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रविवार, 4 दिसंबर 2022

सुख-शांति एवं शौभाग्य के लिए बेसकीमती वृक्ष -सफेद चन्दन: एक पेड़ से कमायें एक लाख

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

 भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म में अपनी पैठ जमाये हुए चन्दन के वृक्ष  विश्व में  न केवल सबसे अधिक प्रसिद्ध है, बल्कि भारत के सफेद चन्दन के उत्पादों की मांग निरंतर बढती जा रही है रामायण एवं महाभारत काल से ही भारत में सफेद चन्दन का उपयोग धार्मिक कार्यो, सौन्दर्य प्रसाधन एवं विभिन्न चिकित्सा पद्धति में रोगों के उपचार में किया जा रहा है श्रीराम चरित मानस में भी तुलसी दास ने चन्दन का जिक्र करते हुए लिखा है: 

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर. तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक करे रघुवीर।। 

स्वेत चन्दन को श्रीगंध, चंदनम, भारतीय चन्दन अंग्रेजी में इंडियन सेंडलवुड तथा वनस्पति शास्त्र में सैंटलम एल्बम कहा जाता है जो सेंटेलेसी कुल का बहुवर्षीय 10 मीटर तक ऊंचा बढ़ने वाला सदाबहार पेड़ है इसके पत्ते अंडाकार होते है जिनका अग्र भाग नुकीला होता है वृक्ष की टहनियां सरल एवं नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं। इसकी छाल लाल भूरी या काली भूरी होती है ।  इसमें छोटे-छोटे पीले-भूरे फूल लगते है जो बाद में  बैंगनी रंग के हो जाते है सफेद चन्दन के फल  हरे गोलाकार होते है, जो पकने पर जामुनी-काले रंग के हो जाते है फल गूदेदार होते है जिनमें एक गुठली (बीज) पाई जाती है. सामान्य रूप से इसके पेड़ में पुष्पन  दो बार मार्च-मई तथा सितम्बर-दिसम्बर  में होता है।

चन्दन  के गुणों के बारे में हमारे ग्रंथों में लिखा है ‘चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग’ इसका तात्पर्य ये बिलकुल नहीं कि चन्दन के पेड़ों से साप लिपटे रहते है  चन्दन वृक्ष की सुगंध एवं शीतलता के गुणों के कारण विषधारी सांप भी इसमें लिपटे रहे तो भी इसके वृक्षों पर सांप के विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. चन्दन हमारे मन मस्तिक को शान्ति एवं स्थिरता प्रदान करने वाला वृक्ष है

चन्दन का प्रयोग सनातन परंपरा में माथे पर तिलक लगाने से लेकर पूजा-हवन  सामग्री, माला एवं घरेलू साज-सज्जा वाली वस्तुए तैयार करने में किया जाता है. चन्दन के सुगंधित तेल का उपयोग उच्च गुणवत्ता युक्त  इत्र (परफ्यूम) से लेकर अगरबत्ती, साबुन तथा  विभिन्न सौंदर्य प्रशाधन  सामग्री के निर्माण, विभिन्न खाद्य सामग्री को सुवासित करने  के अलावा आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसकी लकड़ी का पाउडर एवं  तेल का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है।

चन्दन का के तेल एवं पाउडर का इस्तेमाल श्वसन रोग (शर्दी, अस्थमा,गले कि खरास), लिवर रोग आदि के उपचार में किया जाता है। इसके तेल में  विद्यमान अल्फ़ा बीटा सैंटेलाल (α-Santalol,β-Santalol) का प्रयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है।

