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शनिवार, 27 मई 2017

उद्यानिकी:मार्गशीर्ष-पौष (दिसम्बर) माह में बागवानी के प्रमुख कार्य


डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

शीत ऋतु के इस सुहावने मौसम में मन की प्रवृति भी प्रकृति के अनुरूप ढलने लगती है। सूर्य देवता के उदय होते ही मानो जीवन में गति उत्पन्न हो जाती है। इस माह में लॉन की छटा निहारते ही बनती है। हरा-भरा घास का गलीचा और वहां बैठकर धुप शैकने का आनंद ही कुछ और रहता है। इसी माह हम क्रिशमस त्यौहार भी उत्साह से मनाते है। ठण्ड के इस मौसम में  नाना  प्रकार की हरी-भरी सब्जियां और ताजे फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।  फूलों के राजा गुलाब  के अति सुन्दर बहुरंगी पुष्पों, गुलदावदी और ग्लेडियोलस की बहार इस मौसम में सर्वाधिक सोभायमान होकर मन मस्तिष्क को प्रफुल्लित करती है। मार्गशीर्ष-पौष अर्थात दिसम्बर माह में उद्यानिकी फसलों में सम्पादित किये जाने वाले प्रमुख कार्यों की  संक्षिप्त जानकारी अग्र प्रस्तुत है। 
                                                         सब्जियों में इस माह
v बैंगनः बैंगन की फसल की निराई-गुडाई आवश्यकतानुसार करें। फलों की तुड़ाई उचित अन्तराल पर करें। अगर फसल में फल छेदक कीड़ों का प्रकोप हो तो मेटासिस्टाक्स नामक रसायन का छिड़काव करें। बैगन में  ब्लाइट की रोकथाम हेतु मेन्कोजेब फफूंदनाशी का छिड़काव करें। बैगन की छोटी पत्ती रोग से फसल सुरक्षा हेतु टेट्रासायक्लिन प्रति जैविक का छिड़काव करें।
v फूलगोभी:  पिछेती किस्मों  के बीज तैयार नर्सरी में 10 सेमी की दूरी पर बने नालियों में बुवाई कर दें। बीज की बुवाई के तुरन्त बाद नर्सरी को सूखी घास से ढ़ककर हजारे से हल्की सिंचाई कर दें। मध्य कालीन फसल की निराई गुड़ाई तथा सिंचाई करते रहें।
v टमाटर: टमाटर की फसल की निराई करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अन्तर पर हल्की सिंचाई करें। पौधों को वाइरस र¨ग से बचाने के लिए मेटासिस्टाक्स नामक रसायन का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें। अगर फसल एक महीने पुरानी हो गयी हो तो 30 किग्रा. नत्रजन का छिड़काव प्रति हैक्टेयर की दर से कर दें।
v पत्तियों वाली सब्जियां:पत्तियां वाली सब्जियां जैसे पालक, धनियां, मेंथी, सोया आदि की फसल की निराई करें। एक हल्की सिंचाई करके 40 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़क दें।
v जड़ों वाली सब्जियां:जड़ो वाली सब्जियों जैसे गाजर, मूली, शलजम आदि की हल्की सिंचाई करें। तत्पश्चात् फसल में 30 किग्रा.नत्रजन प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़क दें। फसल की निराई तथा गुड़ाई करके पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें।
v आलू : इसकी फसल  में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। बुआई के 35-40 दिन बाद खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया डालें व मिट्टी चढ़ायें। फसल पर 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 का छिड़काव बोआई के 35 दिन बाद अवश्य ही करें। सिंचाई करते समय यह ध्यान रहे कि कूढ़ों में मेढों की ऊंचाई के तीन चैथाई से अधिक ऊंचा पानी नहीं भरना चाहिए।
v मटरः सब्जी वाली मटर की फसल में हल्की सिंचाई करके निराई तथा गुड़ाई करें। हरी फलियों को   बिक्रय हेतु बाजार भेजें।
                                          फलोत्पादन में इस माह
v आमः इसके वृक्षों में कीड़ों  की रोकथाम हेतु पिछले महीने यदि  ग्रीस की पुताई न की गई हो तो इस माह अवश्य करें दें। पाला पडने की सम्भावना हो तो  आम के  बाग में धुंआ करें।
v केलाः अवांछित पत्तियों को निकाल दें। यदि फल पकाने लायक हों तो घार को काटकर पकाने के लिए रखे दें। इस माह के पहले और तीसरे सप्ताह में सिंचाई करें।
