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बुधवार, 19 अप्रैल 2017

सतत हरा चारा उत्पादन से सफल पशु पालन

डॉ.गजेंद्र सिंह तोमर,
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)

भारत में श्वेत क्रांति की सफलता में चारा फसलों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।  पशुधन को स्वस्थ और उनकी उत्पादन क्षमता बनाये रखने के लिए हरे चारे का विशेष योगदान है। सूखे चारे (भूषा, कड़वी, पुआल आदि) से पशुओं को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते है। हरा चारा रसदार, सुपाच्य और पौष्टिक होता है जिसे सभी पशु चाव से खाते है।  हरे चारे में प्रोटीन, विटामिन्स, रेशा और खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है जो की पशुओं के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक रहते है।  देश में कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 5.2 प्रतिशत क्षेत्र (लगभग  8.34  मिलियन हेक्टेयर) में चारा उत्पादन किया जा रहा है, जिससे केवल 40-50 प्रतिशत पशुओं को ही हरा चारा उपलब्ध हो पा रहा है। सीमित कृषि भूमि होने के कारण हमें  चारा फसलों के अन्तर्गत उपलब्ध जमीन  से ही  प्रति इकाई अधिकतम चारा उत्पादन बढाने के प्रयास करना होगे। इसके अलावा खाद्यान फसल पद्धति में चारा फसलों के समावेश से अतिरिक्त चारा उत्पादन लिया जा सकता है। साथ ही  उपलब्ध चारा संसाधन के बेहतर रख रखाव से भी चारे की उपलब्धता को बढाया जा सकता है। देश में हरा चारा उत्पादन और उपलब्धतता बढाने हेतु अग्र प्रस्तुत रणनीत कारगर साबित हो सकती है। 
  •         चारा  फसलों की खेती में  उन्नत किस्मों के उच्च गुणवत्ता युक्त बीज का इस्तेमाल करना चाहिए।  
  •        चारा फसलों की सस्तुत उत्पादन तकनीक से चारा फसलों की खेती करना चाहिए। 
  •     शीघ्र तैयार होने वाली चारा फसलों यथा सरसों/सूर्यमुखी/सल्जम) का चयन करें तथा उपयुक्त फसल चक्र अपनाना चाहिए। 
  •       अन्तः फसली खेती में दलहनी फसलों का समावेश करे जिससे चारे की गुणवत्ता बढ़ने के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढती है। 
  •      कुल कृषि योग्य रकबे के 15-20 % क्षेत्र में बहुवर्षीय चारा फसलें जैसे नेपिएर घास/गिनी घास लगाये ताकि  पशुओं को वर्ष भर हरा चारा उपलब्ध होता रहें। 
  •  .    खेत/प्रक्षेत्र की मेंड़ो पर दलहनी कुल के चारे वाले वृक्षों/झाडियो का रोपण करें जिससे आपात काल के दौरान पशुओं को हरा चारा प्राप्त हो सकें। 
  •     चारे वाली फसलों की सही अवस्था में कटाई करें जिससे मवेशिओं को अधिकतम पोषक तत्व उपलब्ध हो सकें। 
  •  .    आवश्यकता से अधिक चारा उत्पादन को ‘हे’ या ‘सायलेज’ के रूप में सरंक्षित करने के उपाय करना चाहिए ताकि आपात काल में पशुओं को पौष्टिक चारा उपलब्ध हो सकें। 
  •   .   हरे चारे को मशीन से काटकर कुट्टी के रूप में जानवरों को खिलाना चाहिए जिससे चारे की बर्वादी नहीं होगी साथ ही कुट्टी शीघ पचनीय होती है .

                                        चारे वाली फसलें/वृक्ष
    1.   एक वर्षीय चारा फसलें  :  (अ) दलहनी-बरसीम, लुसर्न, लोबिया, गुआर आदि। 
                                      (ब) घास कुल-ज्वार, बाजरा, मक्का, जई, जई आदि। 
                                      (स) अन्य चारे- सरसों, सल्जम, सोयाबीन, सूर्यमुखी आदि। 
    2. बहुवर्षीय चारा फसलें  :    (अ) घांस: संकर नेपियर बाजरा, गुनी घास, पारा घास आदि। 
                                      (ब) चारागाह घास-नंदी घास, अंजन घास मार्वल घास आदि। 
                                      (स) चारागह दलहनी घास- स्टायलो, सिराट्रो आदि। 
                                      (द) वृक्ष/झाड़ियाँ-सूबबूल, सिरिस,खेजरी, शेवरी आदि। 

महत्वपूर्ण चारा फसलें

ज्वार

ग्रीष्मकाल और वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली घास कुल की चारा फसलों में ज्वार सबसे महत्वपूर्ण चारा फसल है जिसकी खेती ठन्डे पहाड़ी क्षेत्रो को छोड़कर सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रचलित है।  इसमें अत्यधिक सूखा और अधिक वर्षा सहन करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है।  ज्वार की एकल, दो और बहु कटाईया देने वाली किस्मे उपलब्ध है जो की एक से छः कटाईयों में 50 से 100 टन/हेक्टेयर हरा चारा उत्पादित करने की क्षमता रखती है।  ज्वार फसल के पौधों में  प्रारंभिक अवस्था में प्रूसिक एसिड नामक जहरीला पदार्थ पाया जाता है, इसलिए चारे के लिए इसकी कटाई फसल में 50% पुष्पन होने पर अथवा पुष्पन से पूर्व फसल में सिंचाई देकर करने की सलाह दी जाती है।  ज्वार की उन्नत किस्मों में एम्.पी.चरी, पीसी-6,पीसी-9, पीसी-23, एचसी-308, एसएसजी-898, सीओएफएस-29, पन्त चरी-5, पन्त चरी-6, यशवंत, रुचिरा  आदि है। 

