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सोमवार, 9 जनवरी 2023

फसलों का दुश्मन-जड़ परिजीवी खरपतवार-मरगोजा (ओरोबेंकी) का नियंत्रण

 

डॉ गजेन्द्र सिंह तोमर, प्रोफ़ेसर (सस्यविज्ञान)

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

मरगोजा को आग्या, भुंईफोड़ अंग्रेजी में ओरोबंकी एवं ब्रूमरेप कहते है. ओरोबेंकेसी कुल के इस खरपतवार की दो प्रजातियां मसलन ओरोबेंकी रोमोसा व ओरोबेंकी इजिप्टियाका आर्थिक रूप से अधिक हानिकारक होती है. 

मरगोजा खरपतवार की दो प्रजातियां 
यह एक जड़ परिजीवी (रूट पैरासाइट) खरपतवार है जो बहुधा सरसों  कुल (क्रूसीफेरी) एवं सोलोनेसी  कुल जैसे बैंगन, टमाटर, आलू, तम्बाकू आदि फसलों के खेत में उग कर फसल  उत्पादन को कम करता है. सरसों, तोरिया, राया आदि फसलों में ओरोबेंकी इजिप्टियाका का आक्रमण अधिक देखा गया है. मूली, गाजर आदि फसलों के साथ भी यह खरपतवार उगता है. मरगोजा द्विबीज पटरी एक वर्षीय पौधा है जो केवल बीजों द्वारा प्रसारित होता है. यह एक सीधा, पीला-भूरे पुष्पक्रम युक्त पूर्ण रूप से जड़-परिजीवी  पौधा है. इसके पौधे एवं शल्क क्लोरोफिल रहित होते है. इसके बीज बहुत ही सूक्ष्म, अंडाकार, गहरे भूरे-काले रंग के होते है. इस पेड़ की बीज उत्पादन क्षमता अत्यधिक (1-2 लाख बीज प्रति पौधा) होती है और 10-12 वर्ष तक बीज भूमि में  जीवनक्षम बने रहते है. इसमें फरवरी-मार्च में फूल आते है और एक सप्ताह बाद बीज बनने लगते है. इसके बीज उपयुक्त परपोषी पौधों से प्रदत्त रासायनिक उत्तेजक की उपस्थिति में अंकुरित होते है. मरगोजा के  पौधों में क्लोरोफिल नहीं होने के कारण, इसमें पाए जाने वाले अद्वितीय चूषकांग (हॉस्टोरिया) मेजबान पौधों की जड़ से भौतिक संबंध स्थापित (जड़ों के अंदर प्रवेश) कर उनसे ही पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करते है. ये  मेजबान (होस्ट) पौधों की जड़ों से जुड़कर पोषक तत्व, पानी  अवशोषित कर फसल को कमजोर कर देते है.  बड़ी मात्रा में बीज उत्पादन,  बीजों की लंबे समय तक मृदा में  जीवन क्षम बने रहने की क्षमता, मृदा की बजाय केवल फसल पर पोषण के लिए निर्भरता तथा मेजबान के साथ अनुलग्न परिजीवी के रूप में ओरोबेंकी  का उन्मूलन बेहद मुश्किल एवं चुनौतीपूर्ण  होता है.
मरगोजा खरपतवार का ऐसे करें उन्मूलन 

गाजर की जड़ (कंद) से लिपटा मरगोजा 
फसल चक्र (फसलों को हेर फेर कर) बोना, गर्मियों में गहरी जुताई, सौरकरण (सोलेराइजेशन) आदि मरगोजा नियंत्रण के प्रभावी उपाय है. रासायनिक विधि से इस हानिकारक खरपतवार के नियंत्रण हेतु खेती की तैयारी करने के बाद नम भूमि में  मृदा प्रधूमक जैसे मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग करने के बाद प्लास्टिक पलवार विछाना कारगर होता है. इसके अलावा ग्लाईफोसेट (41 % एस एल) खरपतवारनाशक का दो बार छिडकाव प्रथम 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर फसल बुआई के 25 दिन बाद  तथा दूसरा  50 ग्राम प्रति हेक्टेयर (400 लीटर पानी में घोल बनाकर) फसल बुवाई के 55-60 फसल की कतारों में  छिडकाव करने से मरगोजा का 60-80 प्रतिशत नियंत्रण हो जाता है. ध्यान रहे कि छिडकाव के समय एवं बाद में खेत में पर्याप्त नमीं का होना आवश्यक है. इसके लिए उक्त दवा छिडकाव से 2-3 दिन पूर्व या बाद में खेत में सिंचाई अवश्य कर देवें. छिडकाव सुबह के समय फसल की पत्तियों पर ओस या नमीं रहने कि स्थिति एवं फसल में फूल आते समय दवा का छिडकाव फूलों पर न गिरे अन्यथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

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