डॉ. गजेंद्र सिंह तोमर
प्राध्यापक (शस्य विज्ञान)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्व विद्यालय,रायपुर (छत्तीसगढ़)
गन्ने की भांति दिखने वाली नेपियर घास ( पेनीसेटम परप्यूरियम) पोएसी (ग्रेमिनी) कुल की सदस्य है। अधिक ऊंची होने के कारण इसे हाथी घास भी कहते है। पशुओ को वर्ष भर हरा चारा देने वाली अत्यधिक
उत्पादन क्षमता वाली संकर नेपियर बाजरा बहुवर्षीय घास है। इस घास में बाजरे के
आदर्श गुण जैसे रसीलापन, घनी पत्तियाँ, शीघ्र बढ़वार, उच्च प्रोटीन व शर्करा प्रतिशत के अलावा तेज बढ़वार जैसे गुण नैपियर में विद्यमान रहते हैं। नेपियर घास का चारा स्वादिष्ट
व पौष्टिक होता है। इसके चारे में औसतन 15-20 प्रतिशत शुष्क पदार्थ तथा 8 से 10 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसके चारे की
पाचनशीलता 50-70 प्रतिशत
होती है। संकर नेपियर घास, सामान्य नेपियर घास (हाथी घास) से अधिक
पौष्टिक एवं उत्पादक होती है। दुधारू पशुओं को लगातार यह घास खिलने से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ उनमे रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इस घास को एक बार लगाने के बाद 4-5 वर्ष तक लगातार हरा चारा प्रदान करती है। इस घास को सभी प्रकार की भूमिओं और खेत की मेड़ों पर सुगमता से लगाया जा सकता है।
जलवायु एवं
भूमि
गर्म तथा आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्र अर्थात्
जहाँ तापमान ऊँचा (25 डिग्री सेल्सियस से अधिक),
वर्षा अधिक और वायुमण्डल में आर्द्रता की
मात्रा अधिक हो, खेती के लिए उपयुक्त रहते हैं। इसकी बढ़वार के
लिए मार्च से सितम्बर की अवधि बहुत अनुकूल रहती है। इसकी खेती के लिए 150 सेमी. 200 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र सर्वोत्तम
है। अत्यन्त शीतल मौसम होने पर (20 डिग्री सेल्सियस से नीचे) इसकी वृद्धि बिल्कुल बन्द हो जाती
है पाले से नेपियर को बहुत हानि पहुँचती है। फसल कम तापक्रम में सर्दियों में 2-3 माह तक सुषुप्तावस्था में रहती है। गन्ने की
तरह उत्तरी भारत की जलवायु बीज बनने के लिए उपयुक्त नहीं है। जनवरी-फररी में फूल आते
हैं पर बीज नहीं बनते। इसलिए नैपियर का प्रशारण वानस्पतिक विधि से किया जाता है।
यह घास उत्तम जल निकास वाली सभी प्रकार की
भूमि पर उगाई जा सकती हैं। परन्तु दोमट या बलुई-दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती
है। धान के खेतों की
मेड़ पर नेपियर स्थापित करने से पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। शुष्क
व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में जहाँ सिंचाई की सुविधा है इसकी खेती सफलतापूर्वक की
जा सकती है।
इसकी बुआई के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार कर
लेना चाहिए। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके बखर द्वारा मिट्टी
को महीन एवं भुरभुरा बना लेना चाहिए। घास लगाने से पहले खेत को समतल किया जाना
चाहिए एवं खरपतवार नहींहोने चाहिए।
उन्नत
किस्में
नेपियरकी देशी किस्मों की अपेक्षा उन्नत
किस्मों से अधिक उपज एवं गुणवत्तयुक्त चारा प्राप्त होता है। इसकी उन्नत किस्मों
मे पूसा जायन्ट, एन-बी-21, शक्ति, संकर 1 व 2 आई.जी.एफ.आर.आई.-3
6,7 आदि प्रदेश के लिए उपयुक्त है संकर किस्मो
का बीज बाँझ होता है। इनके एक झुँड में 40-50 तक कल्ले बनते हैं। नेपियर की प्रमुख संकर
किस्मों की विशेषताएॅं यहंाॅं प्रस्तुत की जा राही हैं -
1. पूसा जायन्ट: इस किस्म का विकास पेनीसेटम
