Powered By Blogger

शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

स्वास्थ्य और समृद्धि का आधार बन सकते है खरपतवार


                    स्वास्थ्य और समृद्धि का आधार बन सकते है खरपतवार

डॉ.जी.एस.तोमर, प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
                                                        अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

ऐसा कोई अक्षर नहीं जिससे मन्त्र न बने और संसार में ऐसी कोई वनस्पति नहीं, जिसमे कोई औषधीय गुण न हो।  सृष्टि की प्रत्येक वनस्पति में औषधीय गुण विद्यमान होते है, जो किसी न किसी रोग में, किसी न किसी रूप में और किसी न किसी स्थिति में प्रयुक्त होती है।  बस जरुरत है इन्हें पहचानने  और इनके सरंक्षण -सवर्धन हेतु उचित उपाय करने की ।  हमारे देश में जलवायु, मौसम और भूमि के अनुसार अलग-अलग प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ पाई जाती है।  वर्मान में हमारे देश में 500 से अधिक पादप प्रजातियों का औषध रूप में प्रयोग किया जा रहा है।  इनमे से बहुत सी बहुपयोगी वनस्पतियाँ बिना बोये फसल के साथ स्वमेव उग आती है, उन्हें हम खरपतवार समझ कर या तो उखाड़ फेंकते है या फिर  शाकनाशी दवाओं का छिडकाव कर नष्ट कर देते है।  जनसँख्या दबाव,सघन खेती, वनों के अंधाधुंध कटान, जलवायु परिवर्तन और रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से आज बहुत सी उपयोगी वनस्पतीयां विलुप्त होने की कगार पर है।  आज आवश्यकता है की हम औषधीय उपयोग की जैव सम्पदा का सरंक्षण और प्रवर्धन करने किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागृति पैदा करें ताकि हम अपनी परम्परागत घरेलू चिकित्सा (आयुर्वेदिक) पद्धति में प्रयोग की जाने वाली वनस्पतियों को विलुप्त होने से बचा सकें।  यहाँ हम कुछ उपयोगी खरपतवारों के नाम और उनके प्रयोग से संभावित रोग निवारण की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहे है ताकि उन्हें पहचान कर सरंक्षित किया जा सके और उनका स्वास्थ्य लाभ हेतु उपयोग किया जा सकें।  आप के खेत, बाड़ी, सड़क किनारे अथवा बंजर भूमियों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इन वनस्पतियों के शाक, बीज और जड़ों को एकत्रित कर आयुर्वेदिक/देशी दवा विक्रेताओं को बेच कर आप मुनाफा अर्जित कर सकते है।  फसलों के साथ उगी इन वनस्पतियों/खरपतवारों का जैविक अथवा सस्य विधियों के माध्यम से नियंत्रण किया जाना चाहिए।  शाकनाशियों के माध्यम से इन्हें नियंत्रित करने में ये उपयोगी वनस्पतियाँ विलुप्त हो सकती है। भारत के विभिन्न प्रदेशों की मृदा एवं जलवायुविक परिस्थियों में उगने/पाए जाने वाले कुछ बहुपयोगी खरपतवार/वनस्पतियों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है.
हिंदी नाम
अंग्रेजी नाम
वानस्पतिक नाम एवं कुल 
औषधीय उपयोग
भुई आंवला, भूधात्री,बहुपत्र

