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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

सेहत और समृद्धि का आधार बन सकता है छिंद (जंगली खजूर): संरक्षण एवं संवर्धन जरुरी

 

डॉ.गजेन्द्र सिंह तोमर

प्रोफ़ेसर (सस्य विज्ञान), कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र,

कांपा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)

प्रकृति ने हमें नाना प्रकार के बहुपयोगी पेड़-पौधे की सौगात दी है, जिनसे प्राप्त होने वाले फल, फूल, सब्जी, लकड़ी एवं औषधियों का उपयोग मनुष्य  प्राचीन काल से  करता आ रहा है. आधुनिक युग में विकास और अधिक धन कमाने के लालच में आकर मनुष्य ने प्राकृतिक पेड़-पौधों का बेहिसाब दौहन तो प्रारंभ कर दिया लेकिन उनका संरक्षण एवं संवर्धन करना भूल गया जिसके कारण न केवल हमारे वन-उपवन उपयोगी पेड़-पौधों को खोते जा रहे है, बल्कि धरती की हरियाली एवं पर्यावरण को भी भारी क्षति होती जा रही है सूखी एवं बंजर धरती पर बिना खाद पानी एवं देखरेख के उगने वाले छिंद (जंगली खजूर) के  पेड़ ग्रामीण भारत के आदिवासी-वनवासी तथा गाँव की भूमिहीन एवं बेरोजगारी आबादी की आजीविका का एक साधन बन सकते है. परन्तु प्राकृतिक रूप से उग रहे  छिंद वृक्षों का गलत तरीके से अथवा अत्यंत दोहन से इनके पेड़ों का  अस्तित्व आज खतरे में नजर आ रहा है छिंद पेड़ के अत्यधिक दोहन एवं उनके कटने पर सरकार एवं वन विभाग को तो आवश्यक कदम उठाने ही चाहिए, लेकिन हम सब को  भी  सामुदायिक रूप से अपने क्षेत्र की जैव विविधता के सरंक्षण एवं  संवर्धन में सक्रिय योगदान देना चाहिए  

भारतीय मूल के छींद पेड़ को जंगली खजूर, संस्कृत में खर्जूर, अंग्रेजी में सिल्वर डेट पाम, इंडियन डेट, शुगर डेट पाम, इंडियन वाइन पाम तथा वनस्पति शास्त्र में  फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस  के नाम से जाना जाता जो  अरेकेसी परिवार का  बहुवर्षीय  वृक्ष है। प्राचीन काल से ही छिंद के पेड़ प्राकृतिक रूप से  समस्त भारत में  बहुतायत में पाये जाते है। राजस्थान, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल  मै नैसर्गिक रूप से उग्त्ते है. छत्तीसगढ़ के बस्तर, सरगुजा एवं मैदानी क्षेत्रों में छिंद के वृक्ष बड़ी संख्या में देखे जा सकते है और इनकी बहुलता के कारण छिन्दगड़, छिंदपुर जैसे गाँव भी बसे है  मध्यप्रदेश के छिंदवाडा शहर का नाम भी छिंद कि बहुलता के कारण पड़ा. छिंद बाहुल्य वाले क्षेत्रों में स्थानीय गरीब  लोगों की आजीविका प्रमुख साधन है आदिवासी-वनवासी समाज में छिंद के पेड़ बहुत ही पवित्र एवं पूज्यनीय माने जाते है. परंपरागत रूप से छिंद की पत्तियों से मुकुट (मोर) बनाकर शादी विवाह में पहना जाता है इस पेड़ की पूजा करने के उपरान्त ही आदिवासी इसके फल एवं रस का सेवन करते है

