डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
प्रोफ़ेसर (एग्रोनॉमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)
बसन्त ऋतु का माह अप्रैल यानी चैत्र-वैशाख को शरद तथा ग्रीष्म ऋतु का संधिकाल भी कहा जाता है। इस समय वातावरण का तापक्रम अधिक और नमीं की मात्रा कम हो जाती है। औसतन अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 38 एवं 22 डिग्री सेन्टीग्रेड संभावित है। वायु की गति भी तेज (लगभग 8.2 किमी प्रति घंटा) हो सकती है। धूंल भरी आधियाँ आने की संभावना रहती है। बैशाखी त्यौहार के लिए मशहूर इस माह खेतों में लहलहाती सुनहरी फसलें कटाई के लिए तैयार होती है। शादी-विवाह के इस मौसम में किसान खुशहाल दिखाई देते है। विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचन्द्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरू अंगदेव का जन्म हुआ। मान्यता है कि ब्रम्हाजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सतयुग का प्रारंभ माना जाता है जो हमें सतयुग की ओर निरंतर बढ़ने की प्रेरणा देती है। इस महिने बैसाखी का पर्व भी धूमधाम से मनाया जाता है। बैसाखी पर ही किसान अपनी फसल की कटाई करते है। अखंड भारत के समय से भारत की संस्कृति से जुड़ा यह पर्व एकता, भाईचारे और उन्नति का सूत्र रहा है। चैत्र-वैसाख में संपन्न किये जाने वाले प्रमुख कृषि कार्यों पर यहाँ विमर्श प्रस्तुत है।
इस माह के मूलमंत्र
1.फसल चक्र योजना बनाएंः किसान भाइयों को अपनी आवश्यकतानुसार आदर्श फसल चक्र योजना बनाकर खेती करना चाहिए जिससे समय पर खाद, बीज और अन्य आदानों की व्यवस्था करने में आसानी हो और फसल उत्पाद को उचित भाव पर बाजार या मंडी में बेचा जा सके। उपयुक्त फसल चक्र अपनाने से मंहगे आदानों का कुशल उपयोग, कीट-रोगों का प्रभावी नियंत्रण और दलहनी फसलों के खेती में समावेश से मृदा स्वास्थ्य बना रहता है । कुछ उपयोगी फसल चक्रों के उदाहरण है- धान या मक्का-आलू-ग्रीष्मकालीन मूंग, धान-आलू,-सरसों -सूरजमुखी, ग्रीष्मकालीन मूंगफली-धान-सरसों, सोयाबीन-चना-तिल, धान-आलू-गेंहू, हरी खाद-धान, मक्का-गेंहू आदि।
2.मिट्टी का स्वास्थ्य परीक्षणः ग्रीष्मकाल में खेत खाली होने पर मिट्टी परीक्षण हेतु खेत से मिट्टी के नमूने लें। कम से कम तीन वर्ष में एक बार अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण अवश्य ही कराएं जिससे मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों यथा नत्रजन, स्फुर, पोटाश, जिंक आदि की मात्रा, भूमि की क्षारीयता व अम्लता का पता चल जाता है। इससे फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व व उर्वरकों की सही एवं संतुलित मात्रा का आंकलन किया जा सकता है।
3.मृदा सूर्यीकरण : खरपतवार नियंत्रण की यह एक कारगर पद्धति है। खेत की जुताई कर उसे समतल करने के उपरान्त हल्की सिचाई करें. खेत में ओल आने पर पॉलीथिन से अच्छी प्रकार ढँक कर कम से कम एक माह के लिए छोड़ दें। इससे मृदा का तापमान बढ़ने से खेत में उगने वाले खरपतवारों के बीज और पौधे नष्ट हो जाएंगे। ऐसा करने से आगामी फसल में खरपतवार समस्या कम हो जाती है।
फसलोत्पादन में इस माह के प्रमुख कार्य
गेंहूँ एवं जौः इन फसलों के पकने पर समय से कटाई करना सुनिश्चित करें । कटाई पश्चात दोनों फसलों की गहाई की व्यवस्था करें। उपज को अच्छी प्रकार सुखाकर साफ कर पक्की कोठियों में भंडारित करें ।आज कल कटाई-गहाई कार्य कंबाइन हार्वेस्टर से आसानी से हो जाती है। भंडारण के समय दानों में नमीं की मात्रा 9-10 प्रतिशत तक रखें जिससे कीट आक्रमण नहीं होगा । पशुओं खिलाने के लिए भूषे को भी नमीं रहित स्थान या फिर कूप बनाकर भंडारित करें।
चना एवं मटरः दाना पकने की अवस्था में फसलों की समय से कटाई कर लें।
उर्द एवं मूंगः ग्रीष्म कालीन उर्द व मूंग में बुवाई के 25-30 दिन बाद सिंचाई करें। पीला चित्त वर्ण (मौजेक) रोग, थ्रिप्स एवं एफिड कीट से बचाव के लिये फाॅस्फोमिडान 85 ई.सी. 250 मि.ली. या मिथाइल डिमेटान 25 प्रतिशत 1.0 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घ¨लकर छिड़काव करें। यह छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार पुनः करना चाहिए। पत्र दाग रोग की रोकथाम के लिये कार्बेन्डाजिम दवा 500 ग्राम को आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर छिड़काव करें। वैशाखी मूँग की बुवाई इस माह के मध्य तक अवश्य कर दें।
सूरजमुखी : इसमें :फूल निकलते समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। सामान्यतः 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई के बाद एक निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। यूरिया की टापड्रेसिंग के बाद दूसरी गुड़ाई के समय 10-15 से.मी. मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।