Phyllanthus amarus, Euphorbiaceae
कफ, पित्त नाशक, पीलिया,बुखार, दस्त, घाव भरने में उपयोगी
अपराजिता
Blue Clitoria flower
Clitoria ternatea Linn (Blue), Fabaceae
चर्म रोग,सांस, अस्थमा, टी.बी., माइग्रेन के उपचार में इस्तेमाल  
सत्यानाशी
Prickly poppy
Argemone mexicana Linn., Papaveraceae
चर्म रोग, दस्त,,मलेरिया बुखार आदि में उपयोगी
सहदेवी
Goat weed
Ageratum conyzoides Linn, Asteraceae
कटने पर, घाव, उल्सेर, किडनी पथरी, आँखों के रोग में प्रयोग
हुल-हुल, हुर हुर 
Sticky cleome
Cleome viscosa Linn, Capparacea
कफ नाशक,पेट के कीड़े,पेट रोग, डायरिया, बुखार के उपचार में इस्तेमाल
बरभांटा
Poison berry
Solanum indicum, Solanaceae
चर्म रोग,बुखार, कफ, अस्थमा,मोटापा, दस्त आदि के उपचार हेतु
चिरपोटी, रसभरी
Country gooseberry
Physalis minima Linn., Solanacea
कमजोरी, कफ,अल्सर के उपचार में प्रयोग  
मकोय,काकमाची
Black night shade
Solanum nigrum L.,
 Solanacea
सूजन,कफ,अस्थमा,आर्थराइटिस, चर्म रोग आदि में इस्तेमाल  
कंघी, अतिबला
Country mallow
Abutilon indicum Sw. Malvaceae
वात,पित्त नाशक,उल्टी आदि समस्याओं में उपयोगी  
दवन पत्ता, पितपपरा
Hedyotis corymbosa
Hedyotis corymbosa (Linn.), Rubiaceae
बुखार, तनाव, पीलिया, दस्त, चर्म रोग,कफ, सांस रोग में उपयोगी
सरपोंखा, जंगली नील
Wild indigo
Tephrosia purpurea (Linn.) Fabaceae
कफ, वात नाशक, चर्म  रोग, पीलिया, बुखार, एनीमिया रोग में इस्तेमाल  
बला, जंगली मेहदी
Common sida
Sida retusa (Linn.), Malvaceae
अस्थमा, कफ,बुखार के उपचार में प्रयोग  
कन्कम्बर, पिलवासा, वज्रदंती 
Crossandra
Barleria prionitis Linn. (Yellow),
Acanthaceae
 बात, पित्त नाशक,घाव भरने, जलने पर उपयोगी
तोयकंदा, वर्षाभू
Slate pencil plant
Peperomia pellucida Linn., Piperacea
कफ, पित्त नाशक,किडनी रोग, कमजोरी दूर करने में इतेमाल.
लाल दुधि
Asthma weed, Cats hair
Euphorbia hirta Linn., Euphorbiacea
कफ, पित्त नाशक,चर्म रोग,अस्थमा, बुखार आदि में उपयोगी
चंगेरी, तिनपतिया
Indian sorrel
Oxalis corniculata Linn., Oxalidaceae
बात,कफ नाशक,दस्त, डायरिया के उपचार में कारगर
लाल चिरचिरा 
Small prickly chaff
Cyathula prostrata, Amaranthaceae
वात, कफ नाशक, मूत्र प्रणाली रोग, दस्त की समस्या में उपयोग  
अकरकरा
Pellitory
Anacyclus pyrethrum,
Asteraceae
लकवा, दिमाग की कमजोरी, दांत दर्द, शिर दर्द, डायरिया, अपच, शारीरिक कमजोरी
पुनर्नवा, गदाह्परना
Hogweed, Pigweed
Boerhaavia diffusa Linn., Nyctaginaceae
वात, पित्त नाशक,ह्रदय रोग, एनीमिया,मूत्र रोग, कमजोरी आदि में उपयोगी
चिरचिटा, अपामार्ग
Prickly chaff-flower plan
Achyranthes aspera Linn., Amaranthaceae
वात,काफ नाशक, अस्थमा, सांस रोग, दर्द नाशक, उल्टी, चर्म रोग
बरियारा, महाबला
Prickly sida
Sida spinosa Linn., Malvacea
वात,पित्त नाशक, दर्द, आर्थराइटिस, अस्थमा, श्वांस रोग,बुखार, कमजोरी
दिधी, कोविदारा 