बरसीम

यह शीत ऋतू (रबी) की प्रमुख दलहनी चारा फसल है  जिसकी खेती बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बहुतायत में की जाती है।  इस फसल से नवम्बर से मई तक 6-7 कटाईयां  ली जा सकती है जिससे 70-100 टन/हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त हो सकता है।  इसका चारा स्वादिष्ट, सुपाच्य  और पौष्टिक होता है जिसमे 20% क्रूड प्रोटीन पाया जाता है।  दलहनी फसल होने के कारण यह भूमि में वतावरणीय नाइट्रोजन स्थिर करती है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढती है।  
बरसीम की उन्नत किस्में जेबी-1,2,3, बीएल-22, मेस्कावी, जेएचबी-146,वरदान, बुन्देल बरसीम  आदि है। 

लुसर्न (रिजका)

चारे की रानी के नाम से प्रसिद्ध लुसर्न हरे चारों में  बरसीम व ज्वार के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय फसल है।  इसकी खेती शीत ऋतु में गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में की जाती है . इस फसल से नवम्बर से जून तक 7-8 कटाईयों  में 60-80 टन/हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त हो जाता है . इसके चारे में लगभग 20 % क्रूड प्रोटीन पाया जाता है।  लुसर्न से उत्तम गुणवत्ता वाला ‘हे’ बनाया जा सकता है।  लुसर्न की उन्नत किस्मे आनंद-2, आनंद लुसर्न-3, आरएल-88 है . 

लोबिया

लोबिया एक  दलहनी फसल है जिसकी खेती ग्रीष्म और वर्षा ऋतू में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है।  देश के ठन्डे पहाड़ी इलाकों को छोड़कर सभी राज्यों में लोबिया दाना-सब्जी-चारा फसल के रूप में उगाई जाती है।  यह शीघ्र बढ़ने वाली और कटाई के बाद तेजी से पुनर्वृद्धि करने वाली फसल है।  इसका हरा चारा मुलायम और पौष्टिक होता है जिसे पशु चाव से खाते है।  ज्वार, बाजरा और मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में इसकी खेती करने से गुणवत्ता युक्त चारा मात्रा में प्राप्त किया   सकता है। लोबिया की एकल फसल से 30-50 टन/हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है।  लोबिया से बेहतरीन गुणवत्ता का  ‘हे’ और ‘साइलेज’ तैयार कर आपातकालीन समय में जानवरों को खिलाया जा सकता है।  
लोबिया की प्रमुख उन्नत किस्में-यूपीसी-5286,ईसी-4216, यूपीसी-5287, यूपीसी-628, आईएफसी-8401, श्वेता  आदि है । 

जई

यह घास कुल की शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसल है जिसकी खेती मुख्यतः बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसकी बढ़वार अच्छी होती है और कटाई पश्चात पुनर्वृद्धि तेजी से होती है। इसका हरा चारा मुलायम और पचनीय होता है .इससे औसतन 30-50 टन/हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता है। इससे उत्तम किस्म का ‘हे’ और ‘साइलेज’ बनाया जा सकता है। 
जई की उन्नत किस्मे केंट,यूपीओ-212, ओ एस-6, ओएस-7, जेएचओ-822, जेएचओ-851 और आरओ-19 आदि है। 

मक्का

मक्का ग्रीष्म, वर्षा और शरद ऋतु में उगाई जाने वाली सबसे उपयुक्त घास कुल की फसल है. इसका हरा चारा पौष्टिक होता है जिसमे  कार्बोहाईड्रेट बहुतायत में पाया जाता है।  इससे लगभग 30-40 टन हरा चारा प्राप्त होता है . इसके हरे चारे से उत्तम गुणवत्ता वाला साइलेज तैयार किया जा सकता है।  
प्रमुख उन्नत किस्मे-अफ्रीकन टाल, जे-1006, विजय कम्पोसिट, मंजरी,प्रताप मक्का चरी आदि। 

फसल चक्र : चारे वाली फसलों के उपयुक्त फसल चक्र अपनाने से न केवल भूमि की उत्पादकता में वृद्धि होती है वल्कि वर्ष पर्यंत हरे चारे की उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है।  चारे वाली फसलों के कुछ महत्वपूर्ण फसल चक्र यहाँ दिए जा रहे है :

                         फसल चक्र                                      हरा चारा उत्पादन (टन/हे/वर्ष)
1.   हा.नेपियर बाजरा-लोबिया-बरसीम+सरसों                285
2.   मक्का+लोबिया-मक्का-लोबिया-जई-मक्का+लोबिया          165
3.   मक्का+लोबिया-राइस बीन-बरसीम+सरसों                 110
4.   हाइब्रिड नेपियर बाजरा+ग्वार-लुसर्न                        250
5.   ज्वार+लोबिया-मक्का+लोबिया-मक्का+लोबिया             110
6.   एम.पी.चरी-लोबिया-बरसीम+सरसों-ज्वार+लोबिया    168

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