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रविवार, 20 जनवरी 2013

छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश के कृषि छात्रों के लिए पठनीय एवं संग्रहनीय पुस्तकें उपलब्ध


कृषि स्नातक एवं स्नात्कोंत्तर छात्रों ,  शिक्षकों  , प्रसार अधिकारियो एवं किसानो के लिए नवीन पुस्तकें उपलब्ध

अभी तक मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ की मिट्टी एवं जलवायु के आधार पर यहां के विद्यार्थिओ  के अध्ययन सामग्री नहीं मिल पा रही थी । अन्य प्रदेश के प्राध्यापको  द्वारा लिखित पुस्तके वहां की कृषि जलवायु के अनुरूप हुआ करती  है जिनके अध्ययन और  अध्यापन से प्रदेश की कृषि एवं क्षात्रों को यथोचित लाभ  नहीं हो पा रहा है साथ ही यहां के छात्र मध्य प्रदेश तथा  छत्तीसगढ़ के लिए अनुशंषित विभिन्न फसलो  की उन्नत किस्मों और  आधुनिक कृषि तकनीकी से अनभिज्ञ रह जाते है । यहां की मिट्टी एवं जलवायु के अनुरूप उत्कृष्ट पाठ्यपुस्तको  का लंबे समय से अभाव महसूस किया जा रहा था । इस कमी को पूरा करने के लिए  मैंने   सस्य विज्ञान विषय पर निम्न पुस्तको  की रचना की है जो  कि भारत के सभी राज्य कृषि विश्वविद्यालयों  के छात्र छात्राओ एवं प्राध्यापको  में लोकप्रियता की ओर  अग्रसर है । इन पुस्तको  की रचना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की चतुर्थ अधिष्ठाता समिति द्वारा अनुशंषित पाठ्यक्रम के अनुसार की गई है ।
1. एग्रोनोमी -बेसिक एण्ड एप्लाइड (अग्रेजी में ):लेखक -डाँ गजेन्द्र सिंह तोमर , प्रकाशक-सतीश सीरियल पब्लिकेशन्स हाऊस, नई दिल्ली  । यह पुस्तक बी.एससी.(एजी.) प्रथम वर्ष से चतुर्थ वर्ष तक के छात्रो  तथा एम.एससी.(एग्रोनोम्य ) के छात्रों  लिए उपयोगी  एवं संघ्रनीय है । पुस्तक अग्रेंजी में लिखी गई है । इसमें समान्य कृषि, सस्य विज्ञान परिचय,जल प्रबन्ध, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार नियंतरण , फसल प्रणाली, कटाई उपरात तकनीक के अलावा महत्वपूर्ण परिभाषाएं एवं प्रायोगिक  जानकारी रोचक  ढंग से दी गई है । संपर्क-सतीश सीरियल पब्लिकेशन्स-09810146811
2.फसल विज्ञान भाग-1 (खरीफ फसले): लेखक - डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर , डाँ.शिव प्रताप सिंह तोमर  एवं प्रो जवाहरलाल चौधरी। प्रकाशक-युगबोध  प्रकाशन, रायपुर (छत्तीसगढ़) । कृषि स्नातको  के लिए । संपर्क-युगबोध  प्रकाशन-0771-2533603, 2533572
3.फसल विज्ञान भाग-2 (रबी फसले ). लेखक - डाँ.गजेन्द्र सिंह तोमर , डाँ.सुरेन्द्र सिंह तोमर  एवं दीपक  कुमार चन्द्राकर। प्रकाशक-युगबोध  प्रकाशन, रायपुर (छत्तीसगढ़)।कृषि स्नातको के लिए । संपर्क-युगबोध प्रकाशन-0771-2533603, 2533572
4. साइन्स आफ क्राप  प्रोडक्शन पार्ट-1 (खरीफ क्राप्स):लेखक  डाँ.जी.एस.तोमर , डाँ.एस.के.टांक एवं डाँ.एस.एन खजांजी । प्रकाशक-कुशल पब्लिकेशन्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर, वाराणसी (उ.प्र.) । भा.कृ.अ.परिषद द्वारा स्वीकृत नवीन पाठ्य्रमानुसार तैयार।  अग्रेजी माध्यम से पढने वाले  कृषि स्नातको  के साथ साथ एम.एससी.(एग्रोनोमी  के छात्रों  के लिए विशेष  उपयोगी  । छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की कृषि जलवायु को  विशेष  रूप से ध्यान में रखकर पुस्तक का निर्माण किया गया है । संपर्क- कुशल पब्लिकेशन्स, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) संपर्क श्री मदन कुमार मल्होत्रा -09839040484, 09235405531
5. साइन्स आफ क्राप प्रोडक्शन  पार्ट-2 (रबी क्राप्स).लेखक  डाँ.जी.एस.तोमर , डाँ.एस.पी.एस.तोमर  एवं डाँ.जे.एल. चौधरी  । प्रकाशक-कुशल पब्लिकेशन्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर, वाराणसी (उ.प्र.)। भा.कृ.अ.परिषद द्वारा स्वीकृत नवीन पाठ्य्रमानुसार तैयार।  अग्रेजी माध्यम से पढने वाले  कृषि स्नातको  के साथ साथ एम.एससी.(एग्रोनोमी  के छात्रों  के लिए विशेष  उपयोगी  । छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की कृषि जलवायु को  विशेष  रूप से ध्यान में रखकर पुस्तक का निर्माण किया गया है ।  संपर्क- कुशल पब्लिकेशन्स, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) संपर्क श्री मदन कुमार मल्होत्रा -09839040484, 09235405531
6. आधुनिक फसल उत्पादन (मॉडर्न क्रॉप प्रोडक्शन ): लेखक -डाँ.जी.एस.तोमर , शिल्पा कौशिक  एवं दीपक चन्द्राकर । प्रकाशक-कुशल पब्लिकेशन्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर, वाराणसी (उ.प्र.)। भा.कृ.अ.परिषद द्वारा स्वीकृत नवीन पाठ्य्रमानुसार तैयार। हिन्दीमाध्यम से पढने वाले  कृषि स्नातको  के साथ साथ एम.एससी.(एग्रोनोमी  के छात्रों  के लिए विशेष  उपयोगी  । छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की कृषि जलवायु को  विशेष  रूप से ध्यान में रखकर पुस्तक का निर्माण किया गया है ।  संपर्क- कुशल पब्लिकेशन्स, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) संपर्क श्री मदन कुमार मल्होत्रा -09839040484, 09235405531
नोट  सभी  पुस्तकें सेन्ट्रल बुक हाउस, सदर बाजार, रायपुर एवं शैलू  बुक डिपो , ग्राम जौरा (चौक) , कृषक नगर, रायपुर में उपलब्ध है । इन पुस्तकों को और अधिक उपयोगी बनाने एवं त्रुटियो को सुधारने  हेतु आप सभी  सुधि पाठको से सुझाव सादर  आमंत्रित है, जिससे आगामी संस्करणों को आपकी इछा के अनुरूप प्रस्तुत कर सकूँ। 
  
माननीय डा रमन  सिंह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा आधुनिक फसल उत्पादन पुस्तक का विमोचन। साथ में दृष्टि गोचर हो रहे है डा दीपक, श्री देउजी भाई पटेल, मा विधायक, डा एस के पाटील,  मा कुलपति , डा ओपी कश्यप,डीन एवं डा गजेन्द्र सिंह तोमर  

शनिवार, 19 जनवरी 2013

अपना सामान्य ज्ञान बढाएं !


क्या आप जानते हैं ?


