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बुधवार, 16 नवंबर 2022

ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार एवं आमदनी के अवसर देता है-पलाश वृक्ष : एक उत्तम स्टार्टअप

 



डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

ढांक कहो, टेसू कहो, अथवा कहो पलाश। ऊपवन में पर हैसियत, होती इसकी खास. किसी  सम्माननीय कवि द्वारा कही गयी ये पंक्तियाँ पलाश के महत्व को दर्शाती है. वैदिक ग्रंथों से लेकर कवियों कि रचनाओं और साहित्य में  पलाश का  गुणगान  किया गया है।  साहित्य में और आम बोल चाल में एम् एक मुहावरा “ढांक के तीन पात” बहुत प्रचलित है जिसका तात्पर्य चाहे कुछ भी हो जाय, कुछ परिवर्तन नहीं होगा, ढांक  के तीन पात ही रहेंगे प्रकृति ने हमें पेड़-पौधों के रूप में अनेकों उपहार दिए है, जो जीवन को न केवल स्वस्थ बनाते है, बल्कि उनके मनमोहक पुष्पों से जन-जीवन को हमेशा उत्साह, उमंग और प्रेरणा मिलती है


पलाश को ढांक परास, संस्कृत में किशुक, रक्त पुष्पक, ब्रह्मा पादप, अंग्रेजी में फ्लेम ऑफ़ द फारेस्ट और  वनस्पति विज्ञान में ब्यूटिया मोनोस्पर्मा कहते है। आकर्षक रंग, रूप और गुणों से परिपूर्ण पलाश उत्तर प्रदेश का राजकिय वृक्ष है जो भारतीय डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है। पलाश की दो प्रजातियां होती है-एक लाल  फूलों वाला पलाश (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा) जो की सभी जगह देखने को मिलता है. दूसरा सफेद फूलों वाला पलाश (ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा) एक प्रकार का लता पलाश है, जो दुर्लभ है। इसके पेड़ मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के वनों में कहीं कहीं दिख जाते है। इनके अलावा एक पीला पलाश (अत्यंत दुर्लभ) भी होता है. ऐसा माना जाता है सफेद पलाश के फूल व पत्ते भगवान शंकर को बेहद प्रिय है। इस  दुर्लभ पेड़ का प्रयोग तंत्र-मन्त्र में किया जाता है।

पलाश का पेड़ मध्यम आकार का लगभग 12 से 15 मीटर ऊंचा होता है. इसका तना सीधा, खुरदुरा एवं अनियमित शाखाओं वाला होता है इसके एक ही डंठल में तीन पत्रक एक साथ लगे होते है, जो ढाक के तीन पातलोकोक्ती को सार्थक करते है। पलाश के पत्ते गोल होते है जो सामने से हरे एवं नीचे से भूरे रंग के होते है। पतझड़ के बाद बसंत ऋतू में इसमें केसरिया लाल रंग के फूल खिलते है ऐसा माना जाता है कि ऋतुराज बसंत का आगमन पलाश के बगैर पूर्ण नहीं होता है अर्थात पलाश बसंत का श्रंगार है. इसके फूल  बाहर  से मखमली भूरे-पीले व अन्दर की ओर सिंदूरी लाल रंग के होते है फूलों की पंखुड़ियां तोते की चोंच की तरह लाल होती हैं, इसलिए इसे किंशुक (शुक या तोता) कहा गया है फूल खिलने के बाद दूर से देखने पर ऐसा लगता है, जैसे जंगल में आग लगी है, इसलिए इसे फ्लेम ऑफ़ द फारेस्ट अर्थात जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है सर्वगुण संपन्न पलाश के फूल में गंध नहीं होती है

पलाश वृक्ष का धार्मिक, आर्थिक एवं औषधिय महत्व

दुर्लभ सफेद पलाश फोटो साभार गूगल 
धार्मिक महत्व: आयुर्वेद में पलाश को ब्रह्मवृक्ष कहा गया है और इस वृक्ष में तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश का निवास माना जाता है। पलाश का प्रयोग गृह-नक्षत्रों की शांति हेतु किया जाता है। इसके फूल भगवान् जगन्नाथ को अर्पित किये जाते है और यज्ञोपवीत संस्कार के विधि विधान में  भी इनका उपयोग होता है.इसकी लकड़ी यज्ञ- हवन पूजन में काम आती है। धार्मिक एवं तांत्रिक अनुष्ठानों में सफेद पलाश की अधिक मांग होती है, परन्तु उपलब्ध न होने के कारण लाल पलाश का ही इस्तेमाल किया जाता है. पलाश के  पेड़ की जड़ से ग्रामीण सोहई बनाते हैं, जिसे दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजन के समय गाय-बैलों के गले में बांधा जाता हैं। 

रोजगार एवं आमदनी का साधन है पलाश  

1.दौना-पत्तल उद्यम: प्रकृति प्रदत्त पलाश न केवल बसंत में मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है बल्कि ग्रामीणों को रोजगार एवं आमदनी के अवसर भी प्रदान करता है इसकी पत्तियों का उपयोग दौना-पत्तल एवं बीडी बनाने में किया जाता है प्लास्टिक उपयोग से हो रहे प्रदुषण एवं स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव को देखते हुए भारत के अनेक राज्यों में शादी-समारोहों में उपयोग होने वाले प्लास्टिक के पात्रो/डिस्पोजल बेचने एवं प्रयोग पर रोक लगा दी है ऐसे में पेड़-पौधों के पत्तो से बने दौना-पत्तल की हमारी प्राचीन परंपरा पुनर्जीवित होने की संभावना बलवती हुई है आज कल पेड़ों के पत्तों से बने पात्रों का चलन बढ़ रहा है और बाजार में इनकी मांग बढती जा रही है अतः दौना-पत्तल को कुटीर उद्यम के रूप में अपनाया जा सकता है इसकी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक चारा भी है