छिंद के पेड़ प्रायः जंगल, सडक किनारे, नहर, नाले, तालाब, नदी के किनारे तथा खेतों की मेंड़ों पर स्वमेव उगते है छिंद के धारीदार तने और उस पर हरे धूसर रंग की विराट पत्तियों का ताज धारण किये हुए इसके पेड़ बेहद ख़ूबसूरत लगते है और इसलिए आजकल इसके पेड़ बाग़-बगीचों एवं सडकों पर भी लगाये जाने लगे है छिंद ही आज के खजूर का पूर्वज है  छिंद खजूर शुष्क एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों के आदिवासी एवं वनवासियों के लिए प्रकृति प्रदत्त वरदान है  छिंद के वृक्ष 10 से 16 मीटर ऊंचे तथा खुरदुरे तने  वाले होते है इसके वयस्क पेड़ पर 80-100 पत्तियां हो सकती है जो हरे-धूसर रंग की, 3-4.5 मीटर लंबी, थोड़ी मुड़ी हुई एवं कांटे युक्त आधार वाली  तने के चारों ओर एकांतर क्रम में लगी रहती है। इसका पुष्पक्रम पीले रंग का लगभग 1 मीटर लम्बा बहुशाखित होता है जिसमें छोटे-छोटे सुगंधित  सफेद पुष्प घने गुच्छो में लगते है। इसके फल (ड्रुप) गुच्छो में आते है। खजूर कि अपेक्षा छिंद के फल आकार में छोटे (2.5 से 3.2 सेमी लम्बे)  एवं कम गूदेदार होते है इसके फल पीले एवं नारंगी  रंग के होते है जो जो पकने पर लाल-गुलाबी रंग के हो जाते है फलों के अन्दर एक सख्त बीज होता है सामान्य तौर पर छिंद में  जनवरी से अप्रैल तक फूल आते है तथा अक्टूबर- दिसम्बर तक फल पकते है एक पेड़ से औसतन 7-8 किग्रा फल प्राप्त किये जा सकते है फलों का रंग पीला-नारंगी होने पर फल गुच्छो को काटकर धान के पुआल अथवा गेंहू के भूसे में दबाकर  रख देने से  2-3 दिन में फल पक जाते है

अमृत है छिंद रस : मूल्य संवर्धन की पहल जरुरी 

शीत ऋतू में छिंद के पेड़ उपहार स्वरूप छिंद रस प्राप्त होता है । प्रति वर्ष नवम्बर की शुरुआत में  ग्रामीण एवं वनवासी रात्रि के समय छिंद के वयस्क  पेड़ों के ऊपरी हिस्से के नर्म तने में धार वाले औजार से चीरा लगाकर मिट्टी का घड़ा (हांडी) अथवा एल्युमिनियम का बर्तन टांग देते है रात्रि भर में बूँद-बूँद कर रस टपकता रहता है और सुबह तक बर्तन पूरा भर जाता हैएक पेड़ से प्रतिदिन 3-4 लीटर शुद्ध रस प्राप्त हो जाता है शर्दी भर यह रस प्राप्त होता रहता है। छिंद का ताजा  रस स्वाद में खट्टा- मीठा एवं जो दूसरे दिन से  हल्का नशीला होने  लगता है। छत्तीसगढ़ के बस्तर एवं सरगुजा क्षेत्र में सडक किनारे छिंद रस का बाजार सजा रहता है। यहां से गुजरने वाले राहगीर एवं पर्यटक छिंद रस का स्वाद एवं आनंद लेते देखे जा सकते है। एक गिलास रस आज भी 10-15 रूपये में उपलब्ध हो जाता है। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान छिंद बाहुल्य क्षेत्र के नशेड़ियों के लिए छिंद रस ही एक सहारा था।