  1. रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें साल में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया।
  2. भारत में किसानों के लिए पहला कृषि युग पंचांग डा गजेन्द्र सिंह तोमर ने बनाया जिसकी विशेषता  यह हे की किसान को तिथि,त्यौहार, राशिफल, शादी-विवाह कुंडली मिलान के साथ-साथ कृषि कार्यों के सुभ मुहूर्त, कब कौन सा कृषि कार्य फलदाई रहेगा, कृषि तकनिकी कार्यो के अलावा कृषि के आधुनिक तकनिकी के विषय में ज्ञानवर्धक जानकारी समावेशित है। यह पंचांग इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) द्वारा  वर्ष 2001 से निरंतर प्रकाशित किया जा रहा है तथा हिंदी भाषी राज्यों के किसानो एवं कृषि प्रसार अधिकारिओ के बीच अत्यंत लोकप्रिय बना हुआ है।
  3. ७ जनवरी भारतीय साहित्य और फिल्म की दुनिया में महत्वपूर्ण दिन है क्यों कि इस दिन लेखिका शोभा डे,   नाटककार विजय तेंदुलकर, अभिनेता जॉनी लीवर तथा अभिनेत्री रीना राय और बिपाशा बासु का जन्मदिन है।
  4. जर्मनी का क्षेत्रफल भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान से थोड़ा अधिक है तथा जनसंख्या तीसरे क्रम के राज्य बिहार के बराबर, पर जर्मनी का सकल घरेलू उत्पाद भारत का तीन गुना है।
  5. एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का  नाम होमियोपैथी के जनक जर्मन चिकित्सक सैम्युएल हैनीमैन ने सुझाया था। जिसे बाद में अमेरिकन मेडिकल एसोसियेशन ने अपनाया।
  6. प्रेमचंद ने अपने लेखन का प्रारंभ उर्दू में नवाबराय नाम से किया, पर बाद में अधिक पाठकों तक पहुँचने के लिए वे हिंदी में प्रेमचंद नाम से लिखने लगे।
  7. नीदरलैंड के लोग दुनिया में सबसे ऊँचे होते हैं। यहाँ पुरुषों की औसत ऊँचाई पाँच फुट साढ़े ग्यारह इंच है, लेकिन दक्षिणी नीदरलैंड में यह औसत एक इंच कम है।
  8. यदि आप ध्वनि की गति से तेज चलने वाले विमान कांकॉर्ड में लंदन से न्यूयॉर्क के लिए चलें तो वहाँ उस समय से भी दो घंटे पहले पहुँच जाएँगे जब आप चले थे।
  9. सापों की कोई 5100 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से 725 के पास विषदंत होते हैं तथा 250  प्रजातियाँ ऐसी हैं जो एक ही दंश में मनुष्यों को मार देने की क्षमता रखती हैं
  10. होली केवल एक पर्व ही नहीं संगीत की एक विधा भी है। लोक संगीत के साथ साथ होली को शास्त्रीय या उप-शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद, धमार, ठुमरी या चैती के रूप में भी गाया जाता है।
  11. विश्व  इतिहास में 21 मार्च 2008 एक ऐसा दिन था जब हिंदुओं की होली, ईसाइयों का गुड फ्राइडे, मुसलमानों का ईद-ए-मीलाद, पारसियों का नौरोज और यहूदियों का पर्व प्यूरिम एक ही दिन मनाए गए।
  12. चंदबरदाई को हिंदी का पहला कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का गौरव प्राप्त है।
  13. दुनिया में चीनी का वार्षिक उत्पादन करीब 13.4 करोड़ टन होता है जब कि नमक का 21 करोड़ टन, यानी चीनी से डेढ़ गुना ज्यादा।
  14. मधुमक्खी के एक छत्ते में 20,000 से 80,000 तक मधुमक्खियाँ हो सकती हैं।
  15. नील नदी की लंबाई पृथ्वी की त्रिज्या से अधिक है। नई खोजों में पता लगा है कि अमेजॉन इससे भी ज्यादा लंबी नदी है।
  16. भारतीय मसालों के लोकप्रिय निर्माता और निर्यातक प्रतिष्ठान एम.डी.एच. का पूरा नाम महाशियाँ दी हट्टी है।
  17. संयुक्त अरब इमारात की जनसंख्या में प्रवासी नागरिकों का प्रतिशत 85 है, जिनमें 40 प्रतिशत लोग भारतीय हैं।
  18. कर्नाटक के हरिहर नगर स्थित हरिहरेश्वर मंदिर की प्रतिमा आधी विष्णु और आधी शिव के रूप में हैं।
  19. सत्रहवीं शती में मुगल सम्राट औरंगजेब के आक्रमण के बाद वृंदावन में कृष्ण की राधा-रमण नामक केवल यह एक प्रतिमा बची थी।
  20. रायपुर स्थित नगर-घड़ी में हर घंटे बजने वाले गजर के लिए छत्तीसगढ़ की 24 लोक-धुनों को संयोजित किया गया है।
  21. मधुमक्खी के कान नहीं होते। इसकी कमी को उसके शक्तिशाली एंटिना स्पर्श से पूरा करते है।
  22. गौरैया एक ऐसा पक्षी है जो पालतू न होने पर भी मनुष्य के आसपास ही रहना पसंद करता है।
  23. राजस्थान में सुंधा माता नामक एक ऐसा पर्वत है जहाँ खंडित मूर्तियों को रखना पवित्र माना जाता है।
  24. बाबर अपने समय की सामान्य रूप से बोली जाने वाली भाषा फारसी में प्रवीण था, पर उसकी मातृभाषा चागताई थी और उसने अपनी आत्मकथा बाबरनामा चागताई में ही लिखी।
  25. याहू डॉट कॉम का नाम पहले जेरीज गॉइड टू वर्ल्ड वाइड वेब  था अप्रैल 1994 में इसे बदल कर याहू डॉट कॉम कर दिया गया।
  26. गुड़हल की दो सौ से अधिक प्रजातियाँ होती है और इसका उपयोग केश-तेल से लेकर चाय तक अनेकों वस्तुओं में होता है।
  27. भारत का सबसे बड़ा हीरा ग्रेट मुगल जब 1650 में गोल कुंडा की खान से निकला तो इसका वजन 787 कैरेट था।
  28. विश्व में पक्षियों की 8650 प्रजातियाँ हैं जिसमें से 1230 भारत में पाई जाती हैं।
  29. मुगल उद्यान, दिल्ली में अकेले गुलाब की ही 250 से अधिक प्रजातियाँ हैं।
  30. पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन इतना प्रसाद बँटता है, प्रसाद  बनाने में  500 रसोइए और 300 सहयोगी रोज काम करते हैं।
  31. मध्य प्रदेश के साँवेर गाँव में स्थित हनुमान जी का मंदिर उलटे हनुमान के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें स्थापित मूर्ति का सिर नीचे और पैर ऊपर हैं।
  32. कालिदास के गीति काव्य ऋतुसंहार के छै सर्गों में उत्तर भारत की छै ऋतुओं का विस्तृत वर्णन किया गया है।
  33. टाटा नैनो विश्व की सबसे सस्ती कार है इसका दाम 1 लाख भारतीय रुपये है।
  34. चंद्रयान चंद्रमा की ओर भेजा जाने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान है।
  35. वीरावल के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के उद्धारकों में कुमारपाल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
  36. 26 नवंबर को मुंबई में आतंक का निशाना बने लियोपोल्ड कैफे का प्रारंभ 1981 में तेल की दूकान के रूप में हुआ था।
  37. पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम कवि गोविन्द शंकर कुरुप को दिया गया था।
  38. बिच्छू की लगभग 2000 जातियाँ होती हैं जो न्यूजीलैंड व अंटार्कटिक छोड़कर विश्व के सभी भागो में पाई जाती हैं।
  39. घर घर में गाई जाने वाली आरती ओम जय जगदीश हरे के रचयिता पं. श्रद्धाराम शर्मा थे।
  40. मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएँ है, उससे लगभग 10 गुना अधिक जीवाणु कोष है।
  41. भारत रत्न नामक सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी।
  42. रामस्वामी वेंकटरमण सबसे लंबी आयु प्राप्त करनेवाले भारतीय राष्ट्रपति थे उनका देहांत ९८ वर्ष का आयु में हुआ।
  43. संगीत में एक विशेष राग वसंत ऋतु के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं।
  44. फिनलैंड में कुल 1,87,888 झीलें हैं जिसके कारण इसे झीलों का देश भी कहते हैं।
  45. बाँस तेजी से बढ़ता है और इसकी कुछ प्रजातियों की बढ़वार साल के कुछ दिनों में 1 मीटर प्रति घंटा  तक पहुँच जाती है।
  46. उच्च घनत्व के कारण मृत सागर में तैराकों का डूबना असंभव है इसी कारण इसमें कोई मछली जीवित नहीं रह सकती।
  47. होली का पर्व राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, प्रह्लाद-होलिका और कंस-पूतना जैसे पौराणिक चरित्रों से जुड़ा हुआ है।
  48. अलकनंदा की पाँच सहायक नदियाँ हैं जो गढ़वाल क्षेत्र में 5 अलग अलग स्थानों पर अलकनंदा से मिलकर पंच प्रयाग बनाती हैं।
  49. भारत की पहली कार्टून पत्रिका शंकर्स वीकली का प्रकाशन कार्टूनिस्ट के शंकर पिल्लई ने 1948 से 1975 तक किया।
  50. जलेबी भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ-साथ लगभग सभी अरब देशों में भी खूब शौक से खाई जाती है।
  51. मई, 1826 में कलकत्ता से साप्ताहिक आवृत्ति में प्रकाशित उदंत मार्तंड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था।
  52. मंगलकारक स्वस्तिक शब्द सु़अस़क से बना है। सु का अर्थ है अच्छा, अस का सत्ता या अस्तित्व और क का  करने वाला।
  53. संजीवनी रामायण काल से भी प्राचीन वनस्पति है जिसका उपयोग आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है।
  54. कंबोडिया स्थित अंकोरवाट मंदिर विश्व का सबसे बड़ा मंदिर है।
  55. रॉकेटों का सामरिक प्रयोग पहली बार चीन ने 1232 में मंगोलों के खिलाफ किया था।
  56. 26 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया दिवस मनाया जाता है जो 1788 में आस्ट्रेलिया के ब्रिटिश उपनिवेश बनने का उत्सव है।
  57. विश्व की सबसे लंबी नदी नील का स्रोत विक्टोरिया झील है।
  58. मिस्र में 138 पिरामिड हैं लेकिन इनमें से गीजा का सिर्फ एक विशालकाय पिरामिड ही विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में है।
  59. भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वैंकैया नामक एक युवक ने सन 1921 में की थी।
  60. भारत में 500 से अधिक वन्य प्राणी अभयारण्य हैं, जिसमें से 28 बाघ संरक्षण के लिए आरक्षित हैं।
  61. हिंदी का सबसे पहला उपन्यास नूतन ब्रह्मचारी 1886 में सुप्रसिद्ध हिंदी गद्यकार  बालकृष्ण भट्ट द्वारा लिखा गया था।
  62. पटना से हाजीपुर गंगा नदी पर बना महात्मा गांधी सेतु दुनिया का सबसे लम्बा एक ही नदी पर बना सड़क पुल है।
  63. कथाकार प्रेमचंद ने एक फिल्म की कहानी भी लिखी थी। यह फिल्म 1934 में मजदूर नाम से बनी थी।
  64. डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिंदी साहित्य में डी. लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय विद्यार्थी थे।
  65. रामायण सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि थाइलैंड में भी पढ़ी जाती है। थाइलैंड में पढ़ी जाने वाली रामायण का नाम ‘रामाकिन’ है।
  66. १५५७ में दीपावली के दिन ही अमृतसर के स्वर्णमंदिर की नींव रखी गई थी और भूमि पूजन हुआ था।
  67. बारह वर्ष के वनवास के बाद पांडव जिस दिन हस्तिनापुर लौटे वह दिन भी कार्तिक की अमावस्या का था।
  68. तमिलनाडु के तंजावुर नगर में स्थित वृहदेश्वर मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जो ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है।
  69. विश्व का सर्वोच्च क्रिकेट मैदान भारत में हिमाचल प्रदेश के चैल शहर में समुद्र की सतह से 2444 मीटर की ऊँचाई पर हैं।
  70. विश्व के सबसे पहले विश्वविद्यालय का निर्माण भारत के नालंदा नगर में ईसा से 700 वर्ष पहले हुआ था।
  71. मानव जाति के सर्व प्रथम चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद को महर्षि चरक ने 2500 वर्ष पूर्व भारत में जन्म दिया था।
  72. आयुर्वेद मानव जाति का पहला चिकित्सा विज्ञान माना जाता है इसका आविष्कार भारत में 2500 वर्ष पूर्व महर्षि चरक ने किया था।
  73. साँप सीढ़ी के खेल का आविष्कार 13वीं शताब्दी में भारत में संत ज्ञानदेव ने किया था और इसका नाम रखा था मोक्षपथ।
  74. संस्कृत साहित्य का अधिकतर साहित्य पद्य में रचा गया है, जब कि अन्य भाषाओं का ज्यादातर साहित्य गद्य में पाया जाता है!
  75. सन 1896 तक एकमात्र भारत ही ऐसा देश था जहाँ से सारे विश्व को हीरों की आपूर्ति की जाती थी।
  76. सन 1843 में सर हेनरी कोल जे.सी. हॉर्सले के निर्देश पर इंग्लैंड में पहली बार क्रिसमस कार्ड छपवाए और बेचे गए थे।
  77. जापान में 1 जनवरी को नववर्ष का स्वागत मंदिर में 108 घंटियाँ बजा कर किया जाता है।
  78. प्राचीन रोमन कैलेंडर में जनवरी और फरवरी के महीने नहीं होते थे। अतः उनका नव वर्ष 1 मार्च को मनाया जाता था।
  79. बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।
  80. 1982 में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख घाटी में सुरु और द्रास नदी के बीच निर्मित बेली ब्रिज विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर बना पुल है।
  81. शल्य चिकित्सा का प्रारंभ 2600 वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। 
  82. भारतीय रेल कर्माचारियों की संख्या के आधार पर विश्व की सबसे बड़ी संस्था है जिसमें दस लाख से भी अधिक लोग काम करते हैं।
  83. भारत विश्व में सबसे अधिक डाकघरों वाला देश है। इतने डाकघर विश्व के किसी भी अन्य देश में नहीं हैं।
  84. वसंत पंचमी के दिन पूजी जाने वाली देवी सरस्वती को विद्या और ललित कलाओं की देवी माना जाता है।
  85. भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवाँ और जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा सबसे बड़ा देश है।
  86. 21 मार्च 2006 को होली, ईद, गुड फ्राइडे और नवरोज,  ये चार धर्मों के चार प्रमुख पर्व एक ही दिन मनाए गए थे।
  87. नौकायन की कला का आविष्कार विश्व में सबसे पहले 6000 वर्ष पूर्व भारत की सिंधु घाटी में हुआ था।
  88. टाइटैनिक फिल्म बनाने में जितना खर्च आया वह 1913 में अटलांटिक महासागर में डूबे जहाज टाइटैनिक के मूल्य से भी अधिक था।
  89. ब्राजील, कोलम्बिया, वैनेजुएला और पेरू में पाई जाने वाली इलेक्ट्रिक ईल (एक प्रकार की मछली)  400-650 वोल्ट तक करेंट पैदा करती है।
  90. भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (598-668) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।
  91. आस्ट्रेलिया में पाए जाने वाला पशु कंगारू और पक्षी एमू केवल आगे की ओर ही चल या दौड़ सकते हैं, पीछे की ओर नहीं।
  92. पेंग्विन के शरीर में खारे पानी को स्वच्छ जल में बदल लेने की अद्भुत क्षमता होती है।
  93. क्विक सिल्वर या पारा ऐसी एकमात्र धातु है, जो तरल अवस्था में रहती है और इतनी भारी होती है कि इस पर लोहा भी तैरता है।
  94. विश्व की सबसे भारी धातु ऑस्मियम है। इसकी 2 फुट लंबी, चोंड़ी व ऊँची सिल्ली का वजन एक हाथी के बराबर होता है।
  95. नाभिकीय भट्टियों में प्रयुक्त गुरु-जल विश्व का सबसे महँगा पानी है। इसके एक लीटर का मूल्य लगभग १३,५०० रुपये होता है।
  96. शरीर पर लगाए जाने वाले सुगंधित पाउडर को टैल्कम पाउडर इसलिए कहते हैं क्योंकि वह ‘टैल्क’ नामक पत्थर से बनाया जाता है।
  97. ‘पाई’ का मूल्य, विश्व में सबसे पहले, छठवीं शताब्दी में, भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा ज्ञात किया गया था।
  98. हमारे देश में जिस तरह आबादी की गणना होती है उसी तरह जल संसाधनों की क्षमता की भी गणना होती है
  99. विश्व में सुरक्षा पर किया जाने वाला कुल खर्च जहाँ 700 अरब अमरीकी डालर से अधिक है वहीं शिक्षा पर 100 अरब डालर से कम।
  100. ईसा से 700 वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय में 10,500 से अधिक विद्यार्थी 60 से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।
  101. भारत के बंगलुरु नगर में 1500 से अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों में 26000 से अधिक कंप्यूटर विशेषज्ञ काम करते हैं।
  102. कमल के फूल को भारत के साथ साथ वियतनाम के राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव भी प्राप्त है।
  103. भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की 30% चाय उगती है जिसमें से 25% यही खप जाती है।
  104. -प्रवासी भारतीय 100 अरब यू. एस. डालर प्रतिवर्ष कमाते हैं जिसमें से 30 अरब बचाकर वे भारत भेज देते हैं।
  105. यूनाटेड किंगडम में 8500  भारतीय भोजनालय हैं। यह इस देश के समस्त भोजनालयों का 15 प्रतिशत है।
  106. आम के उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है। यहाँ प्रति वर्ष 23.1 लाख हैक्टर क्षेत्र में १२.७५ मिट्रिक टन आम की खेती होती है।
  107. भारत में गत पचास वर्षों में सिंचाई कुओं एवं टयूबवेल की संख्या पाँच गुना बढ़कर 195 लाख तक पहुँच चुकी है।
  108. विश्व में सबसे पुरानी पिजा की दुकान इटली के शहर नेपल्स में 1830 में खुली थी जो आजतक अस्तित्व में है।
  109. बनारस विश्व की ऐसी सबसे पुरानी नगरी है जो अपने प्राचीनतम स्थान पर निरंतर आज तक बसी हुई है।
  110. जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वितीय द्वारा 1724 में निर्मित जंतर मंतर विश्व की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।
  111. भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा अवंतिका (वर्तमान उज्जैन) के प्रसिद्ध विद्वान महर्षि संदीपनि के गुरुकुल में हुई थी।
  112. जैसलमेर विश्व का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है जिसमें नगर की लगभग एक चैथाई आबादी ने अपना घर बना लिया है।
  113. भारत, पाकिस्तान, फीजी, मारिशस, सूरीनाम और अरब देशों तक फैली हिंदी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
  114. भारत में पहला यूरोपीय उपनिवेश कोच्चि में पुर्तगालियों ने स्थापित किया, 1530 तक यह भारत में उनकी राजधानी बना रहा।
  115. 1915 में गाँधी जी ने जब भारत में सत्याग्रह आंदोलन का प्रारंभ किया उस समय उनकी आयु 45 वर्ष थी।
  116. विश्व में 22 हजार टन मेंथा (पुदीना) ऑयल का उत्पादन होता है, इसमें से 19 हजार टन तेल अकेले भारत में निकाला जाता है।
  117. 10वीं शती में चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो मंदिर 15वीं शदी  तक वीरान हो चुके थे इन्हें १८वीं शती में फिर से खोजा गया।
  118. हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।
  119. 5000 वर्ष पूर्व जब विश्व में अधितकर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन व्यतीत कर रही थीं भारत में सिंधु-घाटी समृद्धि के शिखर पर थी।
  120. श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।
  121. भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील कश्मीर में (वुलर झील) और खारे पानी की सबसे बड़ी झील चिल्का, उड़ीसा में है।
  122. कोलकाता में 1876 में निर्मित 45 एकड़ भूमि में फैला अलीपुर प्राणि उद्यान भारत का पहला और सबसे बड़ा चिड़ियाघर है।
  123. भारत का सबसे लंबा रेलवे स्टेशन और प्लेटफार्म खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) में स्थित है। इसकी कुल लंबाई 833 मीटर है।
  124. कीनिया की राजधानी नैरोबी में पक्षियों की सर्वाधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, दिल्ली 450 प्रजातियों के साथ दूसरे स्थान पर है।
  125. भारत में पाई जानेवाली 1000 से अधिक आर्किड प्रजातियों में से 600 से भी अधिक केवल अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती हैं।
  126. इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) में धान की 22000 से अधिक प्रजातियां संजोकर रखी गई हे जिनका इस्तेमाल फ्व्ल नई उन्नत किस्मे विकसित करने में किया जा  रहा हेइ।


