अलसी: खेती, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन- भविष्य का एक अभिनव और लाभप्रद कृषि स्टार्टअप
डॉ.गजेन्द्र सिंह
तोमर, प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि
विश्व विद्यालय, कृषि महाविद्यालय, महासमुंद(छत्तीसगढ़)
कभी
जिस अलसी तेल का उपयोग गरीबों के खाने एवं झोपड़ियों में उजाले के लिए किया जाता
था, उस अलसी के दानों को स्वास्थ के लिए चमत्कारी माना जा रहा है।
अलसी को तीसी, अंग्रेजी में लिनसीड तथा वनस्पति विज्ञान में लाइनम यूसीटेटीसिमम कहते है, जो लिनेसी परिवार का एक वर्षिय सदस्य है। यह देश की सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक तिलहन फसल है जिसकी खेती शीतकाल में होती है। प्रजाति के अनुसार इसके पौधों में नीले, सफेद एवं बैंगनी रंग के पुष्प खेत में मनोहारी छटा बिखेरते है। इसके फल (संपुट) गोल होते है। इसके बीज तिल के समान छोटे कत्थई-सुनहरे रंग के एवं चिकने होते है। अलसी से न केवल तेल बल्कि इसके तनों से उच्च गुणवत्ता के रेशे (फाइबर) प्राप्त होते है। इसके बीज में 30-45 % तेल पाया जाता है, जिसका इस्तेमाल पेंट, वार्निश, लिनोलियम, प्रिंटर की इंक, चमड़े के उत्पाद आदि के निर्माण में किया जाता है। अलसी के रेशों से गर्मी में पहनने के लिए सबसे उपयुक्त लिनेन कपड़े बनाये जाते है। आज कपड़ों में लिनेन ब्रांड सबसे मंहगा बिक रहा है। यहीं नहीं, इसके रेशे सिगरेट के लिए रोलिंग पेपर और मुद्रा नोट बनाने में इस्तेमाल किये जाते है।
व्यवसायिक उपयोग ही नहीं सेहत के लिए भी जरुरी है अलसी
पौष्टिकता के
लिहाज से अलसी के प्रति 100 ग्राम दानों में 37.1 % वसा (लगभग 18-20 % ओमेगा-3 फैटी एसिड व अल्फा-लिनोलेनिक एसिड -ए.एल.ए.), 20.3 % प्रोटीन, 4.8 %
फाइबर, 530 किलो कैलोरी ऊर्जा के अलावा खनिज लवण (कैल्शियम, लोहा, पोटैशियम, जिंक
और मैग्नेशियम तथा विटामिन (थाइमिन, विटामिन-बी-5, नियासिन, राइबोफ्लेविन व
विटामिन सी) के साथ-साथ एंटीऑक्सीडेंट (लाइकोपेन, लिग्नेन व लिउटीन) प्रचुर मात्रा
में पाए जाते है। इसलिए अलसी को सेहत के लिए
चमत्कारिक खाद्य कहा जाता है। दरअसल,ओमेगा-3 फैटी एसिड व अल्फा-लिनोलेनिक एसिड को
मनुष्य की सेहत के लिए जरुरी माना गया है। हमारे शरीर में ओमेगा-3 फैटी एसिड का संश्लेषण नहीं होता है। इसी वजह से इसकी आपूर्ति
बाहरी स्त्रोत से की जानी चाहिए. इसकी आपूर्ति खाध्य तेल एवं मांस-मछली से ही की
जा सकती है। अलसी ओमेगा-3 का सबसे बड़ा एवं
सस्ता स्त्रोत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अलसी को सुपर फ़ूड का दर्जा देता है।
महात्मा गांधी ने भी अपनी पुस्तक में अलसी को सेहत के लिए महत्वपूर्ण खाध्य पदार्थ
बताया था। दरअसल हम अपने दैनिक भोजन में ओमेगा-6 की मात्रा अधिक होती है और
ओमेगा-3 की मात्रा न्यूनतम होती है, इसलिए आवश्यक फैटी एसिड का असंतुलन पैदा होने
से शारीरिक विकार पैदा होने लगते है। अलसी के सेवन से शरीर में फैटी एसिड का
संतुलन बना रहता है। आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है।
अनेक शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि हमारे भोजन में ओमेगा-3 की कमी और ओमेगा-6 की प्रचुरता से शरीर में उच्च
रक्तचाप, डायबिटीज, दमा, अवसाद, कैंसर आदि रोग बढ़ने लगते हैं। शरीर के स्वस्थ
संचालन के लिये ओमेगा-3 तथा ओमेगा-6 दोनो
1:1 अर्थात बराबर के अनुपात में होने चाहिए। इसलिए हमें
प्रति दिन 30 से 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिए। अलसी के सेवन से शरीर में
अच्छे कोलेस्ट्राल की मात्रा बढती है और
खराब कोलेस्ट्राल कम होता है. अलसी के नियमित सेवन से ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप,
मधुमेह, कैंसर, कब्ज, टी.बी. आदि रोगों से मुक्ति मिल सकती है। अलसी का तेल भी
काफी गुणकारी होता है। अलसी तेल की मालिश करने पर त्वचा के दाग-धब्बे व झुर्रियां
दूर हो जाती है। त्वचा जलने के दर्द व जलन में अलसी के तेल से राहत मिलती है।
अलसी को हल्का भूनकर
भोजन के बाद सौंफ कि तरह नियमित रूप से खाया जा सकता है। इसके लड्डू भी स्वादिष्ट
एवं पौष्टिक होते है। सेहत के लिए उपयोगी अलसी आज कल मेडिकल स्टोर तथा अनेक ऑनलाइन
साइट पर मंहगे दामों में बेचीं जा रही है। आप इसे पास के बाजार से खरीद कर विभिन्न
रूपों में इसका खाने में इस्तेमाल कर सकते
है।
अलसी के आकर्षक उत्पाद- युवाओं के रोजगार हेतु एक अभिनव स्टार्टअप
बहुगुणी एवं बहुपयोगी अलसी रोजगार एवं आकर्षक आमदनी का एक बेहतरीन जरिया हो सकती है. आज खाद्य बाजार में पौष्टिक एवं स्मार्ट उत्पादों की बहुत मांग है और हाथो-हाथ बिकते है. थोड़ी से लागत से आप अलसी से आप विभिन्न प्रकार की खुशबू (फ्लेवर) जैसे नीबू, संतरा, तुलसी, पौदीना प्रकार के छोटे-छोटे पाउच तैयार कर बाजार में पेश कर सकते है. अलसी के ओमेगा-3 लड्डू, ओमेगा-3 दूध, ओमेगा-3 पापड व चिप्स, ओमेगा-3 बिस्कुट, ओमेगा-3 चाँकलेट आदि उत्पाद तैयार कर बाजार में प्रस्तुत कर सकते है. निश्चित ही इस उभरते व्यवसाय को अच्चा प्रतिसाद मिल सकता है। यही नहीं, पौल्ट्री व्यवसायी भी ओमेगा-3 अंडे का उत्पादन कर बेहतरीन लाभ अर्जित कर सकते है। अलसी के दानों से तेल निकालने के पश्चात बची खली का उपयोग दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक खली के रूप में अथवा खेती में बेहतरीन खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। अलसी के तनों से रेशे निकालकर उससे अनेकों प्रकार के उत्पाद तैयार करने का भी व्यवसाय किया जा सकता है। इस प्रकार अलसी की खेती से लेकर इसके प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्धन की इकाई एक सुनहरे व्यवसाय का माध्यम बन सकती है।
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