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बुधवार, 23 जनवरी 2013

श्री चन्द्रशेखर साहू जी, माननीय मंत्री कृषि, पशुधन विकास, मत्स्य पालन एवं श्रम विभाग, छत्तीसगढ़ शासन का इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के पष्ठम् दीक्षांत समारोह के अवसर पर उदबोधन


इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के पष्ठम् दीक्षांत समारोह के अवसर पर 
श्री चन्द्रशेखर साहू जी, माननीय मंत्री
कृषि, पशुधन विकास, मत्स्य पालन एवं श्रम विभाग, 
छत्तीसगढ़ शासन का उदबोधन 



इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के पष्ठम् दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि, हम सब के मार्गदर्शक एवं प्रेरणा स्त्रोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी, अध्यक्ष की आसंदी पर विराजमान आदरणीय राज्यपाल छत्तीसगढ़ एवं कुलाधिपति, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय माननीय श्री शेखर दत्त जी, कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि माननीय पदमश्री डा. अनिल के. गुप्ता, कार्यपालिक उपाध्यक्ष, नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन, इस विश्वविद्यालय के सम्माननीय कुलपति डा. एस.के. पाटील जी, प्रबंध मंडल तथा विद्या परिषद् के सम्माननीय सदस्यगण, अधिष्ठाता, निदेशक, प्राध्यापक, वैज्ञानिकगण, उपाधि एवं स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले प्रिय छात्र-छात्राओं, आमंत्रित अतिथि गण, प्रेस एवं मीडिया के पधारे प्रतिनिधियों, देवियों एवं सज्जनों।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का आज 27वा स्थापना दिवस है। इस अवसर पर यह पावन समारोह आयोजित हो रहा है जिसमें मैं आप सब के बीच उपस्थित होकर गौरवान्वित हूँ ! मैं आप सब को बधाई देता हूँ, विशेषकर उन छात्र-छात्राओं को जिनकी लगन और कड़ी मेहनत आज पुरस्कृत होने जा रही है। साथ ही मैं संकाय के सभी प्राध्यापकों, वैज्ञानिको और कुलपति जी को भी शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ, जिनके मार्गदर्शन मे विद्यार्थियों ने प्रवीणता हासिल की है। बीते हुये 26 वर्षों के कार्य-कलापों का विश्लेषण कर अतीत की उपलब्धियों तथा उनकी कमियों पर गौर करना चाहिए। इस प्रयत्न में राज्य को कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट बनाना ही लक्ष्य होना चाहिए।
मैंने जो देखा है और सुना है कि विगत् 26 वर्षों में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने अनेक उपलब्धियाँ अर्जित की है। कृषि शिक्षा के क्षेत्र में हमने काफी तरक्की की है। साथ ही शोध, तकनीकी उन्नयन और प्रसार के क्षेत्र में भी हमारे योगदान को सराहना मिल रही है। छत्तीसगढ़ की विभिन्न फसलों जैसे धान, गेहँू, चना, तिवड़ा, सरसों, अलसी, सोयाबीन, सब्जी, फल आदि  की 50 से अधिक उन्नत किस्में विकसित की गई है। इनमें से 13 किस्में तो वर्ष 2010 में ही विकसित हुई है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय द्वारा डिजाईन एवं निर्मित किये गये विभिन्न प्रकार के 40 कृषि यंत्र आज प्रदेश के सभी क्षेत्रों में सीधे किसानों तक अनुदान पर पहुंचाये जा रहे हैं। अभी तक 5 करोड़ 24 लाख रूपये मूल्य के 1 लाख 11 हजार कृषि यंत्र/मशीनों