पौष्टिकता के लिहाज से 100 ग्राम ताजे  छिंद रस में 358 kcal ऊर्जा, 85.83 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.95 ग्राम शर्करा, 1.08 ग्राम प्रोटीन, 1.15 ग्राम वसा,0.18 ग्राम फाइबर, खनिज लवण (180.9 मिग्रा फॉस्फोरस, 80 मिग्रा पोटैशियम, 4.76 मिग्रा कैल्शियम, 2.23 मिग्रा मैग्नीशियम, 18.23 मिग्रा सोडियम, 15.8 मिग्रा आयरन, 7.13 मिग्रा जिंक, 2.13 मिग्रा कॉपर)  के अलावा विटामिन ए, विटामिन बी 1 (थियामिन), विटामिन बी 2 (रिबोफ्लेविन), विटामिन बी 3 (नियासिन), विटामिन बी 5, विटामिन बी 6 एवं विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाए गए है (सल्वी एवं कटेवा, 2012). इस प्रकार से छिंद का ताजा रस स्वास्थ्यवर्धक एवं पौष्टिक पेय माना जा सकता है। लेकिन 12 घंटे से अधिक समय तक रखने पर इमसे किण्वन (Fermentation)  प्रारंभ होने से यह मादक एवं उत्तेजक हो जाता है

छिंद रस को गर्म करके गुड़ भी तैयार कर खाया एवं बेचा जाता  है पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर छिंद के गुड़ का बाजार में काफी मांग रहती है। शर्दी एवं गर्मी में  छिंद गुड़ 200-250 रुपये प्रति किलो के भाव से मिलता है। गुड़ का उपयोग मिठाइयां और खीर बनाने में किया जाता है। छिंद रस से बने रसगुल्ले एवं कलाकंद स्वादिष्ट होने की वजह से बेहद पसंद किये जाते है शहरवाशी एवं पर्यटक छिंद रस की मिठाई खाते भी है और अपने घर भी ले जाते है प्रकृति प्रदत्त छिंद रस का  वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करण  एवं  मूल्य संवर्धन कर  कुछ नवीन  उत्पादों को बाजार में अच्छा प्रतिसाद मिल सकता है। अतः छिंद रस के विभिन्न उत्पादों से संबंधित लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापित करने से  ग्रामीण समुदाय को रोजगार एवं आय अर्जन के नयें अवसर प्राप्त हो सकते है  

ग्रामीणों एवं वनवासियों का मेवा है छिंद फल 

छिंद के फल खाने में मीठे एवं पौष्टिक होते है. इसके ताजे पके  फल सीधे  एवं सुखाकर छुहारे की भांति खाए जाते है इनसे जैम, जेली एवं मुरब्बा  तैयार कर खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है छिंद के फल अर्थात जंगली खजूर  को आयुर्वेद में  शीतल गुणों वाला मधुर, पौष्टिक एवं बलवर्धक माना गया है इसमें  कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, रेशे, शर्करा,खनिज एवं  विटामिन भरपूर मात्रा में पाये जाते है शरीर में शक्ति बढ़ाने, पाचन विकार, गठिया रोग  एवं खून की कमी (एनीमिया) को दूर करने के लिए इनका सेवन लाभप्रद होता है एंटीऑक्सीडेंटस की  बहुलता होने के कारण इसके सेवन से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है और अनेक जानलेवा बिमारियों से सुरक्षा होती है पौष्टिक गुणों से भरपूर खजूर फल प्रकृति का बेमिसाल उपहार है, जो मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।  स्वाद और पोषक तत्वों से परिपूर्ण छिंद फल अभी भी अल्प उपयोगी फल है.  ग्रामीण क्षेत्रों में ही इस फल को थोडा-बहुत खाने में प्रयोग किया जाता है, बाकी फल बेकार हो जाते है जिन ग्रामीण क्षेत्रों में छिंद के वृक्ष बहुतायत में उगते है, वहां फलों के एकत्रीकरण, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन से स्थानीय लोगो को रोजगार के नए अवसर मिल सकते है.इन फलों से जैम, जेली अथवा सुखाकर पाउडर बनाया जा सकता है इन प्रसंस्कृति उत्पादों को गाँव की आँगन बाड़ी एवं स्कूलों के मध्यान्ह भोजन में सम्मलित किया जा सकता है इससे ग्रामीण बच्चो में व्याप्त कुपोषण कि समस्या से निजात मिल सकती है

