खरपतवार
मुक्त खेत से ही संभव है धान का अधिकतम उत्पादन
डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर
(सस्य विज्ञान)
इंदिरा
गांधी कृषि विश्वविद्यालय.
राजमोहिनी
देवी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र,
                           अंबिकापुर
(छत्तीसगढ़)
देश की जनसंख्या वृद्धि के साथ
खाद्यानों की मांग को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। धान हमारे देश की
प्रमुख खाद्यान फसल है। इसकी खेती विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में लगभग 43.50 मिलियन हेक्टेयर जिससे 110.15 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर धान की औसत पैदावार
25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है, जो कि बहुत कम है । परम्परागत
विधि से  धान की  बुवाई और फसल में खरपतवारों के प्रकोप से धान
का उत्पादन कम मिल पाता है.   हमारे देश में धान की खेती असिंचित/वर्षा आधारित
(40 % क्षेत्र) एवं सिंचित (60 %
क्षेत्र) परिस्थितियों में की जाती है।  ऊची भूमि में वर्षा आधारित खेती में
खरपतवार नियन्त्रण एक बड़ी समस्या है, यदि इसका समय से
प्रबंधन न किया जाये तो फसल पूरी तरह नष्ट हो जाती है।  खरपतवार प्रायः फसल से पोषक तत्व, नमी, सूर्य का प्रकाश तथा स्थान के लिये
प्रतिस्पर्धा करते हैं जिससे मुख्य फसल के उत्पादन में कमी आ जाती है। धान की फसल
में खरपत्वारों से होने वाले नुकसान को 15-85 प्रतिशत तक
आंका गया है। कभी - कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता
है। सीधे बोये गये धान (35-45 प्रतिशत) में रोपाई किये गये
धान (10-15 प्रतिशत), की तुलना में
अधिक नुकसान होता है। पैदावार में कमी के साथ-साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों
के जीवाणुओं एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं। कुछ खरपतवार के बीज धान के
बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवार भूमि
से भारी मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण कर लेते हैं तथा धान की फसल को पोषक
तत्वों से वंचित कर देते हैं।
धान की फसल में खरपतवारों से
होने वाला नुकसान खरपतवारों की संख्या, किस्म
एवं फसल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करता है। फसल की प्रारम्भिक अवस्था में घास
कुल के खरपतवार जैसे सावां, कोदों आदि एवं बाद की अवस्था में
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार सर्वाधिक  नुकसान
पहुंचाते हैं। सीधे बोये गये धान में बुवाई के 15-45 दिन तथा
रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन बाद का समय खरपतवार
प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से क्रान्तिक (संवेदनशील) होता है। इस अवधि में फसल को खरपतवारों से
मुक्त रखने से उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है।
1.शुष्क परिस्थिति में सीधे बोये गए धान (वर्षाश्रित ऊपरी तथा निचली भूमि
खेत की भली भांति जुताई करने
के पश्चात खरपतवार अवशेष हटा कर खेत को समतल कर लेना चाहिए।  सीड ड्रिल अथवा हल के
पीछे 20 सेमी की दूरी पर कतारों में 70 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की दर पर बुवाई
करें।  खरपतवारों की बढ़वार रोकने के लिए धान फसल में नत्रजन का आधारी प्रयोग नहीं
करना चाहिए बल्कि सिफारिस की गई नत्रजन को तीन समान भागों में बांटकर बुवाई के
20,40 एवं 60 दिनों बाद प्रयोग करना चाहिए।  बुवाई करने के 15-20 दिनों बाद कतारों
के बीच खरपतवारों को नष्ट करने के लिए वीडर का प्रयोग करना चाहिए।  कम खर्च में
खरपतवारों के नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का प्रयोग करना सर्वोत्तम पाया गया
है।  घास जैसे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई करने के 10-12 दिनों बाद गीली मिट्टी की सतह पर बाइस्पाइरिबेक सोडियम (नोमिनो गोल्ड) 35 ग्राम प्रति हेक्टेयर या