सरसों: इस फसल की कटाई मड़ाई यदि पूरी नहीं हुई है तो तुरन्त कर लें। दानों को अच्छी तरह सुखाकर उचित जगह पर भण्डारण करें।
मूंगफलीः अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक ग्रीष्मकालीन मूंगफली की ब¨नी संपन्न करें। गत माह लगाई गई फसल में फूल निकलते समय एवं नस्से (पेग) जमीन में घुसते समय एवं फलियों में दाना भरते समय खेत में सिंचाई का विशेष ध्यान रखें। फूल व फल बनने के पहले निराई गुड़ाई कर सिंगल सुपर फॉस्फेट खाद देकर पौधों पर मिट्टी चढाने का कार्य करें।
मक्काः वर्षा ऋतु के प्रारंभ में भुट्टे प्राप्त करने हेतु इस समय मक्का लगा सकते है । दीमक प्रभावित क्षेत्रों में क्लोरपायरोफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं।
गन्नाः समय पर बोये गन्ने में अंधी गुड़ाई, सिंचाई आदि समय पर करें। प्रत्येक सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। नौलख गन्ने का अंकुरण पूर्ण होने पर लगभग 65-85 किग्रा. यूरिया तथा पेड़ी में 110-125 किग्रा. यूरिया टापडेªसिंग के रूप में प्रयोग करें। देरी से बोई जाने वाली गन्ने (गेंहू कटाई बाद लगाई जाने वाली फसल) की बुवाई कार्य 15 अप्रैल तक संपन्न कर लेवें । गन्ना की दो कतारों के बीच सह-फसल के रूप में मूंग,उड़द, ग्वार की खेती कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है। गन्ने की पेड़ी फसल में तनाबेधक कीट का प्रकोप होने पर फोरेट 10 जी दानेदार दवा का 10 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
कपासः कपास के बीज अंकुरण के लिए 21-27 डिग्री तापक्रमसर्वोत्तम रहता है। गेंहू कटाई पश्चात कपास बोनी की तैयारी करें। क्षेत्र के लिए उपयुक्त उन्नत किस्म के बीज की व्यवस्था करें। संकर किस्मो का बीज (रोये रहित) 1.5 किग्रा. तथा देशी किस्मों का बीज 3-5 किग्रा. को 5 ग्राम एमीसान, 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लिन, 1 ग्राम सक्सीनिक एसिड को 10 लीटर पानी के घोल में 2 घंटे रखें। दीमक से बचाव के लिए 1 लीटर पानी में 10 मिली. क्लोरोपायरीफास दवा मिलाकर बीज पर छिड़क दें तथा 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बुवाई करें। यदि जडगलन की समस्या है तो 2 ग्राम बाविस्टीन प्रति किग्रा. बीज की दर से सूखा बीज उपचार किया जा सकता है। कपास को कतार में 60 सेमी. व पौधों के बीच 30 सेमी. का अंतर रखकर 5 सेमी. की गहराई पर बोना चाहिए । अच्छी उपज के लिए प्रति हैक्टेयर 50 हजार पौधे स्थापित होना चाहिए ।
बेबी काॅर्नः आज कल शिशु मक्का का प्रचलन होटलों में सलाद, सब्जी, सूप, पकोड़े बनाने में किया जा रहा है। इसकी फसल 60 दिन में तैयार हो जाती है। इसके बगैर बीज के हरे शिशु भुट्टे उपयोग में लाये जाते है। इसकी संकर प्रकाश व कंपोसिट केसरी किस्में है जिन्हे 16 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से 30 सेमी. की दूरी पर कतार में लगाया जाता है। पौधों के मध्य 20 सेमी. का अन्तर रखा जाता है। बुवाई के समय आधा बोरा यूरिया, डेढ़ बोरा सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं एक तिहाई बोरा म्यूरेट आॅफ पोटाश प्रति हेक्टेयर कतार में देना चाहिए। फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई व सिंचाई करते रहें।
मूंग और तिल : सिंचित क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग और तिल की बुआई इस माह संपन्न कर लेवें। इन फसलों की शीघ्र तैयार होने वाली उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करें।
मूंग और तिल : सिंचित क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग और तिल की बुआई इस माह संपन्न कर लेवें। इन फसलों की शीघ्र तैयार होने वाली उन्नत किस्मों के बीज का प्रयोग करें।
चारा फसलेंः बरसीम, रिजका एवं जई आदि चारे वाली फसलो में आवश्यकतानुसार पानी लगायें तथा 20-25 दिन के अन्तराल पर चारा कटाई करें। बीज के लिए छोड़ी गई फसल से अवांछित पौधे निकालें एवं सिंचाई करते रहें। चारे के लिए ज्वार, बाजरा, सुडान घास लोबिया तथा संकर हाथी (नैपियर) घास आदि की बुवाई गत माह की भांति संपन्न करें। संकर हाथी घास की कलमों की रोपाई खेत में नमी हो तो गत माह की भांति करे। पूर्व में लगाई गई चारा फसलों में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। फरवरी के द्वितीय पखवाड़े में बोई गई चारे वाली मक्का फसल में 30 किग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर की दर से कतारों में टॉपड्रेसिंग के रूप में प्रदान करें।
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