छिंद के पत्ते भी रोजगार एवं आय का साधन 

फल और रस के अलावा छिंद की लंबी संयुक्त पत्तियों से उम्दा किस्म की झाड़ू, टोकरी, चटाई, टोपी, रहने के लिए झोपड़ी, रस्सी और  पशुओं के लिए अस्तबल (कोठा) तैयार किये जाते है इसकी पत्तियों से निर्मित झाड़ू मजबूत एवं टिकाऊ होने के कारण ग्रामीण  क्षेत्रों में  बहुतायत में इस्तेमाल की जाती है। इसके फलों के मजबूत डंठलों के झुंड  भी खेत खलियान की साफ़- सफाई के लिए झाड़ू  की भांति उपयोग किये जाते  है। ग्रामीण एवं जनजातीय महिलाओं के लिए छिंद की पत्तियां रोजगार एवं आमदनी का सस्ता एवं सुलभ साधन है। छिंद के पेड़ से सिर्फ नीचे की 50 % पातियाँ ही काटी जानी चाहिए ताकि ऊपर की हरी पत्तियों से पेड़ों को पर्याप्त पोषण मिलता रहे और वे सूखे नहीं. इसके लिए  ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरूकता अभियान चलाने की जरुरत है इसके अलावा इसके पत्तों से विभिन्न प्रकार के घरेलू सामान जैसे झाडू, उन्नत झाड़ू, रस्सी, टोकनी, चटाई, झोला, टोपी आदि तैयार करने की तकनीक से सम्बंधित ग्रामीण महिलाओं एवं नौजवानों को उचित प्रशिक्षण एवं रोजगार स्थापित करने के लिए आर्थिक सहायता एवं तकनीकी मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए  ग्रामीण क्षेत्र में छिंद वृक्ष के विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योग स्थापित करने की अच्छी संभावना है

छिंद के वृक्षों के अतिसय दोहन पर रोक जरुरी 

छिंद वृक्ष न केवल आदिवासियों के लिए बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगार एवं भूमिहीन किसानों के लिए रोजगार एवं आमदनी का सुलभ साधन है, बल्कि इन क्षेत्रों में व्याप्त कुपोषण उन्मूलन में भी वरदान सिद्ध हो सकता है  दुर्भाग्य से व्यापारियों एवं शहरियों की छिंद के पेड़ों पर नजर पड़ने से विभिन्न प्रयोजनों जैसे फल एवं रस के लिए इनके पेड़ों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है इनसे रस निकालने के लिए अनुचित तरीके से इनमें चीरा लगाया जाता है इसके  कारण हरे-भरे पेड़ सूखने लगते है.इसके  लिए स्थानीय निकायों एवं ग्राम पंचायतो को सतत निगरानी रखना चाहिए  तथा पेड़ों से रस निकालने की वैज्ञानिक पद्धति के बारे में ग्रामीणों को शिक्षित प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।  झाडू एवं अन्य सामग्री तैयार करने के लिए छिंद पेड़ की अधिकांश हरी पत्तियों को भी काट लिया जाता है इससे इनके पेड़ों की वृद्धि एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव  पड़ने के साथ-साथ बहुत से पेड़ असमय ही सूखकर दम तोड़ते नजर आ रहे है  इसके लिए ग्राम पंचायतो को नियम बनाकर सिर्फ नीचे के सूखे एवं अर्द्ध सूखे पत्तों को काटने की सूचना ग्रामवासियों को प्रदान करना चाहिए।  समय रहते  प्रकृति की अनमोल धरोहर  के अतिसय दोहन को सीमित करते हुए बंजर एवं खाली भूमियों पर इनका रोपण करना भी जरुरी है, तभी हम इन बहुपयोगी वृक्षों को सुरक्षित कर सकते है।

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