का उत्पादन कर किसानों तक पहुंचाया गया है। कृषि यंत्रीकरण की बढ़ती हुई उपयोगिता एवं माँग को देखते हुये वर्ष 2012-13 में 50 नये कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किये जायेगें। इस हेतु 10 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं कृषि विभाग इन उपलब्धियों के लिये बधाई के पात्र है। इससे प्रदेश में कृषि के मशीनीकरण को बढ़ावा मिलेगा तथा मजदूरों की समस्या से कुछ हद तक छुटकारा भी मिलेगा। मेरे विचार से हाई-टेक मशीनरी का उपयोग करके कम समय में कृषि कार्य सम्पन्न कर दूसरी फसल लेने के बारे में आशावान हुआ जा सकता है। शासन भी किसानों को नाम मात्र के किराये पर इन मशीनों को उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहा है। इससे कृषि मजदूरों की कमी की समस्या पर अंकुश लगेगा। इसके अलावा, जल एवं मृदा संरक्षण, समन्वित कीट-रोग प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, फसल प्रणाली विकास, वानिकी विकास, पशु पालन, डेयरी प्रौद्योगिकी एवं उन्नत कृषि यंत्रों के विकास में विश्वविद्यालय ने विशेष प्रगति की है। सीमित संसाधनों के बावजूद यहां के वैज्ञानिकों व छात्र-छात्राओं ने अपने ज्ञान और कौशल का परिचय देते हुए राज्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मैं पुनः आप सभी को बधाई व धन्यवाद देता हूँ तथा आशा करता हॅू कि आने वाले दिनों में और अधिक उत्साह के साथ एकजुट होकर प्रदेश की खेती किसानी को उच्च शिखर पर पहुंचाने का सार्थक प्रयास जारी रखेंगे।
खेत में किसान, सीमा में जवान। जब तक सीमा में जवान सजग है, तक तक देश और देश की सीमा सुरक्षित है। इसी प्रकार जब तक खलिहान में किसान है, संसार के प्राणी मात्र का उदर-पोषण होता रहेगा। अन्नदाता का स्थान हर युग में देवतुल्य वर्णित है, परन्तु व्यवस्था में किसान की स्थिति उतनी ही दयनीय है। इस अन्तर को पाटने की जिम्मेदारी हम सब की है। पूरा विश्व आज आर्थिक मंदी की चपेट में है, परन्तु भारत में इसका प्रभाव नगण्य है। इसका कारण खेती है। खेती से आर्थिक, सामाजिक, रोजगार, खाद्यान्न, स्वास्थ्य संबंधित सभी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित हैं। किसानों को जब सुविधा और सम्मान मिलेगा तभी खेती-किसानी के प्रति युवा वर्ग आकर्षित होगा और तभी जय जवान, जय किसान का नारा सार्थक होगा।
महात्मा गाँधी कहा करते थे कि भारत सात लाख गाँवों में बसा है। भारत कृषि-प्रधान देश है। कृषि-संस्कृति उसकी मूल संस्कृति है। सरदार पटेल ने कृषि को ही देश की संस्कृति माना था। इस कृषि संस्कृति पर हमारे पूर्वजों को भी गर्व था। जवाहर लाल नेहरू जी ने भी कहा था कि दूसरी चीजें प्रतीक्षा कर सकती है लेकिन कृषि नहीं।
भगवान श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलदाऊ हलधर कहलाते थे। हलधर का अर्थ है कृषक। हल बलदाऊ का आयुध था। हल, कृषि-संस्कृति का प्रतीक है। भगवान श्री गोपाल कहलाते थे। गोपालन और कृषि का वही संबंध है जो भगवान श्री कृष्ण और बलदाऊ का। तात्पर्य यह कि हमारे देश में प्राचीन काल से कृषि तथा गौ पालन का सर्वोपरि महत्व था। ये हमारे अर्थतंत्र के केन्द्र थे। हमारे देश में कृषि विज्ञान वैदिक काल के समकक्ष प्राचीन है। पाराशर स्मृति में कृषि कर्म को मनुष्य मात्र का प्रधान कर्म कहा गया है। ़ऋषि पाराशर कृषि संस्कृति के सबसे बड़े सम्पोषक और प्रचारक थे।