Sonchus asper               Asteraceae
पौधे के रस को घाव, चोट लगने पर मल्हम जैसे लगाते है
बरेला, लाल बरेला, हस्तिबला
Wild mallow
Sida rhombifolia Linn., Malvaceae
वात,पित्त नाशक, दर्द निवारक, अठमा, आर्थराइटिस, स्वांस रोग, मूत्र रोग
बन तुलसी
Holy basil
Ocimum americanum Linn., Lamiaceae
वात,कफ नाशक,उल्टी,बुखार, लेप्रोसी,माइग्रेन के इलाज में उपयोगी  
कटेली,भटकटैया,कंटकारी
Thorny Nightshade
Solanum virginianum, Solanaceae
पेट और लीवर की समस्या  को दूर करने में इस्तेमाल
हिरनखुरी
Emilia sonchifolia
Emilia sonchifolia (L), Asteraceae
कफ, वात नाशक,आँख रोग, पेट के कीड़े, अल्सर, बुखार,एलर्जी
सहदेवी, सदोदि
Ash colored fleabane
Vernonia cinerea (L.)  Asteraceae
वात, पित्त नाशक, पेट दर्द,डायरिया, बुखार, दाद, खुजली,चर्म रोग, आँख रोग
कुंजिया,
Aramina
Urena lobata L., Malvacea
वात,कफ नाशक,स्वांस रोग,सूखी खांसी, अस्थमा, आर्थराइटिस, कमजोरी .
तिनपतिया,अमल्पत्त्री
Indian red sorrel, Wood sorrel
Oxalis violacea L. Oxalidacea
वात,कफ नाशक, दस्त, डायरिया. भाजी के रूप में प्रयोग
गुमा, कांजी
Pholmis
Urtica parviflora Roxb., Urticacea
पित्त दोष नाशक, बुखार, आर्थराइटिस,मलेरिया. मुलायम पत्तियों की भाजी खाई जाती है.
बड़ी नोनी, नोनिया
Common purslane
Portulaca oleracea. Portulacaceae
वात,पित्त दोष नाशक, पीलिया, मधुमेह, शिर दर्द, उल्टी,दस्त, चर्म रोग
गोखरू
Puncture vine
Tribulus terrestris L. Zygophyllaceae
वात,पित्त रोग नाशक,मूत्र रोग,शारीरिक कमजोरी,कफ, अस्थमा, एनीमिया, दस्त
गोरखमुंडी
East Indian globe thistle
Sphaeranthus indicus L., Asteraceae
वात,पित्त दोष,माइग्रेन, पीलिया, बुखार, कफ, बुद्धि वर्धक टोनिक, चर्म रोग
भंगरा
Trailing eclipta
Eclipse prostrata (Linn), Asteraceae
वात,पित्त दोष, दर्द निवारक,बालों को स्वस्थ काला, लिवर टोनिक,अल्सर, आँख की रौशनी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल
चकोड़ा, चकवद,चक्रमर्द 
Fetid cassia
Cassia tora L.,                              Caesalpiniaceae
त्रिदोष नाशक,चर्म रोग,बालों की रूसी,दस्त, कफ, बुखार निवारण में उपयोगी  
दादमर्दन
Ringworm shrub
Cassia alata L.                    ,Caesalpiniaceae
कफ,पित्त नाशक,दाद-खुजली, कफ, अस्थमा, चर्म रोग,पेट के कीड़े, दस्त, कमजोरी दूर करने हेतु प्रयोग
ब्राह्मी, सीताकामिनी
Brahmi
Bacopa monnieri (L.) Scrophulariaceae
वात,पित्त दोष, चर्म  रोग,मस्तिष्क रोग, शारीरिक कमजोरी,अल्सर की समस्या निवारण हेतु उपयोग में उपयोगी
गरुन्डी
Sessile Joyweed
Alternanthera sessilis,                  Amaranthaceae
आँखों की परेशानी, खुनी उल्टी, फोड़े-फुंसी के उपचार में प्रयोग  
छोटा हल्कुशा, द्रौणपुष्पी 
Tumbe
Leucas aspera (Willd) Lamiaceae
कफ,पित्त नाशक,चर्म रोग,आर्थराइटिस, कफ, बुखार, माइग्रेन, अल्सर की समस्या निवारण में प्रयोग
प्लाव्का
Water hyacinth
Eichhornia crassipes (Mart) Pontederiaceae
पित्त नाशक, सूजन, कमजोरी, जलन की समस्या होने पर कारगर
छोटा गोखुरू, घघरा
Common Cocklebur
Xanthium strumarium, Asteraceae
शीतल प्रभाव,भूख और पाचन शक्ति बढ़ाने, याददाश्त बढ़ाने, कीड़ों का जहर उतारने,पायरिया रोग में उपयोगी
मोथा, नागर मोथा
Nut grass
Cyperus rotundus L. Cyperaceae
कफ,पित्त नाशक,डायरिया,अपच,बुखार, मूत्र रोग के उपचार में प्रयोग
एकपुष्पी
Coat button
Tridax procumbens L.,Asteraceae
पित्त दोष निवारक,घाव, अल्सर में लाभकारी
बेमसाग,ब्रह्ममंडूकी
Indian pennywort
Centella asiatica L.,Apiaceae
पित्त दोष निवारक, अस्थमा, स्वांस रोग, पेट की समस्या, बुखार, मानसिक रोग के उपचार में प्रयोग  
पोई
Indian spinach
Basella rubra L., Basellacea
वात,पित्त दोष, चर्म रोग,अल्सर,कमजोरी को दूर करने में उपयोग  

नोट:  उपरोक्त सारिणी में मैंने अपने अनुभव/ज्ञान तथा विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से कुछ उपयोगी खरपतवारों की जानकारी मात्र जन जाग्रति के उद्देश्य से प्रस्तुत की है। किसी भी रोग के निवारण हेतु हम इन वनस्पतियों की अनुसंशा नहीं करते है। सिर्फ इन वनस्पतियों के महत्त्व को दर्शाने बावत हमने कुछ औषधीय उपयोग बताये है परन्तु बगैर चिकत्सकीय परामर्श/आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लिए आप किसी भी रोग निवारण के लिए इनका  प्रयोग कदाचित न करें। आप उपरोक्त खरपतवारों के सरंक्षण देकर देश की जैव विविधिता को समृद्ध बनाने में योगदान देने का पुण्य कार्य कर सकते है।

