डॉ.जी.एस.तोमर, प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
राज मोहिनी देवी कृषि महाविद्यालय
एवं अनुसंधान केंद्र, 
                                                        अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)कृषि में बीज के बाद उर्वरक ही सबसे महंगा तथा महत्वपूर्ण निवेश है जो उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हरित क्रांति की सफलता में उन्नत किस्मों के साथ साथ उत्पादन बढाने में उर्वरक एवं सिंचाई का महत्वपूर्ण स्थान है। बढती जनसँख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रति इकाई अधिकतम उपज लेने के लिए हमने रासायनिक उर्वरकों का असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग किया है जिसके कारण मिट्टी की सेहत और हमारा पर्यावरण बिगड़ता जा रहा है। असंतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान भाइयों को एक तरफ तो फसल एवं किस्म की क्षमता के अनुरूप बांक्षित उपज नहीं मिल पा रही है तो दूसरी ओर उनके खेत की मिट्टी का स्वास्थ्य भी ख़राब होने लगा है। स्वस्थ मृदा एवं बेहतर फसलोत्पादन के लिए मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट एवं जैव उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए। मुख्य पोषक तत्वों यथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश के साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों को सही अनुपात में सही समय पर सही विधि द्वारा मिट्टी, फसल और जलवायु की आवश्यकता के अनुसार प्रयोग करना ही संतुलित उर्वरक प्रयोग माना जाता है। असंतुलित मात्रा, गुणवत्ताविहीन उर्वरक तथा गलत प्रयोग विधि के कारण उर्वरकों के प्रयोग से फसल बढ़वार और उपज कम होती है। इसलिए आवश्यक है कि गुणवत्तायुक्त उर्वरक प्रतिष्ठित दूकान से ही ख़रीदे तथा उर्वरक क्रय की रसीद अवश्य प्राप्त करें। उर्वरकों के ख़राब या गुन्वात्ताविहीन होने पर जिला कृषि अधिकारी से शिकायत अवश्य करना चाहिए. छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की प्रमुख रबी फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों यथा नत्रजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति के लिए विभिन्न उर्वरको (समूह) की मात्रा (किग्रा.प्रति एकड़) अग्र सारिणी में प्रस्तुत है :
सारिणी-1:रबी
फसलों के लिए उर्वरकों की संस्तुत मात्रा (किग्रा.प्रति एकड़)
  
प्रमुख
  रबी फसलें  
 | 
  
समूह ‘क’ 
 | 
समूह ‘ख’ 
 | 
 ||||
यूरिया
  (46% नत्रजन) 
 | 
  
सिंगल
  सुपर फॉस्फेट  
(16
  % फॉस्फोरस)  
 | 
  
म्यूरेट
  ऑफ़ पोटाश (60%  पोटाश) 
 | 
  
डाय
  अमोनियम फॉस्फेट-डी.ए.पी. 
(18:46:00) 
 | 
  
यूरिया
   
(46%
  नत्रजन) 
 | 
  
म्यूरेट
  ऑफ़ पोटाश (60%  पोटाश) 
 | 
 |
गेंहू
  (लम्बी किस्में) 
 | 
  
52
   
 | 
  
75
   
 | 
  
13
   
 | 
  
26
   
 | 
  
43
   
 | 
  
13
   
 | 
 
गेंहू
  (बोनी किस्मे) 
 | 
  
87
   
 | 
  
150
   
 | 
  
27
   
 | 
  
52
   
 | 
  
67
   
 | 
  
27
   
 | 
 
जौ
  सिंचित  
 | 
  
52
   
 | 
  
75
   
 | 
  
13
   
 | 
  
35
   
 | 
  
39
   
 | 
  
13
   
 | 
 
चना
   
 | 
  
17
   
 | 
  
150
   
 | 
  
13
   
 | 
  
52
   
 | 
  
00
   
 | 
  
13
   
 | 
 
मटर
   
 | 
  
17
   
 | 
  
150
   
 | 
  
20
   
 | 
  
52
   
 | 
  
00
   
 | 
  
13
   
 | 
 
सरसों
   
 | 
  
52
   
 | 
  
100
   
 | 
  
13
   
 | 
  
35
   
 | 
  
39
   
 | 
  
13
   
 | 
 
अलसी
   
 | 
  
52
   
 | 
  
75
   
 | 
  
13
   
 | 
  
35
   
 | 
  
39
   
 | 
  
13
   
 | 
 
सूरजमुखी
   
 | 
  
70
   
 | 
  
150
   
 | 
  
27
   
 | 
  
52
   
 | 
  
50
   
 | 
  
27
   
 | 
 
गन्ना
   
 | 
  
260
   
 | 
  
213
   
 | 
  
53
   
 | 
  
74
   
 | 
  
234
   
 | 
  
53
   
 | 
 
आलू
   
 | 
  
87
   
 | 
  
189
   
 | 
  
27
   
 | 
  
70
   
 | 
  
60
   
 | 
  
67
   
 | 
 
            उर्वरकों की उपलब्धता के अनुसार सारिणी-1
में बताये अनुसार किसी भी एक समूह के अनुसार फसल में  उर्वरकों का इस्तेमाल करें।  गेंहू,
जौ, सरसों, सूरजमुखी, अलसी, गन्ना एवं आलू  में नत्रजन उर्वरक  की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस
एवं पोटाश की पूरी मात्रा फसल बुवाई के समय आधार खाद के रूप में कूंड में डालें। 
नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर-बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में  30 और 60 दिन बाद शाम के समय
डालें।  उर्वरकों का प्रयोग आड़ी एवं खड़ीं दोनों दशाओं में करने से सभी पौधों को पोषक
तत्व प्राप्त हो जाते है, उर्वरक उपयोग क्षमता बढती है तथा उपज भी अधिक मिलती है। 
उर्वरक प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमीं होना चाहिए। दलहनी फसलों में सभी
उर्वरकों की पूर्ण मात्रा बुवाई के समय ही देना चाहिए।  प्रत्येक दो वर्ष के अंतराल
से 8 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट देने से फलोत्पादन बढ़ता है। 
दलहनी फसलों के बीज को राईजोबियम कल्चर (10-15 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से)
उपचारित कर बुवाई करने से नत्रजन उर्वरक की बचत होती है और उपज भी अधिक मिलती है। 
अन्न वाली फसलों एवं गन्ना आदि  में एज़ोटोबैक्टर, अजोस्पैरिलम एवं फॉस्फेट विलेयकरी जैव उर्वक का
उपयोग करना चाहिए.जैव उर्वरकों से उपचारित बीज को छाया में ही रखना चाहिए. उपचार
पश्चात छाया में सुखाकर शीघ्र बुवाई करना चाहिए। 
नोट: कृपया लेखक की अनुमति के बिना इस आलेख की कॉपी कर अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है, तो ब्लॉगर/लेखक से अनुमति लेकर /सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य देंवे एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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