डा जी एस तोमर को कृषि रत्न पुरुस्कार

हरिभूमि न्यूज. भिलाई

आदर्श नगर दुर्ग जुगनु डेरा में एसएस ट्यूटोरियल द्वारा संचालित प्रदेश की अग्रणी पीएटी संस्था द्वारा अपने सभी सफल विद्यार्थियों के प्रात्साहन के लिए कृषि उत्सव व एक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि डॉ ओपी कश्यप, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय रायपुर ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया।इंदिरा गांधी कृषि विश्व विद्यालय प्राध्यापक संघ के अध्यक्ष डॉ जीएस तोमर ने ओजस्वी शब्दों से विद्यार्थियों में उत्साह का संचार किया। डॉ बीएल तिवारी वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, एसी दास तथा संस्था के डायरेक्टर सुब्रत मजूमदार ने विद्यार्थियों को आगामी परीक्षा में सफल होने की शुभकामनाएं दी। मुख्य अतिथि द्वारा गत वर्ष पीएटी की परीक्षा में उत्कृष्ठ प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया तथा कृषि शोध, कृषि शिक्षा और प्रसार के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए डा जीएस तोमर को कृषि रत्न  की उपाधि से नवाजा गया। संस्था के प्राध्यापक संघ को भी स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। विद्यार्थियों द्वारा स्वागत गीत व सरस्वती वंदना के साथ रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। एसएस ट्यूटोरियल कृषि के विद्यार्थियों को सुंदर भविष्य देने के लिए तथा पीएटी के परीक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को कृषि क्षेत्र में अग्रसर करने वाली प्रदेश की अग्रणी संस्था है। 

मुख्य अतिथि डा ओ पी कश्यप डीन एग्रीकल्चर कॉलेज रायपुर ,डा बी एल तिवारी , सेवनिवर्तप्राध्यापक , डा जी एस तोमर प्राध्यापक सश्यविज्ञान एवं अध्यक्ष शिक्षक संघ तथा सुब्रत मजुमदार संचालक एस एस टुटोरिअल,दुर्ग माँ शरस्वती की अराधना करते हुए। 


समाहरोह के मुख्यातिथि डा ओ पी कश्यप, कृषि शिक्षा के क्षेत्र में अनुकर्णीय योगदान के लिए  डा जी एस तोमर को कृषि रत्न पुरष्कार से  करते हुए।

बुधवार, 16 जनवरी 2013

वैश्विक तपन : खतरे में जीवन


वैश्विक तपन : खतरे में जीवन 

वैश्विक तपन  अर्थात  ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती के सभी जीव जंतु और पेड़ पौधे  प्रभावित हो रहे  है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या। 

क्या है ग्लोबल वार्मिंग? 


 ग्लोबल वार्मिंग अर्थात भूमंडलीय उष्मीकरण धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है जिसके फलस्वरूप् जलवायु में परिवर्तन ह¨ रहा है । हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल  से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश  धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब  है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव। 

क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह ?

ग्लोबल वार्मिंग जैसे हालात पैदा होने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मनुष्य और उसकी अप्राकृतिक  गतिविधियां ही हैं। खुद को धरती का सबसे समझदार प्राणी समझने वाला मनुष्य लगातार हालात बिगाड़ने पर तुला हुआ है। मनुष्य की पर्यावरण विरोधी गतिविधियों के कारण कार्बन डाआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों(ग्रीन हाउस गैस वो होती हैं जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर जाती हैं लेकिन फिर वो यहाँ से वापस श्स्पेसश् में नहीं जातीं और यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं) की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे इन गैसों का आवरण मोटा होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती का तापमान बढ़ रहा है।


कहाँ से होता है ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन
पॉवर स्टेशन से - 21.3 प्रतिशत
इंडस्ट्री से - 16.8 प्रतिशत
यातायात और गाड़ियों से - 14 प्रतिशत
खेती-किसानी के उत्पादों से - 15.4 प्रतिशत
जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल से - 11.3 प्रतिशत
रहवासी क्षेत्रों से - 10.3 प्रतिशत
बॉयोमॉस जलने से - 10 प्रतिशत
कचरा जलाने से - 3.4 प्रतिशत


वाहनों व फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं तथा तेजी से बढ़ते प्रदूषण के कारण कार्बन डायआक्साइड बढ़ रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डाय आक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है। इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स व अग्निशामक यंत्रों में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को धरती पर आने से रोकती है। बताते हैं कि ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें सीधे धरती पर पहुंचकर उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धरती के ध्रुव¨ं पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है।
आज हर देश में बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन के लिए जीवाष्म ईंधन का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा भी ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है। पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लेशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह शुरू भी हो चुकी है। ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू होगा, जिससे धरती का एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। और, हो भी यही रहा है। 

गर्मी बढ़ने की वजह से मलेरिया, डेंगू जैसे कई संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं, जिससे भारी जनहानि हो रही है। यही स्थिति रही तो वह समय भी आ सकता है जब हमें पीने को साफ पानी, ताजा भोजन और सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी नसीब न हो। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे। शहर में रहने वाले सभ्रांत नागरिक भी अब महसूस करते है की ग्लोबल वार्मिंग के कारण  ही आज कौए , नीलकंठ , मोर ,तोता ,मैना आदि कई पछियो की संख्या कम होती जा रही है। इसी तरह अनेको वनस्पतिया भी लुप्तप्रायः हो चुकी है। 

इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव 

वैश्विक तपन  का अर्थ है हमारे वातावरण में बदलाव होना, संतुलन बिगड़ना। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, कृषि का आधुनिकीकरण , उपभोक्ता संस्कृति और प्रकृति  का अनियंत्रित दोहन पर्यावरण को असंतुलित बना रहे हैं। एक आकलन के अनुसार  वैश्विक ताप का सबसे बुरा प्रभाव जल आपूर्ति  पर पड़ेगा। मानसून अर्थात वर्षा, कहीं ज्यादा, कहीं कम प्रभावी होगा जिससे पानी का संकट पैदा होगा। ग्लेशियरों से निकली नदियों, जैसे-गंगा, यमुना, ब्राहृपुत्र आदि खतरे में हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की स्टडी के मुताबिक अगर धरती के तापमान में एक डिग्री का इजाफा होता है तो अफ्रीका में 2030 तक सिविल वार होने का खतरा  55 फीसदी बढ़ जाएगा...सब सहारा इलाके में ही युद्ध भड़कने से तीन लाख नब्बे हजार लोगों को मौत के मुंह में जाना पड़ सकता है...जाहिर है ग्लोबल वार्मिंग ने खतरे की घंटी बजा दी है...बस जरूरत है हमें नींद से जागने की...और अपने आस पास पेड़ पौधा रोपने की , उनके फलने फूलने के लिए आवश्यक उपाय यथा खाद पानी देना तथा जानवरों की चराई से सुरक्षा करना। 

पहले दो विश्व युद्ध इंसान की सनक अर्थात प्रक्रति के साथ बर्बरता परक व्यहार  के चलते ही हुए थे...तीसरे विश्व युद्ध का भी इंसान ही जरिया होगा...और उसने विकास की दौड़ में प्रकृति को ही दांव पर लगाकर विनाश की ओर बढ़ना भी शुरू कर दिया है...जब इंसान का वजूद ही मिट जाएगा तो फिर किसके लिए ये सारा विकास... पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। 64 हजार स्कवायर किलोमीटर में फैले हिमालय के ग्लेशियर अब तबाही की दस्तक दे रहे हैं। हालात यह हैं कि हिमालय के 54 ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघल रहे हैं। हिंद-कुश इलाके में भी तबाही ने दस्तक दे दी है, इससे गंगा-ब्रह्मपुत्र जैसी कई नदियां सूख सकती हैं।
सेंटर ऑफ इंटिग्रेटेड माउंटेन डवलपमेंट के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया है कि हिमालय के ग्लेशियर तेज गति  से पिघल रहे हैं। डरबन में हो रहे क्लाइमेट चेंज समिति  में पेश की गई रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों की मानें तो हमारे खूबसूरत हिमालय का वजूद ही खतरे में है।ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। भारत सरकार के भू विज्ञान विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत के सागरों का जल स्तर हर साल 1.5 मिलीमीटर बढ़ रहा है यानी पिछले 50 साल में ये 75 मिलीमीटर बढ़ चुका है। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश  लोग बेघर हो जाएंगे। 

जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेगा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास  लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे।  इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत  में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा।
भारत की भी हालत तेजी से खराब होती जा रही है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि हवा में नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड जैसी जहरीली गैसें भारत के 80 फीसदी शहरों में खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी हैं, जिनका स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में गोविंदगढ़, गाजियाबाद, खन्ना, लुधियाना, सतना, खुर्जा, आगरा, लखनऊ, फैजाबाद और कानपुर आते हैं। फैक्ट्रियों, कारों से निकलने वाला धुंआ हवा में ऐसी परत बना रहा है जो सूरज के ताप को धरती तक आने तो देती है पर वापस नहीं लौटने देती (जोकि एक सहज प्रक्रिया थी, जिससे गर्मी अपने आप संतुलित हो जाती थी)। ये धरती की ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही है। इस परत में जिस ष्ब्लैक होलष् की चर्चा सुनाई देती है, उसके जरिए सूरज की किरणें अपने अल्ट्रा वायोलट ताप के साथ सीधी पड़ने लगी हैं, जिसे पहले ओजोन परत बाहर ही रोक दिया करती थी। बढ़ती गर्मी ने गंगोत्री ग्लेशियर को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया है। इतना कि लोग व वैज्ञानिक गंगा के अस्तित्व पर ही संकट देख रहे हैं और सवाल पूछ रहे कि क्या 100 साल गंगा रहेगी? ताप बढ़ने के अलावा वहां जाने वाले सैलानियों ने ग्लेशियर के आस-पास टनों कचरा फेंका है। दरअसल, आजकल तीरथ करने श्रद्धालु कम जाते हैं, सैर करने वाले ज्यादा जाते हैं। इसलिए आस्था से उनका लेना-देना कम ही होता है और अपनी मौज मस्ती में गंदगी फैलाकर अपनी नासमझी का परिचय देना ज्यादा भाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इनसानी नासमझी और लापरवाही के कारण धरती का औसत तापमान इधर कुछ वर्षो में 0.6 डिग्री बढ़ गया है। नदियां सूखने का डर पैदा हुआ है और समुद्र का जल स्तर हर साल 1.5 मिलीमीटर बढ़ रहा है जिससे भारत में बंगाल के कुछ इलाके और अन्य समुद्र से नीचे स्तर के क्षेत्रों सहित बंगलादेश में भारी नुकसान के कयास लगाए जा रहे हैं।
भारत की 70 फीसदी आबादी का जीने का आधार भी खेत-खलिहान ही हैं...पिछले 10 साल में जहां समूची दुनिया से 7 फीसदी जंगल का सफाया हो गया वहीं भारत में दुनिया की औसत दर से ज्यादा यानि 9 फीसदी जंगल पूरी तरह साफ हो गया...इसी दौर में 11 फीसदी खेती योग्य जमीन विकास और ऊर्जा की भेंट चढ़ गई... जितने स्पेशल इकोनामी जोन (एसईजेड) बनाने की दरख्वास्त सरकार के पास लगी हुई और उन्हें सब को मंजूरी मिल गई तो खेती की साढ़े चार फीसदी जमीन और कम हो जाएगी...जाहिर है खेती का दायरा इसी तरह सिकुड़ता रहा तो अनाज और दूसरे कृषि उत्पादों की कीमतें आसमान छूने लगेंगी...और जैसे जैसे ये पहुंच से बाहर होती जाएंगी वैसे वैसे अराजकता की स्थिति बढ़ती जाएगी । जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ने पर अनाजों और खासकर गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट कहती है कि तापमान में 1 डि.से. की बढ़ोतरी होने पर इसके उत्पादन में 60 लाख टन तक की कमी आ सकती है, लेकिन कार्बनडाईऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाई जा सकी तो इस नुकसान को रोका जा सकता है। 

ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें? 


आज विश्व मंच पर भी ग्लोबल वार्मिंग सबसे गर्म मुद्दा है...अमेरिका ने ऐलान कर दिया है कि वो 2005 के लेवल को आधार मान कर 2020 तक कार्बन गैसों के उत्सर्जन में 17 फीसदी की कमी कर देगा...चीन भी साफ कर चुका है कि 2020 तक स्वेच्छा से 40 से 50 फीसदी प्रति यूनिट जीडीपी के हिसाब से ग्रीन हाउस गैसों में कटौती करेगा...ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। हमारे देश को भी कार्बन गैसों के उत्सर्जन में यथोचित कमी लाने का द्रण संकल्प लेना होगा तभी हम भावी पीढ़ी को सुखमय जीवन दे सकते है।

जागरूकता ही उपाय रू ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में श्ग्रीनश् बनाना होगा। अपने श्कार्बन फुटप्रिंट्सश् (प्रति व्यक्ति कार्बन उर्त्सजन को मापने का पैमाना) को कम करना होगा। हम अपने आसपास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे इस पृथ्वी को बचाने में उतनी बड़ी भूमिका निभाएँगे।

याद रखें कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। अगर हम ये सोचें कि एक अकेले हमारे सुधरने से क्या हो जाएगा तो इस बात को ध्यान रखें कि हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा। सभी लोग अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को भी परास्त किया जा सकता है। ये एक ऐसा राक्षस है जो जब तक सो रहा है, हम सुरक्षित हैं लेकिन अगर यह जाग गया तो हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा। 