ऐसे ही कृषि प्रधान देश भारत के आग्नेय कोण में स्थित है हमारा राज्य छत्तीसगढ़। प्राचीन काल में इसका नाम था कौशल। बाद में इसे दक्षिण कौशल या महाकौशल नाम से सम्बोधित किया जाता रहा। अब यह छत्तीसगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ धान के प्रचुर उत्पादन के कारण धान के कटोरा के नाम से भी सुविख्यात है। कृषि वैज्ञानिक डाॅ. रिछारिया जी के अनुसार विश्व में धान की साढ़े बीस हजार प्रजातियाँ पायी जाती है उनमें से दस हजार प्रजातियाँ छत्तीसगढ़ में पायी जाता है। आज हमें गर्व है कि विश्वविद्यालय में अब तक 23,070 से अधिक जननद्रव्य सुरक्षित है, जो हमारी धरोहर है। इसका संरक्षण किया जाना चाहिए।
कृषि और किसानों का लक्ष्य अब मात्र भरपूर अन्न उत्पादन ही नहीं, अपितु कृषि का विविधीकरण  व्यवसायिक लाभ कमाना होना चाहिए। अतएव मेरा मानना है कि खेती किसानी के लिए नई-नई और उन्नत तकनीकों को खेत खलिहान तक पहुंचाने से ही किसानों की आर्थिक दशा में सुधार होगा। फसलों की कम लागत में ज्यादा उत्पादन देने वाली, सूखा रोधी और कीट-व्याधी प्रतिरोधक किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है। कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली किस्में तथा पद्धतियाँ विकसित की जानी चाहिए। परम्परागत रोपा पद्धति की तुलना में श्री विधि या मेडागास्कर पद्धति से धान उत्पादन औसतन 30 प्रतिशत अधिक दर्ज किया गया है। इस विधि के क्षेत्र विस्तार हेतु आगामी खरीफ मौसम मे 20 हजार हेक्टेयर में वृहद प्रदर्शन आयोजित किया जावेगा। जिसके लिये 7 करोड़ रूपये का प्रावधान है। प्रदेश में शुष्क खेती की आधुनिक तकनीक अपनाते हुये किसानों को खरीफ के साथ-साथ रबी फसल लेने के लिये प्रोत्साहित किया जावेगा। इस हेतु 40 हजार हेक्टेयर में प्रदर्शन लिया जावेगा। इसी तरह उद्यानिकी विकास के लिये नदी के कछार एवं तटों पर सब्जी उत्पादक किसानों के प्रोत्साहन हेतु प्रदर्शन आयोजित किये जावेंगे। अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्र में कृषकों की बाड़ी में सब्जी की खेती हेतु टपक सिंचाई योजना के अंतर्गत लागत का 75 प्रतिशत अनुदान दिया जावेगा। राष्ट्रीय बीमा योजनांतर्गत देय प्रीमियम बाबत् देय भार को कम करने के लिये राज्य सरकार के अंशदान को 5 प्रतिशत बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया जावेगा। इससे प्रदेश के 24 लाख लघु एवं सीमांत किसानों को फायदा होगा। वर्तमान में प्रदेश में 7 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला संचालित हैं, इस वर्ष 4 नवीन प्रयोगशालाए स्थापित की जावेगी। आगामी खरीफ मौसम में कृषकों को अनुदान पर हरी खाद के बीज उपलब्ध कराये जावेंगे, जिसके लिये 4.25 करोड़ रूपये का प्रावधान है। उन्नत ज्ञान के साथ-साथ परम्परागत ज्ञान भी लाभप्रद है। उदाहरण के तौर पर मैं यह बताना चाहता हूँ  कि बागबहरा तथा गरियाबंद में कमार जनजाति द्वारा बम्बू चैक डेम से बहती जल सरिता को मोड़कर धान में सिंचाई की जाती है। अब प्रदेश में तीन शक्कर कारखाने स्थापित हो चुके है, परन्तु गन्ने का क्षेत्र और उत्पादन बढ़ाने की दिशा में हमारे प्रयास नगण्य है। गन्ना फसल पर गहन शोध तथा क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप किस्में विकसित करने की आवश्यकता है। इस हेतु हमारे राज्य में एक राष्ट्रीय गन्ना अनुसंधान केन्द्र स्थापित करने की आवश्यकता है। इससे किसानों को गन्ने की उन्नत तकनीकी और सुधरे बीज उपलब्ध हो सकेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से राज्य में बायोटिक स्ट्रेस प्रबंधन का राष्ट्रीय संस्थान बरोंडा में स्थापित हो रहा है। 
