धरती पर जीवन बचाना है, तो वायू प्रदूषण को हराना है
डॉ.गजेन्द्र
सिंह तोमर,
प्रोफ़ेसर(एग्रोनोमी)
इंदिरा
गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,
कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, अंबिकापुर
(छत्तीसगढ़)
विकास की अंधी दौड़ में हम प्रकृति से कितने दूर होते गए इसका
हमें होश ही नहीं रहा। पहले हमने जीवन के लिए आवश्यक जल पीने लायक नहीं छोड़ा जिसके
विकल्प के रूप में हमने घर में प्यूरीफायर
लगाये और बाहर बोतलबंद पानी पीने लगे। आज देश में पानी का
संकट गहराता जा रहा है। अब बारी है प्राण वायु की और अब हवा भी अशुद्ध हो चली है
जिसके चलते कहीं-कहीं शुद्ध हवा के सिलेंडर मिलने लगे है। जल और वायु के अभाव में
आखिर हम कब तक जिन्दा रहेंगे, यह विचारणीय और चिंतनीय विषय है।
विश्व पर्यावरण दिवस 2019 फोटो साभार गूगल |
मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के ये आधार
पृथ्वी पर
उपलब्ध जल एवं शुद्ध वायु हमारे जीवन के आधार हैं। मानव जीवन में वायु का स्थान जल से भी अधिक
महत्वपूर्ण है। हमारे वेद में कहा गया है कि वायु अमृत है, वायु प्राणरूप में स्थित है। भोजन
के बिना आदमी कुछ दिन तक जिंदा रह सकता है। पानी के बिना कुछ घंटे जिंदा रह सकता
है। परंतु,
हवा के बिना वह एक पल भी जिंदा नहीं रह सकता है। वायु प्रदूषण
अर्थात हवा में ऐसे अवांछित गैसों, धूल के कणों आदि की उपस्थिति,
जो लोगों तथा प्रकृति दोनों के लिए खतरे का कारण बन जाए। मानव
प्रकृति का अभिन्न अंग है, परन्तु अपनी अविवेकी बुद्धि के कारण वह अपने आपको
प्रकृति का अधिष्ठाता मानने की भूल करने लगा है जिसके परिणाम हमारे सामने है। वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग 70 लाख लोनों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है, जिसमें से 4 मिलियन लोगों की मृत्यु केवल एशिया प्रशांत क्षेत्र में होती है। दुनिया भर में दस में से नौ लोग विश्व स्वास्थ्य संघठन द्वारा सुरक्षित घोषित किये गए स्तरों से ख़राब और प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त है। भारत में भी वायु प्रदूषण मौत की बड़ी वजह बनता
जा रहा है. वर्ष 2017
में ही भारत में तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत
वायु प्रदूषण की वजह से हुई है. अमेरिका के हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट की वायु
प्रदूषण पर एक वैश्विक रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019’
में भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के बारे में चेताया गया है। इस
रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से 2017 में स्ट्रोक,
मधुमेह, दिल का दौरा, फेफड़े
के कैंसर या फेफड़े की पुरानी बीमारियों से पूरी दुनिया में करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई। इसमें सीधे तौर पर पीएम 2.5 के
कारण 30 लाख लोगों की मौत हुई। इसमें से करीब आधे लोगों की
मौत भारत व चीन में हुई है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट के कुछ अंश जान लेने आवश्यक हैं।
इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण की वजह से सम्पूर्ण विश्व में
हर साल लगभग 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। विश्व की आबादी
का 91% हिस्सा आज उस वायुमंडल में रहने के लिए विवश है, जहाँ
की वायु की गुणवत्ता डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार बेहद निम्न स्तर की है। वायु मानकों के अनुसार हवा में प्रदूषण कण 80 पीएम के भीतर होने चाहिए, परन्तु भारत में शायद ही कोई शहर हो जहां सामान्य रूप से 150-200 पीएम् तक प्रदूषण न हो। विश्व के सबसे प्रदूषित
शहरों की सूची में भारत के कानपुर
फरीदाबाद,नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, वाराणसी,गया,पटना दिल्ली,लखनऊ आदि शहर आते है । वायु प्रदुषण एक ऐसा प्रदुषण है जिसके कारण दिन प्रतिदिन मानव
का स्वास्थ्य खराब होता चला जा रहा है। आज घर से बाहर निकलते ही प्रदूषित वायु का
एहसास किया जा सकता है।
वायु प्रदूषण के कारण