कुछ दिनों पहले अमरीका के पर्यावरणविदों ने बयान दिया था कि वैश्विक ताप के लिए विकसित नहीं विकासशील देश दोषी हैं क्योंकि वे अंधाधुंध विकास के चक्कर में पर्यावरण से छेड़छाड़ कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया के 10 प्रतिशत धनाढ्य देश धरती के 90 प्रतिशत संसाधनों का बेलगाम दोहन कर रहे हैं। पैसे के बल पर वे हर चीज को अपने वश में करना चाहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर पहला हक जताते हैं। धरती का जलवायु संतुलन बिगाड़ने में सबसे बड़ी भूमिका किसी की है तो वह अमरीका, इग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों की, जिनकी संस्कृति है -दोहन करो- मौज करो। ऐसे माहौल में अगर कोई विचार पर्यावरण का संतुलन संभाल सकता है तो वह है भारत में प्राचीन काल से मान्यता है कि जितनी जरूरत बस उतना लेना। इतना ही नहीं, उतना लेकर कल फिर मिले, उसके लिए उतने को पैदा करने की चिंता करना। दोहन की बजाय समायोजन। प्रकृति तो हमारे यहां पूजी जाती है, उसका दोहन कैसे संभव है? पर हां, विदेशी नकल की होड़ में समाज का एक वर्ग इसे दकियानूसी सोच बताकर मनमानी कर रहा है, जिसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ रहा है। हमारी सरकार देश के कई राज्यों में स्पेशल इकनोमिक जोन बना रही है, यह  एक अच्छा कदम हो सकता है लेकिन खेती किसानी योग्य जमीन को उद्यागों के हवाले कर देना समझदारी वाला कदम कतई नहीं हो सकता। में यहाँ कहना चाहूँगा की इस तरह के जोन बंजर गैर कृषि योग्य जमीनों पर ही बनाना चाहिए। इसके अलावा विशेष कृषि क्षेत्र बनाने की महती आवस्यकता है। इससे हमारे अन्नदाता किसानों को  राहत मिलेगी और हमारी कृषि भी समोन्नत होगी। विशेष कृषि क्षेत्र बनाने से हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बना रहेगा और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से हम सब को हमेशा के लिए निजात मिल जाएगी। 
आइए प्रकृति के साथ चले और अपना भविष्य सुरक्षित बनाएँ।