v नींबू वर्गीय फलः पके फलों को तोड़कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। छोटे पौधों को 10 किलोग्राम गोबर की खाद और 25 ग्राम फॉस्फोरस  प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ाकर दें। फलदार पेड़ों में 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई   खाद और 125 ग्राम फाॅस्फोरस प्रति पेड़ के हिसाब से पेड़ के फैलाव में 20 सेमी की गहराई में डालें।
v अमरूदः फलों को तोतों  व चिड़ियों से सुरक्षा करें । पके फलों को तोड़कर बाजार भेजें। बाग की साफ सफाई करें।
v पपीताः पौधों को पाले से बचाने के लिए धुआ करें और बाग में पर्याप्त  नमी बनाएं। कच्चे फलों को टाट अथवा बोरे से ढंक दें। 200 ग्राम  सिंगल सुपर फॉस्फेट  और 125 ग्राम  म्यूरेट आफ पोटाश प्रति पौधो के हिसाब से थालों में मिलाकर दें।
v कटहलः फलदार पेड़ों में 50 किलोग्राम गोबर की खाद और 600 ग्राम फॉस्फोरस प्रति पेड़ के हिसाब से पेड़ के फैलाव में दें। 
v आंवला: फल सड़न रोग की रोकथाम हेतु 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 200 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव करें। फलों को तोड़कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। बाग को साफ रखें।
v बेरः वृक्षों के  थालों की सफाई करें। पके फलों को तोड़कर बिक्रय हेतु बाजार भेजें। फलमक्खी की रोकथाम के लिए 300 मिलीलीटर डाइमेक्रान को 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v लीचीः इसके  फलदार पेड़ों को 50 किलोग्राम गोबर की खाद और 600 ग्राम फाॅस्फोरस प्रति पेड़ के हिसाब से पौधों के फैलाव में 20 सेमी. की गहराई में नालियां बनाकर डालें और नालियों को मिट्टी से ढंक दें।
v अंगूरः इस महीने के अंतिम सप्ताह तक गड्डे भरने का कार्य पूरा कर लें।  इस महीने के अंतिम सप्ताह में अंगूर की एक वर्ष पुरानी मूल सहित लताएं गड्डे के बीच में लगा दें।
v फल-सब्जी संरक्षणः नीबू जाति के फलों के रस का परिरक्षण करें। अमरूद तथा टमाटर के विभिन्न उत्पाद, आवले का मुरब्बा तथा कैण्डी बनाएं। सब्जियों को सुखाकर सुरक्षित रखें।  गाजर का मुरब्बा तथा जैम और  पपीते के विभिन्न उत्पाद बनाये जा सकते है।
                                       पुष्पोत्पादन में इस माह
v गुलाब:इस माह गुलाब का सौन्दर्य चरमोत्कर्ष पर होता है. इनके पौधों को स्वास्थ्य रखने के लिए पौध सरंक्षण दवाओं का छिडकाव करें.माह के तीसरे सप्ताह पौधों में निराई-गुड़ाई कर खाद-उर्वरक देवें. पौधों में चश्मा बाँधने का कार्य भी किया जा सकता है। 
v गुलदावदी: जिन पौधों के पुष्प खिलकर सूख चुके हो, उनके टनों को गमलों से 15 से.मी.की उंचाई से काट देना चाहिए.तने में से एनिक्ले स्वस्थ सकर्स को छांटकर अलग करके बीज बोने की क्यारियों में लगा देना चाहिए, जो की अगले वर्ष नए पौधे लगाने में प्रयोग किये जा सकते है. पुष्प सूखने के पहले इनके सकर्स पर फूलों का नाम और रंग अवश्य लिख देवें ताकि अगले वर्ष फूलों का चयन आसानी से किया जा सकें। 
v मौसमी पुष्प: इस माह गुलदाउदी और गुलाब के पौधे फूलों से आच्छादित रहते है. इस समय इनमें नियत समय पर खाद और पानी देवे तथा इन्हें कीट-रोग और खरपतवारों से बचाने के उपाय करें. मौसमी पुष्पों की बढ़वार के लिए इनमे तरल खाद देना अच्छा रहता है। 
v अक्टूबर में प्रूनिंग किये गुलाब के  पौधों  में फूल आ रहे होगें। उनकी कटाई तथा विपणन करें। गुलाबों में बंडिंग का कार्य, सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई करें।
v ग्लैडियोलस में सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई करें। रोपाई के 60-90 दिनों  बाद फूल लगने लगते है। फूल खिलने के बाद डंठलों की कटाई, छटाई, ग्रेडिंग, पैकिंग तथा विपणन करें।
v रजनीगन्धा के पुष्पों की  अंतिम बहार की कटाई, छटाई, पैकिंग तथा विपणन करें। बल्ब जल्दी परिपक्व हो सके इसके लिए पौधे को भूमि की सतह के उपर से मरोड़ना चाहिए।
v गेंदा लगाने के लिए भूमि की तैयारी करें। अन्तिम जुताई के समय 10 टन गोबर की सड़ी खाद, 40-50 किग्रा. नत्रजन, 60-80 किग्रा. फॉस्फोरस एवं 40-50 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाना चाहिए। 

नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर  प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो  ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।

उद्यानिकी: पौष-माघ (जनवरी) माह में बागवानी के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)
उद्यानिकी-बागवानी में प्रत्येक माह के नियत कृषि कार्यो को कभी-कभी हम भूल जाते है और उन कार्यो को सही समय पर संपन्न न करने की वजह से हम अपनी बगिया सुन्दर और आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने में पिछड़ जाते है।  इसी परिप्रेक्ष्य में हम इस ब्लॉग पर उद्यानिकी-बागवानी में प्रति माह के समसामयिक कार्यो का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे है।  मुझे आशा है की किसान भाई और बागवानी प्रेमियों को इससे समय पर कार्य आरम्भ करने में सुगमता होगी और बगिया के समस्त कार्य सही समय पर सुचारू रूप से संपन्न कर हरियाली और आर्थिक खुशहाली कायम रखने में सफल होंगे। 
जनवरी यानि पौष-माघ का माह  शीत ऋतु के शिखर पर होता है।  इस समय दिन छोटे और रातें लम्बी हो जाती है। इस माह हम मकर संक्राति, अंग्रेजी नव वर्ष और गणतंत्र दिवस धूम धाम से मनाते है। ठंडी हवाएं, कड़कड़ाती ठण्ड और उस पर कभी कभी शीत ऋतु की वर्षा की बूंदों से फल-फूल और सब्जिओं की सुकोमल फसल भी बेहाल हो जाती है।  तो आइये इस माह वाटिका में पेड़ पौधों की सुरक्षा और उनके प्रबंधन पर विमर्ष करते है। 
                                                      सब्जियों में इस माह
Ø नवम्बर माह में  लगाई बैंगन, मिर्च  और टमाटर नर्सरी की रोपाई इस माह के अंत में करें । रोपाई के तुरन्त बाद पहली सिंचाई करें, इसके बाद 8 से 10 दिन बाद सिंचाई करें। शरदकालीन टमाटर और बैंगन फसल के तैयार फलों की तुडाई कर बाजार भेजें। टमाटर  में फल छेदक कीट के संक्रमण होने पर फ्लुबेंडामाइड 20 ई.सी. 250 मिली./हे. की दर से छिडकाव करें। सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु थायोमिथाक्साम 25 डव्ल्यु.जी.400 मिग्रा./हे. की दर से छिडकाव करें।  बैगन में ताना एवं फल छेदक कीट की रोकथाम हेतु ट्राईजोफ़ॉस 40 ई.सी. 1 लीटर/हे. की दर से 1-2 बार छिडकाव करें। ध्यान रखें, दवा छिडकाव से पूर्व फल तोड़ ले तथा अगली तुड़ाई 15 दिन वाद ही करें। 
Ø गोभी: इस वर्ग की सब्जिओं में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।  पौध सरंक्षण के आवश्यक उपाय भी अपनाएँ। फूल गोभी के फूल उस समय काटने चाहिये जब वे ठोस, सफेद व धब्बे रहित बिलकुल साफ हों । फूल तेज धार वाले चाकू से काटे जाएँ।  बंद गोभी को तब काटें जब वह बंधी और कोमल हो। यदि कटाई में देर हो गई तो गांठें फट सकती हैं। कटाई करते समय दो तीन बाहरी पत्तियाँ रखें जिससे बाजार ले जाते समय गांठे खराब न हों।
Ø लोबिया,फ्रेंचबीन,गुआर फली : इन पौष्टिक सब्जिओं की बुआई इस माह संपन्न करें। 
Ø प्याज: पौध की रोपाई का कार्य इस महिने समाप्त कर लें। रोपाई 15 x 10 से.मी.(कतार x पौध) की दूरी पर करें. रोपाई के समय खेत में नमी बनाये रखें एवं 3-4 बार हल्की सिंचाई करें।
Ø आलू:  जनवरी के प्रथम सप्ताह तक हर हालत में पौधों के ऊपरी भाग ( डंठल) को काट दें, उसके बाद आलू को 20-25 दिन बाद खुदाई और सफाई करके विक्रय हेतु बाजार भेजें  अथवा शीतगृहों में भंडारित करने की व्यवस्था करें ।
Ø मसाला फसलें: जीरा, धनिया तथा सौंफ में समय-समय पर सिंचाई करें तथा इन फसलों में फूल आते समय नत्रजन उर्वरक की शेष क़िस्त कतारों में देकर सिंचाई करें। 
