डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर, प्रोफ़ेसर
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
कंपा,महासमुंद (छत्तीसगढ़)
खट्टे-मीठे स्वादिष्ट अनन्नास को संस्कृत में आपनस अंग्रेजी में पाइनएप्पल तथा वनस्पति शास्त्र में
ब्रोमेलिया कोमोसा कहते है, जो ब्रोमेलियेसी कुल का बहुवर्षीय पौधा है। इसके छोटे तने पर 60-90 सेमी
लंबे पत्तों का घेरा होता है। पत्तों के किनारे कांटेदार और सिरे पर पैने नुकीले
होते है. इसके पत्ते हरे अथवा हलके
पीले-गुलाबी रंग के (प्रजाति के अनुसार) होते है। इसमें फल पत्तियों के रोसेट के
केंद्र में एक डंठल पर आते है. वास्तव में अनानास एक बहुफल अर्थात इसके अनेक फलों
का समूह विलय होकर एक बड़ा फल उत्पन्न होता है । इसके फल आकार में अंडाकार से
बेलनाकार हो सकते है, जिनके सिरे पर छोटी-छोटी
पत्तियों का मुकुट होता है। पके फलों का
आवरण सुनहरे पीले रंग का होता है, जिनपर अनेक शल्क पाए जाते है. अनानास में जनवरी
से मार्च तक फूल आते है। अनन्नास के फल में खाने योग्य भाग 66 % होता है तथा 19-20
% रस होता है। इसके पके फल का गूदा पीले
से हल्के नारंगी रंग का तथा रसीला होता है। इसके फलों में बीज नहीं बनते है।
अनन्नास की व्यवसायिक खेती
अनानास की सफल खेती के लिए नम एवं गर्म जलवायु की
आवश्यकता होती है. खेती के लिए 15.5 डिग्री सेल्सियस से लेकर 34 डिग्री सेल्सियस
तापक्रम उपयुक्त रहता है। खेती के लिए
उचित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है। इसकी उन्नत किस्मों में रानी (प्रति
फल औसत वजन 600 से 800 ग्राम) एवं केव (प्रति फल औसत वजन 1.5 से 3 किग्रा अधिक
उपयुक्त होती है। उत्तर भारत में जून-जुलाई में इसका रोपण किया जा सकता है. अनन्नास
को कल्लों, प्ररोह और मुकुटों (फल के ऊपरी भाग) से उगाया जा सकता है। सामान्य तौर
पर अनानास के पौधों के बगल से निकलने वाले
सकर्स या कल्लों का उपयोग रोपण हेतु किया जाता है। पौधों की रोपाई मेड़ो पर 60 सेमी ( पौधों के मध्य
30 सेमी) की दूरी पर करना चाहिए। एक हेक्टेयर में 44, 444 पौधे स्थापित होना चाहिए।
पौध रोपण से एक माह पूर्व खेती कि अंतिम जुताई के समय 8-10 टन गोबर खाद अथवा कम्पोस्ट खेत में मिलाना
चाहिए। इसके अलावा 16 ग्राम नाइट्रोजन, 4 ग्राम फॉस्फोरस एवं 12 ग्राम पोटैशियम
प्रति हेक्टेयर को दो बराबर भागों में बांटकर रोपाई के 6 एवं 12 माह में पौधों के
निकट डालकर गुड़ाई करना चाहिए। इसकी फसल में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। गीष्म
ऋतु में आवश्यकतानुसार 1-2 सिंचाई देना
जरुरी है। अनन्नास के पौधों में शीघ्र एवं समान पुष्पन के लिए इथ्रेल (0.04 %) एवं
2% यूरिया के घोल का छिड़काव करना लाभकारी पाया गया है। इस छिडकाव के 40 दिन बाद
पौधों में पुष्पन आना प्रारंभ हो जाता है। इन रसायनों का छिडकाव नवम्बर-दिसबर में
करना चाहिए।
सामान्यतौर पर इसके पौधों में फरबरी-अप्रैल में
पुष्पन होता है एवं जुलाई से अगस्त तक फल
कटाई के लिए तैयार हो जाते है। पौध रोपण के 18-22 माह में फल परिपक्व होने लगते है।
उत्तम प्रबंधन से प्रति हेक्टेयर 45-50 टन फल प्राप्त किये जा सकते है। एक बार
रोपित फसल से तीन बार फल प्राप्त किये जा सकते है। अनन्नास के फल बाजार में 50
रूपये प्रति किलो से अधिक दर पर बिकते है।
अनन्नास की फसल से फलों के अलावा इसके पत्तों से 25
से 30 किग्रा प्रति टन सफेद चमकीला रेशा प्राप्त किया जा सकता है। इसका रेशा टिकाऊ
होता है और पानी में खराब नहीं होता है। इसके रेशे (धागे) अलसी के धागों से अधिक
बारीक़, मजबूत एवं चमकीले होते है। इन्हें रेशम के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया
जा सकता है। फिलिपीन्स में इसके धागों से
पीना ब्रांड के महंगे कपड़े तैयार किया जाते है। पत्तियों से रेशा निकालने
के बाद बचे पदार्थ से कागज़ बनाया जा सकता है।
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