2. हर्बल गुलाल एवं रंग:  केमिकल युक्त रंग के प्रचलन और इनके दुष्प्रभाव से परिचित लोग अब होली पर रंग और गुलाल का उपयोग कम करने लगे है. अब बाजार में हर्बल (प्राकृतिक)  गुलाल और रंगों की अधिक मांग है.  रंगों और गुलाल पलाश के फूलों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार किया जाता है मथुरा में इसके हर्बल गुलाल एवं रंग  से आज भी होली खेली जाती है इसके फूल फाल्गुन-चैत्र में खिलते है इन फूलों को एकत्रित कर इनसे प्राकृतिक गुलाल एवं रंग बनाने का उद्यम प्रारंभ कर आर्थिक उन्नति की जा सकती है

3. मूल्यवान गोंद: इसके तने से लाल रस निकलता है जो सूखकर लाल गोंद बन जाता है जिसे बंगाल कीनो, पुनिया गोंद एवं कमरकस के नाम से जाना जाता है गोंद एकत्रीकरण एवं प्रसंस्करण भी एक अच्छा उद्यम हो सकता है। पलाश की पतली शाखाओं को उबालकर निम्न कोटि का कत्था तैयार किया जाता है, जिसे पश्चिम बंगाल में खाया जाता है

4. लाख कीट पालन: पलाश के पेड़ों पर लाख कीट पालन किया जाता है. लाख का उपयोग खोखले गहनों के अन्दर भरने, चूड़ियां, खिलोने आदि  बनाने में किया जाता है लाख कीट पालन एवं लाख प्रसंस्करण भी उत्तम व्यवसाय है

5.पलाश कि पत्तियां पशुओं के लिए उत्तम चारा है. इसकी जड़ों से प्राप्त रेशों का उपयोग रस्सियां बनाने में किया जाता है

पलाश का औषधिय महत्त्व: पलाश के सम्पूर्ण पेड़ में औषधीय गुण पाए जाते है, जिनका प्रयोग आयुर्वेदिक, यूनानी एवं होम्योपैथिक दवाएं बनाने में किया जाता है

पलाश के पत्तों से बने दौना-पत्तल पर नित्य कुछ दिनों तक भोजन करने से शारीरिक व्याधियों का शमन होता है। दरअसल पलाश की पत्तियों में विद्यमान पोषक तत्व एवं औषधिय गुण गर्म भोजन में समाहित हो जाते है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माने जाते है इसके अलावा पत्तियों का उपयोग फोड़ा-फुंसी, मुंहासे आदि के उपचार में किया जाता है पलाश की छाल से प्राप्त अर्क का उपयोग नजला और खांसी के उपचार में किया जाता हैपलाश का गोंद  त्वचा रोग, मुंह  के रोग, अतिसार, पेचिस, उदर रोग के उपचार में उपयोगी माना जाता है  इसकी जड़ की छाल रक्तचाप के उपचार में फायदेमंद होती है. इसके फूल सूजन, प्रदाह या जलन को शांत करने वाले माने जाते है इसके फूलों का इस्तेमाल मधुमेह, नेत्र रोग, उदर रोग, बुखार आदि के  उपचार में किया जाता है इसके फूलों का सेवन करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है एवं रक्त संचार बढ़ाने में मदद मिलती है पलाश के फूलों का पेस्ट चेहरे पर लगाने से चेहरा कांतिवान हो जाता है इसके फूलों के पानी से स्नान करने से लू और गर्मी से बचा जा सकता है पलाश के बीज और तेल में कृमिनाशक गुण पाए जाते है. इनका उपयोग बुखार, मलेरिया, फीता कृमि, गोल कृमि के उपचार में किया जाता है इसके तेल का उपयोग साबुन उद्योग में किया जाता है

उजड़ते वन-उपवन एवं जंगलों के विनाश के कारण पलाश के वृक्षों की संख्या दिनों-दिन कम होती जा रही है, जो चिंता और चिंतन का विषय है. पलाश वृक्ष कि महत्ता एवं व्यवसायिक उपयोगिता को देखते हुए सरकार एवं वन विभाग को इनके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए प्रयास करना चाहिए. इसके अलावा किसानों खेतों की मेंड़ों पर इस बहुपयोगी वृक्ष के पेड़ों का रोपण  करने किसानों को भी प्रोत्साहित करने कि आवश्यकता है ताकि उनकी आमदनी में इजाफा हो सके. इस प्रकार से  पलाश के  पेड़ ग्रामीणों के लिए रोजगार एवं आमदनी अर्जित करने का उत्तम साधन बन सकते है इससे न केवल दौना-पत्तल, लाख उत्पादन, फूलों से प्राकृतिक रंग, गोंद एवं आयुर्वेदिक दवाइयों का कारोबार  किया जा सकता है। पलाश के हर्बल उत्पाद उपलब्ध होने से  लोगों के स्वास्थ एवं इसके  पेड़ों के रोपण से पर्यावरण में भी सुधार हो सकता है।

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