Ø इस माह खरबूजा, तरबूज, खीरा, ककड़ी, कद्दू, लौकी आदि सब्जियों की बुआई की जा सकती है।  इसके लिए लौकी,कद्दू,करेला,टिंडा व तोरई का 4-5 किलो बीज, खीरा  और ककड़ी का 2-2.5 किलो तथा तरबूज का 4-4.5 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। बेल वाले इन पौधों पर 2 और 4 पत्तियों की अवस्था पर इथ्रेल के 250 पी.पी.एम. सांद्रण वाले घोल के छिड़काव से अधिक उपज प्राप्त होती है। कददू का लाल कीड़ा इन फसलों को भारी क्षति पहुंचाता है जिसकी रोकथाम के लिए कार्बारिल 5 % डस्ट 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें अथवा कार्बारिल 50 % घुलनशील चूर्ण का 1200-1500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करन चाहिए।  
                                          फलोद्यान में इस माह
Ø आम: इसके थालों की गुड़ाई कर सिंचाई करें। पिछले माह यदि खाद और उर्वरक नहीं दिए है तो इस माह भी प्रथम, द्वितीय,तृतीय,चतुर्थ, पंचम या अधिक वर्षीय पौधों में क्रमशः 15,30,45,60 व 75 किलो प्रति पेड़ गोबर की खाद के साथ साथ 250,500,750,1000 व 1250 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट प्रति पेड़ थालों में  देवें. चौथे, पांचवें वर्ष या अधिक पुराने पेड़ों में क्रमशः 250 व 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश  भी देना चाहिए।  उर्वरक देने के पश्चात पौधों में  सिंचाई भी करें। 
Ø नीबू वर्गीय फल: इनके बगीचों की साफ़-सफाई करें। तैयार फलों की तुड़ाई के बाद ग्रेडिंग कर विक्रय हेतु बाजार भेजें। 
Ø बेर: यह फलों के पकने का समय है अतः फल मक्खी के नियंत्रण के उपाय करें। आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.तैयार फलों को तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें। 
Ø पपीता: इसके पौधों में आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई और सिंचाई करते रहे. इसके तनों के चारो तरफ मिट्टी चढाने के उपरांत ही सिचाई करें  जिससे पानी तनों को ना छुए।  गत माह यदि उर्वरक नहीं दिया है तो इस माह प्रति पौधा 30-40 ग्राम यूरिया,150-200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 50-75 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति पौधा थालों में देकर हल्की सिंचाई करें। तैयार फलों को तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें। 
Ø अमरुद: इसके थालों की निराई-गुड़ाई और समय समय पर सिंचाई करें।  पके फलों की तुड़ाई कर विक्रय हेतु बाजार भेजें ।
Ø अनार एवं आंवला: इन फलों के बगीचों की साफ-सफाई, गुड़ाई और खाद देकर सिंचाई करें।  तैयार फलों की तुड़ाई कर विक्रय हेतु बाजार भेजें।
                                              पुष्पोत्पादन में इस माह
Ø गुलाब:यह गुलाब का माह है जिसमे गुलाब के फूलों की बहार देखने ही बनती है. इनकी क्यारिओं की निराई-गुड़ाई व सिंचाई आवश्यकतानुसार करते रहे जिससे नई और स्वस्थ कलियाँ निकलती रहें. सूखे मरे हुए फूलों को ऊपर से काट देवें और मूलकांड से जो शाखाएं निकलती हों, उन्हें काट कर निकल देवें. गुलाब में बडिंग का कार्य यदि पिछले माह नहीं किया है, तो इस माह संपन्न कर लेवें।
Ø गुलदावदी: इस माह इसके फूल समाप्त होने लगते है. फूलों के खिल जाने के पश्चात पौधों को 10-12 से.मी.की ऊंचाई से काट देना चाहिए जिससे पौधों की जड़ो से अधिक संख्या में कल्ले निकलें. क्यारिओं या गमलों में थोड़ी खाद देकर आवश्यकतानुसार पानी देते रहना चाहिए।
Ø बसंत ऋतु के फूल पूरी बहार पर होते है।  इन पौधों में गुड़ाई और सिंचाई करते रहे. गर्मी के फूलों के लिए नर्सरी की तैयारी करें।
Ø इस माह सुगन्धित रजनी गंधा और सुन्दर लिली के लिए क्यारी व गमलों की तैयारी प्रारंभ करें। ग्रीष्म ऋतु में खिलने वाले पुष्प यथा जिनिया, पोर्टुलाका, गमफरिना,गैलार्डिया,कोचिया, गोल्डन रॉक आदि के बीज का प्रबंध करें।
Ø फूल वाली झाड़ियाँ जैसे सावनी, टिकोमा, मेलिया, मुसंडा आदि की पत्तियाँ झड़ने लगती है. अतः इस माह इनकी कटाई-छंटाई करना चाहिए।  चांदनी, बोगनविलिया, रात की रानी आदि की डाल काट कर नई कलमे भी लगाईं जा सकती है। 