परप्यूरियम तथा पेनीसेटम टाइफोइडियम (अफ्रीकन बाजरा) के संकरण द्वारा किया गया। यह
किस्म नेपियर घास की अपेक्षा उत्तम गुणों वाला दो गुना अधिक चारा देती है साधारण
नेपियर घास की तुलना में इसमें 25 प्रतिशत अधिक प्रोटीन और 12 प्रतिशत अधिक शर्करा पायी जाती है। और
वृद्धि की सभी अवस्थाओं में इस किस्म का तना अधिक रसीला,
मुलायम तथा कम रेशेदार होता है चारा अधिक
मुलायम तथा पत्तीदार होता है।
2. एन.बी.-21(नेपियर संकर बाजरा): यह भी संकर किस्म है
जिसके पौधे लम्बे, शीघ्र बढ़ने वाले तथा अधिक कल्ले युक्त होते
हैं तने पतले तथा रोये रहित होते है। पत्तियाँ लम्बी,
पतली तथा चिकनी होती है। प्रथम कटाई बोने के
लगभग 50 दिन बाद की जा सकती है। इसके बाद मुख्य
वृद्धि मौसम मे 35-40 दिन के
अन्तराल पर कटाईयाँ करते हैं। सर्दी मे पौध वृद्धि धीमी हो जाती है एक वर्ष में
गभग 160 से 200 टन प्रति हेक्टेयर हरा चारा प्राप्त होता
है।
नेपियर की अन्य किस्मों में इंडियन ग्रासलैड
एण्ड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट, झांसी (उ.प्र.) द्वारा विकसित इगफ्री-6
(हरे चारे की उपज 120-130 टन/हे.) इगफ्री-3
(हरे चारे की उपज 110-120 टन/हे.), इगफ्री-7(हरे चारे की उपज 130-160 टन/हे.) तथा यसवन्त (हरे चारे की उपज 130-140 टन/हे.) है जो कि अन्तर्वर्तीय खेती के लिए
उपयुक्त है। इनके अलावा इन.बी.37, को.-1 , को.-2, को.-3 किस्में भी अधिक उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
बोआई/रोपाई का समय
इस घास की बोआई वर्षाधीन क्षेत्रों में
मानसून आने पर जून-जुलाई मे तथा सिंचित क्षेत्रो में फरवरी के द्वितीय सप्ताह से
लेकर अगस्त तक की जा सकती है। फरवरी-मार्च (बसन्त ऋतु) का समय बोआई के लिए सबसे
उत्तम है। मैदानी क्षेत्रों
मे नेपियर की बोआई अधिक ठन्डे दिनों को छोड़कर वर्ष भर की जा सकती है।
बीज एवं
बोआई
नेपियर घास का प्रसारण वानस्पतिक विधि द्वारा
होता है। इसके लिए भूमिगत तने जड़ो के टुकड़े या तनो के टुकड़ो का उपयेाग किया जाता
है। बोआई से पूर्व तना या राइजोम को छोटे-छोटे टुकड़ों मेंकाटा जाता है। जिससे कि प्रत्येक
टुकड़े मे कम-से-कम 2 स्वस्थ कलियाँ अवश्य उपस्थित हों। बोआई 7-8 सेमी. की गहराई पर करते हैं। एक हेक्टेयर रोपाई हेतु 40,000-45,000 टुकड़ों की आवश्यकता होती है।
नेपियर को निम्न विधियों द्वारा तैयार खेत में लगाया जाता हैं।
1. कूड़ों में बोआई: जब खेत में पर्याप्त नमी रहती है, उस समय हल द्वारा 60-90 सेमी.की दूरी पर कूड़ बना कर उसमे 50-60 सेमी. के अन्तर पर टुकड़े बिछा दिये जाते हैं। इसके पश्चात् पाटा चलाकर टुकड़ो की आवश्यकता होती है।
नेपियर को निम्न विधियों द्वारा तैयार खेत में लगाया जाता हैं।
1. कूड़ों में बोआई: जब खेत में पर्याप्त नमी रहती है, उस समय हल द्वारा 60-90 सेमी.की दूरी पर कूड़ बना कर उसमे 50-60 सेमी. के अन्तर पर टुकड़े बिछा दिये जाते हैं। इसके पश्चात् पाटा चलाकर टुकड़ो की आवश्यकता होती है।
2. टुकड़ों को 45 अंश के कोण का गाड़ना: तैयार खेत मे रस्सी
द्वारा कतारें आर-पार बना ली जाती है। पंक्तियों से पंक्तियो की दूरी 90-100 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी. तक रखी जाती है। इनके कटान बिन्दुओं
पर 45 अंश के कोण पर टुकड़े इस प्रकार गाड़े जाते
हैं कि टुकड़े की एक कली भूमि के अन्दर रहती है जो जड़ उत्पन्न करती है तथा दूसरी
कली भूमि के ऊपर रहती है जो हवाई शाखाएँ उत्पन्न करती है। टुकड़े लगाने के पश्चात्