दो वर्ष पूर्व मैंने किसानों के साथ पीपली लाईव फिल्म देखी थी जो किसानों की आधारभूत समस्याओं में से एक ऋण ग्रस्तता के जमीनी सच को उजागर करती है। अब छत्तीसगढ़ में तो ऐसी स्थिति नहीं है फिर भी इस फिल्म से छात्रों, कृषि वैज्ञानिकों, प्रसार अमले और किसानों को विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ निश्चय के साथ संघर्ष करने की प्रेरणा लेनी चाहिए। इस फिल्म से केन्द्र सरकार सहित उन राज्यों की सरकारों को भी सबक लेना चाहिए, जहां किसानों की आत्महत्याओं के अधिक मामले सामने आए। मेरे प्रेरणास्त्रोत और राज्य के ऊर्जावान मुख्यमंत्री डा. रामन सिंह के कुशल नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए खेती किसानी के लिए सबसे पहले 3 प्रतिशत में किफायती ब्याज पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने की योजना शुरू की थी, वर्तमान में यह ब्याज दर घटाकर 1 प्रतिशत हो गई है। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी पर बोनस से लेकर सरकार ने उन्नत बीजों की व्यवस्था के साथ-साथ सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने, नलकूप खोदने, तालाब बनाने से लेकर नदी कछार क्षेत्रों में उथले ट्यूबवेल बनाने जैसी योजनाएँ संचालित की है। सरकार ने खेतीहर महिला मजदूरों को बारिश में भीगने से बचाने के लिए निःशुल्क बरसाती देने के साथ-साथ सब्जी उत्पादक किसानों को बिजली और डीजल पम्प खरीदने पर भी 17000 रूपये तक की छूट देने की योजना चलाई है। ऐसी कई योजनाओं के कारण ही प्रदेश के किसानों में खुशहाली और सम्पन्नता आयी है। आज देश में प्राथमिक क्षेत्र में विकास की दर 2 प्रतिशत से आगे नहीं है, जबकि छत्तीसगढ़ में तमाम चुनौतियों के बावजूद कृषि के क्षेत्र में यह वृद्धि दर 5 प्रतिशत से अधिक है। छत्तीसगढ़ में विकास की गंगा बहाने में आप सब की भागीदारी है। प्रदेश सरकार की प्रतिबद्धता को साकार करने और किसानों की खुशहाली में आप सब के निरन्तर सहयोग की हमें दरकार है जिससे शासन की किसान हितैषी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ राज्य के प्रत्येक गाँव परिवार तक पहुंच सके।
अंत में मै पुनः आज स्नातक और स्नातकोत्तर उपाधि और पदक से नवाजे जाने वाले सभी छात्र-छात्राओं को बधाई और कोटिशः शुभकामनाएँ देता हूँ और आशा करता हूँ कि उनके द्वारा संजोये गये उज्जवल भविष्य के सपने तथा उनके माता-पिता और गुरूजनों की आशाएँ आकांक्षाएँ फलीभूत हों। आज के कार्यक्रम में मुझे आमंत्रित करने तथा आप के समक्ष अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का अवसर देने हेतु मैं विश्वविद्यालय परिवार और यहाँ के मुखिया डा. पाटील जी का आभारी हूँ। 
धन्यवाद।
जय हिन्द, जय किसान, जय छत्तीसगढ़। 

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