शुक्रवार, 26 मई 2017

समसामयिक कृषि :पौष-माघ (जनवरी) माह के प्रमुख कृषि कार्य

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (सस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

खेती किसानी को आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की कृषि विज्ञान की तमाम उपलब्धियों  एवं समसामयिक कृषि सूचनाओं को खेत-खलिहान तक उनकी अपनी भाषा में पहुँचाया जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम जानकारियों  से किसानों को रूबरू कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाएँ । उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है। ये सभी कृषि कार्य नियत समय में संपन्न करने पर ही किसान भाइयों को उनके श्रम और लागत का सही प्रतिफल प्राप्त हो सकेगा।  आइये हम अपने 'कृषिका' ब्लॉग पर खेती किसानी में विभिन्न महीनों में संपन्न किये जाने वाले समसामयिक कृषि कार्यों का संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत करते है।    
शीत ऋतु का जनवरी माह जिसे हम पौष-माघ भी कहते है, सबसे ठंडा महिना होता है। इस माह मकर शंक्राति, लोहड़ी और गणतन्त दिवस जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार पुरे जोश और उमंग से मनाये जाते है.  इस समय  दिन छोटे और रातें लम्बी हो जाती है.इस माह तापक्रम कम हो जाता है, कहीं-कहीं पाला पड़ने की संभावना रहती है. सापेक्ष आद्रता इस माह अधिक होती है. इस माह उच्चतम और न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 28 और 14C के आस-पास हो सकता है।  कुछ स्थानों पर शीतकालीन वर्षा भी हो सकती है। फसलोत्पादन में पौष-माघ अर्थात जनवरी माह में संपन्न किये जाने वाले संभावित कृषि कार्यों पर फसलवार चर्चा प्रस्तुत है। 
माह के मूल मंत्र
कुशल जल प्रबंधन: सिचाई जल का किफायती उपयोग करने के लिए बूँद-बूँद सिंचाई और फब्बारा सिंचाई विधियों का उपयोग करें ताकि सीमित जल में अधिकतम फसलों की सिंचाई कर ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।  फसलों को पाले से बचाने के लिए शाम के समय सिंचाई करना चाहिए. फसलों की क्रांतिक अवास्थों पर सिंचाई अवश्य करें।
वर्मी कम्पोस्ट: इस माह पशु शाळा का कूड़ा-करकट,घास-फूस और फसलों के अवशेष काफी मात्रा में उपलब्ध होते है।  इनसे बहुमूल्य वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करें. इसके इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत में सुधार होगा और उपज में भी बढ़ोत्तरी होती है। 
v गन्ना: शरदकालीन गन्ने में 1/3 नत्रजन की अंतिम क़िस्त कतारों में देकर सिंचाई करें. पिछले वर्ष लगाये गए  गन्ने की तैयार फसल की कटाई कर गुड़ बनाये अथवा उपज को यथाशीघ्र गन्ना कारखाने भेजने की व्यवस्था करें। गन्ने की पेड़ी फसल का प्रबंधन करें।
v गन्ने की बसंतकालीन  फसल लगाने के लिए खेत की तैयारी और उन्नत किस्म के स्वस्थ बीज का चयन कर करें ।
v गेहूँ : फसल 21-25 दिन में सिंचाई उत्तम पैदावार के लिए आवश्यक है क्योंकि इस समय शिखर जड़े (किरीट जड़ें) विकसित होती है। फसल में कल्ले फूटने की अवस्था में भी भूमि में पर्याप्त नमीं बनाए रखें। माह के अंत में 1/3  नत्रजन उर्वरक की शेष मात्रा फसल के कूंडों  में देवें।
v दीमक प्रभावित क्षेत्रों में 5 लीटर क्लोरपायरोफ़ॉस 5 लीटर पानी में घोलकर 50 किग्रा रेत के साथ मिलाकर गेंहू की खड़ी फसल में भुरकाव कर सिंचाई करें।