रबी फसलों की अधिक उपज के लिए आवश्यक है उर्वरकों का संतुलित प्रयोग


डॉ.जी.एस.तोमर, प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,
                                                        अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
               कृषि में बीज के बाद उर्वरक ही सबसे महंगा तथा महत्वपूर्ण निवेश है जो उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।  हरित क्रांति की सफलता में उन्नत किस्मों के साथ साथ उत्पादन बढाने में उर्वरक एवं सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है।  बढती जनसँख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रति इकाई अधिकतम उपज लेने के लिए हमने रासायनिक उर्वरकों का असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग किया है जिसके कारण मिट्टी की सेहत और हमारा पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है।  असंतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान भाइयों को  एक तरफ तो फसल एवं किस्म की क्षमता के अनुरूप बांक्षित उपज नहीं मिल पा रही  है तो दूसरी ओर उनके खेत की मिट्टी  का स्वास्थ्य भी ख़राब होने लगा है।  स्वस्थ मृदा एवं बेहतर फसलोत्पादन के लिए मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट एवं जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए।  मुख्य पोषक तत्वों यथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा  पोटाश के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों को सही अनुपात में सही समय पर सही विधि द्वारा मिट्टी, फसल और जलवायु की आवश्यकता के अनुसार प्रयोग करना ही संतुलित उर्वरक प्रयोग माना जाता है।  असंतुलित मात्रा,  गुणवत्ताविहीन उर्वरक तथा गलत प्रयोग विधि के कारण उर्वरकों के प्रयोग से फसल बढ़वार और उपज कम होती है।  इसलिए आवश्यक है कि गुणवत्तायुक्त उर्वरक प्रतिष्ठित दूकान से ही ख़रीदे तथा उर्वरक क्रय की रसीद अवश्य प्राप्त करें।  उर्वरकों के ख़राब या गुन्वात्ताविहीन होने पर जिला कृषि अधिकारी से शिकायत अवश्य करना चाहिए. छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की प्रमुख रबी फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों यथा नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति के लिए विभिन्न उर्वरको (समूह) की मात्रा (किग्रा.प्रति एकड़) अग्र सारिणी में प्रस्तुत है :
 
सारिणी-1:रबी फसलों के लिए उर्वरकों की संस्तुत मात्रा (किग्रा.प्रति एकड़)

प्रमुख रबी फसलें
समूह ‘क’
समूह ‘ख’
यूरिया (46% नत्रजन)
सिंगल सुपर फॉस्फेट
(16 % फॉस्फोरस)
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (60%  पोटाश)
डाय अमोनियम फॉस्फेट-डी.ए.पी.
(18:46:00)
यूरिया
(46% नत्रजन)
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश (60%  पोटाश)
गेंहू (लम्बी किस्में)
52
75
13
26
43
13
गेंहू (बोनी किस्मे)
87
150
27
52
67
27
जौ सिंचित
52
75
13
35
39
13
चना
17
150
13
52
00
13
मटर
17
150
20
52
00
13
सरसों
52
100
13
35
39
13
अलसी
52
75
13
35
39
13
सूरजमुखी
70
150
27
52
50
27
गन्ना
260
213
53
74
234
53
आलू
87
189
27
70
60
67

            उर्वरकों की उपलब्धता के अनुसार सारिणी-1 में बताये अनुसार किसी भी एक समूह के अनुसार फसल में  उर्वरकों का इस्तेमाल करें।  गेंहू, जौ, सरसों, सूरजमुखी, अलसी, गन्ना एवं आलू  में नत्रजन उर्वरक  की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा फसल बुवाई के समय आधार खाद के रूप में कूंड में डालें।  नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर-बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में  30 और 60 दिन बाद शाम के समय डालें।  उर्वरकों का प्रयोग आड़ी एवं खड़ीं दोनों दशाओं में करने से सभी पौधों को पोषक तत्व प्राप्त हो जाते है, उर्वरक उपयोग क्षमता बढती है तथा उपज भी अधिक मिलती है।  उर्वरक प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमीं होना चाहिए। दलहनी फसलों में सभी उर्वरकों की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय ही देना चाहिए।  प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल से 8 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट देने से फलोत्पादन बढ़ता है।  दलहनी फसलों के बीज को राईजोबियम कल्चर (10-15 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से) उपचारित कर बुवाई करने से नत्रजन उर्वरक की बचत होती है और उपज भी अधिक मिलती है।  अन्न वाली फसलों एवं गन्ना आदि  में एज़ोटोबैक्टर, अजोस्पैरिलम एवं फॉस्फेट विलेयकरी जैव उर्वक का उपयोग करना चाहिए.जैव उर्वरकों से उपचारित बीज को छाया में ही रखना चाहिए. उपचार पश्चात छाया में सुखाकर शीघ्र बुवाई करना चाहिए। 
नोट: कृपया  लेखक की अनुमति के बिना इस आलेख की कॉपी कर  अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है, तो  ब्लॉगर/लेखक  से अनुमति लेकर /सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य देंवे  एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें