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शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

सेहत और ताकत का खजाना है-समा का चावल-उपवास में खाने की परंपरा

 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

समा के चावल को भारत के विभिन्न स्थानों पर सांवा, मोरधन,  समा, झंगोरा, झुंगरु, वरई, कोदरी, श्यामा चावल, उपवास के चावल आदि नाम से जाना जाता है इसे अंग्रेजी में इंडियन  बार्नयार्ड मिलेट  और बिलियन डॉलर ग्रास  तथा वनस्पति विज्ञान में इकनिक्लोवा फ्रूमेन्टेंसी के नाम से जाना जाता है, जो घास (पोएसी) कुल का वार्षिक खरपतवार है यह घास नमीं वाले स्थानों, दलदली खेतों में  स्वमेय उगता है इसके पौधे 60-120 सेमी  ऊंचे एवं कंशेयुक्त होते है। भारत के पहाड़ी राज्यों में समा की खेती भी की जाती है और वहां इसे चाव से खाया जाता है।

समा कि फसल एवं दानें 

समा के दाने छोटे, गोल तथा रंग में भूरे पीले होते है
। अक्टूबर से नवंबर माह  में समा के चावल की फसल में दाने तैयार हो जाती है । प्रकृति प्रदत्त मुफ्त की समा फसल की कटाई-मिजाई एवं दानों को सुखाने के उपरान्त  समा चावल का उपयोग अथवा बाजार में बेच कर लाभ अर्जित किया जा सकता है। भूमिहीन किसानों एवं बेरोजगार युवकों के लिए मुफ्त की फसल आमदनी का अच्छा साधन बन सकती है। बाजार में इसका चावल बहुत महंगे (150-200 रूपये प्रति किलो)  दामों पर बिकता है।

समा का चावल सेहत और शरीर को उर्जावान बनाये रखने का खजाना है. पोषण कि दृष्टि से इसके 100 ग्राम दानों में 65.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 10  ग्राम फाइबर, 6.2 ग्राम प्रोटीन, 2.20 ग्राम वसा, 307 Kcal ऊर्जा, 20 मिग्रा कैल्शियम, 5 मिग्रा आयरन, 82 मिग्रा मैगनीशियम, 3 मिग्रा जिंक  तथा 280 मिग्रा फास्फोरस के अलावा विटामिन ए, सी, ई प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। शरीर में  प्रोटीन एवं फाइबर की आपूर्ति, पाचन तंत्र सुधारना. वजन कम करना, ताकत और स्फूर्ति बढ़ाने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता  बढाने में कारगर सिद्ध हुआ है। यह शुगर के मरीजों, ह्रदय रोगियों, उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उपयोगी अन्न है। इसमें मौजूद हाई डाईटरी फाइबर शरीर में ग्लूकोज के स्तर एवं कोलेस्ट्रोल  को संतुलित रखते हैं। समा के चावल के उत्पादन एवं भोजन में इसके उपयोग को बढाने से देश में व्याप्त भुखमरी एवं कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है।  

आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक दोनों ही दृष्टि से समा के चावल को महत्वपूर्ण माना गया है. ऐसा माना जाता है कि व्रत के समय खेतों में बोया अनाज नही खाया जाता है समा का चावल बिना जुताई और बिना बुआई के अपने आप उगता है अर्थात यह  प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला अन्न है। ये चावल  पाचन में सहज और सौम्य माने जाते है। दरअसल, व्रत एवं उपवास के दौरान भोजन नहीं करने से शरीर का पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है इसलिए व्रत के दौरान फलाहार के रूप में आसानी से पचने वाले और पौष्टिक समा के चावल का सेवन किया जाता है एकादशी व्रत, हरतालिका तीज के दिन समा के चावल अथवा इससे तैयार पकवान खाने का रिवाज है आसानी से पचने, तुरंत ऊर्जा एवं स्फूर्ति प्रदान करने कि वजह से ही व्रत में इसके चावल खाए जाते है समा के चावल  का विवरण वेदों में भी मिलता है। इसे सृष्टि का प्रथम अन्न भी माना जाता है  प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार यदि समा के चावल का सेवन सिर्फ महीने में तीन बार  नियमित रूप से करने पर व्यक्ति 85 वर्ष तक स्वस्थ एवं   उर्जावान बना रह सकता है।  दरअसल सामान्य  चावल की तुलना में समा के चावल में 30 गुना अधिक एंटीऑक्सीडेट्स तत्व पाए जाते है जिससे इनमें एंटीएजिंग के गुण होते है। इसके नियमित सेवन से अपच, पेट फूलना, खून की कमीं, भूख ना लगना, वजन में गिरावट, हाथ-पैरों में झुनझुनी, बाल झड़ना, मुँह में छाले, त्वचा विकार, हड्डियों और माँसपेशियों जैसी तमाम  समस्याओं  का सामना नहीं करना पड़ता है। सुपाच्य  होने कि वजह से इसका सेवन बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी कर सकते हैं। ध्यान रहे समा के चावल को हवामुक्त (एयर टाइट) पात्र में भंडारित कर रखना आवश्यक है, क्योंकि नमीं के संपर्क में आने से ये खराब हो जाते है।

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