आज दुनिया जिस विकास की दौड़ लगा रही है, उसी में मानव विकास भी छिपा है। विलाशिता के जाल में फंसते हुए हमने ऐसे हालात पैदा कर दिए है कि न तो ज्यादा गर्मी बर्दाश्त कर पा रहे है और न ही ज्यादा ठण्ड। इनसे राहत पाने के लिए हमने जो साधन जुटाए रखे है, वे स्वास्थ्य के लिए और भी घातक साबित हो रहे है। मसलन एयर कंडीशनर के अधिक उपयोग ने गर्मी-शर्दी को एक नया आयाम दे दिया। अधिक गर्मी के पीछे वायु प्रदुषण है। गर्मी से निजात पाने के लिए इतेमाल किये जा रहे ए.सी. और फ्रिज वातावरण में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन की मात्रा बढ़ाते है जिसका पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। एक सामान्य गाड़ी साल में लगभग 4.7 मीट्रिक टन कार्बनडाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है। एक लीटर डीजल की खपत से 2.68 किलो कार्बन डाइ ऑक्साइड निकलती है। पेट्रोल से यह मात्रा 2.31 किलो है। बस, ट्रक, कार, बाइक, कारखानों की चिमनियों से जान लेवा धुआं निकलता
हुआ देखा जा सकता है. थर्मल पॉवर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई एश (हवा में बिखरे
राख के कण) हवा को दूषित कर रहे है. मोटर वाहनों की गति रोड पर प्रदूषण को बढ़ा रही
है, वहीँ बीड़ी-सिगरेट का धुआं भी हवा को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा
रहा है. लकड़ी
और गोबर के उपले जलाने से भी वातावरण प्रदूषित हो रहा है। धान के
खेत से निकलने वाली मीथेन गैस भी वातावरण को प्रदूषित कर रही है तथा ग्लोबल
वार्मिंग को बढ़ावा दे रही है। इसके अलावा भवन निर्माण कार्य, फसल अवशेष (पराली) व प्लास्टिक को जलाने से भी वायु प्रदूषण बढ़ा है। हमारे देश में सालाना 630-635 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता
है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58%धान्य फसलों से, 17% गन्ना, 20% रेशा वाली फसलों
से तथा 5 % तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है. वैसे तो पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी
उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक मात्रा में फसल
अवशेष जला दिए जाते है परन्तु आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,
पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार,छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में भी फसल अवशेष जलाने की
कुप्रथा चल पड़ी है जिससे वहां के पर्यावरण, मनुष्य एवं पशु स्वास्थ्य को भारी हानि
हो रही है। फसल अवशेष (पराली) जलाने से वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) बढती है तथा स्माग
जैसी स्थिति पैदा हो जाती है जिससे सड़क दुर्घटनाएं बढती है. फसल अवशेष जलाने से
वायु प्रदूषण बढ़ता है जिससे अस्थमा और दमा जैसी सांस से सम्बंधित रोगों के मरीजों
की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। यही नहीं हवा में सल्फर डाईऑक्साइड व
नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से आँखों में जलन होने लगती है।
प्राणी मात्र की यही पुकार हरा भरा रहे यह संसार
इस वर्ष का
विश्व पर्यावरण दिवस हर किसी को दुनिया भर में व्याप्त वायु प्रदूषण से निपटने का
अवसर प्रदान कर रहा है। मानव ने विकास की
राह में विज्ञान के सहारे जो तरक्की हासिल की है और प्रकृति की अनदेखी की है, उसकी कीमत वो अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य से चुका रहा है। इसलिए अब
अगर वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक खूबसूरत दुनिया और बेहतर जीवन देना चाहता है
तो अब उसे उस प्रकृति की ओर ध्यान देना होगा। अब तक तो हमने प्रकृति का केवल दोहन
किया है। अब समर्पण करना होगा। जितने जंगल कटे हैं उससे अधिक बनाने होंगे, जितने पेड़ काटे उससे अधिक लगाने होंगे, जितना
प्रकृति से लिया, उससे अधिक लौटना होगा। इस धरती को हम जरा
सा हरा भरा करेंगे, तो वो इस वातावरण को एक बार फिर से ताजगी
के एहसास के साथ सांस लेने लायक बना देगी। हम सांस लेना तो नहीं छोड़ सकते, परन्तु सभी साथ मिलकर हवा को सांस लेने योग्य बना सकते हैं। जब तक लोग वृक्ष को धरती का श्रृंगार नहीं समझेंगे
और हरियाली से प्यार नहीं करेंगे, तब तक पर्यावरण दिवस मनाना
केवल औपचारिकता भर रहेगा।
कृपया ध्यान रखें: बिना लेखक/ब्लॉग की अनुमति के बिना इस लेख को अन्यंत्र प्रकाशित करने की चेष्टा न करें । यदि आपको यह आलेख अपनी पत्रिका में प्रकाशित करना ही है, तो लेख में ब्लॉग का नाम,लेखक का नाम और पता देना अनिवार्य रहेगा। साथ ही प्रकाशित पत्रिका की एक प्रति लेखक को भेजना सुनिशित करेंगे।
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