v गेँहू के खेतो में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो की रोकथाम हेतु   2,4-डी सोडियम साल्ट (80 %)  या फिर 2,4-डी इस्टर (34.6 %) 500 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लिटर पानी में घोलकर बोआई के 30 दिन बाद परन्तु 32 दिन के अन्दर  छिडकाव करें।  संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे गेंहूसा, जंगली जई आदि के नियंत्रण हेतु फिनोक्साप्रोप पी 100-120 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर  की दर से 700 लिटर पानी में मिलाकर बोवाई के लगभग 28 दिन बाद किन्तु 35 दिन के अन्दर छिडकाव करें। मैट्रीब्युजिन 175-210 ग्राम सक्रिय तत्व अथवा सल्फोसल्फ्यूरोन 750-1000 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी के 25 दिन बाद किन्तु 30 दिन के अन्दर छिडकाव करने से  संकरी पत्ती वाले और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रित रहते है। 
v पाला संभावित इलाकों में खेतों के आस-पास घास-फूस जलाकर धुआं करें जिससे तापमान बढ़ने से पाला पड़ने की संभावना कम हो जाती है. शाम के समय खेत में सिंचाई कर देने से भी पाले से फसल का बचाव होता है।    
v चना: फसल में फूल आने की अवस्था में एक सिंचाई देने से दाना अच्छा पड़ेगा तथा उपज में बढ़ोत्तरी होगी।  चने की फसल में फलीबेधक कीड़ा की रोकथाम के लिये फली बनना प्रारम्भ होते ही प्रोफेनोफ़ॉस 40 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 44 ई.सी. अथवा प्रोफेनोफ़ॉस 50 ई.सी. के 1 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
v चना में संकरी  पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु  क्युजेलोफॉप इथाइल  40-50 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के 15 दिन बाद किन्तु 20 दिन के अन्दर छिडकाव करना चाहिए।
v सरसों: फसल  में फली बनने की अवस्था में सिंचाई अवश्य करें। इससे दाने मोटे होगे और उपज में बढ़त होगी।  वातावरण का तापमान कम तथा नमीं अधिक होने पर फसल में माहू  कीट का प्रकोप तेज हो जाता है. यह हलके हरे-पीले  रंग का कीट होता है जो समूह में रहकर पौधों की कलियाँ,पुष्प और फलिओं का रस चूसकर फसल को भारी हानि पहुचाते है।  इसके नियंत्रण  हेतु मिथाइलऑक्सीडेमेटोन 25 ई.सी.या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 750 मि.ली/हे. या इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल.का 200 मि.ली./हे.पानी में घोलकर 10-15 दिन के अन्तराल पर 2-3 बार छिडकाव करें।  फसल में आरा मक्खी का प्रकोप होने पर ट्राइएजोफ़ॉस 40 ई.सी. दवा 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। 
v  मटर व मसूर: इन फसलों  में फूल बनते समय सिंचाई करें. खरपतवार नियंत्रण के उपाय करें. हरी मटर की  10-15 दिन के अंतर से मुलायम   फलियाँ तोड़कर विक्रय हेतु बाजार भेजें । इन फसलों में भभूतिया रोग (पावडरी मिल्ड्यू) के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 1.5 ग्राम या ट्राइडेमार्फ़ 1 मिली दवा का छिडकाव प्रति लीटर पानी की दर से  करना चाहिए। प्रथम छिडकाव के 15 दिन बाद दूसरा छिडकाव करना चाहिए। 
v अलसी में फूल और फल बनने की अवस्था में सिंचाई करें। फसल में कलिका मक्खी का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 125 मि.ली./हे. की दर से 15 दिन के अन्तराल से करें। पौधों में  कलियाँ  निकलते ही उक्त दवा का प्रथम छिडकाव करें।
v सूरजमुखी: फसल की बुआई इस माह भी की जा सकती है. पिछले माह बोई गई फसल में नाइट्रोजन की अंतिम क़िस्त बोआई के 30 दिन बाद कतारों में देकर सिंचाई करें।
v रबी मक्का: इसमें फसल की घुटनों तक की अवस्था और झंडा निर्माण की अवस्था में सिंचाई करें। सिंचाई के पूर्व निराई-गुड़ाई और मिट्टी चढाने के समय नत्रजन की शेष मात्रा देवें।
v अरहर: फसल में फूल और फलियों में दाना भरने की अवस्था में सिंचाई करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है। फली छेदक कीट के नियंत्रण हेतु फसल में फूल निकलते समय क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी. 1250 मिली या ट्राईएजोफ़ॉस 40 ई.सी. 1 लीटर या स्पाइनोसेड 45 एस.सी.250 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर शाम के समय छिडकाव करें।