बुधवार, 9 जनवरी 2013

कृषि विज्ञानं में रोजगार और व्यवसाय की व्यापक सम्भानाये


कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की केंद्रबिंदु व भारतीय जीवन की धुरी है । आर्थिक जीवन का आधार, रोजगार  का प्रमुख साधन  तथा विदेशी मुद्रा अर्जन का माध्यम होने  के कारण कृषि को  देश की आधारशिला कहा जाए तो  कोई  अतिशयोक्ति  नहीं ह¨गी । देश की कुल श्रमशक्ति का लगभग 52 प्रतिशत भाग कृषि एवं कृषि संबंधित व्यवस्था  पर  निर्भर  है । अतः यह कहना समीचीन होगा  कि कृषि के विकास, समृद्धि व उत्पादकता पर ही देश का विकास व संपन्नता निर्भर है । स्वन्त्रता  के पश्चात कृषि को  देश की आत्मा के रूप में स्वीकारते हुए एवं खेती को सर्वोच्च  प्राथमिकता प्रदान करते हुए देश के प्रथम प्रधानमंत्री  पंडित  जवाहरलाल नेहरू ने स्पष्ट किया था कि-सब कुछ इंतजार कर सकता है मगर खेती  नहीं । स्वतन्त्रता  के बाद भारतीय कृषि ने विकास के  नित  नए  कीर्तिमान स्थापित किये है और  हम खाद्यान्न उत्पादन के मामले  में आत्म  निर्भर  हुए । विश्वव्यपारीकरण, जलवायु परिवर्तन और  जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण भारतीय कृषि और  किसानो  के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न  हो  रही  है। देश की लगभग 78 प्रतिशत कृषि जोतें 2 हैक्टयर से कम है। अभी भी कृषिगत भूमि का दो तिहाई भाग ‘मानसून का जुआ’ है, केवल एक तिहाई भाग ही सिंचित है। ऐसी स्थिति में सूखा, बाढ़ व ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कहर किसानों पर होता है । भंडारण एवं विपणन की अपर्याप्त एवं दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण भी अधिकांश लघु किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो पाता है, जिसके कारण किसान के लिए परिवार का पेट पालना दुष्कर होता जा रहा है। इसी  प्रकार कृषिगत आगतों की बढ़ती कीमतें, गिरते भू-जल स्तर एवं भूमि की घटती उर्वरता के कारण कृषि ‘घाटे का सौदा’ बन गई है। इसी कारण से खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा है, खेती के प्रति ग्रामीण युवाओ  की उदासीनता बढ़ती जा रही है, जो कि देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे का संकेत है।  अनेक सर्वेक्षण बताते है कि देश के 40 प्रतिशत किसान खेती छोड़कर अन्य वैकल्पिक रोजगार पाना चाहते हैं। हमारे देश में कृषि की उत्पादकता अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है। उदाहरण के तौर पर देश में चावल की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता जापान की अपेक्षा एक तिहाई है, जबकि गेहूँ की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता फ्रांस की तुलना में एक तिहाई है। इसी प्रकार हमारे देश में कृषि क्षेत्र में प्रति श्रमिक उत्पादकता अमेरिका की तुलना में 23 प्रतिशत तथा पश्चिमी जर्मनी की तुलना में मात्र 33 प्रतिशत ही है। यही कारण है कि सकल आय में कृषि का अंश उत्तरोत्तर कम होता जा रहा है। 1950-51 में कृषि का अंश 55.4 प्रतिशत था, जो कि 2009-10 में घटकर लगभग 14.6 प्रतिशत रह गया है।
कृषि में उत्पादकता वृद्धि बहुत हद तक पूंजी निवेश पर निर्भर करती है, सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों से। कुल पूंजी निवेश के अनुपात के रूप में कृषि में सकल पूंजी निवेश में निरंतर गिरावट आई है। अभी हाल ही में इस प्रदेश के लोक प्रिय मुख्यमंत्री  मुझ से कह रहे थ्¨ कि सफल उद्यमी अपने उद्यम में भारी  निवेश करता है जिसका उसे भरपूर फायदा मिलता है परन्तु किसान तो  अपने एक मात्र् व्यवस्याय खेती  किसानी में उचित निवेश करने में आज भी संकोच  करता है, इसलिए उसे खेती  से यथो चित लाभ नहीं होता है । किसान कहता है कि जब पूंजी निवेश ही करना है तो  हम शहर में जाकर कुछ धन्धा नहीं कर लेंगे  । वास्तव में कृषि क्ष्¨त्र् में यथा सही किस्म के बीज, खाद-उर्वरक, यंत्र्, सिंचाई, पौध  संरक्षण में पर्याप्त पूंजी निवेश करने पर कृषि घाटे का सौदा  हो  ही नहीं सकती है । जब तक कृषि को  हम एक व्यवसाय के रूप में नहीं अपनाएंगे तब तक  यह मात्र् जीवन निर्वाह का साधन बन कर रह जाएगी । मेरा स्पष्ट मानना है कि कृषि क्ष्¨त्र् में आवश्यकतानुसार पूंजी निवेश करते हुए वैज्ञानिक ढंग से ख्¨ती किसानी की जाए त¨ अल्प अवधि में ही 1 रूपया खरचने के एवज में चार रूपये की आमदनी आसानी से प्राप्त की जा सकती है । किसी भी  उद्यम में आय अर्जन के इतने सुनहरे अवसर नही है । ग्रामीण क्ष्¨त्र्¨ में खेती  किसानी के अलावा कृषि आधारित तमाम उद्यम प्रारंभ किये जा सकते है । इसके लिए भारत सरकार तथा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बहुत सी महत्वाकांश्री य¨जनाए संचालित है । ग्रामीण युवाओ  को रोजगार प्रदान करने के लिए उद्यमिता प्रशिक्षण भी दिये जा रहे है तथा उद्यम स्थापित करने के लिए बैंको  से आसानी में कम ब्याज दर पर ऋण सुविधा भी उपलब्ध है । कृषि विज्ञानं  में रोजगार एवं उद्यमिता की व्यापक संभावनाएं है जैसे-
1. बागवानी और संबद्ध क्षेत्र
बागवानी में रोजगार के अपार अवसर विशेषकर बेरोजगार युवाओं और महिलाओं के लिए सृजन की क्षमता है। बहुत सी वस्तुओं के उत्पादन में भारत नेतृत्व करते आ रहा है जैसे आम, केला,  नींबू, नारियल, काजू, अदरक, हल्दी और काली मिर्च। वर्तमान में यह विश्व में फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।भारत का सब्जी उत्पादन चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और फूलगोभी, के उत्पादन में पहला स्थान है प्याज में दूसरा और बंदगोभी में तीसरा स्थान है।  इसके अतिरिक्त यह मसालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता, उत्पादक और निर्यातक है।  छत्तीसगढ़ में सब्जियो  व मसाले  दार फसलो  जैसे आलू, कांदा, भिण्डी, टमाटर, बैगन, मिर्ची, हल्दी, धनियां अदरक, लहसुन, मैथी आदि की ख्¨ती की अपार संभावनाए है। इनकी ख्¨ती आर्थिक रूप से लाभदायक भी है । टमाटर, आलू तथा मसाल्¨दार फसलो  के प्रसंस्करण एवं विपणन के क्ष्¨त्र्ा में उद्यम स्थापित किये जा सकते है ।  छत्तीसगढ़ में उगाए जाने वाले प्रमुख फल आम, केला,  अमरुद, बेर, पपीता, शरीफा आदि हैं।  हमारे किसान घर की बाड़ी में इन्हे परंपरागत रूप से लगाते भी है । योजनाबद्ध तरीके से इनकी ख्¨ती से अतिर्क्ति आय अर्जित की जा सकती है ।  सहजन की ख्¨ती भी लाभदायक है । फल, फूल एवं सब्जी की ख्¨ती क¨ बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार देश में हार्टीकल्चर मिशन चला रही है । इसके तहत किसानो को ¨ आर्थिक मदद दी जा रही है ।
2. पुष्प कृषि
वाणिज्यिक पुष्प कृषि हाल में ही शुरू हुई है, यद्यपि पुष्पों की पारंपरिक खेती सदियों से हो रही है। अब पारंपरिक फूलों की अपेक्षा, निर्यात की उद्देश्य से, कटे फूलों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है।  भारत में सदियों से फूल कृषि की जा रही है किन्तु  वर्तमान में फूल कृषि एक व्यवसाय  के रूप में की जाने लगी है । समकालिक कटे फूलों जैसे गुलाब, ग्लेडियोलस, टयूबरोस, कार्नेशन इत्यादि का वर्धित उत्पादन पुष्प गुच्छ तथा साथ ही घर तथा कार्यस्थल के अलंकरण हेतु इनकी मांग में निरंतर वृद्धि ह¨ रही है। चीन के पश्चात भारत फूलों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। गांव¨ं में र¨जगार सृजन के लिए पुषपीय प©ध¨ं की ख्¨ती  एर महत्वपूर्ण उद्यम बन सकता है ।
3. औषधीय एवं सुगंधित पादप ख्¨ती एवं प्रसंस्करण
भारत को मूल्यवान औषधीय और सुरभित पादप जातियों का भंडार माना जाता हैं। भारत में 15 कृषि-जलवायवी क्षेत्र हैं, 47000 भिन्न-भिन्न पादप जातियां हैं और 15000 औषधीय पौधे हैं। लगभग 2000 देशज पादप जातियों में रोगनाशक गुण हैं और 1300 जातियों अपनी सुगंध तथा सुवास के लिए प्रसिद्ध हैं। चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों, अर्थात. आयुर्वेद, यूनानी तथा सिद्ध औषधियों की देश में बहुत मांग हैं। बहुमूल्य दवाइयां बनाने में प्रयुक्त 80 प्रतिशत कच्ची सामग्री  अ©षधीय प©ध¨ं से प्राप्त ह¨ती  हैं। हमारे प्रदेश में उगाये जाने वाल्¨ अ©षधिय प©ध¨ं में आमला, चिराता, कालमेघ, सफेद मूसली, दारूहल्दी, सर्पगंधा, अश्वगंधा, गिलोय, सेन्ना, अतीस, गुडमार कुटकी, शतावरी, बेल गुग्गल, तुलसी, ईसबगोल, मुलेठी, वैविडंग, ब्राह्मी, जटामांसी, पथरचूर कोलियस, कलीहारी, आदि है जिनके कृषिकरण, प्रसंसकरण एवं विपणन में ग्रामीण युवाअ¨ं के लिए र¨जगार के पर्याप्त अवसर विद्यमान है । सगंध फसल¨ं में पामार¨शा, नींबू घास, सिट्र¨नेला, मेंथा आदि का उद्य¨ग जगत में भारी मांग है ।
4. पशु पालन और डेयरी
पशु पालन और डेयरी विकास क्षेत्र भारत के सामाजिक आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। पशुपालन सदैव से ही मानव संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है । सुरक्षा के लिए, श©क के लिए, परिवहन के लिए, आजीविका के लिए तथा अपनी पोषण जरूरतो की पूर्ति सहित अनेक अन्य कार्यो  के लिए हम अपने इन वफादार सहचरो  पर आज भी आश्रित है । विश्व के अनेक देशो  की भांति हमारे यहां भी गोवंशीय पशु पालन, बकरी पालन, भेड़ पालन, कुक्कुट पालन, अश्व पालन, ऊंट पालन, बतख पालन, खरग¨श पालन आदि छ¨टी-बड़ी आय अर्जक गतिविधियो  के रूप में प्रचलित है । आपक¨ यह जानकर प्रशन्नता ह¨गी कि विश्व में उपलब्ध कुल पशु संख्या का 1 बटे 6 एवं एवं कुल भैसो  की संख्या का आधा भाग भारत में ही है । दुग्ध उत्पादन के क्ष्¨त्र्ा में भारत का य¨गदान निर्विवादित रूप से सर्वश्रेष्ठ है । हमारे देश में सालाना 820 लाख टन से भी अधिक दुग्ध उत्पादित हो ता है जो  विश्व स्तर पर मात्रा  की दृष्टि से सर्वाधिक है । इसके अलावा सहकारी, निजी एवं सार्वजनिक निगमों  में 275 से अधिक संयन्त्रो , लगभग 83 दुग्ध उत्पाद कारखानो  एवं असंख्य लघु स्तर के दुग्ध उत्पादको  के योग गदान से हमारे देश का दुग्ध उद्योग  विश्व पटल पर तेजी से उदीयमान हो  रहा है । हमारे प्रदेश में पशुपालन की असीम संभावनाएं है ।यद्यप  किसानो  द्वारा पाली जा रही गाय व भैस की नश्लो  की उत्पादन क्षमता बहुत कम है । नस्ल सुधार तथा उत्तम नस्ल की गाय-भैस पालने से ग्रामीण अंचल की अर्थव्यवस्था को  काफी हद तक सुधारने की संभावना है । दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसके लिए विक्रय एवं बाजार की स्थितियां काफी अनुकूल है । इस  उद्योग  को  बढ़ावा देने से ग्रामीण नोजवानो  एवं महिलाओ  को  वर्ष भर रो जगार प्राप्त हो गा साथ ही पशुओ  से प्राप्त गोबर बहुमूल्य जैविक खाद के रूप में प्रयोग करने से हमारे खेतो  की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी जिससे  फसल उत्पादन में भी सतत बढोत्तरी होगी ।  पशुपालन में दाना-खली का महत्वपूर्ण योगदान रहता  है । इनके निर्माण की इकाइयाँ स्थापित की जा सकती है । लाखों लोगों के लिए सस्ता पोषक आहार उपलब्ध कराने के अतिरिक्त, यह ग्रामीण क्षेत्र में लाभकारी रोजगार पैदा करने में मदद करता है, विशेष रूप से भूमिहीन मजदूरों, छोटे तथा सीमांत किसानों तथा महिलाओं के लिए और इस प्रकार उनके परिवार की आय बढ़ाता है। सूखा, अकाल तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसी प्रकृतिकी विभीषिकाओं के प्रति पशुधन सर्वोत्तम बीमा हैं। भारत के पास पशुधन तथा कुक्कुट के विशाल संसाधन हैं जो ग्रामीण लोगों की सामाजिक आर्थिक दशाएं सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसार में भैंसों के संदर्भ में भारत का पहला स्थान है, पशुओं तथा बकरियों में दूसरा, भेड़ों में तीसरा, बत्तखों में चैथा, मुर्गियों में पांचवां और ऊंटों की संख्या में छटा। पशुपालन क्षेत्र स्व-रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध कराता हैं।
पशुधन क्षेत्र न केवल दूध, अंडों, मांस आदि के रूप में आवश्यक प्रोटीन तथा पोषक मानव आहार उपलब्ध कराता है बल्कि अखाद्य कृषि उपोत्पादों के उपयोग में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। पशुधन कच्ची सामग्री के उपोत्पाद उपलब्ध कराता है यथा खाल तथा चमड़ा, रक्त, अस्थि, वसा आदि।
5. मत्स्य पालन
भारत संसार में मत्स्य का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है और स्वच्छ जल के मत्स्य का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक।  अपनी लंबी तट रेखा, विशाल जलाशयों आदि के कारण भारत के पास अंतर्देशीय तथा समुद्री दोनों संसाधनों से मत्स्य के लिए व्यापक संभावनाएं हैं। यह संसार में मत्स्य का चैथा सबसे बड़ा उत्पादक है। यह अंतर्देशीय मत्स्य का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक भी है।  छत्तीसगढ़ राज्य के पास मत्स्य कृषि के लिए नदी, जलाशयों, पोखरों तथा तालाबों के रूप में व्यापक और विविध प्राकृतिक जल क्षेत्र उपलब्ध है। मत्स्य कृषि के लिए लगभग 1.58 लाख हेक्टर औसत जल क्षेत्र उपलब्ध है। राज्य में दो प्रमुख नदी तंत्र हैं, अर्थात् महानदी तथा गोदावरी और उनकी सहायक नदियां जो 3573 कि.मी. का नेटवर्क बनाती हैं। लगभग 90 प्रतिशत जल क्षेत्र मत्स्य कृषि के अंतर्गत लाया जा चुका है। मत्स्य क्षेत्र को एक शाक्तिशाली आय एवं रोजगार जनक माना जाता है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सस्ते तथा पोषक आहार का स्रोत हैं। राज्य में 1.50 लाख से अधिक मछुआरे अपनी आजीविका के लिए मात्स्यिकी और जलकृषि पर निर्भर करते हैं। राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में मत्स्य क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मूलतः मछुआरों के सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर और पिछड़े समुदायों की जरूरत पूरी करता हैं।
6. खाद्य प्रसंस्करण उद्ययोग 
खाद्य प्रसंस्करण का  एक विशाल छेत्र  है जिसमें कृषि उत्पादो , बागवानी उत्पादो , वानिकी उत्पादो , डेयरी, पो ल्ट्री, मछली आदि जैसे अनेक प्रकार के कच्चे माल का उपयोग  किया जा सकता है । इसे विडंम्बना ही कहा जा सकता है कि वर्तमान में हमारे देश में उत्पादित ह¨ने वाल्¨ फसल¨ं एवं सब्जिय¨ं का मात्र्ा 2 प्रतिशत ही प्रक्रियाकृत ह¨ता है जबकि थाइल्©ंड में यह 30 प्रतिशत, ब्राजील में 70 प्रतिशत, फिलीपीन्स में 78 प्रतिशत तथा मल्¨शिया में 80 प्रतिशत है । इसी प्रकार खाद्य प्रसंस्करण के क्ष्¨त्र्ा में हमारे यहां मूल्य संवर्धन की मात्र्ाा मात्र्ा 7 प्रतिशत है । इस समस्या से निबटने के लिए भारत सरकार द्वारा उल्ल्¨खनीय प्रयास किये है । भारत में 4.5 कर¨ड़ टन फल अ©र 6.8 कर¨ड़ टन सब्जियां पैदा ह¨ती है । पर्याप्त मूल्य संवर्धन न ह¨ने अ©र परिरक्षण सुविधाअ¨ं के अभाव में 32-40 प्रतिशत फल अ©र सब्जियां बाजार में पहुंचाने से पहल्¨ ही सड़-गल कर खराब ह¨ जाती है । ग्रामीण महिलाअ¨ं क¨ प्रशिक्षित कर अचार, मुरब्बा, चटनी, जैम, जैली, शरबत आदि विभिन्न उत्पाद¨ं के निर्माण एवं विपड़न से ज¨ड़कर उन्हे स्वर¨जगार प्रदान किया जा सकता है । यदि हम इस क्ष्¨त्र्ा क¨ विकसित कर ल्¨ं त¨ निश्चित ही 47 लाख ल¨ग¨ं क¨ प्रत्यक्ष तथा 3 कर¨ड़ ल¨ग¨ं क¨ अप्रत्यक्ष र¨जगार प्राप्त ह¨ सकता है । खाद्य प्रसंस्करण के क्ष्¨त्र्ा में मूल्य संवर्धन की भी व्यापक संभावनाएं है तथा अपनी पृष्ठभूमि, क्षमता तथा अन्य साधन¨ं क¨ देखते हुए ग्रामीण युवा इस क्ष्¨त्र्ा में किसी भी स्तर से अपनी जीविका प्रारंभ कर सकते है । यह एक ऐसा क्ष्¨त्र्ा है जिसमें असंख्य कार्य किये जा सकते है ज¨ बिना किसी विश्¨ष निवेश के घर में ही आरंभ किए जा सकते है । व्यक्तिगत या स्वंय सहायता समूह बनाकर विभिन्न उत्पाद यथा, मसाला-धनिया, हल्दी, मिर्च, पापड़., बड़ी, अचार, मुरब्बा आदि बनाकर इनकी म¨र्केटिंग कर अच्छा खाशा मुनाफा अर्जित कर सकते है ।
7. रेशम एवं मधुमक्खी पालन
रेशम, जो अद्वितीय शान वाला एक प्राकृतिक रूप से उत्पादित रेशा है । छत्तीसगढ़ में टस्सर रेशम व सहतूत रेशम का उत्पादन करने की अच्छी संभावनाएं है। टस्सर रेशम का प्रयोग मुख्यतः फर्निशिंग्स तथा इंटीरियर के लिए किया जाता है। यह लगभग 6 मिलियन लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है जिनमें से अधिकांश लघु तथा सीमांत  किसान अथवा अति लघु तथा घरेलू उद्योग हैं जो मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। रेशम उद्योग  में निम्न  निवेश से अधिक आमदनी प्राप्त ह¨ती है । पूरे वर्ष परिवार के सभी सदस्यो  को  रो जगार प्राप्त होता है। वस्तुतः यह महिलाओं का व्यवसाय है तथा महिलाओं के लिए है क्योंकि महिलाएं कार्यबल के 60 प्रतिशत से अधिक का निर्माण करती है। तथा 80 प्रतिशत रेशम की खपत महिलाएं करती हैं। रेशम-उद्योग में शामिल कार्य जैसे पत्तों की कटाई, सिल्कवॉर्म का पालन, रेशम के धागे की स्पिनिंग अथवा रीलिंग तथा बुनाई का कार्य महिलाएं करती है। यह एक उच्च आय सृजन उद्योग है जिसे देश के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है ।
हमारे प्रदेश में मधुमक्खी पालन की भी अपार संभावनाएं है । प्राकृतिक रूप से भी हमारे वन¨ं में भी मधुमक्खियो  द्वारा उत्पादित शहद का संकलन एवं प्रसंस्करण किया जाता है ।