क्वीनक्लोराक (फासेट) 375 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए।  निचली
भूमियों में देर से उगने वाले घास कुल के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई करने
के 25 दिनों बाद फेनोक्साप्रोप-पी-इथाइल (राइस स्टार) 70 ग्राम प्रति हेक्टेयर की
दर से छिडकाव करना चाहिए।
2.आद्र परिस्थिति में सीधे बोये गए धान (वर्षाश्रित उथली निचली भूमि तथा सिंचित)
आद्र परिस्स्थिति में बुवाई
करने से पूर्व एक माह तक खेत को सूखा रखने के बाद एक सप्ताह के अंतराल में दो बार
खेत की मचाई कर समतल कर लेना चाहिए।  पहली मचाई के बाद खेत में पानी भरा रहने से
खरपतवार एवं फसल अवशेष साद जाते है।  इसके बाद पूर्व अंकुरित बीजों को गीली मिटटी
में 20 x 15 सेमी की दूरी पर 60 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें
अथवा कतारों में 20 सेमी की दूरी पर हाथ से या ड्रम सीडर द्वारा बुवाई की जा सकती
है।  बुवाई के समय नत्रजन उर्वरक का प्रयोग न करें क्योंकि नत्रजन के प्रयोग से शीघ
उगने वाले खरपतवारों की बढ़वार अधिक होती है।  अतः सिफारिस की गई नत्रजन को चार समान
भागों में बांटकर बुवाई के 15,30,45 तथा 60 दिनों बाद देना चाहिए।  बुवाई करने के
15-20 दिनों बाद गीली मिटटी में हैण्ड हो या वीडर चलाकर खरपतवार नियंत्रित किये जा
सकते है।  यह एक श्रमसाध्य एवं महँगी विधि  है।  कम खर्च में रासायनिक विधि से घास कुल
के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बाइस्पाइरिबेक सोडियम (नोमिनो गोल्ड) 35 ग्राम
प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।  चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के
लिए बुवाई के 8  दिनों बाद बेनसल्फ्यूरान 
मिथाइल 70 ग्राम तथा प्रेटीलाक्लोर 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर (लोडाक्स पॉवर) की दर
से अथवा बुवाई करने के 15 दिनों बाद एजिमसल्फ्यूरान (सेगमेंट) 70 ग्राम प्रति
हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। 
3.प्रतिरोपित धान (वर्षाश्रित उथली निचली भूमि तथा सिंचित)
रोपाई विधि से धान लगाने के
लिए आद्र सीधी-बुवाई वाले धान के समान भूमि की तैयारी करें. अच्छी प्रकार से तैयार
खेत में 25-30 दिनों की उम्र वाले पौधों को 20 x 15 अथवा 15 x 15 सेमी की दूरी पर
एक स्थान पर 2-3 पौध की रोपाई करें।  रोपाई करने के 15 दिनों बाद नत्रजन की पहली
मात्रा प्रयोग करे तथा शेष मात्रा 15-20 दिनों के अंतराल में 2-3 समान भागों में
बांटकर प्रयोग करना चाहिए।  उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण मृदा उर्वरता एवं धान
की किस्म के आधार पर करना चाहिए।  यांत्रिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु रोपाई के
25-30 दिनों बाद खेत में 8-10 सेमी पानी स्तर होने पर कतारों के बीच कोनोवीडर
चलाना चाहिए।  पौधों के पास के खरपतवार हाथों से निकाले जा सकते है।  शीघ्र खरपतवार
नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि सरल एवं किफायती होती है।  धान की पौधशाला में  बुवाई करने के 2-3 दिनों के अन्दर
पाइराजोसल्फ्यूरान इथाइल (साथी) 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से
खरपतवार नियंत्रण में रहते है।  मुख्य खेत में, आद्र सीधी-बुवाई वाले धान के लिए
सिफारिस किये गए खरपतवारनाशियों का प्रयोग करें।  इसके अलावा शुष्क मौसम के दौरान
धान की रोपाई के 15 दिनों बाद अलमिक्स 4 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव
करने से चौड़ी पत्ते वाले एवं नरकुल खरपतवार नियंत्रित हो जाते है। 
कृपया ध्यान रखें: बिना लेखक/ब्लॉग की अनुमति के बिना इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
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