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गुरुवार, 25 मई 2017

समसामयिक कृषि: मार्गशीर्ष-पौष (दिसम्बर) माह की प्रमुख कृषि गतिबिधियाँ



डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर 
प्रोफ़ेसर (एग्रोनोमी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, 
राज मोहनी कृषि महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केंद्र, 
अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) 


         कृषि और किसानों  के आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है की खेती-किसानी की विज्ञान सम्मत समसामयिक जानकारियां खेत किसान तक उनकी अपनी मातृ भाषा में पहुंचाई  जाएं। जब हम खेत खलिहान की बात करते है तो हमें खेत की तैयारी से लेकर पौध सरंक्षण,फसल की कटाई-गहाई और उपज भण्डारण तक की तमाम सूचनाओं  से किसानों को अवगत  कराना चाहिए।  कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए आवश्यक है की समयबद्ध कार्यक्रम तथा नियोजित योजना के तहत खेती किसानी के कार्य संपन्न किए जाए। उपलब्ध  भूमि एवं जलवायु तथा संसाधनों के  अनुसार फसलों एवं उनकी प्रमाणित किस्मों का चयन, सही  समय पर उपयुक्त बिधि से बुवाई, मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, पौध  संरक्षण के आवश्यक उपाय के अलावा समय पर कटाई, गहाई और उपज का सुरक्षित भण्डारण तथा विपणन बेहद जरूरी है।
हेमन्त ऋतु के  माह दिसम्बर यानी मार्गशीर्ष-पौष  में तापक्रम काफी कम हो जाता है, इसलिए ठंड बढ़ जाती है।सापेक्ष आद्रता मध्यम एवं वायुगति शांत रहती है। इस माह औसतन  अधिकतम एवं न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 27 एवं 10.1 डिग्री सेन्टीग्रेड होता  है। वायु गति 4.2 किमी प्रति घंटा के आस-पास  होती है। कुछ स्थानों  में कोहरा-पाला पड़ने की संभावना रहती है। इस माह गुरूघासीदास जयंती, ईद-ए-मिलाद एवं क्रिसमस डे  जैसे महत्वपूर्ण त्योहार जोश और उमंग के साथ मनाये जाते है।  फसलोत्पादन में इस माह नियत समय पर संपन्न किये जाने वाले आवश्यक कृषि कार्य प्रस्तुत है।

