धतता |
2001 |
1820 क्यूबिक मीटर |
2011 |
1545 क्यूबिक मीटर |
2021 |
1486 क्यूबिक मीटर |
2025 |
1340 क्यूबिक मीटर |
2030 |
1140 क्यूबिक मीटर |
जल संकट की
प्रमुख वजह
आज
विश्व में मानव को तीन सबसे बड़ी समस्यायों से जूझना पड़ रहा है यथा जल संकट, वायु प्रदुषण और धरती का बढ़ता तापमान । जल संकट के तमाम
कारणों में से एक तो जनसंख्या में बढोत्तरी और जीवन का स्तर ऊँचा करने की लालच में
मानव ने प्रकृति के साथ द्वन्द मचा रखा है अर्थात प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध
दोहन और शोषण किया जा रहा ह । दूसरा कारण है पानी को इस्तेमाल करने के तरीक़े के
बारे में हमारी अक्षमता। कृषि में सिँचाई के परंपरागत तौर-तरीक़ों (जैसे बाढ़ विधि
से सिंचाई) में फ़सलों तक पानी पहुंचने से पहले ही काफी पानी बर्बाद हो जाता है। उजड़ते
जंगल और नष्ट होते पेड़-वनस्पतियों की वजह से पर्यावरण में ऑक्सीजन की कमीं तथा कार्बन
डाई ऑक्साइड की बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके
कारण तापक्रम में वृद्धि, वर्षा जल में कमीं होने से भूमि का जल स्तर नीचे खिसकता जा
रहा है। यदि अभी भी लोग पानी के संचय,
संरक्षण और सुरक्षा के प्रति जागरुक नहीं हुए तो आने वाले हालात
बहुत भयंकर होंगे।
जरुरी
है जल संरक्षण एवं जल का मितव्ययी उपयोग
विश्व
के समक्ष आसन्न जल संकट की समस्या से निपटने के लिए हमें अपने नगर के परंपरागत जल
स्त्रोतों यानी तालब, कुएं, नदी,नालों को सहेजन होगा, सरंक्षित करते हुए उपलब्ध जल
संसाधनों का मितव्ययी उपयोग करने पर ध्यान देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.
पानी के स्त्रोतों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नगर निगम, ग्राम पंचायतों अथवा सरकार
की ही नहीं बल्कि समाज में रह रहे प्रत्येक नागरिक की भी है. इन्हें गन्दा न करें,
प्रदूषित होने से बचाए. जल संरक्षण का दूसरा उपाय अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना
है. पेड़ों के कारण जमीन की नमीं बरकरार रहती है, वातावरण का तापमान नियंत्रित रहता
है और वर्षा अधिक होती है. इसके अलावा हम सब को अपने गाँव व शहर में वाटर
हार्वेस्टिंग (यथास्थाने जल एकत्रित करने) पर विशेष ध्यान देना होगा। खेत का पानी खेत और गाँव का पानी गाँव में
सहेजने के सिद्धांत पर अमल करना होगा। प्रति बूँद
अधिक फसल की तर्ज पर ड्रिप और फव्वारा विधि से सिंचाई को बढ़ावा देना होगा
जिससे हमारा कृषि उत्पादन भी बढेगा और कम पानी में अधिक क्षेत्र में सिंचाई भी की
जा सकती है । अपने घर की छत या परिसर में
वर्षा जल को रोककर जमीन के भीतर उतारने का कार्य करना होगा जिससे भूमिगत जल का भरण
हो सकें और हमें वर्ष पर्यंत पीने के लिए शुद्ध पानी प्राप्त हो सकें। इसमें कोई दो मत नहीं है कि जहाँ पर्याप्त मात्रा
में पानी व उसका सहीं प्रबंधन है, वे इलाके व देश संमृद्धि होते है. दुनियां में
हर 4 में से एक रोजगार पानी से जुड़ा है. सयुंक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के
अनुसार दुनियां की 78 प्रतिशत वर्कफ़ोर्स पानी पर निर्भर है। विश्व की समस्त कृषि पानी की उपलब्धतता पर टिकी है। जब पानी नहीं होगा तो कृषि नहीं होगी तो हम क्या पियेंगे और क्या खायेंगे
? पूरी समस्या का बस और बस एक ही समाधान सघन वृक्षारोपण और पेड़-पौधों का संरक्षण। इससे वातावरण का तापक्रम संतुलित रहेगा और जल
वर्षा अधिक होगी. उपलब्ध जल संसाधनों के पुनर्भरण का कार्य तेजी से करना होगा। वर्षा जल को संरक्षित करके उसका कृषि कार्यों
में उपयोग करना होगा ताकि भूजल का दोहन कम हो।
सदानीरा नदियों के संरक्षण संवर्धन पर भी उचित ध्यान देना होगा उन्हें
दूषित-प्रदूषित होने से बचाना होंगा, तभी भविष्य में आसन्न जल संकट की विभीषिका से
बचा जा सकता है।
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