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सोमवार, 5 दिसंबर 2022

मृदा स्वास्थ्य की रक्षा से ही संभव है भोजन सुरक्षा

विश्व मृदा दिवस-2022 पर विशेष 

                                                                    डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

     विश्व की आबादी के उदर पोषण  का मुख्य आधार  मृदा ही है और भविष्य में भी इसका अन्य कोई विकल्प नहीं हो सकता है। विज्ञान की मदद से हम सब कुछ बना सकते है, लेकिन मिट्टी, जल और वायु  बनाने में हम शायद कभी कामयाब  नहीं हो सकते है। मिट्टी,पानी और बयार-ये है जीवन के आधार वाले सूत्र में मिट्टी का स्थान सर्वोपर्य है। एक इंच मोटी मिट्टी की उपजाऊ परत के निर्माण में प्रकृति को करीब 700-800 वर्ष लगते है। यही एक इंच मिट्टी कृषि भूमि का अभिन्न अंग एवं जीवन का आसरा है। उस मिट्टी का तेजी से क्षरण (Degradation) और गैर उपजाऊ अर्थात बीमार होते जाना बेहद चिंता का विषय है। इसी चिंता को मद्देनजर रखते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ के खाद्य और कृषि संगठन ने मृदा के महत्व एवं मृदा प्रबंधन से संबंधित  वैश्विक जागरूकता के उद्देश्य से वर्ष 2014 से प्रति वर्ष 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया. इस वर्ष विश्व मृदा दिवस-2022 का मुख्य विषय ‘मृदा-जहां भोजन की शुरुआत (Soils, Where Food Begins) रखा है.

हमारे  जीवन के लिए उपयोगी 95 प्रतिशत से अधिक भोज्य सामग्री मिट्टी  में ही उपजती है। खाद्य सामग्री पैदा करने वाले पेड़-पौधों का पोषण मृदा से ही होता है। गहन कृषि एवं पोषक तत्वों की कम अथवा असंतुलित आपूर्ति, मृदा प्रदूषण एवं मृदा क्षरण आदि कारकों के चलते अन्नपूर्ण धरती की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है, जिसका कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.  इतिहास साक्षी है कि जब-जब मानव ने मिट्टी को सजीव मानकर उसकी आवश्यकताओं  की पूर्ति की तो उसने धरती को अन्नपूर्णा के रूप में पाया । किन्तु जब मिट्टी की उपेक्षा की गयी तो कई सभ्यतायें नष्ट हो गयी।  संत कबीरदास ने ठीक ही कहा था
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोहे, एक दिन ऐसा आएगा मैं रौदूंगी तोय ।।  विकास की रफ़्तार और अधिक कमाने के लालच में मानव ने धरती का अत्यधिक दोहन तो किया लेकिन उसे उर्वरा बनाये रखने के लिए कोई उपाय नहीं किये और यही कारण है  कि हमारी  अन्नपूर्णा धरती भूख और कुपोषण (पोषक तत्वों एवं पानी की कमीं) की शिकार हो गई।  विभिन्न रूपों में हमारी थालियों को  सजाने वाली मिट्टी  अपनी उर्वरता एवं उत्पादकता खोती जा रही है । वैश्विक स्तर पर देखें तो 90% मिट्टी की गुणवत्ता यानी मृदा स्वास्थ  में कमी आ चुकी है। इसका तात्पर्य है कि मृदा में कार्बनिक पदार्थ सहित पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की कमीं  आती जा रही है, जो हमारी खाद्य सुरक्षा  के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकती है।

कृषि उत्पादकता को टिकाऊ बनाये रखने और पर्यावरणीय संसाधनों की रक्षा करने के लिए मृदा का स्वस्थ बने रहना जरुरी है स्वस्थ मृदा लाभदायक, उत्पादक और पर्यावरण अनुकूलित कृषि प्रणालियों की नींव है जलवायु परिवर्तन के कारण तापक्रम में बढ़ोत्तरी, भू-जल में कमीं, मृदा अपरदन, मृदा में कार्बनिक पदार्थ का ह्रास, उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग, गहन कृषि के कारन मृदा में पोषक तत्वों की कमीं आदि मृदा स्वास्थ्य में हो रही गिरावट के मुख्य कारण है अतः मृदा में हो रहे क्षरण को रोकने तथा मृदा स्वास्थ्य एवं गुणवत्ता में सुधार के उपायों से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी किसानों को देना समय की मांग है स्वस्थ मृदा-स्वस्थ धरा की अवधारण के अंतर्गत मृदा में आवश्यक पोषक तत्वों एवं उपयोगी जीवों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के लिए  मिट्टी परिक्षण के आधार पर उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खाद एवं हरी खाद का संतुलित उपयोग निहायत जरुरी है प्रत्येक किसान को अपने सभी खेतों का मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनवाकर उसकी अनुसंषाओं के अनुरूप खाद एवं उर्वरकों की संतुलित मात्रा का  इस्तेमाल करना चाहिए

इसके अलावा फसल प्रणाली में दलहनी फसलों का समावेश, मृदा नमीं का संरक्षण, न्यूनतम जुताई, फसल अवशेष का उचित प्रबंधन भी आवश्यक है अतः प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना मिट्टी की गुणवत्ता बनाएं रखना अथवा मृदा के स्वास्थ्य में सुधार ही हमारे कृषि उत्पादन का समग्र लक्ष्य होना चाहिए तभी हम भविष्य की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते है    

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