जड़ के पास की मिट्टी को अच्छी तरह दबाने के तुरन्त पश्चात् सिंचाई कर देते हैं।
बाद में कूड़ों पर मिट्टी चढ़ाकर मेंड़ बना दी जाती है।
खाद एव
उर्वरक
उर्वरक घास अधिक उपज देने वाली घास है,
इसलिए प्रचुर मात्रा में खाद देने की
आवश्यकता होती है। नेपियर के लिए 8 से 10 टन गोबर की खाद बुआई के 2 से 3 सप्ताह पहले खेत में डालकर मिट्टी में मिला
देनी चाहिए। रोपाई के समय 40-50 किलो
नत्रजन तथा 60-80 किलो स्फुर
तथा 20-30 किलो पोटाश
प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए। बाद में 40 किलो नत्रजन प्रति हेक्टेयर हर कटाई के बाद
डालने से फसल की पुर्नवृद्धि तेज होती है और उत्पादन भी अच्छा मिलता है। प्रयोगा
से ज्ञात हुआ है कि संकर नेपियर के साथ दलहनी चारा फसल उगाने पर 15 किग्रा.नत्रजन/कटाई/हे. देने से सर्वाधिक
उपज प्राप्त होती है।
सिंचाई एवं
जल निकास
नेपियर लगाने के तत्काल बाद खेत मे पानी
लगाना आवश्यक रहता है। गर्मियों में मार्च से जून तक फसल की सिंचाई 8-10 दिन के अंतर पर करनी चाहिए। सर्दी के मौसम
में फसल को 15 से 20 दिन के अंतर पर पानी देना चाएिह। इसके
अतिरिक्त प्रत्येक कटाई बाद पानी देना आवश्यक है। पानी भरे खेतो मे पौधे मर जाते
हैं। अतएव खेत मे जल निकास का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए।
निराई-गुड़ाई
नेपियर घास रोपने के 15 दिन बाद अन्धी गुड़ाई करनी चाहिये। प्रत्येक
कटाई के बाद दो कतारों के बीच देशी हल या कल्टीवेटर द्वारा गुड़ाई करने से भूमि की
जलधारण क्षमता में वृद्धि होने के साथ साथ खरपतवार की समस्या नही रहती है इससे
पुरानी जड़ों की छँटाई भी हो जाती है जिससे नई जड़ों का विकास एवं प्रसार होता है।
अतः फसल बढ़वार अच्छी होती है।
फसल पद्धति
वर्ष पर्यन्त हरा चारा प्राप्त करने के लिए
नेपियर के साथ सहफसली या अन्तर्वर्ती खेती लाभदायक रहती है। अतः मिश्रित खेती में
नेपियर घास की दो कतारों के मध्य खरीफ में लोबिया या ग्वार तथा रबी में बरसीम या
लूर्सन उगाया जाता है। इससे उपज व उसकी गुणवत्ता और पाचनशीलता में सुधार होता है।
नेपियर घास मे आक्सेलिक अम्ल रहता है जो कि पशुओं के लिए हानिकारक पाया गया है
परंतु नेपियर चारे के साथ दलहर चारो को मिलाकर खिलाने से इस दुष्प्रभाव से बचा जा
सकता है। संकर नेपियर + बरसीम-लोबिया फसल चक्र से एक वर्ष में 200 टन हरा चारा तथा 52 टन सूखा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता
है।
कटाई एवं
उपज
सामान्य तौर पर नेपियर घास प्रथम कटाई के लिए रोपाई के लगभग 50-60 दिन
पश्चात् तैयार हो जाती है तथा इसके बाद 35-45 दिन के अन्तराल से अन्य कटाईयाॅं करना
चाहिए। पौधे लगभग जमीन से 8-10 सेंटीमीटर
की ऊँचाई से इसे चारे के लिए काटना चाहिए। एक बार उगाई गई फसल 3-4 वर्ष तक अच्छा चारा दे सकती है इस घास को 1-1.5 मीटर ऊँचाई पर ही काट लेना चाहिए। अधिक बढ़ने
पर कटाई करने से पौधे सख्त हो जाते हैं और चारा अधिक रेशेदार हो जाता है,
जिससे पशु उसे कम खाते हैं। सामान्य अवस्थाओं
में नेपियर घास से प्रतिवर्ष 6-8 कटाईयाॅं मिल जाती है। जिससे लगभग 150 से 200 टन हरा चारा (संकर किस्मों से) प्राप्त किया
जा सकता है।
नोट: कृपया इस लेख को लेखक की अनुमति के बिना अन्य किसी पत्र-पत्रिकाओं या इंटरनेट पर प्रकाशित करने की चेष्टा न करें। यदि आपको यह लेख प्रकाशित करना ही है तो ब्लॉगर को सूचित करते हुए लेखक का नाम और संस्था का नाम अवश्य दें एवं प्रकाशित पत्र-पत्रिका की एक प्रति लेखक को जरूर भेजें।
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