गेहूँ: यदि गेहूँ की बुवाई अब तक न कर सके हों तो इस महीने के पहले पखवाड़े तक अवश्य कर लें। इस समय की बुवाई के लिए पिछेती किस्मों का चयन करें। प्रति हक्टेयर 125 किलोग्राम बीज प्रयोग करें। बुवाई कतारों  में 15-18 सेमी की दूरी पर करें।  बुवाई से 30 दिन के अन्दर एक बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2,4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 625 ग्राम प्रति हे. दवा को बुवाई के 35-40 दिन के अन्दर एकसार छिड़काव करें। गेंहू के प्रमुख खरपतवार  गेंहूँसा और जंगली जई की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटूरान की 0.75 सक्रिय तत्व 30-35 दिन में या अंकुरण पूर्व पैडीमेथालीन 1.0 किग्रा. सक्रिय तत्व 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

पूर्व में बोये गये गेंहू में नत्रजन की शेष मात्रा दें तथा 15-20 दिन के  अन्तराल से सिंचाई करते रहें। शरद ऋतु की वर्षा होने  पर असिंचित गेंहू में नत्रजन धारी उर्वरक सिफारिस अनुसार गेंहू की कतारों में देवें ।

जौः जौ  की पछेती किस्मों की बुवाई करें। एक हैक्टेयर  के लिए 100-110 किलो बीज लेकर बुवाई कतारों में 18-20 से.मी. की दूरी पर करें। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के बाद ही करें। समय पर बोई गई फसल में बुवाई के 30-35 दिन बाद पानी लगायें, निराई करें।

तोरिया व सरसों: तोरिया दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक आमतौर पर पक जाती है। पकी हुई फसल की कटाई करें तथा समय पर बोई गई सरसों में दाने भरने की अवस्था में यदि वर्षा न हो तथा प्रथम पखवाडे में सिंचाई न की हो तो सिंचाई करना चाहिए।

मटरः समय से बोई गई मटर में फूल आने से पहले एक हल्की सिंचाई कर देना चाहिए। तना छेदक की रोकथाम के लिये बुवाई से पूर्व 3 प्रतिशत कार्बोफ्यूरान की 30 किग्रा. दवा प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। फसल में भभूतिया रोग के  लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक या केराथिन या कार्बेन्डाजिम के दो  छिड़काव करना चाहिए। गेरूआ रोग लगने पर जिनेब या ट्राइडेमार्फ या आक्सीकार्बाक्सिन फंफूदनाशी का दो  बार छिड़काव करें।

मसूरः मसूर की पछेती बुवाई इस माह भी कर सकते हैं। इसके लिए 50-60 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। बोने से पहले बीजोपचार करें। एक हैक्टेयर में 15 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा फॉस्फोरस  प्रयोग करना चाहिए। बुवाई कूड़ों में 15-20 से.मी. दूरी पर करनी चाहिए। पूर्व में बोई गई फसल में फूल-फली बनते समय सिंचाई करें। 

बरसीम,लूर्सन एवं जईः बुवाई के  45-50 दिन बाद इन चारा फसलों  की प्रथम कटाई कर लेना चाहिए। इसके  बाद 25-30 दिन के  अन्तराल से कटाई करते रहें। भूमि सतह से 5-7 से.मी. की ऊंचाई पर कटाई करें। कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देना चाहिए। गर्मी में पशुओं  के  लिए लूर्सन व बरसीम चारे का संरक्षण करें।

गन्नाः शरदकालीन गन्ने में नवम्बर के द्वितीय पखवाडे़ में सिंचाई न की गई हो तो सिंचाई करके निराई-गुड़ाई करें। शरदकालीन गन्ने के साथ राई व तोरिया की सह फसली खेती में आवश्यकतानुसार सिंचाई करके निराई-गुड़ाई लाभप्रद होता है। गेंहूँ के साथ सह-फसली खेती में बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रथम सिंचाई करें । गेंहूँ के लिये 30 किग्रा नत्रजन प्रति हैक्टेयर की दर से ट्रापडेसिंग के रूप में प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने की बुवाई हेतु खेत तैयार करें।

धान व अन्य खरीफ फसलों  की कटाई गहाई संपन्न करें । शीघ्र पकने वाली अरहर की कटाई करें। उपज को  साफ कर मंडी या बाजार भेजें। शेष उपज को  उचित स्थान पर भंडारित करें।

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