सफेद चन्दन को रॉयल ट्री का दर्जा  

भारतीय चन्दन के महत्व एवं गुणवत्ता से प्रभावित मैसूर राज्य के मुग़ल शासक टीपू सुलतान ने  वर्ष 1792 में चंदन को रॉयल ट्री घोषित  किया था और इस फरमान को  भारत सरकार ने आज तक जारी रखते हुए देश में चन्दन के पेड़ों पर अपना आधिपत्य बनाये रखा है  चन्दन की बड़े पैमाने अवैध कटाई एवं तस्करी के कारण चन्दन वन नष्ट होते जा रहे है और इनका  रोपण नहीं के बराबर हो रहा है इसलिए चन्दन लकड़ी की देश में  भारी कमी हो गयी अब देश की  कुछ राज्य सरकारे चन्दन की खेती को  प्रोत्साहित करने लगी है, परन्तु चन्दन वृक्षों की कटाई एवं विक्रय  सरकार के वन विभाग की देखरेख में ही  किया जा रहा है

चन्दन की खेती: उभरता लाभकारी व्यवसाय  


बेसकीमती एवं बहुपयोगी भारतीय चन्दन के पेड़ों के अत्यधिक दोहन एवं तस्करी  के कारण  इसके पेड़ों की संख्या लगातार घटती जा रही है, जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय तथा अंतरास्ट्रीय बाजार में  चन्दन की लकड़ी एवं इसके उत्पादों की कीमते भी बढती जा रही है। इसलिए आज चन्दन कि खेती सबसे लाभदायक कृषि व्यवसाय सिद्ध हो रही है विश्वसनीय संसथान अथवा भरोसेमंद स्त्रोत से सफेद चन्दन के बीज लेकर उचित स्थान पर फ़रवर-मार्च में  नर्सरी तैयार कर जून-जुलाई में  मुख्य खेत में पौध रोपण किया जा सकता है

चंदन के 30 सेमी ऊंचे पौधों को 50 वर्ग सेमी के गड्डे में कतार से कतार 3.5 मीटर एवं पौधे से पौधे 3.5  मीटर की दूरी पर  लगाया जाना चाहिए। चन्दन का पेड़  अर्द्ध परिजीवी प्रकृति के होते है अर्थात इसके पौधे दूसरे पौधों की जड़ों से पोषक तत्व ग्रहण कर बढ़ते है। इसलिए  आश्रित पौधों (Host) के रूप में अरहर, मीठी नीम, पपीता, अनार, अमरुद,सहजन आदि की  अंतरवर्ती  फसलों की खेती से चन्दन के वृक्षों की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ अतिरिक्त मुनाफा भी अर्जित  किया जा सकताहै। प्रारंभिक अवस्था आर्थात पौधशाला  में  चंदन के बीजों के साथ छुई-मुई (Mimosa pudica) के बीज मिलाकर बोने से पौध वृद्धि अच्छी होती है। एक एकड़ (0.4 हेक्टेयर)  के खेत में  326 चन्दन के स्वस्थ पौधों के साथ 200 आश्रित पौधे  अंतरवर्ती फसल के रूप में लगाए जा सकते है।

 पौध रोपण के 7-8 वर्ष बाद चन्दन के पेड़ में 1 किग्रा प्रति वर्ष की दर से हार्ट वुड विकसित होने लगती है। चन्दन के पेड़ को परिपक्व होने में 14-15 वर्ष का समय लगता है। सामान्य परिस्थिति एवं उत्तम प्रबंधन से   एक पेड़ से 15 वर्ष में 10-12 किग्रा हार्टवुड प्राप्त की जा सकती है। इसकी लकड़ी का बाजार भाव 10,000 से 12,000 रूपये प्रति किलो के आस पास रहता है, जिसकी अंतराष्ट्रीय बाजार में 25-30 हजार रूपये कीमत होती है जबकि चन्दन के तेल की कीमत 150,000 रूपये प्रति लीटर से अधिक होती है. व्यवसायिक सस्तर पर चन्दन की खेती की सूचना राज्य के वन विभाग को सूचित कर पेड़ों का पंजीयन करा लेना चाहिए। वन विभाग के मार्गदर्शन में चन्दन के पेड़ों  की कटाई एवं विक्रय किया जा सकता है।

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