8. कृषि चिकित्सालय एवं कृषि व्यवसाय केन्द्र योजना 
बेर¨जगार कृषि स्नातक¨ं क¨ कृषि क्ष्¨त्र्ा में उद्यम प्रारंभ करने के लिए भारत सरकार की यह महत्वाकांक्षी य¨जना है । कृषि क्लीनिक - कृषि क्लीनिक की परिकल्पना किसानों को खेती, फसलों के प्रकार, तकनीकी प्रसार, कीड़ों और बीमारियों से फसलों की सुरक्षा, बाजार की स्थिति, बाजार में फसलों की कीमत और पशुओं के स्वास्थ्य संबंधी विषयों पर विशेषज्ञ सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गयी है, जिससे फसलों या पशुओं की उत्पादकता बढ़ सके। कृषि व्यापार केंद्र- कृषि व्यापार केंद्र की परिकल्पना आवश्यक सामग्री की आपूर्ति, किराये पर कृषिउपकरणों और अन्य सेवाओं की आपूर्ति के लिए की गयी है।
इनके अलावा प्रदेश के ग्रामीण क्ष्¨त्र्ा¨ं में मशरूम की ख्¨ती, खरग¨श पालन,बटेर पालन, बत्तख पालन के अलावा कृषि उपकरण निर्माण एवं मरम्मत के क्ष्¨त्र्ा में भी उद्यम स्थापित करने की भी अपार संभावनाएं है ।