Powered By Blogger

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

मधुमक्खी पालन सिर्फ व्यवसाय नहीं मानव के अस्तित्व के लिए भी आवाश्यक



हम अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर दोहन करते आ रहे है और बदलें में हम प्रकृति की  हरियाली भी कायम करने में विफल है सही मायने में मधुमक्खी प्रकृति कि सहचर है. वे निःस्वार्थ भाव से प्रकृति और मानव कि सेवा में दिन-रात जुटी रहती है हम है कि उनके काटने के डर से उनके प्राकृत वास यानी छत्तों को अनायास नष्ट करते है जलाते रहते है. मधुमक्खी ही ऐसा जीव है जो प्रकृति से जितना लेती है, उसका कई  गुना वापस करती है. वे प्रकृति कि हरियाली और मनुष्य के लिए भोजन, फल-फूल तैयार करने में भी सहायक है 

फोटो सभार गूगल 

हमारे जीवन में मधुमक्खियों की महत्वपूर्ण  भूमिका हैं. इनके  द्वारा उत्पादित अत्यंत पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर शहद का उपयोग  हम सब करते है। मधु अपने आप में पूर्ण भोजन है एक चम्मच मधु सेवन करने से हमें 100 कैलोरी ऊर्जा के साथ-साथ प्रोटीन, 18 प्रकार के अमीनो अम्ल, अनेक प्रकार कि विटामिन, खनिज तत्व एवं एंजाइम प्राप्त होते है. मधु रक्त वर्धक, रक्त शोधक तथा आयुवर्धक अमृत है. पौष्टिकता कि दृष्टि से 200 ग्राम शहद 1.135 किग्रा दूध, 340 ग्राम मीट, 245 ग्राम मछली और 10 अंडे के बराबर माना जाता है मधु न केवल भोजन और दवा के रूप में उपयोगी है, बल्कि आजकल कास्मेटिक और कान्फेक्सनरी उद्योग में भी इसकी मांग निरंतर बढती जा रही है

मधुमक्खी पालन के लिए एपिस सिराना इंडिका (भारतीय मधुमक्खी) एवं सबसे अधिक पाली जाने वाली एपिस मैलीफेरा (इटेलियन मधुमक्खी) उत्तम होती है  जंगलों एवं ऊंचे पेड़ों, भवनों विशेषकर पानी कि टंकियों पर छत्ता बनाने वाली भंवर मधुमक्खी (एपिस डोरसेटा) होती है, जो अधिक शहद जमा करने वाली तथा सक्षम परागणकर्त्ता होती है, परन्तु क्रुद स्वभाव, ऊंचे स्थानों पर छत्ता बनाने  एवं मौसम अनुसार स्थान बदलने के कारण इनका पालन संभव नहीं होता है 

भारतीय मधुमक्खी वंश से 10-20 किग्रा मधु तथा इटालियन मधु वंश से 100 किग्रा तक शहद एक वर्ष में प्राप्त किया जा सकता है

मधुमक्खी पालन के लिए तीन प्रकार की मधुमक्खियाँ आवश्यक होती हैं: एक मादा जिसे रानी मक्खी भी कहते हैं, जो 24 घंटे में लगभग 800-1500 अंडे देती है. दूसरी नर (ड्रोन) मक्खी (300-400) और तीसरा श्रमिक (कमेरी) मक्खी, जिनकी संख्या 25 से 30 हजार होती है. श्रमिक मक्खियों का कार्य  फल-फूलों से रस चूसकर एकत्रित करना और अन्डो से निकलने वाले बच्चो का पालन पोषण करना होता है। नर मक्खी का कार्य केवल रानी मक्खी को गर्भधारण कराना होता है  नर आकार में बड़े होते है, इनके पास डंक नहीं होता और ये अन्य कार्य भी नहीं करते है गर्भधारण होने के बाद श्रमिक मक्खियाँ इन्हें मार डालती है. शहद निकालने के लिए श्रमिक मक्खियों को एक बार में 50 से 100 फूलों पर भ्रमण करना पड़ता है और करीब 500 ग्राम शहद तैयार करने के लिए मधुमक्खियों  को 90 हजार मील उड़ना पड़ता है.एक मधुमक्खी अपने पूरे जीवनकाल में केवल 1/12 चम्मच शहद का उप्तादन कर सकती है

मधुमक्खियाँ अपना भोजन मकरंद एवं परागकण फूलों से ग्रहण करती है परन्तु फूल भी अपनी आधारभूत आवश्यकता अर्थात परागण (अगली पीढ़ी के लिए बीज निर्माण) के लिए मधुमक्खियों पर ही निर्भर रहते है. हमारे द्वारा खाए जाने वाला लगभग एक तिहाई भोजन (खाद्यान्न, दाल, तेल, सब्जी, फल, फूल) मधुमक्खी के परागण का ही परिणाम है 

महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन ने कहा था कि यदि मधुमक्खियां पृथ्वी से गायब हो जाएं तो 4 साल में मानव जाति का अस्तित्व इस दुनिया से खत्म हो जाएगा।

आधुनिक कृषि में अंधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग करने, पेड़-पौधों के विनाश, पर्यावरण प्रदूषण के कारण दिन प्रति दिन मधुमक्खियों कि संख्या में कमी आती जा रही है, जिससे हमारी कृषि और्मनव का अस्तित्व खतरे में है. इसलिए किसान भाइयों एवं बागवानों को खेती-बाड़ी के साथ-साथ मधुमक्खी पालन (एक हेक्टेयर में कम से कम 10 बक्से) करना चाहिए. इससे आप 25 से 30 हजार का अतिरिक्त मुनाफा अर्जित  किया जा सकता है.  न केवल मुनाफे के लिए मधुमक्खी पालन आवश्यक है बल्कि  फसलोत्पादन, फल-फूल, सब्जी उत्पादन के लिए मधु मक्खी पालन आवश्यक है

प्रस्तुति: डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर 

नोट :कृपया  लेखक/ब्लोगर की अनुमति के बिना इस आलेख को अन्य पत्र-पत्रिकाओं अथवा इंटरनेट पर प्रकाशित न किया जाए. यदि इसे प्रकाशित करना ही है तो आलेख के साथ लेखक का नाम, पता तथा ब्लॉग का नाम अवश्य प्रेषित करें

कोई टिप्पणी नहीं: